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Chapter 19 - दीया का डर 

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'मेरु रेस्टोरेंट' सांची कस्बे का सबसे बढ़िया रेस्टोरेंट था। इस रेस्टोरेंट पर सांची के तीनों परिवारों में से किसी का भी अधिकार नहीं था। यह रेस्टोरेंट व्यापारियों के एक समुदाय के अधीन था जो सांची कस्बे के बाहर से आए थे। जिन व्यापारियों ने इस रेस्टोरेंट को बनाया था उनकी वास्तविक पहचान के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इस रेस्टोरेंट के अंदर आम लोगों का खाना खा पाना बहुत मुश्किल था। ऐसा नहीं था कि आम लोगों को इसके अंदर जाने से रोका जाता था बल्कि इसका कारण था इस रेस्टोरेंट का महंगा खाना, जिसे सिर्फ अमीर लोग ही खा सकते थे। इतना महंगा होने के बाद भी इस रेस्टोरेंट के अंदर हमेशा बहुत ज्यादा भीड़ होती थी।

हमेशा की तरह आज भी मेरु रेस्टोरेंट में बहुत ज्यादा भीड़ थी। अब क्योंकि आकर्ष के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी और उसे भूख भी लगी थी इसलिए वो दीया को लेकर इस रेस्टोरेंट में जाने लगा। उन दोनों को रेस्टोरेंट में जाता देख, वो लोग जो खाना खाकर रेस्टोरेंट से बाहर आ रहे थे हैरानी और ईर्ष्या से आकर्ष की ओर देखने लगे। उनकी हैरानी का कारण था आकर्ष का इस रेस्टोरेंट में खाना खाने आना। वहीं उनकी ईर्ष्या का कारण था दीया का उसके साथ होना।

"मैं आप दोनों की क्या सहायता कर सकता हूं?"

आकर्ष और दीया को रेस्टोरेंट में आया देख एक वेटर उनके पास गया और पूछा।

"असल में मैं और मेरी दोस्त यहां पर पहली बार आए है। मैं नहीं चाहता कि हमें खाना खाते वक्त कोई परेशान करें इसलिए अगर तुम्हारे रेस्टोरेंट में कोई खिड़की के पास की टेबल खाली है तो हमें वहां ले चलो।"

आकर्ष ने कहा।

आकर्ष की बात सुनकर उस वेटर ने एक दूसरे वेटर को कोई इशारा किया और उन दोनों को लेकर रेस्टोरेंट के सेकंड फ्लोर पर आ गया। यहां भीड़ थोड़ी कम थी इसलिए सेकंड फ्लोर बिल्कुल शान्त था। लेकिन हाँ.यहां का खाना ग्राउंड फ्लोर की तुलना में ज्यादा महंगा था।

आकर्ष की किस्मत आज थोड़ी अच्छी थी क्योंकि इस समय खिड़की के पास केवल एक टेबल ही खाली थी। जैसे ही वो दोनों उस टेबल की ओर जाने लगे तो वहां मौजूद सभी लोग दीया को एकटक नज़र से देखने लगे।

"दीया"

आकर्ष ने एक कुर्सी खींची और दीया को उस पर बिठाते हुए कहा।

"धन्यवाद मालिक"

दीया ने कहा।

वह इस समय बहुत खुश थी क्योंकि आकर्ष उसके साथ था।

जैसे ही आकर्ष दीया के सामने वाली कुर्सी पर बैठने वाला था, उसने देखा कि कोई पहले से उसकी जगह पर आकर बैठ गया है।

आकर्ष को पहले लगा कि यह कोई लड़का होगा जो दीया के साथ बैठना चाहता है, पर उसे यह देखकर अजीब लगा कि उसकी जगह पर कोई लड़का नहीं बल्कि एक लड़की बैठी है।

"भला एक लड़की दीया के साथ क्यों बैठना चाहती है?"

