"अतुल तुम मुझे डरा रहे हो? तुम्हें क्या लगता है तुम सोमदत्त चाचा के बेटे हो तो मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा?"
आकर्ष ने गुस्सा होते हुए कहा।
क्या दिन आ गए थे अब एक बच्चा उसे धमकी दे रहा था!
"म.म.मालिक मुझसे गलती हो गई! मुझे माफ कर दो! मैं आगे से ध्यान रखूंगा!"
आकर्ष को गुस्सा होते देख अतुल डर गया। वह भी यह बात अच्छे से जानता था कि आकर्ष सिर्फ उसके पिता सोमदत्त की वजह से चुप है! नहीं तो जैसा आकर्ष का स्वभाव है, उसने कब का उसे पीट-पीट कर सबक सिखा दिया होता!
"बस!"
आकर्ष ने अतुल को चुप कराते हुए कहा।
उसने अपने उंगली से एक अंगूठी निकाली और अतुल को देते हुए कहा.
"तुम्हारे उंगली में जो अंगूठी है वह मुझे दे दो और मेरी यह अंगूठी अपनी उंगली में पहन लो।"
आकर्ष की बात सुनकर अतुल अपने उंगली में पहनी हुई सोने की अंगूठी की ओर देखने लगा। आकर्ष उसे उसकी सोने की अंगूठी के बदले अपनी पीतल की अंगूठी दे रहा था। वह कोई मूर्ख नहीं था कि इस घाटे के सौदे के लिए मान जाता। उसने डरते हुए कहा.
"मालिक यह अंगूठी मेरे दादाजी ने मुझे मेरे पिछले जन्मदिन पर उपहार में दी थी। मैं इसे."
"अगर तुम अपनी अंगूठी मेरे अंगूठी के साथ बदलना नहीं चाहते तो यहां से जा सकते हो! पर बाद में यह मत कहना कि मैंने तुम्हारी मदद नहीं की!"
आकर्ष ने आसमान की ओर देखते हुए कहा।
अतुल मूर्खों की तरह बातें जरूर करता था लेकिन वह मूर्ख नहीं था। वह तुरंत समझ गया कि जरूर इस अंगूठी में कुछ तो विशेष बात है। उसने धीमी आवाज में पूछा ताकि उसकी आवाज कोई और ना सुन सके.
"मालिक इस अंगूठी में कुछ विशेष बात है क्या?"
"बिल्कुल!.मेरी इस अंगूठी की मदद से तुम विनय को बहुत आसानी से हरा सकते हो। मैं तो तुम्हारी मदद कर रहा था लेकिन तुम मेरी मदद लेना ही नहीं चाहते!"
आकर्ष ने अपने कमरे में जाने का दिखावा करते हुए कहा।
"नहीं नहीं! मुझे आपकी मदद चाहिए। मैंने कब कहा कि मैं अपनी अंगूठी आपको नहीं दूंगा? लगता है आपको कोई गलतफहमी हुई है! मैं तो बस यह पूछ रहा था की इस अंगूठी में क्या विशेष है। क्या इस पर कोई मंत्र अभिलेख इस्तेमाल किया गया है?"
अतुल ने कहा।
"तुम मंत्र अभिलेख के बारे में जानते हो?"
आकर्ष ने हैरान होते हुए पूछा।
उसे नहीं लगा था कि अतुल जैसा मूर्ख लड़का मंत्र अभिलेखों के बारे में जानता होगा!
'हा हा'
"वो जब मैं अपने दादाजी के घर पर था तो मैंने वहां उनकी किताबों में मंत्रकारों के बारे में पढ़ा था। उन्ही किताबों से मुझे पता चला कि मंत्रकार अपने आभूषणों जैसे अंगूठी और कड़े पर मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल करते हैं। कुछ मंत्रकार तो अपने हथियारों पर भी मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल करते हैं ताकि सभी की नजरों से छुपकर अपने दुश्मनो को खत्म कर सके।"
अतुल ने कहा।
" 'अंधे के हाथ बटेर लगना' मैंने आज तक सिर्फ सुना था, लेकिन आज देख भी लिया। मूर्खों की किस्मत वास्तव में बहुत अच्छी होती है।"
आकर्ष ने मजाकिया अंदाज में कहा।
अब उसने अपनी वह अंगूठी अतुल को दी और कहा.
"यह मत सोचना कि तुम्हारी अंगूठी सोने की है इसलिए मैं इसे अपने पास रखना चाहता हूं। तुम चाहो तो विनय को हराने के बाद अपनी यह अंगूठी वापस ले जा सकते हो!"
आकर्ष की बात सुनकर अतुल ने वह मंत्र अभिलेख वाली अंगूठी अपने उंगली में पहन ली और उसे ध्यान से देखने लगा। कुछ देर अंगूठी को देखने के बाद उसने आकर्ष से पूछा.
