"मालिक कल आपके और श्रीकांत के मुकाबले का दिन है। क्या आप सच में आहूजा परिवार के महल में जाने वाले हैं?"
युद्ध गृह से वापस लौटते समय अतुल ने आकर्ष से पूछा।
"बिल्कुल.मैं यह मुकाबला लड़ने जाने वाला हूं।"
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
आकर्ष के खुद के कुछ नियम थे और उन्ही नियम में से एक नियम था अपनी कही बात से पीछे नहीं हटना। अगर वो किसी से कोई वादा करता तो उसे हर कीमत पर पूरा भी करता।
अपने इन्हीं नियमों के कारण आकर्ष एक समय पर पूरी दिल्ली को नियंत्रित करता था।
आकर्ष का जवाब सुनने के बाद अतुल कुछ समय चुप रहा फिर उसने पूछा.
"मालिक क्या आपको पूरा विश्वास है कि आप यह मुकाबला जीत सकते हैं?"
आकर्ष को थोड़ा अजीब लगा। हमेशा बकवास करने वाला अतुल आज उसकी इतनी फिक्र क्यों कर रहा है?
उसने एक लंबी सांस ली और अतुल से पूछा.
"तुम मुझसे कैसे जवाब की उम्मीद कर रहे हो? तुम्हें सच जानना है या झूठ?"
"बिल्कुल.मुझे सच जानना है।"
अतुल ने गंभीर होकर कहा।
"सच कहूं तो मुझे नहीं पता कि मैं मुकाबला जीत पाऊंगा या नहीं।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"मालिक अगर ऐसा है तो आप मुकाबला करने से मना कर दीजिए। आप श्रीकांत के बेटे की उम्र के हैं। अगर आप मुकाबला करने से मना भी कर देंगे तो भी कोई आपका मजाक नहीं उड़ेगा क्योंकि सभी जानते हैं कि इस मुकाबले का परिणाम क्या होने वाला है!"
अतुल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा।
"अतुल"
"हां मालिक"
"मेरी एक बात हमेशा याद रखना। अगर तुम किसी से कोई वादा करते हो तो उसे हर कीमत पर पूरा करने की कोशिश करना। अगर मैं यह मुकाबला करने नहीं जाता हूं तो लोग मेरा मजाक नहीं उड़ाएंगे। मुझे कोई चोट भी नहीं लगेगी। पर ऐसा करके मैं अपनी खुद की नजरों में गिर जाऊंगा। अगर हमें शक्तिशाली बनना है तो श्रीकांत जैसी हर चट्टान को तोड़कर आगे बढ़ना होगा। मुझे भी पता है कि मैं श्रीकांत को हरा नहीं सकता लेकिन कम से कम मुझे कोशिश तो करनी चाहिए। अगर मैं कोशिश ही नहीं करूंगा तो मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं उसे हरा सकता हूं या नहीं।"
आकर्ष ने गंभीर स्वर में कहा।
दीया जो कि अभी तक चुप थी उसकी नजर पूरे समय आकर्ष पर थी। वो जानती थी कि आकर्ष ने अभी जो कुछ भी कहा है वो उसने उनके दिलों में जोश भरने के लिए नहीं कहा है! आकर्ष सच में ही ऐसा था। चाहे रवि से मुकाबला करने के समय हो या अभिजीत से मुकाबला करने के समय.यह जानते हुए कि उसका प्रतिद्वंद्वी उससे ज्यादा ताकतवर है आकर्ष ने फिर भी उन्हें हरा कर दिखाया था। शायद यही कारण था कि वह आकर्ष को पसंद भी करती थी।
"मालिक एक बात तो मैं अच्छे से समझ गया हूं कि आपको बातों में कोई नहीं हरा सकता। पर मैं तो आपको अभी भी यही कहूंगा कि श्रीकांत के साथ मुकाबला ना करें। आप जानते हैं ना कि श्रीकांत चक्र मध्य."
"यह क्या बकवास कर रहे हो! तुम बस अपना ध्यान रखो। मुझे मत सिखाओ कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं!"
अतुल के बात पूरी करने से पहले ही आकर्ष ने उसे डांटते हुए कहा। आकर्ष को गुस्सा होते देख अतुल तुरंत समझ गया कि आकर्ष ने उसे चुप क्यों करवाया है। वो भूल गया था कि दीया भी उनके साथ है और आकर्ष ने उसे किसी को भी श्रीकांत के चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने के बारे में बताने से मना किया था। उसने जल्दी से इशारों इशारों में आकर्ष से माफी मांगी और अपने घर की तरफ चल पड़ा।
"मालिक क्या आप सच में यह मुकाबला नहीं जीत सकते?"
दीया ने चिंता करते हुए पूछा।
उसके सवाल को सुनकर आकर्ष मुस्कुराने लगा और उसके बालों को ठीक करते हुए बोला.
