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Chapter 36 - मुख्य मिश्रा परिवार' की शाखाएं

Ch 36 - मुख्य मिश्रा परिवार' की शाखाएं

सभी योद्धा जो 16 वर्ष के हो जाते थे उन्हें वयस्क माना जाता था। इस दिन को पूरे सांची में बडी धूमधाम से किसी त्योहार की तरह मनाया जाता था और इसमें वो सभी योद्धा भाग लेते थे जो इस साल 16 वर्ष के हुए हैं। सांची में यह त्यौहार जिसे वार्षिक उत्सव कहा जाता था, काफी समय से मनाया जा रहा था और इसकी सबसे अच्छी बात यह थी कि इसे सांची के तीनों परिवार मिलकर मनाते थे। हर साल यह त्यौहार तीनों परिवारों में से किसी एक परिवार द्वारा आयोजित किया जाता था और इस साल जो परिवार इसका आयोजन कर रहा था वह था गुप्ता परिवार।

"आकर्ष दीया तुम दोनों बहुत जल्द 16 वर्ष के होने वाले हो"

रेवती ने आकर्ष और दीया की तरफ देखते हुए कहा।

"दीया तुमने सुना मेरी मां हम दोनों की शादी के लिए कितनी उत्सुक है!"

आकर्ष ने हंसते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर दीया ने अपनी नज़रे झुका ली। जब भी वह अपनी और आकर्ष की शादी के बारे में सुनती तो उसका चेहरा शर्म से लाल होने लगता।

"तुम्हारे ख्यालों के घोडे कुछ ज्यादा ही तेज नहीं भाग रहे? मेरे कहने का मतलब था कि तुम्हें आने वाले वार्षिक उत्सव के लिए तैयार होना चाहिए।"

रेवती ने आकर्ष को डांटते हुए कहा।

"वैसे शादी का इरादा बुरा नहीं है!"

रेवती ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा।

आकर्ष को समझ नहीं आया कि वो अब इसका क्या जवाब दें! पहले जब उसने शादी के बारे में बात की तो उसकी मां उसे डांटने लगी। लेकिन उसके चुप होते ही उसकी मां खुद इस बारे में बात करने लगी।

"क्या तुमने सुना रेवती अपने बेटे आकर्ष और दीया की शादी की बात कर रही है। और एक तुम हो जिसने अभी तक कोई लडकी भी पसंद नहीं की। तुम्हारें मोटापे के कारण मुझे नहीं लगता कोई लडकी तुम्हें पसंद करेगी। पता नहीं कब तुम्हारी शादी होगी और कब मैं तुम्हारे बच्चों के साथ खेल पाऊंगा?"

रेवती की बात सुनकर पास ही में खडे सोमदत्त ने अतुल को डांटने का दिखावा करते हुए हुए कहा।

अपने पिता की डांट सुनकर अतुल ने आकर्ष की ओर देखा। उसे लगा कि शायद आकर्ष उसका पक्ष लगा लेकिन आकर्ष ने उसे ऐसे नजरअंदाज किया जैसे वो वहां पर है ही नहीं!

वार्षिक उत्सव सांची का सबसे बडा उत्सव था। इस दिन सांची में मौजूद वह सभी योद्धा जो 16 साल के हो गए हैं इसमें भाग लेते थे। इस साल का वार्षिक उत्सव गुप्ता परिवार आयोजित कर रहा था और यह त्यौहार गुप्ता परिवार के युद्ध गृह में मनाया जाने वाला था। यह त्यौहार योद्धाओं का था इसलिए इसे युद्ध गृह में आयोजित किया जाता था। इस दिन एक मुकाबला आयोजित किया जाता था जिसमें तीनों परिवार के योद्धा भाग लेते थे। मुकाबला खत्म होने के बाद शीर्ष 10, शीर्ष 3 और मुकाबले के विजेता यानी शीर्ष एक को पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जाता था।

गुप्ता परिवार का युद्ध गृह इस समय दर्शकों से भरा हुआ था। मिश्रा, गुप्ता और आहूजा तीनों परिवारों के एल्डर्स और कुल प्रमुख के बैठने का इंतजाम थोडी ऊंचाई पर किया गया था। ताकि वह मुकाबला पर अच्छे से अपनी नजर रख सके!

"यह तो आकर्ष है ना?"

