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Chapter 32 - अभिजीत ने आत्महत्या कर ली!

"बहुत ही बढ़िया तलवार है आकर्ष!"अमर सिंह ने उक्कू की तलवार को ध्यान से देखते हुए कहा। वो तुरंत पहचान गए थे कि यह तलवार उसी उक्कू से बनी है जिसको उन्होंने मिश्र धातुओं से अलग किया था।"इस तलवार को किसने बनाया है?"अमर सिंह ने पूछा।"वसंत चाचा ने"आकर्ष ने जवाब दिया।"मुझे लगा ही था। पूरे सांची में वसंत जैसी तलवार कोई नहीं बना सकता। वसंत ने बड़ी कुशलता से इसका निर्माण किया है।"अमर सिंह ने प्रशंसा करते हुए कहा।"जरूर यह तलवार एल्युमिनियम की बनी होगी! मुझे भी एक ऐसी ही तलवार चाहिए। मैं अभी जाकर वसंत चाचा से कहता हूं।"अतुल ने अपने हाथों को आपस में मसलते हुए कहा।"एल्युमिनियम! यह अतुल हमेशा इतना दिखावा क्यों करता है जैसे इसे सब कुछ पता है!"आकर्ष ने अपने आप से कहा।"Pa!"तभी सोमदत्त ने अतुल के सिर के पीछे हल्के हाथों से एक तमाचा मारते हुए कहा."तुम्हें कितनी बार कहा है कि जितनी जरूरत हो उतना ही बोला करो! बोल तो ऐसे रहे हो जैसे तुम्हें सब कुछ पता है। क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता कि एल्युमिनियम लचीला नहीं होता!""मुझे कैसे पता होगा?"अतुल ने अपने सिर के पीछे के हिस्से पर हाथ फेरते हुए कहा, जहाँ उसके पिता ने अभी तमाचा मारा था।उसका जवाब सुनकर सभी हंसने लगे।"आकर्ष. आज तुमने जिस सौम्य गति का इस्तेमाल किया था क्या वह भी तुम्हें तुम्हारे मास्टर ने सिखाई है?"वर्धन सिंह ने पूछा।"बिल्कुल"आकर्ष ने जवाब दिया। उसने यह जवाब पहले ही तैयार कर रखा था।उसका जवाब सुनकर सभी को आकर्ष से जलन होने लगी। उनके हिसाब से आकर्ष की किस्मत बहुत अच्छी थी कि वो एक सातवे स्तर के वेद्य का शिष्य है।"कुल प्रमुख. मेरे मास्टर ने मुझे दो युद्ध कलाएँ दी थी। उनमें से एक सौम्य गति है और दूसरी सौम्य गति के जैसी ही एक और युद्ध कला है जिससे कोई भी योद्धा अपनी रफ्तार पर अच्छे से नियंत्रण पा सकता है। आप भी जानते हैं कि सौम्य गति कितनी दुर्लभ है। मैं सौम्य गति तो आपको नहीं सौंप सकता, लेकिन दूसरी युद्ध कला आपको दे सकता हूं। यह दूसरी युद्ध कला सीखने में बहुत आसान है इसलिए आप सब इसे सीख सकते हैं।"आकर्ष ने कहा।"क्या"आकर्ष ने अभी जो कुछ कहा था उसे सुनकर पूरे सभा कक्ष में सन्नाटा छा गया। सभी के हृदय की गति बढ़ गई थी। वर्धन सिंह ने एक लंबी सांस ली और आकर्ष से पूछा."तुम.क्या तुम सच कह रहे हो?""बिल्कुल. पर इसके लिए मुझे थोड़ा समय चाहिए। मुझे इस बारे में मेरे मास्टर से बात करनी होगी! क्योंकि मैं जो युद्ध कला आपको देने वाला हूं वह 'उत्तम' वर्ग के मध्यम स्तर की युद्ध कला है।"आकर्ष ने जवाब दिया।आकर्ष का जवाब सुनकर सभी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह उन्हें उत्तम वर्ग के मध्यम स्तर की युद्ध कला देने की बात कर रहा था।उत्तम वर्ग.मिश्रा परिवार के पास जितनी भी युद्ध कलाएँ थी वह सभी पीले वर्ग की युद्ध कलाएँ थी। उन्होंने आज तक उत्तम वर्ग के निम्न स्तर की युद्ध कला को देखा भी नहीं था और आज उन्हें उत्तम वर्ग के मध्यम स्तर की एक युद्ध कला ना सिर्फ देखने को बल्कि सीखने को भी मिल रही थी।"कुल प्रमुख आप जानते हैं कि कोई भी चीज बिना कीमत के नहीं मिलती! अगर आप मुझे कुछ चांदी के सिक्के."आकर्ष ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा।"बिल्कुल बिल्कुल. भला यह भी कोई कहने वाली बात है! मुझे बताओ क्या एक लाख चांदी के सिक्के तुम्हारे लिए पर्याप्त होंगे?"