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Chapter 16 - -आकर्ष vs आहूजा परिवार

'Whoosh'

अचानक एक तलवार हवा में उड़ती है और पेड़ से गिर रही पत्तियां  दो हिस्सों में बंट जाती है।

एक पल से भी कम समय में तलवार वापस तलवारबाज के पास आ जाती है।

"इतनी तेज...मालिक अभी आपने तलवारबाजी की कौनसी कला का इस्तेमाल किया।"

पास में खड़ी लड़की ने उस तलवारबाज से पूछा।

"यह कोई विशेष प्रकार की युद्ध कला नहीं है। एक तलवारबाज के लिए सबसे जरूरी चीज होती है उसकी तलवार। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि अगर आपके पास तलवार है तो आप जीतेंगे। तलवार से भी जरूरी है समय। जब दो योद्धा तलवार से एक दूसरे पर वार कर रहे होते हैं तो उनमें से जो पहले वार करता है उसके पास जीतने का मौका होता है। जितनी जल्दी तुम तलवार म्यान से निकालोगी उतनी जल्दी अपने दुश्मन पर वार कर पाओगी। तुम जितना तेज होगी उतना ही तुम्हारे पास जीतने का मौका होगा।"

आकर्ष ने हल्का मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

वो अभी तलवारबाजी की जिस कला का इस्तेमाल कर रहा था वह उसने अपने पिछले जीवन में सीखी थी। वह एक कमांडो था और हत्यारा भी। इसलिए उसने सारे हथियार चलाने सीखे थे जैसे- तलवार, धनुष, कृपाण।

यही कारण था कि उसका कोई भी दुश्मन उसको उसके पिछले जीवन में मार नहीं पाया था। मगर उसका वह दोस्त जिसने उसे धोखा दिया था अगर वह किसी तरह धरती पर वापस लौट पाए तो सबसे पहले अपने उस दोस्त को ही खत्म करेगा। उसने अपने पूरे जीवन में इतना कत्लेआम किया था कि सब लोग उसे मृत्यु का देवता कहने लगे थे।

"दीया जैसा कि मैंने अभी तुम्हें बताया, रफ्तार सबसे जरूरी होती है। इसके बल पर तुम अपने से ताकतवर व्यक्ति को भी हरा सकती हो। हम योद्धाओं का सबसे जरूरी हथियार हमारी रफ्तार होता है। अगर किसी दिन तुम किसी ऐसे योद्धा से लड़ती हो जो तुमसे कई गुना ज्यादा ताकतवर है, उस समय अगर तुम्हारी रफ्तार तेज होगी तो तुम अपने दुश्मन के कुछ करने से पहले ही उसका गला काट चुकी होगी।"

आकर्ष ने दीया को समझाते हुए कहा।

आकर्ष के बताए अनुसार दीया ने तलवार चलाना शुरु किया। कुछ देर अभ्यास करने के बाद उसे खुद महसूस होने लगा कि उसकी तलवारबाजी पहले की तुलना में कुछ बेहतर हुई है। मगर अभी भी वह उस स्तर पर नहीं पहुंची थी जिस स्तर पर आकर्ष था।

उसे लगा कि शायद वह गलत तरीके से अभ्यास कर रही है, इसलिए उसने आकर्ष से पूछा...

"मालिक...मैं आपके जैसे तलवारबाजी क्यों नहीं कर पा रही। क्या मुझसे सिखने में कुछ गलती हो रही है?"

अभ्यास करते करते सुबह से दोहपर हो गयी थी पर अभी भी उसे आकर्ष की सिखाई इस नई युद्ध कला में कोई महारत हासिल नहीं हुई थी।

"तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?"

