अतुल की बात सुनकर आकर्ष का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने अतुल को डांट लगाते हुए कहा.
"तुम्हें क्या लगता है मंत्र अभिलेख कोई खिलौने हैं जिन्हें तुम जैसे चाहो इस्तेमाल कर सकते हो या फिर तुम्हें ऐसा लगता है कि उनकी कोई कीमत नहीं है! तुम्हें पता है तुमने आज जिस वज्रपात मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल विनय पर किया था उसकी कीमत 30 चांदी के सिक्के थी। इस एक मंत्र अभिलेख हासिल करने के लिए मुझे कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था इसका तुम्हें अंदाजा भी नहीं है। तुमने अभी तक इस मंत्र अभिलेख के पैसे भी मुझे नहीं दिए और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें एक और मंत्र अभिलेख दूं!"
आकर्ष ने अतुल को डराने के लिए कुछ बातें झूठ जरूर बोली थी पर यह बात बिल्कुल सच थी कि मंत्र अभिलेख बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाना पड़ता है। उसने जो वज्रपात मंत्र अभिलेख अतुल को दिया था वो सबसे निम्न श्रेणी का मंत्र अभिलेख था लेकिन फिर भी उसकी कीमत 30 चांदी के सिक्के थी। मध्यम और उच्च श्रेणी के जो मंत्र अभिलेख थे उनकी कीमत तो एक लाख चांदी के सिक्कों से भी ज्यादा थी।
आकर्ष ने अतुल को वज्रपात मंत्र अभिलेख की कीमत इसलिए बताई थी क्योंकि उसे लगा था कि कीमत सुनकर अतुल डर जाएगा और उससे एक और मंत्र अभिलेख नहीं मांगेगा। अतुल के पिता सोमदत्त का मासिक वेतन 20 चांदी के सिक्कों से भी कम था। जब उसके पिता के पास भी पर्याप्त चांदी के सिक्के नहीं थे तो उसके पास इतने सिक्के कहां से होंगे?
लेकिन आकर्ष के अंदाज़े के विपरीत, मंत्र अभिलेख की कीमत सुनकर अतुल हंसने लगा।
उसने तुरंत अपनी जेब से एक चांदी के सिक्कों से भरी थैली निकाली और आकर्ष को देते हुए कहा.
"मालिक आपको पहले बताना चाहिए था कि मंत्र अभिलेख की कीमत क्या है? जब तक कोई मुश्किल पैसों से हल हो सकती है मुझे कोई दिक्कत नहीं है। इस थैली में लगभग 800 चांदी के सिक्के हैं, क्या अब आप अपने उस मंत्रकार दोस्त से कहकर मेरे लिए कुछ मंत्र अभिलेख बनवा सकते हैं?"
अतुल का सवाल सुनकर आकर्ष हैरानी से उसकी ओर देखने लगा। वो इस बात को लेकर पूरा निश्चित था कि अतुल ने अभी उसको जो चांदी के सिक्के दिए हैं वो सोमदत्त ने उसको नहीं दिए हैं। अभिजीत के मुकाबले के समय सोमदत्त ने जो शर्त लगाई थी उससे केवल उसको 500 चांदी के सिक्के मिले थे। अगर उसकी पूरी पूंजी को एकत्रित भी किया जाए तो वह 1500 चांदी के सिक्कों से ज्यादा नहीं होगी।
आकर्ष ने उन चांदी के सिक्कों को ध्यान से देखते हुए पूछा.
"अतुल.तुम्हें इतने ज्यादा चांदी के सिक्के कहां से मिले? कहीं तुमने यह विनय से तो नहीं लिए!"
"अरे नहीं मालिक! यह सिक्के तो मुझे मेरे दादाजी ने सांची लौटते समय दिए थे। आप मेरे पिताजी को इस बारे में मत बताना वरना वो मुझसे सारे पैसे ले लेंगे।"
अतुल ने कहा।
"इन चांदी के सिक्कों के अलावा भी तुम्हारे पास और चांदी के सिक्के हैं?"
आकर्ष ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि अतुल के पास इतने ज्यादा चांदी के सिक्के हो सकते हैं!