मुकाबले में भाग लेने वाले 100 से भी ज्यादा योद्धाओं में से कुछ ने आकर्ष को पहली नजर में ही पहचान लिया था।

"सही कहा! वो आकर्ष ही है। लगता है वो भी आज के इस वार्षिक उत्सव में भाग लेने वाला है।"

"अगर वो भाग लेता है तो मुझे नहीं लगता कि उसके अलावा कोई और इस मुकाबले को जीत पाएगा। पहला स्थान तो पक्का उसी का होगा।"

गुप्ता परिवार के लोगों ने आज तक सिर्फ आकर्ष का नाम सुना था, उसे पहले कभी देखा नहीं था। लेकिन गुप्ता परिवार में एक ऐसा भी लडका था जिसने आकर्ष को देखते ही पहचान लिया। यह वही लडका था जिससे आकर्ष ने मंत्र अभिलेख बनाने और हथियार बनाने के लिए कुछ सामग्रियां खरीदी थी।

"तो यह लडका ही आकर्ष है"

उस लडके ने अपने आप से कहा।

कुछ ही देर में वार्षिक उत्सव आरंभ हो गया। सभी लोग मुकाबला देखने आए थे इसलिए गुप्ता परिवार ने ज्यादा देरी ना करते हुए मुकाबला शुरू कर दिया। मुकाबले में भाग लेने वाले लगभग सभी योद्धा शारीरिक मंडल के पांचवें स्तर से नीचे थे। बहुत ही कम योद्धा थे जिन्होंने छठे स्तर में प्रवेश किया था।

आकर्ष को किसी और के मुकाबले को देखने की कोई रुचि नहीं थी। वो बस दीया का मुकाबला देखना चाहता था। दीया ने अखाडे में प्रवेश करते ही सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया।

"बहुत ही सुंदर है"

"सही कहा! अगर मैं इससे शादी कर सकूं तो इसके लिए अपने जीवन को त्यागने के लिए भी तैयार हूं!"

"सपने देखना बंद कर दो! क्या तुम लोग नहीं जानते कि वो आकर्ष की होने वाली पत्नी है।"

गुप्ता परिवार के सभी शिष्य जिन्होंने आज पहली बार दीया को देखा था वो सभी उसके दीवाने हो गए थे।

"यह लडकी शारीरिक मंडल के आठवें स्तर में है?"

तीनों परिवारों के कुल प्रमुखों ने दीया की ओर देखते हुए एक साथ कहा।

अखाडे में जो दीया का प्रतिद्वंदी था वो एक कमजोर लडका था। उसने अभी तक केवल शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में ही प्रवेश किया था। परिणामस्वरूप वो तुरंत ही दीया से हार गया।

दीया ने उसे हराने के लिए किसी भी प्रकार की युद्ध कला का इस्तेमाल नहीं किया था। इसका कारण था कि उसे कोई युद्ध कला आती ही नहीं थी। ऐसा नहीं था कि आकर्ष उसे कोई युद्ध कला सीखाना नहीं चाहता था, लेकिन उसका सोचना था कि दीया अगर पहले तलवारबाजी में महारत हासिल कर लेगी तो वो तलवार से संबंधित सभी युद्ध कला आसानी से सीख पाएगी।

"यह लडकी शारीरिक मंडल के आठवें स्तर में हैं?"

गुप्ता परिवार के एक एल्डर ने चौंकते हुए कहा।

एल्डर की बात सुनकर सभी योद्धा हैरानी से दीया की ओर देखने लगे। कुछ ही देर में पूरे युद्ध गृह में मौजूद लोगों को पता चल गया था कि दीया शारीरिक मंडल के आठवें स्तर में है।

"क्या यह लडकी सच में शारीरिक मंडल के आठवें स्तर में है?"

"मैंने खुद गुप्ता परिवार के एक एल्डर से इसके बारे में सुना है। मुझे नहीं लगता कि वो झूठ बोल रहे होंगे"

"पहले मुझे लगा था कि सिर्फ आकर्ष ही प्रतिभाशाली है, लेकिन लगता है कि मैं गलत था। आकर्ष के सभी साथी भी उसके जितने ही प्रतिभाशाली है।"

सबसे पहले मुकाबले में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं के ऊर्जा स्तर की जांच की जाती थी। यह मुकाबला दो भागों में विभाजित किया गया था। पहले चरण में ऊर्जा स्तर की जांच होती थी और दूसरे चरण में मुकाबला।

बहुत जल्द सभी के ऊर्जा स्तर की जांच पूरी हो गई और पहले चरण का परिणाम घोषित कर दिया गया।

