अगले दिन आकर्ष सूरज की पहली किरण के साथ जागा और नहा धोकर तैयार हो गया। उसने सफ़ेद रंग के नए वस्त्र पहने और उक्कू से बनी तलवार को म्यान में डालकर उसे किसी बेल्ट की तरह अपने कमर के चारों तरफ पहन लिया। किसी के लिए भी मात्र देखकर यह बता पाना मुश्किल था कि वह बेल्ट वास्तव में एक तलवार है। सूरज की लालिमा के आसमान में बिखरने के साथ ही आकर्ष अपने कमरे से बाहर आ गया।
"मालिक"
तभी एक आवाज उसके कानों में सुनाई पड़ी।
यह आवाज दीया की थी जिसने हरे रंग के कपड़े पहन रखे थे। उसने भी अपनी उक्कू की तलवार को कमर पर बेल्ट की तरह पहना हुआ था। आकर्ष ने जब उसकी ओर देखा तो उसे देखता ही रह गया।
आकर्ष की नजर अपने ऊपर देख दीया ने शर्माते हुए पूछा.
"आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो मालिक?"
"तुम इतनी सुंदर हो! क्या मुझे तुम्हें नहीं देखना चाहिए! तुम्हारे होने वाले पति की हैसियत से मेरा इतना अधिकार तो बनता है.है ना! "
आकर्ष ने शरारती ढंग से जवाब दिया।
आकर्ष का जवाब सुनकर दीया का चेहरा हमेशा की तरह शर्म से लाल हो गया। उसको आकर्ष से ऐसे किसी जवाब की उम्मीद नहीं थी। यह आकर्ष उस आकर्ष से बिल्कुल अलग था जिसने उसे चाँदी के सिक्के दिये थे।
दीया ने जल्दी से बात बदलते हुए आकर्ष से कहा.
"मालकिन और मैंने आपके लिए सुबह जल्दी उठकर नाश्ता तैयार कर दिया था। मालकिन ने आपको मुकाबला करने से पहले नाश्ता करने को कहा है।"
आकर्ष समझ गया कि दीया उन दोनों के शादी के बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहती इसलिए वो जल्दी से दीया के साथ खाना खाने आ गया। अपनी मां को वहां पर ना देखकर आकर्ष ने इस बारे में दीया से पूछा।
"वो मालिक.मालकिन आपके साथ खाना खाना चाहती थी लेकिन कुल प्रमुख ने उनको मिलने बुलाया था इसलिए उन्हें जाना पड़ा।"
दीया ने कहा।
"कुल प्रमुख ने बुलाया था?"
आकर्ष अच्छे से जानता था कि कुल प्रमुख ने उसकी मां को क्यों बुलाया है। इसलिए उसने दीया से कहा.
"वरिष्ठ और बाकी सब मिलकर मेरे मुकाबले के लिए कुछ तैयारियां कर रहे हैं। इसलिए मेरी मां को आने में समय लगेगा। तब तक हम खाना खा लेते हैं।"
खाना खाने के बाद आकर्ष ने दीया से कहा.
"दीया. जब हम आहूजा परिवार के महल में पहुंच जाएं तो तुम मेरी मां के पास रहना। एक पल के लिए भी उनकी आंखों से ओझल मत होना!"
"जी मालिक"
दीया ने अपना सिर सहमति में हिलाते हुए कहा।
अब वह दोनों आहूजा परिवार के महल के लिए रवाना हो गए।
हमेशा की तरह आज भी दीया ने काफी लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया था। लेकिन आकर्ष ने सभी को नजरअंदाज किया क्योंकि अब उसको इसकी आदत हो गई थी।
वह दोनों सबसे पहले मिश्रा परिवार के बाजार में आए। फिर आहूजा परिवार के बाजार से होते हुए सीधे आहूजा परिवार के महल में पहुंच गए। महल तक का रास्ता आज लोगों से पूरा भरा हुआ था। जैसे ही उन लोगों ने आकर्ष को आते देखा तो उसे अखाड़े की ओर जाने का रास्ता देने लगे।
"यही वो लड़का आकर्ष है जिसने श्रीकांत को चुनौती दी हैं.है ना! मुझे नहीं लगा था कि यह मुकाबला करने आएगा।"
"मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था। आकर्ष ने सभी के सामने अंकुश को जान से मारा था। जब उसे उस समय आहूजा परिवार से डर नहीं लगा तो अब श्रीकांत से मुकाबला करने में उसे डर क्यों लगेगा?"