"मैं सुबह से इस तलवार तकनीक का अभ्यास कर रही हूं। पर अभी तक आपके जितनी रफ्तार हासिल नहीं कर पाई हूं।"

दीया का जवाब सुनकर आकर्ष हंसने लगा।

"तुम बिल्कुल पागल हो। सिर्फ आधे दिन के अभ्यास से तुम इस तलवार तकनीक में महारत हासिल नहीं कर सकती। तुम्हें शायद जानकर हैरानी होगी पर जब मैंने पहली बार यह तलवार तकनीक सीखी थी, तब तुम्हारी जितनी रफ्तार हासिल करने के लिए मुझे पूरा एक दिन लगा था। इसलिए इतनी जल्दी हार मत मानो। निरंतर अभ्यास से सब कुछ संभव है।"

"क्या सच में"

दीया ने अपनी पलकें झपकाते हुए पूछा। आकर्ष की बात सुनकर उसका आत्मविश्वास फिर से बढ़ गया था।

"बिल्कुल...मैं भला तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा। लेकिन इन सबसे पहले तुम्हें यह जानना होगा कि तुम्हें तलवार का इस्तेमाल कैसे करना है। तुम तलवार को कैसे पकड़ती हो, किस हाथ से पड़ती हो, हमला कैसे करती हो, यह सारी बातें तलवारबाजी सीखने के लिए जरूरी होती है।"

आकर्ष ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा।

"आपका धन्यवाद मालिक। मैं आपका विश्वास नहीं तोडूंगी और निरंतर अभ्यास करती रहूंगी।"

इतना कह कर दीया ने फिर से तलवारबाजी का अभ्यास करना शुरू कर दिया।

आकर्ष भी वहां खड़े होकर उसके अभ्यास को देखने लगा।

अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उसे पर नजर रख रहा है। उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसकी मां रेवती उसी की ओर देख रही है।

"मां तुम यहां"

आकर्ष अपने पिछले जीवन में एक हत्यारा था जिसका मतलब था कि अपने आसपास होने वाली प्रत्येक गतिविधि पर उसकी हर वक्त नजर रहती थी। पर रेवती कब उसके पीछे आकर खड़ी हो गई थी इस बारे में उसे पता भी नहीं चला।

रेवती ने आकर्ष के सवाल का कोई भी जवाब नहीं दिया और वहीं खड़े होकर चुपचाप दीया के अभ्यास को देखने लगी।

दीया बार-बार एक ही वार का अभ्यास कर रही थी जिसका कारण रेवती को कुछ समझ नहीं आया। उसने आकर्ष की ओर देखते हुए पूछा...

"आकर्ष तुमने दीया को कौन सी युद्ध कला सिखाई है। वह बार-बार एक ही वार का अभ्यास क्यों कर रही है। अगर तुम्हारे पास कोई तलवार तकनीक नहीं है तो तुम मुझे कह सकते हो। मैं तुम्हें एक तलवार तकनीक खरीद कर दे दूंगी।"

"मां हमेशा जैसा दिखता है वैसा होता नहीं। आप जिन तलवार तकनीक को खरीदने की बात कर रही हो वह बस दिखने में अच्छी है लेकिन युद्ध के समय वह बिल्कुल कमजोर हो जाती है। उनके बल पर युद्ध जीतना असंभव है।"

आकर्ष ने जवाब दिया।

उसने मिश्रा परिवार के युद्ध गृह में मौजूद सभी युद्ध कलाओं को पढ़ा था। जब वह युद्ध कलाएं भी उसे पसंद नहीं आई थी, तो खरीदी गई युद्ध कलाएं भला कैसे पसंद आती।

"आकर्ष क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुमने अभी दीया को जो युद्ध कला सिखाई है, वह उन युद्ध कलाओं से बेहतर है जो मैं खरीदूंगी।"

रेवती ने हैरान होते हुए पूछा।

"मां अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा है तो आप मुकाबला करके पता लगा सकती हो।"

आकर्ष ने हंसते हुए कहा।

"क्या अब तुम अपनी मां के साथ मुकाबला करना चाहते हो।"

रेवती ने पूछा।

उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि आकर्ष जो अभी शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में है, वह उससे मुकाबला करना चाहता है।

"मां जरा संभल कर"