"बिल्कुल.मेरे पास इन चांदी के सिक्कों के अलावा भी कुछ और चांदी के सिक्के हैं। इसके अलावा मेरे दादाजी ने कहा था कि जब यह सिक्के खत्म हो जाए तो मैं उन्हें एक पत्र लिख दूं। वो मेरे लिए और चांदी के सिक्के भेज देंगे।"
अतुल ने हंसते हुए जवाब दिया।
उसका जवाब सुनकर आकर्ष और भी ज्यादा हैरान था। उसने कभी भी अतुल के दादाजी के बारे में नहीं सुना था। लेकिन अतुल की बात से वह इतना जरूर समझ गया था कि उसके दादाजी कोई सामान्य व्यक्ति तो नहीं होंगे! जहां तक उसे पुराने वाले आकर्ष की यादों से पता चला था.आज से लगभग 7 साल पहले किसी बीमारी की वजह से अतुल की मां की मृत्यु हो गयी थी। उस समय अतुल बहुत छोटा था इसलिए उसके दादाजी उसे अपने साथ सांची से बाहर लेकर चले गए थे। उस दिन के बाद वो अतुल से वापस.दीया के साथ बाजार जाते समय मिला था।
"तुमने एक बात तो सही कही! पैसों से सारी मुश्किलों को हल किया जा सकता है!"
"तुम एक काम करो! मैं तुम्हें कुछ सामग्रियों का नाम लिख कर देता हूं। तुम बाजार जाओ और वो सारी सामग्रियां खरीद कर लेकर आओ। उन सामग्रियों से मैं तुम्हारे लिए तुम जितने कहोगे उतने वज्रपात मंत्र अभिलेख बना दूंगा! और अभी जो चांदी के सिक्के तुमने मुझे दिए हैं यह मंत्र अभिलेखों को बनाने के लिए मेरी फीस होगी। क्या कहते हो?"
आकर्ष ने अतुल के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
"आपने अभी कहा कि आप मेरे लिए वज्रपात मंत्र अभिलेख बनाओगे। क्या इसका मतलब.आपने जो अंगूठी वाला वज्रपात मंत्र अभिलेख मुझे दिया था वह आपने खुद बनाया था?"
अतुल ने पूछा।
"तुम्हें इससे क्या फर्क पड़ता है कि मंत्र अभिलेख में बनाऊँ या कोई और!. तुम्हारे लिए तो इतना ही काफी है कि तुम्हें मंत्र अभिलेख मिल रहे हैं।"
इतना कहकर आकर्ष ने वह सिक्कों से भरी थैली अपनी जेब में रख ली। उसने एक कागज लिया और उस पर कुछ सामग्रियों का नाम लिखकर अतुल को देते हुए कहा.
"मैंने सभी सामग्रियों के अलग-अलग समूह बनाए हैं। हर एक समूह से एक मंत्र अभिलेख बनेगा। याद रखना एक भी सामग्री कम नहीं होनी चाहिए। अगर कम हुई तो मंत्र अभिलेख नहीं बन पाएगा और अगर बना तो भी उसका प्रभाव उतना नहीं होगा।"
"ठीक है मालिक!.मैं इसका विशेष ध्यान रखूंगा कि कोई भी सामग्री पीछे ना छूटे।"
अतुल ने कागज लेते हुए कहा।
लेकिन कागज लेने के बाद भी वह वहां से नहीं गया। आकर्ष तुरंत समझ गया कि अतुल जरूर कुछ कहना चाहता है।
"अगर तुम कुछ कहना चाहते हो तो जल्दी कहो! मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं पूरे दिन यहां खड़े होकर तुम्हारे बोलने का इंतजार करूं!"
आकर्ष ने कहा।
"वो मालिक.मैं पूछ रहा था कि.क्या मैं आपसे मंत्र अभिलेख बनाना.सीख सकता हूं?"
आकर्ष ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।
आकर्ष को चुप देख अतुल ने जल्दी से अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा.
"मैं आपको इसके बदले पैसे दूंगा.मेरा मतलब अगर आप मुझे मंत्र अभिलेख बनाना सिखाएंगे तो मैं आपको उसकी फीस दूंगा!"
अतुल ने जल्दी से अपना कथन सही करते हुए कहा।
"फीस?"
पैसों का नाम सुनते ही आकर्ष की आंखों में एक अलग चमक आ गई। उसके पास इस समय सबसे ज्यादा कमी पैसों की थी। हालांकि उसे वरिष्ठ से 30 हज़ार चांदी के सिक्के मिले थे लेकिन वो उसके लिए पर्याप्त नहीं थे। एक बार जब वह चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लेगा तो यह चांदी के सिक्के कुछ ही दिनों में खत्म होने वाले थे। उसे वेद्य, हथियार शिल्पकार, मंत्रकार और योद्धा चारों के स्तरों को आगे बढ़ाना था और इसके लिए उसे बहुत ज्यादा धन की आवश्यकता थी। हालांकि बाकी तीनों के स्तर उसके योद्धा के स्तर के साथ अपने आप जागृत होने वाले थे, लेकिन वेद्य के लिए उसे अलग-अलग प्रकार की जड़ी बूटियां, हथियार शिल्पकार के लिए अलग-अलग प्रकार की धातुएं और मंत्रकार के लिए अलग-अलग प्रकार के मणियों व द्रव्यों आवश्यकता थी, जिन्हें बिना धन के खरीदना नामुमकिन था।
"ठीक है! जब तुम इतना कह रहे हो तो मैं तुम्हें मंत्र अभिलेख बनाना सिखाऊंगा लेकिन रोजाना सिर्फ आधा घंटा। तुम कितना सीख पाते हो यह तुम पर निर्भर करता है।"
कोई मुर्ख ही होगा जो बिना परिश्रम मिल रहे पैसों को लेने से मना करेगा और आकर्ष तो वो मूर्ख बिल्कुल भी नहीं था।
"मैं सोमदत्त चाचा की बहुत इज्जत करता हूं इसलिए तुम्हें मंत्र अभिलेख का निर्माण करना और उनका उपयोग करना सिखाने के बदले हर महीने केवल 1000 चांदी के सिक्के लूंगा। क्या तुम्हें मंजूर है?"