"पर तुम्हें भी यह समझना चाहिए कि श्रीकांत और अंकुश.दोनों के बीच में दिन रात का अंतर है। अंकुश जैसे 100 योद्धा मिलकर भी श्रीकांत का मुकाबला नहीं कर सकते!"
जैसे-जैसे आकर्ष और दीया अखाड़े की ओर बढ़ रहे थे पूरे सांची के लोग भी उनके पीछे-पीछे आ रहे थे। आहूजा परिवार के बाजार से लेकर उनके महल तक की सारी गलियां सारे रास्ते लोगों से भरे हुए थे और अभी भी लोगों का आना जारी था। कुछ देर में वो दोनों आहूजा परिवार के युद्ध गृह के दरवाजे पर पहुंच गए। युद्ध गृह भी दर्शकों से इस समय खचाखच भरा हुआ था। दर्शकों के साथ युद्ध गृह में मिश्रा परिवार के सभी एल्डर्स और कुल प्रमुख भी मौजूद थे सिर्फ सातवें एल्डर अमन को छोड़कर।
"सभी एल्डर्स और कुल प्रमुख को मेरा प्रणाम"
आकर्ष और दीया ने जल्दी से सभी को प्रणाम किया।
आकर्ष उन सबको वहां पर देखकर बिल्कुल भी हैरान नहीं था। क्योंकि वो जानता था कि वह सब उसका मुकाबला देखने आएंगे और हो सके तो उसकी मदद भी करेंगे।
आकर्ष भले ही हैरान नहीं था लेकिन दर्शकों के लिए यह नजारा हैरान करने योग्य था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आकर्ष तो मिश्रा परिवार का मात्र एक शिष्य है फिर उसका मुकाबला देखने पूरा मिश्रा परिवार.यहां तक की सभी एल्डर्स और कुल प्रमुख कैसे आए हैं?
सभी दर्शक धीमी आवाज में एक दूसरे से इस बारे में चर्चा करने लगे।
"लगता है आकर्ष मिश्रा परिवार का मात्र एक शिष्य नहीं है! देखो तो. आहूजा परिवार के कुल प्रमुख खुद यह मुकाबला देखने आए है।"
"ना सिर्फ कुल प्रमुख बल्कि बाकी सभी एल्डर्स भी मौजूद हैं। अगर यह सिर्फ एक शिष्य होता तो यह सब यहां पर क्यों आते?"
"हालात देखकर तो ऐसा ही लगता है कि यह मुकाबला आकर्ष और श्रीकांत के बीच में नहीं बल्कि आहूजा परिवार और मिश्रा परिवार के बीच में है।"
युद्ध गृह में पहुंचकर आकर्ष ने सबसे पहले दीया को अपनी मां के पास भेजा, फिर अखाड़े की ओर देखते हुए एक गर्जना की.
"श्रीकांत 3 महीने का समय पूरा हो गया है। तुम अभी तक अखाड़े में नहीं आए हो.कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हे मुकाबला करने से डर लग रहा है!"
आकर्ष की आवाज इतनी तेज थी कि पूरे आहूजा परिवार के महल में उसकी आवाज गूंज रही थी।
"मैं एक बच्चे से डर जाऊंगा मेरे इतने बुरे दिन भी नहीं आए"
श्रीकांत ने आहूजा परिवार के महल से बाहर आते हुए कहा। उसके साथ इस समय आहूजा परिवार के कुछ और लोग भी थे। जिनमें से एक को आकर्ष अच्छे से पहचानता था। वो व्यक्ति था अभय आहूजा.आहूजा परिवार का कुल प्रमुख!