इतना कह कर आकर्ष ने अपनी म्यान से तलवार निकाली, एक वार किया और तलवार वापस म्यान में रख ली। यह सब कुछ एक पलक झपकने से भी कम समय में हो गया था। इसलिए रेवती को तलवार नजर ही नहीं आई। उसे बस एक चमकीली परछाई दिखाई दी और इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती आकर्ष ने अपना वार कर दिया था।

रेवती समझ गई थी कि उसके पास इस वार का सामना करने का समय नहीं है। इसलिए उसने जल्दी से अपनी आंतरिक ऊर्जा का इस्तेमाल किया और अपने बचाव के लिए दो कदम पीछे हट गई। उसके सिर पर इस समय एक हाथी की परछाई प्रकट हो चुकी थी, जिसका मतलब था कि आकर्ष के एक वार का सामना करने के लिए उसे एक हाथी की ताकत इस्तेमाल करनी पड़ रही थी।

रेवती ने एक गहरी सांस ली और हैरानी से आकर्ष की ओर देखा।

आकर्ष ने अभी जो वार किया था, वह वही वार था जो उसने दीया को सिखाया था। लेकिन उसकी रफ्तार बहुत तेज थी। एक आम व्यक्ति के लिए तो उस वार को देख पाना भी बहुत मुश्किल था। अगर रेवती सही समय पर पीछे नहीं हटती, तो अभी गंभीर रूप से घायल हो जाती। आकर्ष अपने इस वार से शारीरिक मंडल के नोवे स्तर के योद्धा तक को घायल कर सकता था, जिसकी ताकत एक हाथी के बराबर होती है।

"मां अब आपको क्या लगता है? क्या अभी भी आपका यही कहना है कि मेरी सिखाई युद्ध कला बाजार से खरीदी गई युद्ध कलाओं से बेहतर नहीं है?"

आकर्ष ने मुस्कुराते हुए पूछा।

उसे अपनी तलवार तकनीक पर पूरा भरोसा था। अगर एक शारीरिक मंडल के छठे स्तर का योद्धा उससे मुकाबला करता है तो वह एक झटके में अपनी तलवार से उसे खत्म कर सकता था।

"क्या यह तलवार तकनीक भी तुमको उस बूढ़े व्यक्ति ने सिखाई है जो तुम्हारे सपने में आया था!"

रेवती ने शक करते हुए पूछा।

अपनी मां का सवाल सुनकर आकर्ष शर्मिंदा था। उसे अपनी मां से बातें छुपाने पड़ रही थी। पर वह मजबूर था। वह नहीं चाहता था कि उसके ताकतवर बनने से पहले कोई उसके रहस्य जाने।

"आकर्ष का चेहरा देख रेवती भी समझ गई थी कि आकर्ष इस सवाल का कोई जवाब नहीं देना चाहता। इसलिए उसने बात बदलते हुए कहा...

"आकर्ष यह तलवार तकनीक मुझे पसंद आई, क्या तुम मुझे यह सीखा सकते हो!"

"क्यों नहीं! आप चाहे तो दीया के साथ इसका अभ्यास कर सकती है।"

आकर्ष ने तुरंत जवाब दिया।

आकर्ष के कहे अनुसार रेवती दीया के साथ उस तकनीक का अभ्यास करने लगी। क्योंकि रेवती चक्र मध्य मंडल की योद्धा थी इसलिए दीया की तुलना में वह बहुत ही कम समय में उस तकनीक को सीख गई। सिर्फ एक दिन के अभ्यास से वह आकर्ष के समान स्तर पर पहुंच गई।

लेकिन हां...वह अभी भी आकर्ष के जितनी निपुण नहीं हो पाई थी। आखिरकार आकर्ष ने उस स्तर पर पहुंचने के लिए कई साल मेहनत की थी। उसे 1 दिन में सीख पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था।

