2 दिन बाद दिव्य जल की मदद से आकर्ष ने शारीरिक मंडल के आठवें स्तर में प्रवेश कर लिया। उसके आठवें स्तर में प्रवेश करने के ठीक 3 दिन बाद दीया ने भी उसके पीछे-पीछे आठवें स्तर में प्रवेश कर लिया।दीया के ऊर्जा स्तर में हो रही इस निरंतर वृद्धि को देख आकर्ष हैरान था। उसके हिसाब से अगर दीया का ऊर्जा स्तर इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो वो बहुत जल्द उससे आगे निकल जाएगी।बहुत जल्द 15 दिन बीत गए।सोमदत्त वापस सांची लौट आए थे। पर वो अकेले नहीं थे, उनके साथ एक और व्यक्ति भी था जिसने सफेद चमकदार कपड़े पहन रखे थे। उनके चेहरे पर एक अलग तेज था और देखने में वह बहुत अनुभवी लग रहे थे। सोमदत्त ने जब उस व्यक्ति का परिचय आकर्ष से करवाया तब जाकर आकर्ष को मालूम हुआ कि यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि अतुल के दादाजी हैं। सोमदत्त से उसे यह भी पता चला था कि अतुल के दादाजी असल में एक 'आठवें स्तर के वैद्य' है।अब जाकर आकर्ष को समझ में आया था कि अतुल के पास इतने पैसे कहां से आए। अतुल के दादाजी एक वैद्य थे और वैद्यों के लिए पैसे कमाना कोई ज्यादा बड़ी बात नहीं थी। उनका स्तर जितना उच्च होता उतने ही ज्यादा उनके पास पैसे होते।"तुम्हारा नाम ही आकर्ष है.है ना? मुझे पता चला है कि मेरे अतुल की जो हालत हुई है उसके जिम्मेदार तुम हो! अगर मेरे अतुल को कुछ भी हो गया तो मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा!"अतुल के दादाजी ने गुस्से में आकर्ष की ओर देखते हुए कहा।आकर्ष ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वो बस चुपचाप खड़े होकर उनकी डांट सुन रहा था। वो भी इस बात से सहमत था कि अतुल की आज जो भी हालत है उसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ वो है!"दादाजी यह अस्थिचक्र गोली की निर्माण विधि है। हमने सारा सामान तैयार कर लिया है, आप जल्द से जल्द गोली बनाने की निर्माण प्रक्रिया शुरू कीजिए।"आकर्ष ने निर्माण विधि अतुल के दादाजी को देते हुए कहा।अतुल के दादाजी ने वह निर्माण विधि ली और ध्यान से उसे देखने लगे। फिर वो वरिष्ठ अमर सिंह के साथ एक दूसरे कमरे में चले गए। क्योंकि गोलियों का निर्माण करने के लिए उन्हें एकांत की आवश्यकता थी।"आकर्ष.तुम अतुल के दादाजी की किसी भी बात का बुरा मत मानना। उन्हें बस अतुल की चिंता है इसलिए वो तुम्हें डांट रहे थे। तुम्हें उनकी बात को दिल पर लेने की कोई जरूरत नहीं है।"अपने पिता के कमरे से बाहर जाने के बाद सोमदत्त ने आकर्ष को समझाते हुए कहा।उन्होंने कभी भी अतुल की हालत का जिम्मेदार आकर्ष को नहीं माना था। वो जानते थे कि यह उनके बेटे का निर्णय था, इसमें आकर्ष की कोई गलती नहीं थी।"सोमदत्त चाचा.आप चाहे कुछ भी कहे लेकिन अतुल के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए मैं शर्मिंदा हूं। अगर अतुल मुझे बचाने की कोशिश नहीं करता तो उसकी ऐसी हालत नहीं होती। पर आज मैं आपसे एक वादा करता हूं। चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे मुझे किसी का भी सामना क्यों न करना पड़े, मैं सार्थक से अतुल का बदला लेकर रहूंगा।"आकर्ष ने कहा।"