"मालिक मैं तो बस मजाक कर रहा था। पर क्या सच में इस अंगूठी पर मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल किया हुआ है?"
"अगर तुम्हें विश्वास नहीं है तो यह अंगूठी मुझे वापस दे दो!"
यह कहते हुए आकर्ष ने अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन अतुल ने अपना हाथ तुरंत पीछे खींच लिया।
अतुल की यह हरकत देख आकर्ष मन ही मन हंसने लगा।
आकर्ष ने कुछ दिन पहले ही इस अंगूठी पर मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल किया था ताकि वह श्रीकांत को हरा सके। पर किसे पता था कि श्रीकांत मुकाबले से पहले चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लेगा। आकर्ष ने इस अंगूठी पर जिस मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल किया था वह केवल शारीरिक मंडल के योद्धाओं को हरा सकता था। चक्र मध्य मंडल के योद्धाओं को नियंत्रण में करने की क्षमता इस मंत्र अभिलेख में नहीं थी। इसलिए उसने यह अंगूठी अतुल को दी थी ताकि उसके कुछ काम आ जाए। वैसे भी आकर्ष अब इतना शक्तिशाली हो गया था कि शारीरिक मंडल का कोई भी योद्धा उसे हरा नहीं सकता था।
"वैसे मालिक.आप एक मंत्रकार को कैसे जानते हैं?"
अतुल ने उत्सुक होकर पूछा।
"तुम्हें इस बारे में जानने की कोई भी आवश्यकता नहीं है! अब तुम जा सकते हो! और हां. याद रखना श्रीकांत के चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने की बात किसी को भी पता नहीं चलनी चाहिए। मेरी मां को तो बिल्कुल भी नहीं! अगर उन्हें इस बारे में पता चला तो तुम जानते हो तुम्हारे साथ क्या होगा?"
आकर्ष ने अपने कमरे में जाते हुए कहा। वो अपने कमरे का दरवाजा बंद करने वाला ही था तभी अतुल ने उसे रोक दिया।
"अब तुम्हें क्या चाहिए?"
आकर्ष ने पूछा।
"वो मालिक.आपने यह तो बताया ही नहीं कि इस अंगूठी का इस्तेमाल कैसे करना है?"
अतुल ने शर्मिंदा होकर हंसते हुए कहा।
"क्यों? क्या तुमने अपने दादाजी की उन किताबों में मंत्र अभिलेखों का इस्तेमाल कैसे करना है इस बारे में नहीं पढ़ा?"
आकर्ष ने गुस्सा होते हुए पूछा।
उसने जल्दी से अतुल को अंगूठी का इस्तेमाल करना सिखाया और कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया।
अब वो सोचने लगा कि मुकाबले को कैसे जीतेगा।
श्रीकांत ने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लिया है यह वास्तव में चिंता का विषय था। वो अभी जिन मंत्र अभिलेखों की रचना कर सकता था वह चक्र मध्य मंडल के योद्धाओं को हानि पहुंचाने में सक्षम नहीं थे।
चक्र मध्य मंडल के योद्धाओं को हराने के लिए उसे जिस मंत्र अभिलेख की जरूरत थी वो केवल आंतरिक ऊर्जा के साथ ही बनाया जा सकता था। आकर्ष इस समय शारीरिक मंडल में था इसलिए उसके पास खुद की आंतरिक ऊर्जा नहीं थी।
उस मंत्र अभिलेख को बनाने के लिए वह किसी चक्र मध्य मंडल के योद्धा की मदद ले सकता था लेकिन इसके लिए उस चक्र मध्य मंडल के योद्धा को मंत्र अभिलेखों के बारे में पूरी जानकारी होनी आवश्यक थी। लेकिन वो किसी भी ऐसे चक्र मध्य मंडल के योद्धा को नहीं जानता था जिसको मंत्रों के बारे में जानकारी हो।
वह खुद शारीरिक मंडल में होते हुए मंत्र अभिलेखों का निर्माण इसलिए कर सकता था क्योंकि उसके पास लक्ष की यादें थी। लक्ष और उसकी यादें इस प्रकार एक दूसरे के साथ मिल गई थी कि जैसे लक्ष और आकर्ष दो अलग-अलग व्यक्ति नहीं, एक ही व्यक्ति हो।
"लगता है श्रीकांत को हराने के लिए अब मुझे अपने आप पर ही निर्भर होना होगा।"
आकर्ष ने अपने आप से कहा।
शायद अब केवल सर्पशक्ति ही थी जो उसकी मदद कर सकती थी। सिर्फ रफ्तार के बल पर ही वो श्रीकांत को हरा सकता था।
उसने अतुल को श्रीकांत के चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने के बारे में किसी को भी बताने से इसलिए मना किया था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि इसके बारे में उसकी मां को पता चले। क्योंकि अगर उसकी मां को इस बारे में पता चल जाता है तो वह किसी भी कीमत पर आकर्ष को यह मुकाबला नहीं करने देगी।
वहीं दूसरी तरफ आहूजा परिवार इस बात को इसलिए छुपा रहा था क्योंकि वह किसी भी कीमत पर आकर्ष को खत्म करना चाहते थे।
"तुम मुझे खत्म करना चाहते हो ना! बस मुकाबले तक इंतजार करो! फिर देखते हैं कौन किसको खत्म करता है?"