आकर्ष ने कहा।
उसकी बात सुनकर अतुल का मुंह खुला का खुला रह गया।
आकर्ष को लगा कि शायद उसने फीस बहुत ज्यादा बता दी है इसलिए उसने हल्का खांसते हुए कहा.
"अगर तुम्हें फीस ज्यादा लग रही है तो हम."
"नहीं.नहीं.नहीं.नहीं.फीस एकदम सही है। मुझे मंजूर है।"
आकर्ष की बात पूरी होने से पहले ही अतुल ने कहा।
अतुल का जवाब सुनकर आकर्ष को अपनी बताई फीस पर पछतावा हो रहा था। क्या हर महीने 1000 चांदी के सिक्के कम थे।
अतुल जैसे ही वह कागज लेकर वहां से जाने लगा तो आकर्ष ने उसे रोकते हुए कहा.
"चाहे कुछ भी हो जाए किसी को भी यह पता नहीं लगना चाहिए कि मुझे मंत्र अभिलेख बनाना आता है! अगर तुमने किसी के भी सामने अपना मुंह खोला तो मैं ना सिर्फ तुम्हें सीखाना बंद कर दूंगा बल्कि मेरे अगले मंत्र अभिलेख का शिकार भी तुम्हें ही बनाऊंगा!"
"आप चिंता मत करो मालिक! आपका यह राज़ हमेशा मेरे सीने में ही दफ़न रहेगा।"
अतुल ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा।
अतुल इस समय बहुत ज्यादा खुश था। अब उसे कोई भी परेशान नहीं कर सकता था जब तक की उसके पास मंत्र अभिलेख है। उसने सोच लिया था कि वो आकर्ष से कहकर 10 से भी ज्यादा मंत्र अभिलेख तैयार करवाएगा ताकि समय आने पर उनका इस्तेमाल कर सके।
"मेरी किस्मत वास्तव में बहुत अच्छी है। मैंने आकर्ष को अपना मालिक बनाकर एकदम सही किया है। वो ना सिर्फ ताकतवर है बल्कि मंत्र अभिलेख बनाना भी जानता है। मुझे यकीन है कि वो एक दिन पूरे सांची को अपने नियंत्रण में कर लेगा। अगर मैं उसके साथ रहा तो क्या पता सांची का एक हिस्सा मेरे नियंत्रण में भी हो!"
अतुल ने खुशी से उछलते हुए कहा।
अतुल के जाने के बाद आकर्ष भी वापस दीया के पास आ गया और उसे तलवारबाजी सीखाने लगा। पिछले दो महीनों में दीया तलवारबाजी में काफी कुशल हो गई थी। लेकिन अभी भी उसकी तलवारबाजी में कुछ कमियां थी। इसलिए आकर्ष ने दीया का हाथ पकड़ा और उसे उन कमियों को कैसे सुधारा जाए इस बारे में बताने लगा।
वो दोनों इस समय एक दूसरे के इतने करीब खड़े थे कि उन दोनों के शरीर परस्पर स्पर्श हो रहे थे।
"यह क्या हो रहा है?"
अचानक आकर्ष को एक आवाज सुनाई दी जिसे सुनकर वो दीया से दूर हो गया। यह आवाज उसकी मां रेवती की थी जो उन दोनों की ओर देखकर मुस्कुरा रही थी।
दीया का चेहरा इस समय हमेशा की तरह शर्म से लाल हो गया था।
"दीया.अब अभ्यास करना बंद करो और मेरे साथ रसोई घर में चलो। हमें रात का खाना भी बनाना है।"
रेवती ने हंसते हुए कहा।
"जी मालकिन"
दीया ने जवाब दिया।
"मां आपको मेरी कोई मदद चाहिए?"