मुझे तुम पर पूरा भरोसा है आकर्ष!.तुम एक दिन सार्थक से बदला जरूर लोगे।"सोमदत्त ने आकर्ष के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।3 घंटे के अथक प्रयास के बाद अतुल के दादाजी ने आखिरकार अस्थिचक्र गोली का निर्माण कर लिया। लेकिन अतुल अभी बेहोश था, वो इस गोली के अंदर मौजूद ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं कर सकता था। इसलिए अतुल के दादाजी ने अस्थिचक्र गोली अतुल के मुंह में रखी और अपनी आंतरिक ऊर्जा का इस्तेमाल कर उस गोली के अंदर मौजूद ऊर्जा को अतुल के जख्मों तक पहुंचने लगे। गोली के प्रभाव से कुछ ही देर में अतुल के सीने की टूटी हुई हड्डियां फिर से जुड़ गई। अब अतुल के दादाजी ने अतुल को एक थप्पड़ मार कर नींद से जगाया। असल में वरिष्ठ अमर सिंह ने लेप लगाने के बाद अतुल को बेहोश कर दिया था ताकि उसे ज्यादा दर्द महसूस ना हो। वो पिछले 15 दिनों से बेहोश था।थप्पड़ के दर्द से अतुल तुरंत चिल्लाते हुए होश में आ गया। आंखें खोलने के बाद उसने सबसे पहले जिस व्यक्ति को देखा वो थे उसके दादाजी।"दादाजी क्या आप भी मेरी तरह मर गए हो?"उसका सवाल सुनकर अतुल के दादाजी को समझ नहीं आ रहा था कि वह इसका क्या जवाब दें! उन्होंने अतुल को एक और थप्पड़ लगाया और डांटते हुए कहा."मुझे लगा था कि इतने दिनों बाद मुझे देखकर तुम्हें खुशी होगी लेकिन मुझे इसका अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि तुम इस तरह मेरे मरने की कामना करोगे।""क्या मतलब? क्या मैं अभी भी जिंदा हूं?"अतुल ने पूछा।उसके दादाजी ने कोई जवाब नहीं दिया और उसे घूरने लगे।"मैं सच में जिंदा हूं? दादाजी क्या हुआ था? क्या वो सब सिर्फ एक सपना था?"अतुल ने फिर से पूछा।"वो कोई सपना नहीं था। और अब तुम ठीक हो, तुम जिंदा हो, सांसे ले रहे हो। इतना काफी है या एक और थप्पड़ लगाऊँ!"सोमदत्त ने अतुल को डांटते हुए कहा।अतुल को सही सलामत देख वो काफी खुश थे।अतुल को होश में आया देख आकर्ष ने भी राहत की सांस ली। वो अब उन्हें ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था इसलिए बिना कुछ कहे वापस अपने घर चला आया।अपने कमरे में आकर आकर्ष अपने बिस्तर पर लेट गया और अपने पिता के बारे में सोचने लगा। उसकी मां से उसे अपने पिता के बारे में जो कुछ भी पता चला था उसे उन सब पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी मां के अनुसार.उसके पिता सिंघानिया खानदान से थे। उनकी गिनती उनके समय के सिंघानिया खानदान के सबसे ताकतवर योद्धाओं में होती थी। वो सिंघानिया खानदान के तीसरे सबसे ताकतवर योद्धा थे।16 साल की उम्र में उन्होंने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लिया था।20 साल की उम्र में उन्होंने सृष्टि मंडल में प्रवेश कर लिया और 27 के होते-होते वो ब्रह्मा मंडल में पहुंच चुके थे। जिस समय वो ब्रह्म मंडल के योद्धा बने थे उस समय आकर्ष अपनी मां के पेट में था। पर फिर जैसे उनकी खुशियों को किसी की नजर लग गई। उसके पिता अपने कुछ साथियों के साथ एक रहस्यमय स्थान में कुछ जड़ी बूटियों की खोज करने गए ताकि पारिजात गोली का निर्माण कर सके। लेकिन किसे पता था कि उसके पिता का यह आखिरी सफर होगा। उसके पिता और उनके सभी साथी उस रहस्यमय स्थान से वापस कभी नहीं लौटे। उसके पिता पारिजात गोली का निर्माण इसलिए करना चाहते थे क्योंकि जब इस गोली का सेवन एक गर्भवती स्त्री करती है तो उसके गर्भ में मौजूद शिशु जन्म से पूर्व ही अपनी ऊर्जा पर नियंत्रण करना सीख लेता है। जब वह शिशु बड़ा होता है और मंडलों में प्रवेश करता है तो उसके शरीर में मौजूद ऊर्जा बाकी योद्धाओं की तुलना में बहुत ज्यादा होती है।