आकर्ष ने अपने आप से पूछा।

वह लड़की लगभग 16 साल की थी। वो दीया जितनी सुंदर तो नहीं थी पर उसके मासूम चेहरे में कुछ तो बात थी। ऊपर से उसकी प्यारी सी मुस्कान। कुछ सेकेंड के लिए उसके चेहरे ने आकर्ष का ध्यान भी अपनी और खींच लिया था।

उस लड़की के साथ उसकी एक दासी भी थी।

"माफ कीजिए पर आप किसी और की जगह पर बैठ गई है। कृपया अपनी जगह पर जाकर बैठे।"

वो वेटर जो आकर्ष और दीया को लेकर सेकंड फ्लोर पर आया था, उसने उस लड़की से कहा।

"क्या तुमने मुझे नहीं पहचाना? मैं बहुत समय से तुम्हारे रेस्टोरेंट में आ रही हूं। इस रेस्टोरेंट में आने वाले ज्यादातर ग्राहक हमारे परिवार से हैं। तुम्हारा रेस्टोरेंट मुझ पर इतना छोटा सा एहसान तो कर ही सकता है कि मैं अपनी पसंद की जगह पर बैठूं। "

उस लड़की ने वेटर की ओर देखते हुए कहा।

"और हां. मुझे अनजान लोगों के साथ बैठना पसंद नहीं है"

उस लड़की ने दीया की ओर देखते हुए कहा।

उसे दीया के ज्यादा सुंदर होने से जलन हो रही थी।

"सुनिए.क्या आप कोई दूसरी जगह. "

एक दूसरा वेटर जो उस लड़की के साथ आया था, आकर्ष को उसकी जगह बदलने को कहने वाला था। पर जब उसने देखा कि आकर्ष उस पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है, तो वह चुप हो गया।

"मालिक क्यों ना हम किसी दूसरी जगह पर बैठ जाएं।"

दीया ने हालात को समझते हुए आकर्ष से कहा।

दीया समझ गई थी कि वह लड़की गुप्ता या आहूजा परिवार में से किसी एक परिवार से है। जिस तरीके से वो दोनों वेटर उस लड़की से बात कर रहे थे यह साफ था कि वह दोनों उस लड़की से डर रहे है और पूरे सांची में सिर्फ तीन ही परिवार ऐसे थे जिनसे मेरु रेस्टोरेंट के वेटर डरते थे। मिश्रा परिवार, आहूजा परिवार और गुप्ता परिवार। वैसे सिर्फ यही कारण नहीं था कि दीया ने आकर्ष से उसकी जगह बदलने को कहा था। असल में वो अपनी वास्तविकता जानती थी। वह एक गरीब परिवार में पैदा हुई थी और अपनी तुलना अमीर घर की लड़कियों से नहीं कर सकती थी। दीया के दिल में यह बात इस प्रकार घर कर गई थी कि वह जब भी किसी अमीर घर की लड़की को अपने सामने देखती तो डर जाती। वह पिछले कुछ दिनों से आकर्ष के साथ जरूर रह रही थी पर इसका मतलब यह नहीं था कि अब उसकी वास्तविकता बदल गई है। गरीबी, लाचारी और कमजोरी.यह कुछ ऐसी चीजें थी जो गरीब घर की लड़कियों को बचपन में ही सिखा दी जाती थी और दीया कोई अपवाद नहीं थी। आज भी उस लड़की को अपने सामने देख वह डर गई थी और इसलिए आकर्ष से अपनी जगह बदलने को कहने लगी।

दीया की हालत देख आकर्ष तुरंत समझ गया कि वह क्या सोच रही है। वह उसके मन से गरीबी का डर निकालना चाहता था क्योंकि अब वह उसके परिवार का हिस्सा थी। पर यह तभी संभव था जब दीया खुद अपने अधिकार के लिए लड़े। दीया के लिए समझना बहुत जरूरी था कि पैसों से ऊपर भी कुछ है और वह है ताकत। ज्यादा पैसे होने का क्या मतलब जब आपके पास उसकी सुरक्षा करने की ताकत भी ना हो।

"तुम चाहती हो कि हम अपनी जगह बदल दें। ठीक है!.मैं वैसा ही करूंगा जैसा तुम चाहती हो। पर पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो! हम ही अपनी जगह क्यों बदले?"

