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Chapter 20 - आकर्ष vs अंकुश

"तुम मुझे धमकी दे रहे हो?"

उन तीनों लड़कों की बात सुनकर आकर्ष ने हंसते हुए पूछा।

"तुम्हें हंसी किस बात पर आ रही है?"

उन तीनों लड़कों में से एक लड़के ने पूछा।

"मैं समझ सकता हूं कि तुम सोनाक्षी के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हो। पर क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारे पास वह काबिलियत है जिससे तुम मुझे सबक सिखा सकते हो? क्या तुम्हारे पास इतनी ताकत है कि तुम मेरी हालत ऐसी कर सकते हो कि मेरे घर वाले भी मुझे ना पहचाने? कहीं तुम तीनों आहूजा परिवार से तो नहीं हो!"

आकर्ष ने उन तीनों लड़कों में से एक लड़के को पहचान लिया था। वो लड़का प्रणव आहूजा का साथी था।

"तुमने सही कहा.हम आहूजा परिवार से हैं। कितनी अजीब बात है ना. आज गुप्ता और आहूजा, दोनों परिवारों के सदस्य यहाँ खाना खाने आए हैं, और तुमने दोनों से पंगा ले लिया। क्या तुम्हें अब भी लगता है कि तुम अकेले हम सभी का सामना कर सकते हो!"

"सही कहा.तुम बस एक छोटे बच्चे हो। जाओ और बच्चों के साथ खेलो।"

"और हां जाने से पहले घुटनों के बल बैठकर सोनाक्षी से माफी जरूर मांगना। अगर हमारा दिल पिघल गया तो क्या पता हम तुम्हें आसानी से जाने दे!"

उन तीनों लड़कों ने आकर्ष का मजाक उड़ाते हुए कहा। वो अपने घमंड में इस बात को भी भूल गए थे कि वो भी बच्चे ही हैं।

"सोनाक्षी गुप्ता परिवार के कुल प्रमुख की बेटी है, उसका घमंडी होना तो समझ में आता है। पर तुम लोगों में किस बात का घमंड है।"

आकर्ष ने कहा। उसकी बात सुनकर उन तीनों लड़कों का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया। पर आकर्ष ने आगे जो बात कही उसे सुनकर उन तीनो का चेहरा उतर गया।

"जब मैं सोनाक्षी से नहीं डरा तो तुम तीनों से क्यों डरूंगा जिनकी इज्जत उनका खुद का परिवार नहीं करता।"

आकर्ष ने अफसोस जताते हुए कहा।

"तुम कुछ ज्यादा नहीं बोल रहे! अपने मुंह को अपने नियंत्रण में रखो। कहीं ऐसा ना हो कि इसकी वजह से तुम्हें बाद में पछताना पड़े।"

सोनाक्षी के सामने अपनी बेइज्जती होते देख उनमें से एक लड़के ने चिल्लाते हुए कहा।

"क्या अब तुम लोगों में सच्चाई सुनने की भी हिम्मत नहीं है?"

आकर्ष ने हंसते हुए कहा।

मैं जानता हूं कि तुम्हारे मेरु रेस्टोरेंट के कुछ नियम है। पर अगर यह तीनों पहले मुझ पर हमला करते हैं तो मैं भी शांत नहीं बैठूंगा। क्या तुम्हारे रेस्टोरेंट को इससे कोई समस्या है?"

आकर्ष ने उस वेटर से पूछा जो उन्हें लेकर सेकंड फ्लोर पर आया था।

उसके सवाल का उस वेटर ने कोई जवाब नहीं दिया। वो बस वही खड़ी होकर आकर्ष को देख रहा था। उसे आकर्ष की आंखों में कहीं भी डर नजर नहीं आ रहा था।

"तो क्या हुआ अगर हम पहले हमला करें। रेस्टोरेंट के नियम से डर कर हम चुपचाप तुम्हारी बकवास नहीं सुनेंगे।"

इतना कह कर उन तीनों लड़कों ने आकर्ष पर हमला कर दिया।

"मालिक"

दीया ने चीखते हुए कहा। उसने अपना हाथ अपनी तलवार की ओर बढ़ाया ताकि आकर्ष को बचा सके। पर इससे पहले की उसका हाथ तलवार को छू पाता, आकर्ष ने पहले ही वो तलवार ले ली और उन तीनों लड़कों पर वार कर दिया।

सभी को बस एक सफेद रोशनी नजर आई और पूरे रेस्टोरेंट में उन तीनों लड़कों की चीख गूंज उठी।

आकर्ष ने उन तीनों लड़कों के हाथ काट दिए थे।

"मैं तुम्हें सिर्फ तीन सेकंड का समय दे रहा हूं, अगर इतने समय में तुम लोग यहां से गायब नहीं हुए तो अभी तो सिर्फ हाथ कटे हैं। अगली बार हाथों की जगह तुम्हारी गर्दन होगी।"