यह सब जानने के बाद आकर्ष इतना समझ गया था कि उसके पिता उससे और उसकी मां से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। लेकिन दुर्भाग्यवश इस प्यार की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।सिंघानिया परिवार के सभी लोगों का यही सोचना था। उसके पिता सिंघानिया खानदान की ताकत थे लेकिन उनके जाने के बाद उसके पिता के सारे दुश्मनों ने उसकी मां और उसे अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। रेवती को आकर्ष की चिंता थी इसलिए वो उसे लेकर वापस अपने घर यानी सांची के मिश्रा परिवार में आ गई।रही बात सार्थक और उसके पिता की.तो सार्थक के पिता रिश्ते में आकर्ष के पिता के भाई थे। वो दोनों भाई जरूर थे लेकिन उनका खून का रिश्ता नहीं था। सार्थक के पिता को आकर्ष के पिता से हमेशा जलन होती थी। एक बार जब उन दोनों के बीच में मुकाबला हो रहा था तो आकर्ष के पिता ने गलती से सार्थक के पिता का ऊर्जाकोष नष्ट कर दिया।"जैसा बाप वैसा बेटा! दोनों ही बदतमीज और घमंडी है।"आकर्ष ने गुस्सा होते हुए कहा।अब जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां ने इतने सालों से उसके लिए कितनी ज्यादा तकलीफ उठाई है तो उसे सिंघानिया परिवार पर और भी ज्यादा गुस्सा आने लगा। वो धरती का आकर्ष था पर लक्ष और इस दुनिया वाले आकर्ष की यादों के साथ मिलने के बाद वो तीनों एक हो गए थे। यहां तक कि जब भी उसे किसी को मारने का मन करता तो उसकी आंखों का लक्ष की आंखों की तरह नीला होना इस बात का सबूत था कि वह तीनों अब अलग नहीं है।"मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे पिता इतने महान थे। अगर वो आज जिंदा होते तो मेरी मां को इतनी तकलीफ नहीं उठानी पड़ती। लेकिन दुर्भाग्यवश."आकर्ष ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा।वो उम्मीद कर रहा था कि काश! उसके पिता जिंदा हो! पर उसके पिता पिछले 16 सालों से गायब थे। अगर वो जिंदा होते तो उससे और उसकी मां से मिलने जरूर आते।"अनुराग सिंघानिया"आकर्ष ने छत की ओर देखते हुए कहा।यह उसके पिता का नाम था।"मालिक! मालिक!"आकर्ष अपने पिता के बारे में सोच रहा था तभी उसे एक जानी पहचानी आवाज सुनाई दी।पहले वो जब भी इस आवाज को सुनता था तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता। पर आज यह आवाज सुनकर उसे बहुत खुशी हो रही थी। उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला तो बाहर अतुल खड़ा था।"तुम्हें आराम करना चाहिए। अगर तुम मुझसे कोई मदद चाहते हो तो पहले पूरी तरह स्वस्थ हो जाओ!"आकर्ष ने कहा।"मालिक मुझे मेरे पिता ने सब कुछ बता दिया है। आपने मेरे लिए जो कुछ भी किया उसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अगर आप नहीं होते तो शायद मैं जिंदा नहीं बच पाता।"