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Chapter 31 - आकर्ष vs श्रीकांत (2)

"आकर्ष बिना तलवार के मुकाबला करेगा?"जब वर्धन सिंह, अमर सिंह और बाकी सभी एल्डर्स ने आकर्ष को बिना तलवार के देखा तो उनके दिमाग में पहला ख्याल यही आया।

उन सभी का यही सोचना था कि आकर्ष चौथे स्तर में रहते हुए छठे स्तर के योद्धा अंकुश को इसलिए मार पाया था क्योंकि उसकी तलवारबाजी अच्छी थी। अगर उसके पास तलवार नहीं होगी तो वह एक साधारण योद्धा के जितना ही ताकतवर होगा। हालांकि आकर्ष ने तीन महीनों में सातवें स्तर में प्रवेश करके अपनी काबिलियत साबित की थी,

लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वह बिना तलवार के श्रीकांत का सामना कर सकता है।किसी को भी यह समझ नहीं आ रहा था कि आकर्ष अपनी तलवार क्यों नहीं लाया?"क्या यह आकर्ष पागल हो गया है? क्या यह सच में बिना तलवार के श्रीकांत से मुकाबला करने वाला है?""

शायद आकर्ष पहले ही समझ गया होगा कि चाहे उसके पास तलवार हो या ना हो.लेकिन वह श्रीकांत से नहीं लड़ सकता। इसलिए वह अपनी तलवार लेकर ही नहीं आया होगा!""सही कहा! मुझे भी ऐसा ही लगता है!""आकर्ष.यह लो मेरी तलवार!"सोनाक्षी ने अपनी स्टील की तलवार आकर्ष की ओर फेंकते हुए कहा।जब से उसने आकर्ष को तलवारबाजी करते देखा था

, तभी से उसे अपनी तलवार से कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया था। वो हमेशा अपनी तलवार अपने साथ रखती थी। आज जब उसने देखा कि आकर्ष के पास तलवार नहीं है तो उसने तुरंत अपनी तलवार उसकी ओर फेंक दी ताकि इस बहाने उनके बीच की गलतफहमी कुछ कम हो जाए।

लेकिन जैसा उसने सोचा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ। आकर्ष ने सोनाक्षी की तलवार पकड़ी जरूर थी लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया और वापस सोनाक्षी की ओर फेंक दी।तलवार सीधे हवा में उड़ती हुई आयी और सोनाक्षी से थोड़ी दूरी पर जमीन में धँस गयी।"आकर्ष तुम."सोनाक्षी ने अपना पैर जमीन पर पटकते हुए कहा।

वो आकर्ष के ऐसे रूखे बर्ताव से बहुत ज्यादा गुस्सा हो गई थी। माना कि उस दिन रेस्टोरेंट में उसकी गलती थी। लेकिन वह गलती इतनी भी बड़ी नहीं थी.जिसके लिए उसे माफ़ी ना मिले!"यह आकर्ष सच में पागल हो गया है। सोनाक्षी ने सभी के सामने उसकी मदद की लेकिन उसने मदद लेने से मना कर दिया। क्या इसे सच में लगता है

कि यह श्रीकांत का सामना कर सकता है?"कुछ दर्शकों ने गुस्सा होते हुए कहा। उनके लिए सोनाक्षी किसी अप्सरा से कम नहीं थी और आकर्ष ने सभी के सामने सोनाक्षी से मदद ना लेकर उसकी बेइज्जती की थी।दर्शकों के साथ-साथ दीया, रेवती, अतुल, सोमदत्त और बाकी सब को भी समझ नहीं आ रहा था कि आकर्ष करना क्या चाहता है?"

यह आकर्ष को क्या हो गया है? उसने तलवार वापस क्यों कर दी?"अमर सिंह ने अपने आप से कहा। वो यहां आकर्ष की मदद करने आए थे लेकिन आहूजा परिवार के वरिष्ठ 'दुर्जन सिंह' के रहते वो ऐसा नहीं कर सकते थे। आहूजा परिवार ने मुकाबले के लिए बहुत अच्छे से तैयारी की थी।

उन्होंने अमर सिंह को रोकने के लिए दुर्जन सिंह और मिश्रा परिवार के बाकी एल्डर्स को रोकने के लिए आहूजा परिवार के सभी एल्डर्स को युद्ध गृह में बुला लिया था।आहूजा परिवार का इरादा साफ था। वो आकर्ष को जान से मारना चाहते थे।अमर सिंह को अब यह सोचकर पछतावा हो रहा था कि उन्होंने आकर्ष को यह मुकाबला करने की अनुमति क्यों दी?