आकर्ष की धमकी सुनकर वो तीनों लड़के सहम गए। वो तुरंत अपनी जगह से खड़े हुए और बाहर की ओर भागने लगे। आकर्ष ने उन्हें 3 सेकंड का समय दिया था लेकिन वो लोग सिर्फ 2 सेकंड में ही वहां से गायब हो गए। जब किसी व्यक्ति की जान खतरे में होती है तो वह अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल करता है। ऐसा ही उन तीनों लड़कों ने भी किया।

आकर्ष के पास खड़ा हुआ वो वेटर अभी भी आकर्ष को एकटक नजर से देख रहा था। वो आकर्ष की रफ्तार देख हैरान था। आकर्ष का वो वार इतना तेज था कि शारीरिक मंडल के पांचवें स्तर के योद्धा के लिए भी उसे देख पाना बहुत मुश्किल था।

इस समय सबसे ज्यादा खराब हालत तो सोनाक्षी की थी। वह इतना डर गई थी कि उसके मुंह से कोई आवाज तक नहीं निकल रही थी। सोनाक्षी के दासी की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी। अपने सामने के दृश्य को देख वो इतना डर गई थी कि उसने अपनी आंखें बंद कर ली। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही लड़का है जो कुछ समय पहले उससे मुस्कुरा कर बात कर रहा था।

दीया जो कि आकर्ष के पास ही खड़ी थी वो भी डर गयी थी।

"तुम अपने आप यहां से जा रही हो या तुम्हारी हालत भी उन लड़कों जैसी करूं!"

आकर्ष ने सोनाक्षी से कहा।

"तुम कौन हो?"

सोनाक्षी ने डरते हुए पूछा।

"क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं की थोड़ी देर मेरे साथ रहने के बाद तुम मुझे पसंद करने लगी हो? अगर ऐसा है तो मैं तुम्हें पहले ही बता रहा हूं, तुम मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं हो! मुझे ऐसी लड़कियां बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने घमंड के सामने बाकी सब को नीचा समझती हो।"

आकर्ष ने सोनाक्षी का मजाक उड़ाते हुए कहा।

आकर्ष के जवाब से सोनाक्षी काफी शर्मिंदा थी। उसका डर कुछ कम हो गया था पर अभी भी आकर्ष से आंखें मिलाने की हिम्मत उससे नहीं हो रही थी।

"चलो सरिता! हम जाकर उन तीनों लड़कों की जगह पर बैठ जाते हैं। वैसे भी वो लोग अब यहां से जा चुके हैं और वापस नहीं आने वाले।"

सोनाक्षी ने अपनी दासी सरिता से कहा और उन तीनों लड़कों की जगह जाकर बैठ गई जिनके हाथ आकर्ष ने अभी काटे थे।

"उस टेबल को साफ करो और सोनाक्षी को जो भी चाहिए उसे दे दो।"

आकर्ष ने वेटर से कहा।

सोनाक्षी घमंडी जरूर थी पर कम से कम उसमें इतनी तो हिम्मत थी कि इतना सब कुछ होने के बाद भी वह वहीं खड़े होकर आकर्ष का सामना कर रही थी।

"जी जरूर"

वेटर ने पूरे सम्मान के साथ सिर झुकाते हुए जवाब दिया। वो जानता था कि आकर्ष ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे नाराज किया जा सकता है।

"अभी जो कुछ भी हुआ था.क्या उसे देखकर तुम भी डर गई थी?"

आकर्ष ने दीया से पूछा।

उसकी आवाज पहले के जैसी डरावनी और गुस्से से भरी हुई नहीं थी।

"नही"

दीया ने जवाब देते हुए कहा।

उसने मना जरूर किया था लेकिन उसका चेहरा देख आकर्ष समझ गया कि वो डरी हुई है।

थोड़ी देर में ही आकर्ष का आर्डर किया खाना उसकी टेबल पर पहुंच गया। आकर्ष ने एक बार दीया की तरफ देखा और हल्का मुस्कुराया। उसकी मुस्कराहट देख दीया समझ गई कि आकर्ष क्या कहना चाहता है। वो चाहता था कि दीया उससे पहले खाना खाना शुरू करे। थोड़ी देर दीया को खाना खाते देखा आकर्ष ने भी अपना खाना खाना शुरू कर दिया। वह इस प्रकार खाना खा रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो। लेकिन दीया ठीक से खाना नहीं खा रही थी। उसकी आंखों के आगे अभी भी वही दृश्य घूम रहा था जब आकर्ष ने उन तीनों लड़कों के हाथ काटे थे।

"दीया.तुम्हें और खाना खाना चाहिए। अगर तुम ऐसे ही डरती रही तो मेरी रक्षा कैसे करोगी?"