आकर्ष ने एक कर्कश आवाज में कहा।
इधर अतुल आकर्ष से अंगूठी मिलने के बाद तुरंत मिश्रा परिवार के युद्ध ग्रह में आया और विनय को मुकाबला के लिए पूछा।
युद्ध गृह में मौजूद मिश्रा परिवार के शिष्यों ने जब देखा कि अतुल विनय को चुनौती दे रहा है तो वह अतुल का मजाक उड़ाने लगे।
"क्या इस अतुल का दिमाग खराब हो गया है! अभी कुछ दिन पहले ही विनय ने इसको इतना मारा था कि इसकी कोई शक्ल भी नहीं पहचान पा रहा था। और आज यह फिर से विनय को चुनौती दे रहा है!"
"वैसे जहां तक मुझे लगता है इसके मोटे शरीर पर विनय की मार का कोई असर ही नहीं हुआ होगा। इसलिए यह फिर से मुकाबला करने आया है!"
"देखो मैं पांचवें एल्डर सोमदत्त की इज्जत करता हूं लेकिन उनके बेटे अतुल में उनके जैसे एक भी गुण नहीं है।"
"देखना यह आज भी विनय के हाथों पिट कर जाएगा।"
" हाथी के बच्चे! तेरी इतनी हिम्मत की तू मुझे चुनौती दे रहा है! भूल गया पिछली बार मैंने तेरा क्या हाल किया था?"
अचानक एक लड़का भीड़ से निकल कर बाहर आया और अतुल का मजाक उड़ने लगा। यह लड़का मिश्रा परिवार के दूसरे एल्डर का सबसे छोटा बेटा विनय था।
"विनय.चलो हिसाब बराबर करते हैं"
अतुल ने कहा।
उसने तुरंत एक पंच बनाकर विनय की ओर भागना शुरू कर दिया।
"तुम्हें लगता है तुम इन बचकानी हरकतों से मुझे हरा सकते हो!"
विनय ने अतुल का मजाक उड़ाते हुए कहा। अतुल को अपनी ओर आता देखकर भी विनय ने अपने बचाव के लिए कुछ नहीं किया। वो अतुल से कई बार लड़ चुका था इसलिए जानता था कि अतुल के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह उसे चोट पहुंचा सके।
पास खड़े सभी शिष्यों का भी यही सोचना था कि अतुल हमेशा की तरह विनय से मार खाएगा और वापस चला जाएगा।
Boom!
जैसे ही अतुल का मुक्का विनय को लगा उसका पूरा शरीर कांपने लगा। विनय को ऐसा लग रहा था मानो उस पर बिजली गिर गई हो! वह जब भी वज्रज्वाल गोली का सेवन करता था तब भी उसके साथ ऐसा ही होता था। लेकिन अभी उसे जो दर्द हो रहा था वह वज्रज्वाल गोली से थोड़ा अलग था।
उसका पूरा शरीर कुछ क्षणों के लिए बेजान हो गया था और अतुल के लिए इतना समय काफी था। इससे पहले कि विनय कुछ समझ पाता कि अभी क्या हुआ है अतुल ने कई मुक्के उसके चेहरे पर जड़ दिए।
असल में जैसे ही अतुल का मुक्का विनय को छूने वाला था उसी वक्त अतुल ने वज्रपात मंत्र अभिलेख वाली अंगूठी को सक्रिय कर दिया था। बस फिर क्या था.
Boom! boom! boom! boom! boom!
एक के बाद एक विनय पर मुक्कों की बारिश होने लगी।
युद्ध गृह में बिल्कुल सन्नाटा छा गया था। सभी शिष्यों को अपनी आंखों के सामने के दृश्य पर विश्वास नहीं हो पा रहा था।
"कोई मुझे बतायेगा यह क्या हो रहा है? यह अतुल ही है ना? इस हाथी के बच्चे में इतनी ताकत कब से आ गई कि यह विनय को मारने लगा।"
एक शिष्य ने चिल्लाते हुए कहा।
पर किसी का भी ध्यान उसकी बात पर नहीं था। वो सब तो बस अपनी आंखें साफ कर रहे थे और बार-बार अतुल की तरफ देख रहे थे। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यह अतुल ही है।
"बस.बस करो!.रुक जाओ!"