आकर्ष ने दीया का हाथ पकड़ते हुए पूछा।

"वो.वो."

आकर्ष का सवाल सुनकर दीया बिल्कुल चुप हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दे?

"दीया. याद रखना अब तुम वो पहले वाली दीया नहीं हो! जब से तुम हमारे घर में रह रही हो तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो। तुम हमारी दीया हो, मेरी दीया। मैंने तुम्हें वो सारी युद्ध कलाएं इसलिए नहीं सिखाई थी कि तुम केवल उनका अभ्यास करती रहो। मैंने तुम्हें योद्धा इसलिए बनाया था ताकि तुम अपने अधिकार के लिए लड़ सको। पर तुम क्या कर रही हो? तुम एक छोटी सी बात से डर गई? क्या तुम सभी को यह दिखाना चाहती हो कि मेरा फैसला गलत था? जब तक मैं तुम्हारे साथ हूं तुम्हें डरने की कोई भी जरूरत नहीं है।"

आकर्ष ने दीया को समझाते हुए कहा।

"मुझे माफ कर दीजिए मालिक.मैं गलत थी। मुझे ऐसे डरना नहीं चाहिए था।"

दीया ने अपना सिर झुकाते हुए कहा। वह बहुत शर्मिंदा थी।

"क्या तुम दोनों ने सुना मैंने क्या कहा? मैंने कहा मुझे अनजान लोगों के साथ बैठना पसंद नहीं है। तुम चुपचाप यहां से जा रहे हो या धक्के मार कर निकालूं।"

उस लड़की ने गुस्सा होते हुए कहा। आकर्ष ने अभी जो कुछ भी कहा था उसे वह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था।

"तुम गुप्ता परिवार से हो.है ना? "

आकर्ष ने उस लड़की की तरफ देखते हुए पूछा।

"मैं सिर्फ तीन तक गिनूंगा। अगर तब तक तुम मेरी जगह से खड़ी नहीं हुई तो फिर तुम्हारे साथ जो कुछ भी होगा उसकी जिम्मेदार तुम खुद होगी।"

आकर्ष ने गुस्सा होते हुए कहा। उसकी आंखों में फिर से कत्ल का भाव आ चुका था। वह लड़की आकर्ष को जवाब देना चाहती थी पर इससे पहले कि वह कुछ कहे उसकी आंखें आकर्ष की आंखों से जा मिली। आकर्ष की आंखों का रंग बदल गया था। उसकी आंखों का रंग नीला हो गया था। उसकी आंखों को देख उस लड़की के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था। उसका सांस लेना तक मुश्किल हो गया था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने उसके कंधों पर एक पहाड़ रख दिया हो।

"एक "

अचानक उस लड़की को आकर्ष की आवाज सुनाई दी।

उस आवाज के साथ ही उस लड़की की हालत और ज्यादा खराब होने लगी। उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसे बर्फ में गाड़ दिया है।

वह जानती थी कि वह ज्यादा समय तक यह दबाव सहन नहीं कर सकती। पर वह गुप्ता परिवार के कुल प्रमुख की बड़ी बेटी थी। अगर वह आकर्ष से डर कर वहां से चली गई तो सभी उसके गुप्ता परिवार का मजाक उड़ाएंगे। यही सोच कर वह अपनी जगह पर बैठी रही।

"दो"

तभी उसे आकर्ष की आवाज फिर से सुनाई दी। आवाज के साथ ही उसके शरीर पर पड़ने वाला दबाव पहले की तुलना में और अधिक बढ़ गया।

इस बार के दबाव ने उस लड़की की हिम्मत को तोड़ दिया। वह तुरंत आकर्ष की जगह से हट गई। वहां से हटते ही उसके शरीर पर पड़ने वाला दबाव गायब हो गया।

"तुम कौन हो?"