अब आकर्ष पहले की तुलना में ज्यादा व्यस्त रहने लगा। वह सुबह से दोपहर तक अपनी युद्ध कला का अभ्यास करता, दोपहर से शाम तक अपनी मां रेवती और दीया दोनों को तलवार तकनीक सीखाता और शाम से रात तक मिश्रा परिवार के एल्डर्स के लिए दिव्य जल बनाता।

पूरे दिन व्यस्त रहने के कारण आकर्ष अपने खुद के लिए समय नहीं निकाल पा रहा था। इसलिए उसने निर्णय किया कि वह सबसे पहले मिश्रा परिवार के एल्डर्स के लिए दिव्य जल बनाएगा।

उसने आवश्यक सामग्री ली और अपने कमरे में जाकर दिव्य जल बनाने लगा।

इसी तरह तीन दिन बीत गए।

उसने इन तीन दिनों में इतने ज्यादा दिव्य जल का निर्माण किया था कि वह मिश्रा परिवार के एल्डर्स और उनके बच्चों के लिए 3 महीने तक पर्याप्त था। अपने सामने जड़ी बूटियां के उस पहाड़ को देख आकर्ष बहुत ज्यादा खुश था। उसने सबसे पहले सारी जड़ी बूटियां के एक तिहाई हिस्से को अपने पास रखा। वह मुफ्त में दिव्य जल नहीं बना रहा था, यह एक तिहाई जड़ी बूटियां उसकी फीस थी।

उसने दिव्य जल बनाने के लिए पैसों की जगह जड़ी बूटियां इसलिए ली थी ताकि जब भी उसे सप्त शारीरिक दिव्य जल बनाना होगा, तो उसे बाकी की जड़ी बूटियां खरीदनी नहीं पड़ेगी। 7 में से 6 जड़ी बूटियां उसके पास पहले से मौजूद होगी।

"आकर्ष...आहूजा परिवार के लोग तुमसे मिलना चाहते हैं। कुल प्रमुख ने तुम्हें बुलाया है।"

आकर्ष अपने ही विचारों में खोया हुआ था तभी उसे कमरे के बाहर से रेवती की आवाज सुनाई दी।

'आहूजा परिवार...तो वो लोग आ ही गए। मैं कब से उनका इंतजार कर रहा था।'

आकर्ष ने अपने आप से कहा।

जब वह दीया के साथ बाजार तलवार खरीदने गया था, उस समय एक परछाई उसका पीछा कर रही थी। आकर्ष ने उस परछाई को पहचान लिया था। वह आहूजा परिवार का व्यक्ति था जो उसकी जासूसी कर रहा था। आकर्ष समझ गया था कि आहूजा परिवार के लोग बहुत जल्द उससे मिलने आएंगे।

इस समय मिश्रा परिवार के सभा कक्ष में वर्धन सिंह अपने सिंहासन पर बैठे थे और उनके पास में आशुतोष खड़ा था। उन दोनों के ठीक सामने आहूजा परिवार का कुल प्रमुख अभय आहूजा और श्रीकांत आहूजा बैठे थे।

"कुल प्रमुख...आपने मुझे बुलाया।"

अचानक सभा कक्ष के बाहर से आकर्ष की आवाज सुनाई दी।

"हां आकर्ष...कोई तुमसे मिलने आया है।"

वर्धन सिंह ने जवाब दिया।

आकर्ष ने जैसे सभा कक्ष में प्रवेश किया तो उसका ध्यान वर्धन सिंह के पास खड़े आशुतोष पर गया। उसने मुस्कुराते हुए कहा...