आकर्ष ने दीया को समझाते हुए कहा।

"मालिक.मैं. "

दीया ने कुछ कहना चाहा पर आकर्ष ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा.

*देखो आज नहीं तो कल मैं सांची कस्बे को छोड़कर चला जाऊंगा। अगर तुम मेरे साथ चलना चाहती हो तो तुम्हें अपने आप को मानसिक रूप से तैयार करना होगा। मैं जिस रास्ते पर हूं वो खून खराबे से भरा हुआ है। तुम जिस दृश्य से डर रही हो वैसे दृश्य भविष्य में कई बार होंगे। अगर तुम इसी तरह डरती रहोगी तो तुम्हें यही रहना होगा और भूल जाना कि हमने इस बारे में आज कुछ बात भी की है।"

"मालिक मैं समझ गई। मैं खाना खा रही हूं, पर पहले आप वादा करिए कि आप मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे।"

दीया की बात सुनकर आकर्ष हंसने लगा। उसने वादा किया कि वो कभी उसे अकेला छोड़कर नहीं जाएगा। जिसके बाद दीया खाना खाने लगी। आकर्ष इस समय बिना पलक झपकाए सिर्फ उसे ही देखे जा रहा था। वो दीया से कठोरता से बात नहीं करना चाहता था, पर साथ में वो यह भी जानता था कि अगर वो उससे कठोरता से बात नहीं करेगा तो वह अपने डर पर काबू नहीं कर पाएगी।

"तुम्हें यहां से चले जाना चाहिए। आहूजा परिवार के लोग किसी भी वक्त यहां आते होंगे। तुम्हें उनसे डर नहीं लग रहा क्या?"

अचानक आकर्ष को सोनाक्षी की आवाज सुनाई दी।

"तुम्हें मेरी फिक्र करने की कोई भी जरूरत नहीं है। मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में इस समय क्या चल रहा है। तुम चाहती हो कि आहूजा परिवार के लोग जितना जल्दी हो सके यहां पर आए और मुझे सबक सिखाएं। फिर मेरी फिक्र करने का दिखावा क्यों कर रही हो?"

आकर्ष ने बिना सोनाक्षी की तरफ देखे हुए कहा।

"मरना है तो मरो मुझे उससे क्या?"

सोनाक्षी ने गुस्सा करते हुए कहा।

आकर्ष के जवाब हमेशा उसे शर्मिंदा कर देते थे। वो उसे नजरअंदाज करना चाहती थी पर ना चाहते हुए भी पता नहीं क्यों हर बार उसका मन करता था कि वो आकर्ष से बात करें।

"तुम जितना चाहो अपनी पहचान को छुपा सकते हो। पर मैं कैसे भी करके तुम्हारी पहचान पता लगा लूंगी।"

सोनाक्षी ने अपने आप से कहा।

खाना खाने के बाद आकर्ष ने खिड़की से बाहर देखा तो पाया कि वो तीनों लड़के उसी रेस्टोरेंट की ओर आ रहे है। उन तीनों के हाथों पर पट्टियां बंधी हुई थी और उनके साथ एक और लड़का भी था जो लगभग 20 साल का लग रहा था।

जल्दी ही वह चारों मेरु रेस्टोरेंट के सेकंड फ्लोर पर आ गए।

उन चारों को वहां पर देख सोनाक्षी की आंखों में एक अलग चमक आ गई। उसने आकर्ष की ओर देखते हुए अपने आप से कहा.

'मेरे मना करने के बाद भी तुम यहीं पर बैठे रहे। अब देखो अंकुश आहूजा तुम्हारा क्या हाल करता है। अगर तुम मुझसे माफी मांग लेते हो तो शायद मैं तुम्हें बचा लूं।'

"अंकुश भाई यह वो ही लड़का है जिसने हमारे हाथ काटे थे।"

उन तीनों में से एक लड़के ने आकर्ष की ओर इशारा करते हुए कहा। हां यह बात अलग थी कि उसने इशारा आंखों से किया था क्योंकि उनके हाथ तो पहले ही कट चुके थे।

"आप शांत हो जाइए। हमारे रेस्टोरेंट के भी कुछ नियम है जिन्हें आप नहीं तोड़ सकते।"

एक वेटर ने अंकुश आहूजा को समझाते हुए कहा।

"मैं शांत हो जाऊं! अब तुम्हें तुम्हारे रेस्टोरेंट के नियम याद आ रहे है, उस समय यह नियम कहां गए थे जब इस लड़के ने हमारे आहूजा परिवार के इन तीनों शिष्यों के हाथ काटे थे! जानते हो इनकी चोट कितनी गहरी थी।"