पहला स्थान:- आकर्ष सिंघानिया

दूसरा स्थान:- दीया

तीसरा स्थान:- आदित्य मिश्रा

चौथा स्थान:- चारु मिश्रा

पांचवा स्थान:- अरुण मिश्रा

छठा स्थान:- अतुल मिश्रा

शीर्ष 10 स्थानों में से शीर्ष 6 स्थान मिश्रा परिवार के शिष्यों ने प्राप्त किए थे।

दूसरे चरण के मुकाबले की शुरुआत से पहले तीनों परिवार के कुल प्रमुखों द्वारा सभी योद्धाओं का हौसला बढ़ाने के लिए कुछ शब्द कहे गए।

"यह कोई ऐसी बात भी तो कह सकते हैं जिसमें सभी की रुचि हो! इनका यह बेकार भाषण कौन सुनना चाहेगा?"

आकर्ष ने उबासी लेते हुए कहा।

उसे उनका भाषण सुनकर नींद आने लगी थी।

"मालिक क्या मैं मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल दूसरे चरण के मुकाबले में कर सकता हूं?"

अतुल ने पूछा।

"मिश्रा परिवार के शिष्यों के अलावा जो भी तुम्हारे सामने आए तुम बेझिझक उस पर इसका इस्तेमाल कर सकते हो।"

आकर्ष ने जवाब दिया।

"मालिक अगर मैं मिश्रा परिवार के शिष्यों पर इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता तो इन मंत्र अभिलेखों का क्या फायदा?"

अतुल ने कहा।

दरअसल वो गुप्ता और आहूजा परिवार के योद्धाओं को तो आसानी से हरा सकता था। लेकिन मिश्रा परिवार के कुछ एल्डर्स के बेटे भी इस मुकाबले में भाग ले रहे थे और अतुल बिना मंत्र अभिलेख की मदद के उन्हे नहीं हरा सकता था, क्योंकि आकर्ष के दिए दिव्य जल और वज्रज्वाल गोली के कारण उन सभी के ऊर्जा स्तर में बहुत तेजी से वृद्धि हुई थी और वो सब अतुल से ज्यादा शक्तिशाली हो गए थे।

"इसमें तुम्हारी ही गलती है। तुमने ठीक ढंग से अभ्यास क्यों नहीं किया? अगर तुम मन लगाकर अभ्यास करते तो आसानी से उन्हें हरा देते!"

आकर्ष ने अतुल को डांट लगाते हुए कहा।

आकर्ष ने उसके ऊर्जा स्तर को बढ़ाने के लिए उसे सप्त शारीरिक दिव्य जल तक दे दिया था लेकिन निरंतर अभ्यास नहीं करने के कारण वो अभी तक केवल शारीरिक मंडल के चौथे स्तर में ही पहुंच पाया था। वहीं दूसरी तरफ बाकी एल्डर्स के बेटों ने दिव्य जल मिलने के बाद जमकर अभ्यास किया और पांचवें स्तर में पहुंच गए।

"कोई बात नहीं! शीर्ष 3 में ना सही पर शीर्ष 10 में तो मैं अपना स्थान बना ही लूंगा।"

अतुल ने कहा।

बहुत लंबे इंतजार के बाद आखिरकार तीनों कुल प्रमुखों का भाषण खत्म हुआ और मुकाबले के दूसरे चरण को शुरू किया गया।

दूसरे चरण में कुल 121 योद्धाओं ने भाग लिया था। अब मुख्य मुकाबला शुरू हो रहा था इसलिए इन सभी लोगों को 60-60 के दो समूह में बांटा गया। पीछे जो एक योद्धा बच गया था उसको तीनों परिवारों की सहमति से पहला स्थान दे दिया गया। यह योद्धा था आकर्ष।

सभी दर्शक और योद्धा तीनों परिवारों के इस फैसले से सहमत थे। इसका कारण था की आकर्ष ने चक्र मध्य मंडल के पहले स्तर के योद्धा श्रीकांत तक को खत्म कर दिया था फिर वो सब क्या चीज थे! अगर वो आकर्ष का सामना करते तो उनका हारना निश्चित था।

"मालिक आपकी किस्मत वास्तव में बहुत अच्छी है। आपको कोई मुकाबला भी नहीं करना पडा और आप पहले स्थान पर पहुंच गए।"

अतुल जिसके हाथ में 32 नंबर का टोकन था, उसने आकर्ष से कहा।

आकर्ष ने अतुल को नजरअंदाज किया और दीया से पूछा

"दीया तुम्हारे पास कितने नंबर का टोकन है?"