"आशुतोष मैंने सुना है तुम्हारे बेटे ने शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में प्रवेश कर लिया है।"

आशुतोष ने कोई जवाब नहीं दिया बस आकर्ष की ओर देखकर हल्का मुस्कुराने लगा। उसकी आंखों में पश्चाताप के भाव थे।

"आकर्ष...यह आहूजा परिवार के कुल प्रमुख अभय आहूजा है और इनके साथ बैठे व्यक्ति श्रीकांत है।"

वर्धन सिंह ने आकर्ष से अभय आहूजा और श्रीकांत का परिचय करवाते हुए कहा।

"प्रणाम कुल प्रमुख आहूजा"

आकर्ष ने अभय आहूजा को प्रणाम किया।

"मैंने तुम्हारी मां के बारे में बहुत सुन रखा है। सभी लोग उसकी बहुत प्रशंसा करते हैं। तुम भी बिल्कुल अपने मां के जैसे हो, काफी दिनों से लोग तुम्हारी भी प्रशंसा कर रहे हैं।"

अभय आहूजा ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसने आकर्ष के बारे में सब कुछ पता किया था। सबसे हैरान करने वाली बात उसे यह लगी थी कि आकर्ष ने सिर्फ एक ही महीने के अंदर शारीरिक मंडल के पहले स्तर से तीसरे स्तर में प्रवेश किया है।

उसने अमन के दोनों बेटों को विकलांग कर दिया था, पर इसके बावजूद उसे कोई भी सजा नहीं मिली थी। इन सब से उसे इतना तो समझ आ गया था कि आकर्ष जितना सरल दिख रहा है उतना सरल है नहीं।

"अभय...तुम्हारे कहे अनुसार मैंने आकर्ष को बुला लिया है। क्या तुम्हें उससे कोई काम था?"

वर्धन सिंह ने पूछा।

वर्धन सिंह के सवाल पूछते ही अभय आहूजा अपनी जगह से खड़ा हुआ और गुस्सा होते हुए आकर्ष से कहा...

"आकर्ष तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, तुमने 1 महीने पहले मेरे बेटे को सभी के सामने मारा था। तुम्हें नहीं लगता इस बारे में तुम्हें हमसे बात करनी चाहिए। तुमने ना सिर्फ मेरे बेटे बल्कि श्रीकांत के बेटे को भी घायल किया है पर इसके लिए माफी मांगने की जगह तुम हमसे ऐसे बात कर रहे हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं। तुम्हारे पास अभी भी मौका है, अपनी गलती को सुधार लो वरना..."

अभय आहूजा की बात सुनकर वर्धन सिंह और आशुतोष दोनों आकर्ष की ओर देखने लगे।

उन दोनों को अभी तक इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। अगर पता होता तो वह शायद इस मामले को गंभीरता से लेते।

"कुल प्रमुख आहूजा...अगर आप यहां मेरे अपराध बताने आए हैं तो बता सकते हैं। मुझे इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता। जहां तक मुझे लगता है आपने भी उस दिन क्या हुआ था, इस बारे में पता लगाया होगा। वहां मौजूद सभी लोग इस बात के गवाह है कि मैंने कोई भी अपराध नहीं किया है। सारी गलती आपके बेटे की थी और इस बात से आप भी भली भांति परिचित हैं। मेरे समझाने के बाद भी उसने मुझ पर हमला किया। मैंने आपके आहूजा परिवार का सम्मान करते हुए उसे सिर्फ विकलांग किया है, वरना मैं उसे खत्म भी कर सकता था।"

आकर्ष ने जवाब दिया।

"बस बहुत हुआ...तुम बस एक शिष्य हो। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कुल प्रमुख से इस तरह बात करने की। क्या तुम्हारे मिश्रा परिवार में शिष्यों को यह नहीं सिखाया जाता कि बड़ों से बात कैसे की जाती है। अरे नहीं!...मैं तो भूल ही गया... तुम मिश्रा परिवार से नहीं हो। पर जिस भी परिवार से हो, अगर फिर से कुल प्रमुख से इस तरह बात करने की कोशिश भी की तो अपनी जान से हाथ धो बैठोगे।"

श्रीकांत ने धमकी देते हुए कहा।

उसकी आंखों में कत्ल का भाव साफ नजर आ रहा था।

उसके सिर पर इस समय एक हाथी की परछाई प्रकट हो चुकी थी, जो किसी भी समय आकर्ष पर हमला करने को तैयार थी।