श्रीकांत के साथ बाकी जितने भी लोग थे आकर्ष उन सभी को पहचानता तो नहीं था पर उसने कहीं ना कहीं उन सभी को देखा जरूर था।
लेकिन एक चेहरा ऐसा भी था जो आकर्ष के लिए बिल्कुल नया था। यह व्यक्ति अभय आहूजा से आगे चल रहा था और बाकी सभी लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देख रहे थे यहां तक की कुल प्रमुख अभय आहूजा भी। जल्दी ही आकर्ष को अपने सवाल का जवाब मिल गया जब उसने लोगों की बातें सुनी।
"देखो आज आहूजा परिवार के वरिष्ठ भी यह मुकाबला देखने आए है!"
"तुम सबको कुछ अजीब नहीं लगता! पहले मिश्रा परिवार के सभी एल्डर्स और कुल प्रमुख और अब आहूजा परिवार के सभी एल्डर्स और कुल प्रमुख यहां तक की उनके वरिष्ठ भी यह मुकाबला देखने आए है।"
सही कहा! अगर मिश्रा परिवार के वरिष्ठ भी यहां पर मौजूद होते तो एक पल के लिए तो मुझे भी यही लगता कि श्रीकांत और आकर्ष नहीं बल्कि दोनों परिवार एक दूसरे से मुकाबला करने वाले हैं।
भीड़ की बातें सुनने के बाद आकर्ष को पता चला कि जिस व्यक्ति का सभी आहूजा परिवार के सभी लोग सम्मान कर रहे हैं वह असल में आहूजा परिवार के वरिष्ठ हैं।
आकर्ष ने जब आहूजा परिवार के वरिष्ठ की ओर देखा तो उसने पाया कि वरिष्ठ की दृष्टि पहले से ही उस पर है। लेकिन आकर्ष उनकी दृष्टि के पीछे छुपे 'कत्ल के भाव' को देख पा रहा था। वो खुद एक समय पर हत्यारा था इसलिए उसके लिए इस प्रकार के कत्ल के भाव को पहचानना कोई बड़ी बात नहीं थी।
थोड़ी देर आकर्ष को देखने के बाद आहूजा परिवार के वरिष्ठ ने आसमान की ओर देखते हुए कहा.
"अमर सिंह जब तुम यहां पर आ ही गए हो तो सभी के सामने क्यों नहीं आते?"
"लगता है तुम्हारे ऊर्जा स्तर में फिर से वृद्धि हुई है.दुर्जन सिंह!"
अचानक अमर सिंह ने सभी के सामने आते हुए कहा।
"प्रणाम वरिष्ठ"
अचानक अमर सिंह को आया देख मिश्रा परिवार के सभी सदस्य एक साथ खड़े हुए और प्रणाम किया।
जो लोग अभी तक अमर सिंह के आने की उम्मीद कर रहे थे उनका इंतजार अब खत्म हो गया था।
"मुझे यकीन नहीं होता कि मिश्रा परिवार के वरिष्ठ भी यह मुकाबला देखने आए हैं! सिर्फ वो ही नहीं गुप्ता परिवार के कुल प्रमुख शशांक और उनकी बेटी सोनाक्षी भी आई है।"
सभी लोगों को शशांक और उनकी बेटी सोनाक्षी का मुकाबला देखने आना अजीब लग रहा था विशेषकर सोनाक्षी का। क्योंकि यह मुकाबला आहूजा परिवार और मिश्रा परिवार के बीच में था। गुप्ता परिवार का इससे कोई संबंध नहीं था।
"यह यहां"
लोगों की बातें सुनने के बाद आकर्ष का ध्यान सोनाक्षी पर गया, जो इस समय उसी की तरफ देख रही थी। उसकी आंखों में उसके लिए फिक्र थी जिसका कारण आकर्ष को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो दोनों इतने भी करीब नहीं थे कि सोनाक्षी को उसकी चिंता हो।
"श्रीकांत.चलो मुकाबला शुरू करते हैं!"
आकर्ष ने सोनाक्षी को नजरअंदाज किया और श्रीकांत की ओर देखते हुए कहा।
आकर्ष के इतना कहते ही श्रीकांत अखाड़े में उसके सामने आकर खड़ा हो गया।
"चक्र मध्य मंडल का पहला स्तर! श्रीकांत ने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कब किया?"
मिश्रा परिवार के दूसरे एल्डर अनुज ने चौंकते हुए कहा।
उनकी बात सुनकर मिश्रा परिवार के बाकी सभी सदस्यों का चेहरा उतर गया। उन्हें इसका जरा भी अंदाजा नहीं था कि श्रीकांत चक्र मध्य मंडल का योद्धा होगा!