विनय ने दर्द भरे स्वर में कहा।
अतुल के मुक्कों की वजह से उसका पूरा शरीर दर्द कर रहा था। वह रहम की भीख नहीं मांगना चाहता था लेकिन वह मजबूर था। अगर वह अतुल को रुकने को नहीं कहता.तो उसे गंभीर चोट भी लग सकती थी।
"क्या तुम मुझे फिर कभी 'हाथी का बच्चा' कहोगे?"
अतुल ने पूछा।
उसने विनय पर बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई थी। सवाल पूछते वक्त भी उसने अपना एक पेर विनय की चोट पर रखा हुआ था जिस कारण विनय दर्द से कराह रहा था। उसने दर्द भरी आवाज में कहा.
"नहीं.कभी नहीं.मैं तुम्हें कभी भी हाथी का बच्चा नहीं कहूंगा।"
"अब से तुम मुझे जब भी देखोगे मुझे बड़े भैया अतुल कहोगे।"
अतुल ने कहा।
"जी बिल्कुल.मैं अब से आपको बड़ा भाई अतुल कहूंगा। क्या अब आप अपना पेर."
विनय ने कहा।
एक बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा सही समय का इंतजार करता है। विनय इस समय जख्मी था इसलिए अतुल उसे जैसा कह रहा था वह बिल्कुल वैसा ही कर रहा था। उसे बस अपने जख्मों के ठीक होने तक का इंतजार करना था। फिर वो आसानी से अतुल से बदला ले सकता था।
पर एक बात उसे अभी भी समझ नहीं आ रही थी कि वज्रज्वाल गोली लेने के बाद जैसे उसके शरीर में दर्द होता था वैसा दर्द अतुल के मुक्के मारने से ठीक पहले उसे क्यों हुआ। क्या यह वज्रज्वाल गोली का कोई दुष्प्रभाव था?
विनय को सबक सिखाने के बाद अतुल युद्ध गृह से निकल कर सीधा आकर्ष के घर की ओर चल पड़ा।
"मालिक का दिया वज्रपात मंत्र अभिलेख कमाल का है। विनय को ऐसा ही लग रहा होगा कि उसके शरीर पर उस बिजली का गिरना, उसके शरीर का बेजान होना और वो असहनीय दर्द. सब वज्रज्वाल गोली के दुष्प्रभाव होंगे। वह कभी इस बात का पता नहीं लगा पाएगा कि यह सब वज्रपात मंत्र अभिलेख के कारण हुआ है।"
अतुल ने हंसते हुए कहा।
आकर्ष इस समय दीया के साथ उक्कू की तलवार से तलवारबाजी का अभ्यास कर रहा था।
"मालिक!"
तभी उसे घर के बाहर से अतुल की आवाज सुनाई दी।
"यह फिर से आ गया! इसे कुछ और काम नहीं है क्या? दीया तुम अभ्यास करो मैं बस अभी आया।"
आकर्ष ने दीया से कहा और घर से बाहर अतुल से मिलने चला गया।
"बताओ अतुल अब तुम्हें क्या चाहिए? तुमने मुझसे मदद मांगी थी मैंने तुम्हारी मदद कर दी। अगर अब भी तुम विनय को हरा नहीं पाए हो तो मैं कुछ नहीं कर सकता!"
आकर्ष ने कहा।
"मालिक आपकी अंगूठी!"
अतुल ने जल्दी से अपनी उंगली से वो पीतल की अंगूठी निकाली और आकर्ष को देते हुए कहा।
आकर्ष को लगा कि शायद अतुल को उसकी सोने की अंगूठी वापस चाहिए इसलिए वो उस सोने की अंगूठी को वापस देने लगा लेकिन अतुल ने वह अंगूठी लेने से मना कर दिया।
"इसका क्या मतलब.कहीं तुम्हें ऐसा तो नही लग रहा कि मैंने तुम्हारी अंगूठी बदल दी है!"
आकर्ष ने पूछा।
" नहीं.नहीं! मुझे आप पर पुरा विश्वास है। मालिक वो बात यह है कि मैंने आज विनय को बहुत मारा है। जितना मैं उसे जानता हूं वह इसका बदला लेने जरूर आएगा। मैं बस इतना चाहता हूं कि आप अपने उस मंत्रकार दोस्त से कहकर इस सोने की अंगूठी पर कोई मंत्र अभिलेख लगवा दीजिए। आपने आज सुबह मुझे जो वज्रपात मंत्र अभिलेख दिया था अगर आप वह मंत्र अभिलेख मेरी इस सोने की अंगूठी पर भी लगवा दें तो और भी ज्यादा अच्छा रहेगा।"
अतुल ने शर्मिंदा होकर हंसते हुए कहा।