उस लड़की ने काँपते हुए पूछा।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके सामने खड़ा लड़का कौन है और उसने अभी कौन सी ताकत का इस्तेमाल किया था।

जब उस पर वह दबाव लग रहा था तो एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके सामने खड़ा लड़का कोई इंसान नहीं बल्कि कोई पिशाच है जो नर्क से आया है।

पर एक बात को लेकर वह निश्चित थी कि उसके सामने खड़ा यह लड़का कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है।

"मुझे तुम्हारे रेस्टोरेंट का सबसे स्वादिष्ट खाना खाना है।"

आकर्ष ने वेटर से कहा।

आकर्ष की बात सुनकर वेटर तुरंत खाना लाने चला गया। उसके हिसाब से अगर कोई व्यक्ति गुप्ता परिवार के कुल प्रमुख की बड़ी बेटी 'सोनाक्षी गुप्ता' को उसकी जगह से खड़ी होने पर मजबूर कर सकता है, तो वह कोई सामान्य व्यक्ति तो नहीं होगा।

"तुमने सुना नहीं.मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूं?"

उस लड़की यानी सोनाक्षी गुप्ता ने आकर्ष से कहा। उसे आकर्ष का इस प्रकार उसे नजरअंदाज करना पसंद नहीं आ रहा था।

"दीया तुम्हें डरने की कोई भी जरूरत नहीं है। जब तक मैं तुम्हारे साथ हूं कोई तुम्हें हाथ भी नहीं लगा सकता। तुम्हें खाना कैसा लगा? अगर तुम चाहो तो हम रोजाना यहां पर खाना खाने आ सकते हैं।"

आकर्ष की आंखों से वह कत्ल का भाव अब गायब हो गया था। उसे देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि यह लड़का किसी को धमकी भी दे सकता है। जहां कुछ समय पहले उसकी आंखों में गुस्सा था अब उसकी जगह प्यार ने ले ली थी।

"मालिक अगर हम महीने में एक बार भी यहां पर आते हैं तो मेरे लिए इतना ही बहुत है। मैंने सुना है यहां का खाना बहुत महंगा है।"

दीया ने धीमी आवाज में कहा।

"मुझे पता है कि मैं ज्यादा अमीर नहीं हूं। पर मेरे पास इतने पैसे तो हैं कि मैं अपनी दीया की इच्छाएं पूरी कर सकूं।"

आकर्ष ने दीया के बालों को ठीक करते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर दीया का चेहरा शर्म से लाल हो गया।

"क्या आप सुन रहे हैं.मेरी मालकिन कब से आपसे कुछ पूछ रही है?"

सोनाक्षी की दासी ने आकर्ष से कहा।

"क्या तुम्हारी मालकिन सबसे इसी तरह बात करती है। तुम्हारे लिए ऐसी मालकिन को सहन करना काफी मुश्किल होता होगा?"

आकर्ष ने सोनाक्षी की दासी की ओर देखा और मुस्कुराते हुए पूछा।

" नहीं नहीं,मालकिन मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखती है।"

दासी ने डरते हुए कहा।

"तुम्हें बोलने को किसने कहा?"