अतुल ने धीरे से कहा।"तुम मुझे बचाते हुए घायल हुए थे। अगर मैं तुम्हारी मदद नहीं करता तो अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाता। वैसे उस दिन तुमने मुझे क्यों बचाया?"आकर्ष ने पूछा।"मैं भी नहीं जानता! आपको बचाने के लिए मैंने उस समय ज्यादा कुछ नहीं सोचा। उस समय मेरे दिमाग में बस एक ख्याल आया कि अगर आप मर गए तो मुझे मंत्र अभिलेख बनाना कौन सिखाएगा? दादाजी के अनुसार में वैद्य नहीं बन सकता, इसलिए अगर मुझे पैसे कमाने हैं तो मुझे मंत्रकार बनना पड़ेगा। और मेरी नजर में सिर्फ आप ही ऐसे हो जो मुझे मंत्रकार बना सकते हो!""तो तुमने सिर्फ इसलिए मुझे बचाया था कि तुम मंत्रकार बन सको और पैसे कमा सको?"आकर्ष ने डांटते हुए कहा।"मालिक मैं तो आपसे सिर्फ सच कह रहा था। आप इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो? कहीं आप मुझे मंत्र अभिलेख सिखाना बंद तो नहीं करने वाले?"अतुल ने पूछा।"मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला! जब तक तुम सीखना चाहते हो मैं सिखाऊंगा।"आकर्ष ने जवाब दिया।उसका जवाब सुनकर अतुल ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और आकर्ष के माथे को स्पर्श किया।"यह तुम क्या कर रहे हो? कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए?"आकर्ष ने पूछा।"वो मैं देख रहा था कि कहीं आपको बुखार तो नहीं है!"अतुल ने कहा।उसका जवाब सुनकर आकर्ष को फिर से उस पर गुस्सा आने लगा। उसके हिसाब से अतुल डांट के ही लायक था। शायद उसे किसी का अच्छा बर्ताव पसंद नहीं था।"अच्छा मालिक! मेरे दादाजी ने यह कुछ चांदी के सिक्के मुझे आपको देने को कहे थे। मेरे दादाजी ने कहा था कि यह अस्थिचक्र गोली की निर्माण विधि की कीमत है। इसमें पूरे एक लाख चांदी के सिक्के हैं।"अतुल ने एक बहुत बड़ी चांदी के सिक्कों से भरी थैली आकर्ष को देते हुए कहा।लेकिन आकर्ष ने उस थैली को नहीं लिया।"मालिक क्या हुआ? क्या आपको यह चांदी के सिक्के नहीं चाहिए?"अतुल ने पूछा।आकर्ष ने कोई जवाब नहीं दिया, बस सहमति में अपना सिर हिलाया। उसे बहुत ज्यादा पैसों की जरूरत थी लेकिन वो यह भी जानता था कि उसको कौन से पैसे लेने चाहिए और कौन से नहीं।अतुल ने उसकी जान बचाई थी और वह अच्छे से जानता था कि उसकी जान की कीमत क्या है।"मालिक आपको यह पैसे लेने ही होंगे।"अतुल ने फिर से कहा।उसे समझ नहीं आ रहा था कि हमेशा पैसों से प्यार करने वाला आकर्ष आज उससे पैसे ले क्यों नहीं रहा है?"अच्छा तो अब तुम भी मुझ पर दबाव डालोगे! क्या तुम इतने बड़े हो गए हो कि अब मुझे सिखाओगे कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं?"आकर्ष ने गुस्से होने का दिखावा करते हुए कहा।उसे गुस्सा होते देख अतुल ने थैली वापस अपने पास रख ली।"बहुत हो गई बातें! अब जाओ और आराम करो! मैं कुछ दिनों बाद वापस तुम्हारे घर तुम्हें सीखाने आऊंगा।"आकर्ष ने अतुल से कहा, और जल्दी से अपने कमरे में आकर दरवाजा बंद कर दिया।आकर्ष की किस्मत अच्छी थी कि अतुल की जान बच गई! अगर उसे कुछ हो जाता तो आकर्ष जीवनभर अतुल की हालत के लिए अपने आप को दोषी मानता।