अंकुश की बात सुनकर सोनाक्षी का चेहरा उतर गया। बातों बातों में वो यह भूल गई थी कि आकर्ष का एक दूसरा चेहरा भी है जिसे वो किसी भी हालत में फिर से नहीं देखना चाहती थी।

"मैं तुम्हें एक मौका दे रहा हूं। यां तो अपने आप को खत्म कर दो या फिर मैं तुम्हें खत्म करूंगा। वैसे मैं तुम्हें बता दूं कि मुझे लोगों को तड़पाना बहुत पसंद है।"

अंकुश ने आकर्ष से कहा।

उसके हिसाब से एक शारीरिक मंडल के चौथे स्तर का योद्धा उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता था।

"यह तीनों तुम्हारे आहूजा परिवार के शिष्य है। मुझसे हारने के बाद यह तुम्हें बुलाकर लाए है। क्या तुम्हारे आहूजा परिवार के शिष्यों को यही सिखाया जाता है।"

आकर्ष ने हंसते हुए पूछा।

अंकुश को अपने सामने देख आकर्ष बिल्कुल भी नहीं घबराया था। उल्टा वह उसकी बातों को इस प्रकार नजरअंदाज कर रहा था जैसे अंकुश कोई छोटा बच्चा हो।

" तुम्हें अभी पता चल जाएगा कि हमारे आहूजा परिवार के शिष्यों को क्या सिखाया जाता है!"

इतना कहकर अंकुश आकर्ष की ओर उछला।

"वहीं रुक जाओ"

इससे पहले की अंकुश आकर्ष को छू भी पाता उसे एक आवाज सुनाई दी, जिसे सुनकर वह अपनी जगह पर ही रुक गया।

यह आवाज एक बूढ़े व्यक्ति की थी जो धीरे-धीरे चलते हुए अंकुश की ओर आ रहा था। रेस्टोरेंट के सभी वेटर उसे प्रणाम कर रहे थे और एक ही नाम ले रहे थे ' मैनेजर सहदेव'।

"प्रणाम मैनेजर सहदेव"

उस बूढ़े व्यक्ति को अपने सामने देख अंकुश ने सम्मानपूर्वक उसे प्रणाम किया।

"अंकुश तुम जानते हो कि हमारे रेस्टोरेंट के क्या नियम है। अगर तुम्हें इस लड़के से कोई भी समस्या है तो तुम रेस्टोरेंट के बाहर उसे सुलझा सकते हो। रेस्टोरेंट के अंदर यह हमारा ग्राहक है और मेरे यहां होते हुए तुम उसे कुछ भी नहीं कर सकते।"

मैनेजर सहदेव ने अंकुश से कहा। उनकी आंखों में गुस्सा साफ नजर आ रहा था। वो बस आहूजा परिवार के कारण शांत थे वरना अंकुश कब का यह दुनिया छोड़कर चला गया होता।

"मुझे माफ करें मैनेजर सहदेव.मैं आगे से ध्यान रखूंगा!"

अंकुश ने एक झूठी हंसी हंसते हुए जवाब दिया।

".और तुम.मैं रेस्टोरेंट के बाहर तुम्हारा इंतजार करूंगा। अगर तुम्हारे अंदर हिम्मत है तो तुम मुझसे मुकाबला करने बाहर आना वरना किसी डरपोक की तरह पूरी जिंदगी इसी रेस्टोरेंट में बैठे रहना।"

अंकुश ने आकर्ष की तरफ देखते हुए कहा।

"तुम फ़िक्र मत करो, मैं तुम्हें ज्यादा इंतजार नहीं करवाऊंगा। एक बार मेरी दीया खाना खा ले तो मैं तुमसे मिलने बाहर आ जाऊंगा।"

आकर्ष ने बिना डरे जवाब दिया। उसे देख ऐसा लग रहा था मानो उसे अंकुश के होने या ना होने से कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा है।

"दीया जल्दी से खाना खत्म करो। देखो कोई बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहा है।"

आकर्ष ने दीया से कहा।

सहदेव वहां से जाने वाले थे पर आकर्ष का जवाब सुनकर वो अपनी जगह पर ही रुक गए। उन्होंने ध्यान से आकर्ष को देखा और उसे समझने की कोशिश करने लगे। उन्हें कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि आकर्ष अंकुश से डरा हुआ है।

सहदेव के विपरीत बाकी सभी लोगों को आकर्ष पर दया आ रही थी। अंकुश शारीरिक मंडल के छठे स्तर का योद्धा था और आकर्ष उसे किसी भी हालत में नहीं हरा सकता था।

उनके हिसाब से इस मुकाबले का परिणाम निश्चित था। आकर्ष की मौत।