"क्या तुम्हें भी सच में ऐसा ही लगता है? मैंने कहा था कि मुझे पूरा भरोसा नहीं है कि मैं मुकाबला जीत सकता हूं या नहीं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे अपने आप पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। तुम जानती हो कि मैं अपने वादे कभी नहीं तोड़ता। मैंने तुमसे वादा किया था कि मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोडूंगा। चिंता मत करो मुझे कुछ भी नहीं होगा। अगर मैं श्रीकांत को हरा नहीं पाता हूं फिर भी किसी तरह अपनी जान तो बचा ही सकता हूं। अगर मुझे कुछ हो गया तो तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा?"
आकर्ष की बात सुनकर दीया की आंखें नम हो गई। उसने जल्दी से आकर्ष को गले लगाया और रोते हुए कहा.
"मालिक अगर आपको कुछ भी हो गया तो मैं अपने आप को जिंदा नहीं रख पाऊंगी!"
दीया ने अभी जो कुछ कहा था उसे सुनकर आकर्ष डर गया। अगर किसी का दिल पत्थर का होता तो उसका दिल भी अभी दीया ने जो कुछ कहा था उसे सुनकर पिघल जाता। आकर्ष शुरुआत से जानता था कि दीया उसे पसंद करती है लेकिन इस हद तक.इसकी उसे उम्मीद नहीं थी। दीया की बात सुनकर आज पहली बार आकर्ष की आंखें भी नम हो गई थी।
उसने धीरे से दीया की पीठ थपथपाते हुए पूछा.
"दीया.क्या तुम्हें भी मुझ पर भरोसा नहीं है?"
"नहीं ऐसा नहीं है। पर मुझे डर है कि कहीं आपको मुकाबले में कुछ हो गया तो. मैंने अपने परिवार को खो दिया। अपनी मां को खो दिया। अब मेरे अंदर आपको खोने की हिम्मत नहीं है।"
दीया ने कहा।
जब आकर्ष उसे अपने घर लेकर आया था दीया ने तभी सोच लिया था कि वो अपना यह जीवन आकर्ष को समर्पित कर देगी। अगर किसी दिन आकर्ष की किसी से शादी हो जाती है तो भी वह आकर्ष को छोड़ने की जगह, किसी नौकर की तरह उसकी गुलामी करना पसंद करेगी। अगर आकर्ष नहीं होता तो शायद दीया आज भी दर-दर की ठोकरे खा रही होती।
"बस अब रोना बंद करो। अगर मेरी मां ने तुम्हें रोते हुए देख लिया तो वह समझेगी कि मैंने तुम्हें रुलाया है। यह बात तो तुम्हें भी पता है कि उन्होंने कहा है कि मेरी शादी सिर्फ तुमसे होगी। तुम्हें शायद पता नहीं है पर वो मुझसे ज्यादा तुम्हारा ख्याल रखती है।"
आकर्ष ने दीया के आंसू पौंछते हुए कहा।
आकर्ष की बात सुनकर दीया तुरंत उससे अलग हो गई और भाग कर अपने कमरे में चली गई।
"अब क्या हुआ? मैंने तो सिर्फ हम दोनों की शादी की बात की थी। इसमें इतनी शर्माने वाली क्या बात है।"
आकर्ष ने हंसते हुए अपने आप से कहा।
*श्रीकांत तुम्हें किसी भी कीमत पर मरना होगा! मैं दीया, मेरी मां और बाकी सब का भरोसा नहीं तोड़ सकता। सभी को मुझसे बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। यह अब कोई मुकाबला नहीं है, मिश्रा परिवार का भविष्य दांव पर लगा है। हम दोनों में से कोई एक ही जिंदा रह सकता है। या तुम या मैं."
जहां एक तरफ आकर्ष मुकाबले को लेकर चिंतित था वहीं दूसरी तरफ मिश्रा परिवार के पांचवें एल्डर सोमदत्त के घर में.
सोमदत्त ने जैसे ही अपने घर में प्रवेश किया तो उसकी नजर अपने बेटे अतुल पर पड़ी जो इस समय अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। सोमदत्त ने मजाकिया अंदाज में उसे डांटते हुए कहा.
"अतुल यह मैं क्या सुन रहा हूं! तुमने विनय को हराया है वह भी एक बार नहीं.दो बार!"