"7"

दीया ने जवाब दिया।

मिश्रा परिवार के कुल प्रमुख वर्धन सिंह मुकाबले के परिणाम से बहुत ज्यादा खुश थे। वहीं दूसरी तरफ गुप्ता परिवार और आहूजा परिवार के कुल प्रमुख शशांक और अभय आहूजा के चेहरे का रंग इस समय उडा हुआ था।

मुकाबला के पूरा होने के बाद अब पुरस्कार वितरण का समय था।

पहला स्थान आकर्ष ने प्राप्त किया था इसलिए उसे 300 चांदी के सिक्के और दो ऊर्जा शारीरिक गोलियां दी गई। हर एक मंडल के लिए एक विशेष प्रकार की गोली होती थी जो उस मंडल में मौजूद योद्धा के ऊर्जा स्तर को जल्दी से बढ़ाती थी। शारीरिक मंडल के योद्धाओं के ऊर्जा स्तर को तेजी से बढ़ाने वाली गोली का नाम 'ऊर्जा शारीरिक गोली' था।

दूसरा स्थान दीया ने और तीसरा स्थान आदित्य मिश्रा ने प्राप्त किया था। उन दोनों को 200 चांदी के सिक्के और एक एक ऊर्जा शारीरिक गोली दी गई।

बाकी सात स्थानों को प्राप्त करने वाले योद्धाओं को 100-100 चांदी के सिक्के दिए गए।

"यह लोग सच में बहुत कंजूस हैं!"

आकर्ष ने अपने पुरस्कार से असंतुष्ट होकर कहा।

"मालिक यह लीजिए।"

दीया ने अपना पुरस्कार आकर्ष को देते हुए कहा।

बाकी सभी योद्धाओं को इस समय आकर्ष से जलन हो रही थी। पर सभी के बीच में कोई ऐसा भी था जिसे दीया से जलन हो रही थी वो थी सोनाक्षी गुप्ता।

उसी रात मुकाबला खत्म होने के बाद गुप्ता और आहूजा परिवार ने मिलकर एक सभा आयोजित की और इस सभा को आयोजित करने का कारण था मिश्रा परिवार!

आज वार्षिक उत्सव के मुकाबले में शीर्ष 10 स्थानों में से शीर्ष 6 स्थान मिश्रा परिवार के शिष्यों ने प्राप्त किए थे। सांची के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी परिवार ने इतने ज्यादा स्थान हासिल किए हो!

गुप्ता और आहूजा परिवार ने मिलकर इस मामले की अच्छे से जांच करना शुरू कर दिया। लेकिन काफी दिनों की जांच के बाद भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

कुछ दिनों बाद मिश्रा परिवार के सभा कक्ष में

"आकर्ष दीया वार्षिक उत्सव के बाद में तुम लोगों से कुछ बात करना चाहता था लेकिन मुझे समय नहीं मिला। लेकिन आज मैं तुम लोगों से एक जरूरी बात करना चाहता हूं।"

वर्धन सिंह ने कहा।

"कहिए"

आकर्ष ने कहा।

"दरअसल हमारा मिश्रा परिवार वीरगढ़ के मिश्रा परिवार का हिस्सा है। हम वीरगढ़ के मिश्रा परिवार से ही अलग हुए है।"

वर्धन सिंह ने कहा।

उनकी बात सुनकर आकर्ष हैरान था।

उसने वीरगढ़ के मिश्रा परिवार के बारे में पहले से सुन रखा था। वीरगढ़ का मिश्रा परिवार सांची के मिश्रा परिवार से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली था। लेकिन उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि इन दोनों परिवारों का आपस में कोई संबंध होगा।

वर्धन सिंह ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा, "

"हमारा परिवार वीरगढ़ के मिश्रा परिवार के अधीन है, क्योंकि हम उन्हीं से अलग हुए हैं। तुम हमें वीरगढ़ के मिश्रा परिवार की एक शाखा मान सकते हो! हमारी ही तरह बाकी सभी शहरों में भी वीरगढ़ के मिश्रा परिवार की कई शाखाएं मौजूद है। इन सभी शाखाओं से हर साल कई शिष्य जिनमें वैद्य, हथियार शिल्पकार, मंत्रकार और वो सभी योद्धा जो 18 साल से छोटे हैं और शारीरिक मंडल के सातवें स्तर में प्रवेश कर चुके हैं, वीरगढ़ के मिश्रा परिवार का हिस्सा बन सकते हैं।"