"इस श्रीकांत ने चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करके सारा दांव ही पलट दिया है।"
"पर इससे भी हैरान करने वाली बात तो यह है कि आहूजा परिवार ने इस बात को सभी से छुपाया क्यों था?"
"तुम बिल्कुल मुर्ख हो! यह तो एक बच्चा भी जानता है कि आहूजा परिवार और मिश्रा परिवार की दुश्मनी काफी पुरानी है। पहले आकर्ष ने अंकुश की हत्या की, अब आहूजा परिवार ने इस बात को सभी से छुपाया ताकि श्रीकांत.आकर्ष की हत्या कर अंकुश का बदला ले पाए!"
इस समय सबसे ज्यादा परेशान रेवती थी। उसे अंदाजा भी नहीं था कि श्रीकांत इन तीन महीनों में चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लेगा। वह जल्दी से आकर्ष के पास आई और धीमी आवाज में कहा.
"आकर्ष तुम्हें यह मुकाबला करने की कोई भी जरूरत नहीं है। तुम मेरे साथ घर चलो!"
इससे पहले की आकर्ष कोई जवाब देता अभय आहूजा ने बीच में ही हंसते हुए कहा.
"रेवती.उस दिन तुम्हारा बेटा आकर्ष ही बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था। यह चुनौती हमने नहीं तुम्हारे बेटे आकर्ष ने दी है। अब तुम लोग यहां से भागना चाहते हो! मैंने तो सुना था कि मिश्रा परिवार के योद्धा मरने से नहीं डरते! लगता है मैंने गलत सुना है!"
रेवती ने अभय की बात का कोई जवाब नहीं दिया और आकर्ष को वहां से ले जाने लगी। जहां तक उसे पता था आकर्ष शारीरिक मंडल के नौवें स्तर के योद्धा को तो हरा सकता है लेकिन चक्र मध्य मंडल के पहले स्तर के योद्धा को हराना उसके लिए नामुमकिन था।
"रेवती तुम आकर्ष को यहां से नहीं ले जा सकती! इसे यह मुकाबला लड़ना होगा।"
आहूजा परिवार के एक एल्डर ने रेवती को रोकते हुए कहा।
मिश्रा परिवार के बाकी एल्डर्स आकर्ष की मदद करना चाहते थे लेकिन इससे पहले कि वह कुछ करे आहूजा परिवार के सभी एल्डर्स ने उन्हें खड़े होने से रोक दिया।
आहूजा परिवार इसके लिए पहले से तैयार था।
"मैं भी देखती हूं कि आज मुझे आकर्ष को यहां से ले जाने से कौन रोकता है?"
रेवती ने म्यान से अपनी तलवार निकालते हुए कहा।
उसे अपने आप पर इतना तो भरोसा था कि वह अपनी रफ्तार के बल पर अपने सामने खड़े आहूजा परिवार के उस एल्डर को एक झटके में खत्म कर सकती है। लेकिन साथ में वह यह भी जानती थी कि एक बार उसने हमला कर दिया तो यह आगे चलकर युद्ध का रूप ले लेगा। जब तक आहूजा परिवार और मिश्रा परिवार में से कोई एक पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता तब तक यह युद्ध चलता रहेगा।
"माँ.शांत हो जाइए!"
आकर्ष ने कहा।
रेवती अपने बेटे को अच्छे से जानती थी। आकर्ष की आंखों में इस समय बिल्कुल भी डर नहीं था। कुछ देर सोचने के बाद रेवती ने अपनी तलवार वापस म्यान में रख ली। लेकिन उसने सोच लिया था कि अगर उसका बेटा श्रीकांत को नहीं हरा पाता है तो वह खुद अखाड़े में जाकर आकर्ष को बचाएगी। अपने बेटे के लिए वह पूरी दुनिया से दुश्मनी करने को तैयार थी फिर आहूजा परिवार क्या चीज थी!
"पिताजी अब हम क्या करें? श्रीकांत चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर चुका है। आकर्ष चाहे कुछ भी कर ले वह श्रीकांत को नहीं हरा सकता है! आपको उसकी मदद करनी होगी!"