वर्धन सिंह ने पूछा।"बिल्कुल पर्याप्त होंगे!"आकर्ष ने जल्दी से कहा।जो युद्ध कला वो मिश्रा परिवार को दे रहा था वो लक्ष की यादों में मौजूद सबसे निम्न स्तर की युद्ध कला थी। आकर्ष को यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पास मौजूद सबसे निम्न स्तर की युद्ध कला की कीमत एक लाख चांदी के सिक्के हैं।"आकर्ष हम जानते हैं कि जो युद्ध कला तुम हमें दे रहे हो उसकी कीमत एक लाख चांदी के सिक्कों से कई ज्यादा है। पर इस समय हमारे पास इससे ज्यादा चांदी के सिक्के उपलब्ध नहीं है। इसलिए मैं तुमसे एक वादा करता हूं कि आगे से तुम्हें अगर हमारे मिश्रा परिवार की कहीं भी जरूरत पड़े तो तुम बेझिझक हमसे मदद मांग सकते हो!"वर्धन सिंह ने कहा।"कुल प्रमुख अब मुझे आज्ञा दें! मैं जल्द से जल्द वह युद्ध कला आपके पास भिजवा दूंगा!"इतना कह कर आकर्ष, दीया और रेवती के साथ सभाकक्ष से बाहर चला गया।"चाहे कुछ भी हो जाए इस बारे में बाहर के किसी भी व्यक्ति को पता नहीं चलना चाहिए। यह रहस्य इस सभा कक्ष में ही रहना चाहिए।"आकर्ष के वहां से जाने के बाद वर्धन सिंह ने सभी एल्डर्स की ओर देखते हुए कहा।"जैसी आपकी आज्ञा कुल प्रमुख"सभी एल्डर्स ने एक साथ जवाब दिया।इतना तो वह सब भी जानते थे कि अगर इस बारे में बाहर के लोगों को पता चला तो वह इस युद्ध कला के लिए मिश्रा परिवार को अपना निशाना बनाने लगेंगे।"तुम समझ गए ना कुल प्रमुख ने अभी क्या कहा है?"सोमदत्त ने अतुल से कहा।"हां बिल्कुल"अतुल ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।"तुम्हें क्या हुआ है? तुम्हारा चेहरा ऐसे क्यों लटका हुआ है?"सोमदत्त ने पूछा।"पिताजी. क्या आपने अभी देखा मालिक मुझे नजरअंदाज कर रहे थे। जरूर वो इस बात को लेकर गुस्सा होंगे कि मैंने आपको श्रीकांत के चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने के बारे में बताया था। यह सारी गलती मेरी है। मुझे आपको बताना ही नहीं चाहिए था।"अतुल ने कहा।"Pa!"सोमदत्त ने फिर से अतुल के सिर के पीछे मारा और कहा."तुमने अभी क्या कहा? एक बार फिर से कहना!""कुछ नहीं.कुछ नहीं.मैंने कुछ नहीं कहा! शायद आपके कान बज रहे होंगे!"अतुल ने जल्दी से बात बदलते हुए कहा।'आकर्ष ने शारीरिक मंडल के सातवें स्तर में होते हुए चक्र मध्य मंडल के पहले स्तर के योद्धा श्रीकांत आहूजा को अपनी तलवार के एक वार से खत्म कर दिया है' यह बात पूरे सांची में जंगल की आग की तरह फैल गई। जिन लोगों ने कभी आकर्ष का नाम भी नही सुना था वो भी अब उसे जानने लगे थे।"इतनी छोटी उम्र में यह इतने बड़े-बड़े कारनामे कर रहा है। जब यह बड़ा हो जाएगा तब सिर्फ सांची ही नहीं.आसपास के क्षेत्रों में भी इसका नाम गूंजने लगेगा।""सही कहा! मुझे नहीं लगता कि तब इसका सामने करने वाला कोई होगा!""पर मुझे यह बात समझ नहीं आ रही कि यह सातवें स्तर में होते हुए चक्र मध्य मंडल के पहले स्तर के योद्धा को कैसे हरा सकता है?""मैंने सुना है कि इसकी तलवारबाजी बहुत अच्छी है और इसने मुकाबले के दौरान एक युद्ध कला का भी इस्तेमाल किया था जिसका नाम कुछ 'सौम्य गति' करके है।""भाई मैंने ऐसी किसी युद्ध कला के बारे में पहले कभी नहीं सुना। सांची के तीनों परिवारों में से किसी के पास यह युद्ध कला नहीं है। फिर इसने यह युद्ध कला कहां और किससे सीखी?"जब यह बात पूरे सांची कस्बे में फैल चुकी थी तो यह तो सामान्य था कि मिश्रा परिवार के हर एक सदस्य ने भी इस बारे में सुना होगा।"अभिजीत.नहीं!"