दरअसल सोमदत्त ने 15 दिन पहले जब सुना कि उसके बेटे अतुल ने विनय को मुकाबले में हराया है तो वह इसकी माफी मांगने के लिए दूसरे एल्डर अनुज के घर गए थे पर वहां जाकर उन्होंने विनय को रोते हुए यह कहते सुना कि वह वज्रज्वाल गोली के दुष्प्रभाव के कारण हारा है।
किसी और को विनय की बातों पर भरोसा हो या ना हो लेकिन सोमदत्त को था क्योंकि वह अपने बेटे अतुल की क्षमताओं से अच्छी तरह परिचित थे। वह अच्छे से जानते थे कि अतुल चाहे कुछ भी कर ले वो विनय को नहीं हरा सकता है। लेकिन उनका यह भ्रम अब टूट गया था क्योंकि आज अतुल ने फिर से विनय को हरा दिया था। और तो और इस बार चुनौती विनय ने दी थी लेकिन फिर भी अतुल जीत गया। वह इस बार भी दूसरे एल्डर अनुज के घर माफी मांगने गए, लेकिन उन्हें फिर से विनय के मुंह से वही बात सुनने को मिली। पहले तो उन्हें विनय पर भरोसा था पर अब उन्हें विनय पर शक होने लगा था।
हालांकि उनका बेटा दो बार यह मुकाबला जीता था लेकिन सोमदत्त एक अनुभवी व्यक्ति थे इसलिए समझ गए थे कि यह मामला जितना सामान्य दिखता है उतना सामान्य है नहीं। वह जानते थे कि यहां कुछ तो गड़बड़ है लेकिन क्या. यह उनको समझ नहीं आ रहा था।
"अतुल.क्या हुआ? तुम्हारा चेहरा क्यों लटका हुआ है?"
सोमदत्त ने पूछा। वो पहली नजर में समझ गए थे कि अतुल किसी बात को लेकर चिंतित है। लेकिन क्यो?
उसे तो खुश होना चाहिए कि उसने विनय को हरा दिया है!
"अतुल अगर तुम किसी बात को लेकर परेशान हो तो मुझे बताओ!"
सोमदत्त ने कहा।
अपने पिता की बात सुनने के बाद अतुल थोड़ी देर चुप रहा फिर उसने धीमी आवाज में कहा.
"पिताजी मुझे आपको एक जरूरी बात बतानी है। पर पहले आपको यह वादा करना होगा कि आप इस बारे में रेवती चाची को कुछ भी नहीं बताएंगे। सभी को यही लगता है कि आकर्ष मेरे मालिक है पर हकीकत में वो मुझसे अपने छोटे भाई जैसे प्यार करते हैं। अगर आपने रेवती चाची को कुछ भी बताया तो मालिक मुझसे नाराज हो जाएंगे।"
"कैसी जरूरी बात? मुझे बताओ! मैं वादा करता हूं कि मैं रेवती को इस बारे में कुछ भी नहीं बताऊंगा!"
सोमदत्त ने कहा।
सोमदत्त के वादा करने के बाद अतुल ने बताना शुरू किया.
"मालिक ने मुझे इस बारे में किसी को भी बताने से मना किया है। इसलिए हमारे परिवार में कोई भी यह बात नहीं जानता। लेकिन मालिक कल श्रीकांत से मुकाबला करने जाने वाले हैं और अगर मैंने अभी इस बारे में नहीं बताया तो क्या पता.कल कुछ अनहोनी हो जाए। मालिक ने सातवें स्तर में प्रवेश कर लिया है और आप सभी को यही लग रहा होगा कि वह श्रीकांत को हरा सकते हैं। लेकिन आप सब इस बात से अनजान है कि श्रीकांत ने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लिया है। अगर मालिक कल उससे मुकाबला करने गए तो वह जिंदा नहीं लौटेंगे।"
"श्रीकांत ने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लिया है? यह कब हुआ? और तुमने यह बात मुझसे क्यों छुपाई? मुझे कुल प्रमुख से जल्दी इस बारे में बात करनी होगी। तुम्हें क्या सजा मिलनी चाहिए वो तो मैं वापस आकर सोचूंगा!"
सोमदत्त ने अतुल को डांटते हुए कहा और कुल प्रमुख से मिलने चले गए।
"मालिक मुझे माफ करना लेकिन अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मुझे डर है कि कल के मुकाबले में आपको कुछ हो ना जाए। आप चाहे तो इसके बदले मुझे कोई भी सजा दे सकते है।"
अतुल ने अपने आप से कहा।
शाम के समय कुल प्रमुख के कहने पर एक व्यक्ति आकर्ष को बुलाने आया। आकर्ष ने जैसे ही सभा कक्ष में प्रवेश किया तो उसने देखा की सभा कक्ष में कुल प्रमुख वर्धन सिंह, वरिष्ठ अमर सिंह और सोमदत्त बड़ी बेसब्री से उसी का इंतजार कर रहे हैं। आकर्ष तुरंत समझ गया कि जरूर अतुल ने उन तीनों को श्रीकांत के चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने के बारे में बता दिया होगा।
"प्रणाम कुल प्रमुख!"