अगर उन्हें पता होता कि अखाड़े में कुछ ऐसा होने वाला है तो वो आकर्ष को यहां आने ही नहीं देते!पर अब समय उनके हाथों से निकल चुका था। अब पछताने के लिए भी बहुत देरी हो गई थी।"लगता है मेरा अंदाजा सही था आकर्ष! शायद तुम अच्छे से जानते थे कि तुम मेरा मुकाबला नहीं कर सकते चाहे तुम्हारे पास तलवार हो या ना हो! जब तुम इतनी उम्मीद लेकर मेरे पास आए हो तो मेरा भी फर्ज बनता है

कि मैं तुम्हें एक आसान मौत दूं!"श्रीकांत ने मजाक उड़ाते हुए कहा।"बड़ी-बड़ी बातें करने से कुछ नहीं होता श्रीकांत! तुम्हारे पास मुझे खत्म करने की क्षमता नहीं है!"आकर्ष ने कहा।उसकी बात सुनकर श्रीकांत का गुस्सा भड़क उठा। उसने तुरंत अपनी सारी आंतरिक ऊर्जा एकत्रित की और किसी तीर की तरह आकर्ष की ओर भागा।उसकी रफ्तार इस समय बहुत तेज थी।

सभी दर्शन बिना पलक झपकाए अखाड़े की ओर देख रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं उनके पलक झपकाने के समय अखाड़े में कोई ऐसा दृश्य घटित ना हो जाए, जिसे ना देखने का उन्हें बाद में पछतावा हो।रेवती का हाथ इस समय अपनी तलवार पर था। वह भी बड़े ध्यान से अखाड़े की ओर देख रही थी।"Hmmmm!"आकर्ष भी श्रीकांत की रफ्तार देख हैरान था। लेकिन तभी उसे श्रीकांत की रफ्तार में कुछ अजीब लगा।"तो यह बात है"

आकर्ष ने अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट लाते हुए कहा।जैसे ही श्रीकांत का हाथ आकर्ष को छूने वाला था ठीक उसी समय आकर्ष बड़े विचित्र ढंग से अपनी जगह से गायब हो गया।सभी को लग रहा था कि आकर्ष अपनी जगह से गायब हुआ है लेकिन वास्तविकता कुछ और थी। सर्पशक्ति के निरंतर अभ्यास के कारण ना सिर्फ उसका शरीर लचीला हो गया था बल्कि उसकी रफ्तार भी बहुत तेज हो गई थी।

जैसे ही श्रीकांत उसके करीब पहुंचा ठीक उसी वक्त आकर्ष ने अपने शरीर को मोड़ा और एक पलक झपकने से भी कम समय में उछलकर अखाड़े के दूसरे हिस्से में चला गया।श्रीकांत पहले से जानता था कि आकर्ष उसके वार से बचने की कोशिश करेगा इसलिए उसने भागते हुए आकर्ष की पीठ पर वार करने का सोचा। लेकिन आकर्ष ने इस बार भी अपना बचाव कर लिया। आकर्ष का शरीर इस समय किसी सांप की तरह लचीला था।

उसे देखकर यह पता लगाना बहुत मुश्किल था कि वो अगली बार किस दिशा में भागने वाला है।" सौम्य गति"अमर सिंह और दुर्जन सिंह दोनों ने एक साथ कहा। दोनों ही आकर्ष की रफ्तार देख हैरान थे।कुछ लोगों ने जब अमर सिंह और दुर्जन सिंह के मुँह से सौम्य गति शब्द सुना तो वो सब अजीब तरह से आकर्ष की ओर देखने लगे। लेकिन तभी अखाड़े में कुछ ऐसा हुआ जिसे देखकर उन सबको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था

।श्रीकांत ने एक बार फिर आकर्ष पर वार किया लेकिन आकर्ष ने इस बार भी अपना बचाव कर लिया। श्रीकांत इस समय आकर्ष के बहुत करीब था और इसी मौके का फायदा उठाते हुए आकर्ष ने अपनी कमर पर बंधी उक्कू की तलवार निकाली और श्रीकांत पर वार कर दिया। इससे पहले कि दर्शक समझ पाते कि आकर्ष ने कौन से हथियार का इस्तेमाल किया है

, आकर्ष ने तलवार को वापस अपनी पीठ पर बांध दिया। उसकी रफ्तार इतनी तेज थी कि कोई कुछ देख ही नही पाया।Arrrrrrrrg!अगले ही पल श्रीकांत की चीख पूरे अखाड़े में गूंज उठी। उसके गले पर एक बहुत गहरा घाव हो गया था जिससे लगातार खून निकल रहा था। उसने दोनों हाथों से अपने गले को पकड़ रखा था लेकिन खून फिर भी नहीं रुक रहा था। कुछ देर चिल्लाने के बाद वो जमीन पर गिर गया।"तो क्या हुआ अगर तुम चक्र मध्य मंडल के योद्धा बन गए हो!

इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हें कोई हरा नहीं सकता। मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम्हारे शब्द ही तुम्हारे अंत का कारण बनेंगे, और देखो. तुम्हें खत्म करने के लिए मुझे बस एक वार करने की जरूरत पड़ी। तुमने जल्दबाजी में भले ही चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लिया था लेकिन चक्र मध्य मंडल के योद्धाओं की तरह अपने शरीर को नियंत्रित नहीं कर सके

। उनकी तरह अपनी आंतरिक ऊर्जा का सही से इस्तेमाल करना नहीं सीख पाए।"आकर्ष ने कहा।सभी दर्शक आकर्ष की बात सुनकर आश्चर्यचकित थे।"तो क्या हुआ अगर तुम चक्र मध्य मंडल के योद्धा बन गए हो! तुम्हे खत्म करने के लिए मुझे बस एक वार करने की जरूरत पड़ी।"दर्शकों के दिमाग में अभी भी आकर्ष की कही यह बात घूम रही थी

अगर यह कोई और कहता तो उन्हें इतनी हैरानी नहीं होती लेकिन यह एक 'शारीरिक मंडल' के सातवे स्तर के योद्धा ने एक 'चक्र मध्य मंडल' के पहले स्तर के योद्धा से कहा था।"आकर्ष""मालिक"रेवती, दीया और अतुल ने एक साथ कहा। वो तीनों भागते हुए जल्दी से आकर्ष के पास पहुंचे।दीया आकर्ष को सही सलामत देख इतनी खुश थी कि उसने आकर्ष को गले लगा लिया।

वो इस समय यह तक भूल गई थी कि वो अपने घर नहीं बल्कि आहूजा परिवार के महल में है। उसका शर्मीला स्वभाव जैसे कहीं गायब हो गया था।हा हा हा!"दुर्जन सिंह. आज के इस मुकाबले के बारे में कुछ कहना चाहोगे! मैं उम्मीद करता हूं कि तुम्हें इस मुकाबले के परिणाम से कोई परेशानी नहीं

होगी?"अमर सिंह ने हंसते हुए दुर्जन सिंह से कहा।दुर्जन सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से अमर सिंह की ओर देखते हुए आहूजा परिवार के महल में चले गए।दुर्जन सिंह के वहां से जाते ही आहूजा परिवार के बाकी सभी एल्डर्स और कुल प्रमुख अभय आहूजा भी एक कड़वी मुस्कान के साथ वापस अपने महल में जाने लगे।आज उन्होंने आकर्ष को खत्म करने और मिश्रा परिवार को सभी के सामने शर्मिंदा करने का सोचा था लेकिन आकर्ष ने

श्रीकांत को हराकर उनकी पूरी योजना पर पानी फेर दिया था।उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि आकर्ष ने श्रीकांत को हरा दिया है। श्रीकांत ना सिर्फ आकर्ष से उम्र में बड़ा था बल्कि वह ज्यादा शक्तिशाली भी था लेकिन फिर भी.अपने महल में जाते समय अभय आहूजा ने मुड़कर एक बार आकर्ष को देखा। उसने मन ही मन में आकर्ष को खत्म करने का इरादा बना लिया था।

वह जानता था कि अगर उसने आकर्ष को बड़ा होने का मौका दिया तो आगे चलकर वह आहूजा परिवार के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।Cough! Cough!अमर सिंह ने झूठी खांसने की आवाज की। जिसे सुनकर दीया, जो अभी भी आकर्ष से गले लगी हुई थी उससे दूर हो गई। अब जाकर उसने अपने आसपास के वातावरण पर ध्यान दिया था। उसका चेहरा हमेशा की तरह फिर से शर्म से लाल होने लगा क्योंकि सभी लोगों की दृष्टि इस समय उसी पर थी।"

पिताजी.चलो चलते हैं!"सोनाक्षी ने निराश होते हुए अपने पिता शशांक से कहा। उसे दीया से जलन हो रही थी।शशांक भी अपनी बेटी की स्थिति साफ समझ पा रहे थे। पर वो इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकते थे। अगर आकर्ष भी उनकी बेटी को पसंद करता तो वो खुशी खुशी इस रिश्ते के लिए मान जाते। लेकिन अफसोस केवल उनकी बेटी सोनाक्षी ही आकर्ष को पसंद करती थी।