एक अंधेरे कमरे में एक व्यक्ति ने रोते हुए कहा।"अभिजीत भैया!"तभी एक दूसरे व्यक्ति के रोने की आवाज भी सुनाई दी।कमरे के अंदर बिस्तर के ऊपर एक लड़के का बेजान शरीर पड़ा था। उसके एक हाथ में एक खंजर था जिस पर खून लगा हुआ था और दूसरे हाथ की नब्ज कटी हुई थी। खंजर पर लगा खून अभी भी सुखा नही था जिसका मतलब था कि कुछ समय पहले ही उस खंजर से नब्ज काटी गई है।"नहीं! नहीं! अभिजीत तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते!"पहले व्यक्ति ने रोते हुए कहा। इस व्यक्ति के बाल बिखरे हुए थे और रोने के कारण उसका पूरा चेहरा किसी बुड्ढे की तरह लग रहा था जिस पर झुर्रियां आ गई हो।"आकर्ष.आकर्ष मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा! तुम्हें मरना होगा!"उस व्यक्ति ने रोते हुए कहा।यह व्यक्ति मिश्रा परिवार का सातवां एल्डर अमन था। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका बड़ा बेटा अभिजीत 'आकर्ष के श्रीकांत को मारने की खबर सुनकर' आत्महत्या कर लेगा। अभिजीत पिछले कुछ दिनों से सिर्फ इसलिए जिंदा था क्योंकि वो श्रीकांत के हाथों आकर्ष को मरता देखना चाहता था। लेकिन किसने सोचा था कि आकर्ष श्रीकांत को मार देगा। सभी के लिए वह हीरो बन गया था। अभिजीत ने अब अपने जीने की एकमात्र उम्मीद भी खो दी थी। वो यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने आत्महत्या कर ली।"पिताजी हम जितना हो सके आकर्ष से दूर रहेंगे। हम उसे नहीं हरा सकते। उसके साथ अब पूरा मिश्रा परिवार है।"रवि ने रोते हुए कहा। वो अब आकर्ष से डरने लगा था।"Pa!"रवि की बात सुनकर अमन ने उसके गालों पर एक तमाचा मारा और कहा."जिस व्यक्ति ने तेरे भाई का यह हाल किया है तू उसी का पक्ष ले रहा है। तुझे शर्म नहीं आती। याद रख वो तेरा दुश्मन है। मुझे यकीन नहीं होता कि तू मेरा अंश है। मुझे तो तुझे बेटा कहते हुए भी शर्म आ रही है। अगर तू मेरा खून नहीं होता तो मैं अपने हाथों से तेरा कत्ल कर देता।"अपने पिता का गुस्सा देखा रवि ने अपना सिर झुका लिया। उसकी आंखों से अभी भी आंसू गिर रहे थे लेकिन उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी।"अभिजीत के कपड़े बदलो! अभी मुझे कहीं जाना है! जब मैं वापस आ जाऊंगा तब हम इसका अंतिम संस्कार करेंगे।"अमन ने कहा।"आप इस वक्त कहां जा रहे हैं?"रवि ने पूछा, लेकिन अमन ने कोई जवाब नहीं दिया।वो जल्दबाजी में अपने घर से निकला और आहूजा परिवार के महल की ओर जाने लगा।"वरिष्ठ.कुल प्रमुख.आप मुझे इसका इसका दोष नहीं दे सकते। अगर आपको किसी को दोष देना ही है तो अपने आप को दीजिए। अभी मैं जो करने जा रहा हूं उसकी वजह सिर्फ आप लोग हो। अगर आपने उस आकर्ष का साथ नहीं दिया होता तो मेरा बेटा आज जिंदा होता।"अमन ने अपने आप से कहा। उसने सोच लिया था कि वो आहूजा परिवार को आकर्ष के बनाए दिव्य जल के बारे में बता देगा। जैसे ही आहूजा परिवार को इस बारे में पता लगेगा तो वह मिश्रा परिवार से इसे छीनने की कोशिश करेंगे। क्योंकि आकर्ष और आहूजा परिवार पहले से ही एक दूसरे के दुश्मन है तो वो इस मौके का फायदा उठाते हुए आकर्ष को खत्म करने की कोशिश भी जरूर करेंगे। अगर ऐसा हुआ तो उसका बदला आसानी से पूरा हो जाएगा।आहूजा परिवार के महल को अपने सामने देख अमन के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट आ गई। अपने बेटे की मौत का बदला लेने के लिए उसने अपने परिवार से गद्दारी करना चुना।लेकिन जैसे ही वह आहूजा परिवार के महल के करीब जाने लगा उसकी आंखों के आगे अचानक अंधेरा छाने लगा और वह बेहोश हो गया।