सोनाक्षी ने चिंतित होते हुए शशांक से कहा।
"सोनाक्षी आज मैं यहां सिर्फ एक दर्शक बनकर आया हूं। मैं चाहकर भी उसकी मदद नहीं कर सकता!"
शशांक ने एक कड़वी मुस्कान के साथ जवाब दिया। उन्होंने अपने आप को इतना लाचार पहले कभी भी महसूस नहीं किया था।
अपने पिता का जवाब सुनकर सोनाक्षी का चेहरा उतर गया। उसने उदास होते हुए अपने आप से ही कहा.
"बदमाश लड़के.तुम्हें कुछ नहीं हो सकता! अभी तो मैंने तुमसे अपना बदला भी नहीं लिया है। फिर तुम मुझे."
"मालिक"
दीया ने आकर्ष की ओर देखते हुए कहा।
वह पहले से ही इस मुकाबले को लेकर काफी चिंतित थी। अब जब उसने देखा कि श्रीकांत चक्र मध्य मंडल का योद्धा बन चुका है तो उसकी चिंता और ज्यादा बढ़ गई। उसने अपना हाथ इस समय अपनी कमर पर बंधी बेल्ट पर रखा था, जो असल में उक्कू की तलवार थी। वो आकर्ष पर आने वाले किसी भी खतरे को रोकने के लिए तैयार थी।
"मालिक.उम्मीद करता हूं कि यह मुकाबला आप ही जीते।"
अतुल ने आकर्ष की ओर देखते हुए कहा।
"लगता है काफी लोगों को तुम्हारी चिंता है। वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इन 3 महीनों में सातवें स्तर में प्रवेश कर लोगे। तुम्हारी प्रतिभा तारीफ योग्य है। लेकिन यह प्रतिभा अब तुम्हारे ज्यादा काम नहीं आने वाली क्योंकि तुम इस अखाड़े से आज जिंदा बाहर नहीं जाओगे। तुमने मेरे बेटे की सिर्फ रीड की हड्डी तोड़ी थी लेकिन आज मैं तुम्हारी सारी हड्डियों का चूरा बनाऊंगा। मैं तुम्हें आसान मौत नहीं दूंगा, बल्कि मौत के लिए तुम्हें तड़पाऊंगा।"
श्रीकांत ने कर्कश आवाज में कहा।
"श्रीकांत तुम्हे एक बात बताऊँ! तलवार के घाव भी एक समय पर भर जाते हैं लेकिन यह जो शब्दों के घाव होते हैं ना. यह कभी नहीं भरते! मैंने तुम्हारे बेटे की रीड की हड्डी तोड़ी क्योंकि वह गलत था। अभी तुम जिस मुँह से बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो ना. कहीं ऐसा ना हो कि यही तुम्हारे अंत का कारण बने।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"तुम्हें अभी पता चल जाएगा कि मेरे शब्दों के घाव ज्यादा गहरे हैं या मेरी तलवार के। मैंने सुना है की तलवारबाजी में शारीरिक मंडल का कोई भी योद्धा तुम्हारा मुकाबला नहीं कर सकता। तो आज मुझे अपनी तलवारबाजी दिखाओ। पर यह क्या. तुम्हारे पास तो कोई तलवार ही नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें पहले से ही पता था कि आज तुम मरने वाले हो इसलिए तुम अपनी तलवार नहीं लाए!"
श्रीकांत ने पूछा।
"मैंने अभी तुमसे कुछ कहा था.इतनी जल्दी भूल गए। अगर भूल गए तो फिर से याद दिला रहा हूं! 'तुम्हारे कह गए शब्द ही तुम्हारे अंत का कारण बनेंगे।' "
आकर्ष ने जवाब दिया।
"मेरे शब्द मेरे अंत का कारण बनेंगे या नहीं लेकिन तुम्हारे अंत का कारण आज मैं जरूर बनूंगा"
श्रीकांत ने गुस्सा होते हुए कहा।
इतना कहते ही उसके सिर पर दो परछाइयां प्रकट हो गई।
'दो हाथियों की परछाइया
Hello redars I hope you like my novel then please vote on my Novel and comment like