आकर्ष सोनाक्षी के लिए ऐसा कुछ भी महसूस नहीं करता था।"बस!. तुम लोग अपना मेल-मिलाप बाद में कर लेना। हम अभी आहूजा परिवार के महल में है! यहाँ हमारा ज्यादा देर रुकना उचित नहीं है इसलिए जितना जल्दी हो सके वापस हमारे महल में चलो।"अमर सिंह ने सभी को समझाते हुए कहा।भीड़ ने जब मिश्रा परिवार को अखाड़े से जाते देखा तो वो सब भी एक-एक करके अपने घर की ओर चल दिए। वो जल्द से जल्द आज जो कुछ हुआ था इस बारे में अपने आस पड़ोस में बताना चाहते थे।

"जैसा मैंने सोचा था.इसमें कुछ तो विशेष है"भीड़ में से एक व्यक्ति ने सभी की नजरों से छुपकर आहूजा परिवार के महल से बाहर जाते हुए कहा। यह व्यक्ति मेरु रेस्टोरेंट का मैनेजर 'सहदेव' थाथोड़ी देर में मिश्रा परिवार के सभी लोग अपने महल में पहुंच गए। सभी का ध्यान इस समय आकर्ष पर था।"आकर्ष तुम्हे कम से कम हमें.तुम्हारी रणनीति के बारे में बताना तो चाहिए था।

जानते हो हम सभी को तुम्हारी कितनी चिंता हो रही थी।"अमर सिंह ने कहा।चाहे आकर्ष की सौम्य गति हो या फिर उसकी लचीली तलवार. आकर्ष ने सभी के बारे में छुपा कर रखा था। यहां तक कि उसने अपनी मां को भी इस बारे में नहीं बताया था।"वरिष्ठ अगर मैं ऐसा नहीं करता तो अभी आपके सामने सही सलामत नहीं खड़ा होता।

मैंने अपने आप को कमजोर दिखाया इसीलिए श्रीकांत ने अपनी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया। अगर उसे जरा भी संदेह होता तो वह मुझ पर इस तरह लापरवाही से हमला नहीं करता।"आकर्ष ने जवाब दिया।सभी उसकी बात से सहमत थे। अगर श्रीकांत को पहले से पता होता कि आकर्ष ने एक तलवार अपनी कमर पर छुपा रखी है और वह सौम्य गति का इस्तेमाल कर सकता है तो वह आकर्ष से दूर ही रहता।

सौम्य गति एक विशेष प्रकार की गति थी जिसे प्राप्त करना बहुत मुश्किल था। आज के युग में वह उक्कू के जितनी ही दुर्लभ थी। जो योद्धा सौम्य गति को जानता, वो विशेष प्रकार से इधर-उधर भाग कर अपना बचाव कर सकता था या सामने वाले व्यक्ति पर वार भी कर सकता था। सौम्य गति प्राप्त करने का सबसे बड़ा लाभ होता था कि योद्धा तेज रफ्तार से भागते हुए भी तुरंत किसी भी दिशा में मुड़ सकता था।आज जब श्रीकांत आकर्ष पर हमला कर रहा था

तब आकर्ष ने जो अजीब चीज देखी थी वह यह थी कि श्रीकांत की रफ्तार तेज होने के बाद वह अपने शरीर को ठीक ढंग से नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। भागते हुए किसी भी दिशा में अचानक मुड़ना बहुत मुश्किल होता है। आकर्ष ने इसी बात का फायदा उठाया और सौम्य गति की मदद से बार-बार अपना बचाव करता रहा।आकर्ष को सौम्य गति सर्पशक्ति के कारण प्राप्त हुई थी। लक्ष जब अपने पहले जीवन में सर्पशक्ति का निर्माण कर रहा था उस समय सौम्य गति इतनी दुर्लभ नहीं थी।

उसके दूसरे जीवन के दौरान भी सौम्य गति सोमाली महाद्वीप में मौजूद थी। लेकिन जब लक्ष ने अपना तीसरा जन्म लेने के लिए पुराने वाले आकर्ष के शरीर पर नियंत्रण किया था उस समय तक सौम्य गति पूरे सोमाली महाद्वीप से लगभग विलुप्त हो गई थी। यही कारण था कि अमर सिंह और दुर्जन सिंह से सौम्य गति का नाम सुनकर सभी दर्शक हैरान थे।"आकर्ष क्या मैं तुम्हारी तलवार देख सकता हूं?"

अमर सिंह ने पूछा।भले ही सभी दर्शक मुकाबले के दौरान यह नहीं देख पाए थे की आकर्ष ने श्रीकांत को मारने के लिए कौन से हथियार का इस्तेमाल किया है लेकिन अमर सिंह जैसे योद्धा जिन्होंने चक्र मध्य मंडल में बहुत समय पहले ही प्रवेश कर लिया था उनकी दृष्टि बाकी सबसे ज्यादा तेज थी। उन्होंने तुरंत पहचान लिया था कि वह एक लचीली तलवार है।"बिलकुल!"आकर्ष ने उक्कू की तलवार अमर सिंह को देते हुए कहा।