सोनाक्षी ने गुस्से से अपनी दासी की ओर देखते हुए पूछा।

उसे इस समय अपनी दासी से जलन हो रही थी। जिस लड़के ने उसकी तरफ देखा भी नहीं, उसके किसी सवाल तक का जवाब नहीं दिया, उसने उसकी दासी से मुस्कुरा कर बात की। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो एक दिन अपनी दासी से भी जलन करेगी।

"सोनाक्षी"

खिड़की के पास एक दूसरी टेबल पर बैठे तीन लड़कों ने सोनाक्षी को आवाज देते हुए कहा।

उन तीनों की आवाज सुनकर सोनाक्षी ने पहले उन तीनों की ओर देखा और फिर आकर्ष की ओर। उसे देख ऐसा लग रहा था मानों वो आकर्ष को यह बताना चाहती हो कि वो भी कोई सामान्य लड़की नहीं है। उसके भी बहुत से चाहने वाले हैं।

पर जल्दी ही उसकी मुस्कान गायब हो गई जब उसने देखा कि आकर्ष अभी भी उसे नजरअंदाज कर रहा है। जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो कि उसकी पहचान क्या है या उसके कितने चाहने वाले हैं?

"सोनाक्षी.क्या हुआ?"

उन तीनों में से एक लड़के ने पूछा।

"सोनाक्षी.क्या तुम्हें कोई परेशान कर रहा है? क्या तुम्हें हमारी मदद चाहिए?"

दूसरे लड़के ने पूछा।

"यह जगह मेरी थी पर इस लड़के ने मुझसे मेरी जगह छीन ली।"

सोनाक्षी ने उदास चेहरा बनाते हुए कहा।

"क्या.इसकी इतनी हिम्मत की इसने तुमसे तुम्हारी जगह छीनी!"

"लगता है यह मरना चाहता है"

उन तीनों लड़कों ने जब सोनाक्षी से सुना की आकर्ष ने उसकी जगह छीन ली है तो वो तीनों आग बबूला हो उठे। सोनाक्षी बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी। पर फिर भी उसकी गिनती सांची की सुंदर लड़कियों में होती थी। वो तीनों लड़के बहुत समय से सोनाक्षी का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते थे। पर उन्हें कोई मौका नहीं मिल रहा था। लेकिन आज सोनाक्षी ने सामने से उनसे मदद मांगी थी।

"तुम हम पर झूठा आरोप लगा रही हो। यह जगह पहले हमें दी गई थी और तुमने हमसे यह जगह छीनने कोशिश की थी।"

दीया ने गुस्सा होते हुए कहा। आज पहली बार आकर्ष ने उसे गुस्सा होते देखा था। वह गुस्से में और भी ज्यादा सुंदर लग रही थी। आकर्ष के अलावा वो तीनों लड़के जो अभी सोनाक्षी का पक्ष ले रहे थे बिना अपनी पलकें झपकाए दीया को देखने लगे। वो इस समय भूल गए थे कि वो लोग सोनाक्षी के साथ है ना कि दीया के।

"अगर उस लड़की को देखने से तुम्हारा मन भर गया हो तो क्या अब तुम लोग उस लड़के को सबक सिखाओगे!"

सोनाक्षी ने कर्कश आवाज में कहा।

"हां.नहीं.हमारा मतलब.हां बिल्कुल"

उन तीनों लड़कों ने अपने आप को संभालते हुए कहा।

उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि गुप्ता परिवार के कुल प्रमुख की बड़ी बेटी इतनी छोटी सी बात से जलन महसूस करने लगेगी।

उन्होंने सुना था कि गुप्ता परिवार के एक नौकर ने एक बार एक नौकरानी को सोनाक्षी से ज्यादा सुंदर बता दिया था। उस दिन के बाद वो नौकर और नौकरानी दोनों गायब हो गए। गुप्ता परिवार के लोगों का कहना था कि वह दोनों अपने गांव चले गए हैं। पर हकीकत सभी को पता थी। असल में सोनाक्षी ने उन दोनों को मरवा दिया था।

"शायद तुम्हें पता नहीं है कि सोनाक्षी कौन है? तुमने उसकी जगह कैसे ली? इसी वक्त सोनाक्षी से माफी मांगो वरना हम तीनों तुम्हारा वो हाल करेंगे, कि तुम्हारा परिवार भी तुम्हें पहचान नहीं पाएगा।"

उन तीनों लड़कों ने आकर्ष को धमकाते हुए कहा।