जब उसे होश आया तो उसने देखा कि वह एक अंधेरे कमरे में बंद है। कमरे में उसके अलावा दो और लोग मौजूद थे। अंधेरा होने की वजह से अमन उन दोनों के चेहरे नहीं देख पा रहा था। लेकिन जैसे ही कमरे में थोड़ी रोशनी हुई तो अपने सामने खड़े उन दोनों लोगों को देखकर अमन ने हैरान होते हुए पूछा."कुल प्रमुख.वरिष्ठ.आप दोनों यहां क्या कर रहे हैं?""अमन हमने तुम्हें एक मौका दिया था। पर तुमने वो गवा दिया।"वर्धन सिंह ने धीमी आवाज में कहा।अमन तुरंत समझ गया कि वर्धन सिंह के कहने का क्या मतलब है। वह तुरंत घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया और रोते हुए बोला."कुल प्रमुख मुझसे गलती हो गई! मुझे माफ कर दीजिए! मैं फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा! रवि अभी बहुत छोटा है मुझे उसका ध्यान भी रखना है! उसके खातिर मुझे एक बार बख्श दीजिए""अमन यह रास्ता तुमने चुना था और अब इसका भुगतान भी तुम्हें ही करना होगा। तुम अपनी नफरत में इतने अंधे हो गए हो कि सच्चाई देख ही नहीं पाए। क्या तुमने कभी सोचा कि इस नफरत की शुरुआत कहां से हुई थी। क्या इसमें रेवती की गलती थी? क्या इसमें आकर्ष की गलती थी? गलती किसकी थी यह बात तो तुम भी अच्छे से जानते हो? बच्चों के बीच की एक लड़ाई को तुमने एक ऐसा भयंकर रूप दे दिया है कि अब वह दुश्मनी में बदल चुकी है! तुम्हारे अंदर की नफरत तब तक खत्म नहीं होगी जब तक कि तुम जिंदा हो!"अमर सिंह ने कहा।उनके हाथों में इस समय एक सफेद रंग की आग थी जो उनकी आंतरिक ऊर्जा से बनी थी। उस आग की गर्मी इतनी ज्यादा थी कि दूर खड़े होने के बाद भी अमन उसकी गर्मी को महसूस कर पा रहा था।अमन समझ गया था कि उसके साथ क्या होने वाला है? उसने जल्दी से अपने हाथ जोड़े और रोते हुए बोला."वरिष्ठ आप ऐसा नहीं कर सकते! मैंने."Woosh!पर उसकी बात पूरी होने से पहले ही आंतरिक ऊर्जा से बनी आग ने उसका अस्तित्व खत्म कर दिया। आंतरिक ऊर्जा से बनी आग कोई सामान्य आग नहीं थी, उसकी गर्मी इतनी ज्यादा होती थी कि ज्वालामुखी से निकला लावा भी उसके सामने ठंडा लगता।"अभिजीत ने आत्महत्या कर ली"आकर्ष ने जब इस बारे में सुना तो वह हैरान रह गया। लेकिन उसे अभिजीत पर कोई दया नहीं आई। बस वो इस बात से हैरान था कि अभिजीत के साथ अब ऐसा क्या हुआ कि उसने इस समय आत्महत्या की। अगर वह चाहता तो पहले भी आत्महत्या कर सकता था। फिर अभी ही क्यों?इसके अलावा अपने बेटे के आत्महत्या करने के बाद भी अमन उसे कुछ कहने क्यों नहीं आया। अमन चक्र मध्य मंडल के तीसरे स्तर का योद्धा था। वो चाहता तो आकर्ष को एक चुटकी में खत्म कर सकता था। लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी अमन शांत था. कैसे?लेकिन जल्दी ही आकर्ष को अपने इस सवाल का जवाब मिल गया। कुछ लोगों से उसे पता चला था कि अमन लापता है। किसी ने भी उसको मिश्रा परिवार के महल से बाहर जाते नहीं देखा। ऐसा लग रहा था मानो वह हवा में गायब हो गया हैं!ठीक इसी समय सांची कस्बे के मुख्य द्वार पर दो लोग अपने घोड़ों के साथ खड़े थे। उन दोनों में से एक बूढ़ा था और दूसरे की उम्र 20 के लगभग थी।उस लड़के ने बूढ़े आदमी की ओर देखते हुए घमंड से भरी आवाज में कहा."चाचा. यह पुराना सा बिखरा हुआ कस्बा जिसका नाम सांची है, क्या यहां पर सिंघानिया खानदान का कोई होगा? यह पूरा कस्बा हमारे सिंघानिया परिवार के महल से भी छोटा है फिर सिंघानिया खानदान का व्यक्ति यहां पर क्या कर रहा है?"