"प्रणाम वरिष्ठ!"
"प्रणाम सोमदत्त चाचा!"
आकर्ष ने तीनों को प्रणाम किया।
"आकर्ष क्या तुम जानते हो हमने तुम्हे यहां पर क्यों बुलाया है?"
वर्धन सिंह ने पूछा।
"आपने मुझे यहां पर बुलाया है क्योंकि आप जानते हैं कि श्रीकांत ने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लिया है।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"आकर्ष हम जानते हैं कि तुम बहुत बुद्धिमान हो! पर तुम्हें नहीं लगता कि तुम श्रीकांत से अब यह मुकाबला करके अपनी मौत को दावत दे रहे हो!"
वर्धन सिंह ने कहा।
आकर्ष इस समय मिश्रा परिवार का सबसे कीमती हीरा था। उसके बिना दिव्य जल बनाना असंभव था। और जब से उसने वज्रज्वाल गोली परिवार को सौंप थी तब से पूरे मिश्रा परिवार के लिए उसकी कीमत 100 गुना ज्यादा बढ़ गई थी।
"कुल प्रमुख मैं एक योद्धा हूं और आप अच्छे से जानते हैं कि योद्धा मौत से नहीं डरते। मैंने श्रीकांत से वादा किया था कि मैं कल उससे मुकाबला करूंगा और मैं अभी भी अपने वादे पर कायम हूं। अपना वादा तोड़ने से बेहतर है कि मैं मर जाऊं। मेरे लिए मेरे कहे गए शब्दों की कीमत मेरी जान से ज्यादा है। अगर आप चाहते हैं कि मैं मुकाबला करने से मना कर दूं तो मुझे माफ करें पर मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं कोई कायर या डरपोक नहीं हूं।"
आकर्ष ने कहा।
"आकर्ष तुम."
वर्धन सिंह के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे। वो आकर्ष पर दबाव भी नहीं डाल सकते थे क्योंकि आकर्ष ने अभी जो कुछ कहा था वह सच था। एक योद्धा के लिए उसकी जान से भी ज्यादा कीमती थे उसके कहे गए शब्द।
"आकर्ष हम तुम्हारी काबिलियत से अच्छी तरह परिचित है। अभी तुम सातवे स्तर में हो और नौवें स्तर के योद्धा को मारना तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन चक्र मध्य मंडल के योद्धाओं की बात अलग है। उन्हें हराना तो दूर उनका सामना करना भी तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल है।"
वरिष्ठ अमर सिंह ने कहा।
"मेरी फिक्र करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद वरिष्ठ! पर मैं अभी भी अपने वादे पर कायम हूं!"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"ठीक है!.जैसी तुम्हारी इच्छा! कुल प्रमुख.आकर्ष को यह मुकाबला करने दे।"
अमर सिंह ने कहा।
"लेकिन वरिष्ठ"
वर्धन सिंह और सोमदत्त को समझ नहीं आ रहा था कि अमर सिंह अचानक से आकर्ष का पक्ष क्यों ले रहे हैं?
"वरिष्ठ आप ही है जो मुझे अच्छे से समझते हैं"
"कुल प्रमुख.सोमदत्त चाचा.मेरे कल मुकाबला करने से पहले मैं चाहता हूं कि आप दोनों मुझ पर एक एहसान करें! आज हमारे बीच जो बात हुई है, मेरी मां को इस बार में कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए।"
आकर्ष ने कहा और सभा कक्ष से बाहर चला गया।
"वरिष्ठ अपने आकर्ष का पक्ष क्यों लिया?"
आकर्ष के वहां से जाने के बाद सोमदत्त ने अमर सिंह से पूछा।
वर्धन सिंह भी ध्यान से अमर सिंह की ओर देखने लगे। वो भी इस सवाल का जवाब जानना चाहते थे।
"सोमदत्त तुम आकर्ष को अच्छी तरह से जानते हो! हम उस पर दबाव नहीं डाल सकते। यह रास्ता उसने चुना है और सभी को उनका रास्ता चुनने का अधिकार है। हमारा काम था उसे समझना जो हमने कर दिया। अगर वह अभी भी मुकाबला करना चाहता है तो उसका साथ देने के अलावा हम कुछ नहीं कर सकते।"
अमर सिंह ने जवाब दिया और सभा कक्ष से बाहर जाने लगे। पर जाने से पहले एक बार उन्होंने मुड़कर वर्धन सिंह और सोमदत्त की ओर देखते हुए कहा.
"मैं भी कल उसके साथ आहूजा परिवार जाऊंगा। अगर जरूरत पड़ी तो मैं उसकी मदद भी करूंगा। चाहे इसके लिए मुझे पूरे आहूजा परिवार का सामना ही क्यों ना करना पड़े!"
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