आकर्ष ने पूछा।
"नहीं!.तुम अपना अभ्यास करो! तुमने सातवें स्तर में प्रवेश जरूर कर लिया है लेकिन भूलो मत श्रीकांत नौवें स्तर में है। मुकाबले में कुछ ही दिन बचे हैं। अगर तुमने ठीक से अभ्यास नहीं किया तो मुझे डर है कि."
रेवती ने चिंतित होते हुए कहा।
"मां आप मुकाबले की चिंता मत कीजिए। मैं अपनी तरफ से मुकाबला जीतने की पूरी कोशिश करूंगा।"
आकर्ष ने कहा।
"मालिक.आपने सातवें स्तर में प्रवेश कब किया?"
दीया ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।
"दीया तुमने भी तो छठे स्तर में प्रवेश कर लिया है। अब अगर मैं तुमसे एक स्तर आगे नहीं रहूंगा.तो तुमसे हार नहीं जाऊंगा।"
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"मालिक आप मेरी चिंता मत करो! मैं अब से कम अभ्यास करूंगी ताकि अगले स्तर में जल्दी प्रवेश ना कर पाऊं। आप हमेशा मुझसे आगे ही रहेंगे।"
दीया ने शर्माते हुए कहा।
"दीया तुम्हें ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। हम औरतों को भी ताकतवर बनने का अधिकार है। अगर तुम अभी से कमजोर रहोगी तो शादी के बाद इसे अपने नियंत्रण में कैसे रख पाओगी?"
रेवती ने मजाकिया अंदाज में कहा।
उसकी बात सुनकर दीया का चेहरा शर्म से और भी ज्यादा लाल हो गया। उसने जल्दी से रेवती के हाथ से सामान लिया और भाग कर रसोई घर में चली गई।
"आकर्ष अपने अभ्यास पर अच्छे से ध्यान दो।"
रेवती ने रसोई घर में जाते हुए कहा।
रेवती और दीया दोनों के वहां से जाने के बाद आकर्ष फिर से अभ्यास करने लगा। वो जितना हो सके सर्पशक्ति का अभ्यास कर रहा था जिस कारण ना सिर्फ उसका शरीर लचीला हो गया था बल्कि उसकी रफ्तार भी बहुत तेज हो गई थी। लेकिन आकर्ष अभी भी संतुष्ट नहीं था। उसे अभी भी बहुत ज्यादा अभ्यास की जरूरत थी। बाकी सब को छोड़ो, दीया जिसने उसके बाद अभ्यास करना शुरू किया था उसने भी उसके साथ-साथ छठे स्तर में प्रवेश कर लिया था।
वैसे इसमें आकर्ष की कोई गलती नहीं थी, दीया खुद भी प्रतिभाशाली थी। वो एक लड़की होने के बावजूद भी मिश्रा परिवार के कई शिष्यों से ज्यादा ताकतवर थी। अगर उसकी तुलना रेवती के साथ की जाए तो इसमें भी विजेता दीया ही होती।
आकर्ष इस बात से बिल्कुल भी नाराज नहीं था कि दीया रेवती से ज्यादा प्रतिभाशाली है बल्कि उल्टा वह तो खुश था कि कम से कम अब जब वो सांची से बाहर जाएगा तो दीया भी उसके साथ जा सकती है। अगर दीया उसके साथ नहीं चलेगी तो उसे अपना सफ़र अधूरा लगेगा।
जल्दी ही खाना तैयार हो गया और पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाने लगा। उसका छोटा सा परिवार इस समय बहुत खुश था।
लेकिन ठीक इसी समय मिश्रा परिवार के दूसरे एल्डर अनुज के घर में.
अनुज दरवाजे के पास खड़ा था और अपने बेटे विनय की ओर देख रहा था जो इस समय बिस्तर पर लेटा था। अनुज को अपने बेटे पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उन्होंने विनय को डांटते हुए कहा.
"तुम्हें बिल्कुल भी शर्म नहीं आती इस तरह मार खाकर बिस्तर पर लेटे हो! अगर आकर्ष ने तुम्हें मारा होता और तुम जख्मी हुए होते तो मैं शायद कुछ नहीं कहता, लेकिन तुम उस अतुल के हाथों मार खाकर आए हो! क्या इस तरह तुम हमारे परिवार का नाम रोशन करने वाले हो!"
*पिताजी मैं आपको कई बार बता चुका हूं और अभी भी कह रहा हूँ कि यह सब वज्रज्वाल गोली के कारण हुआ है। उस गोली के दुष्प्रभाव के कारण ही मैं अतुल से हारा हुँ वरना यह बात तो आप भी अच्छे से जानते हैं कि अतुल में इतनी शक्ति नहीं है कि वह मुझे हरा दे।"
विनय ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा।
"अब तुम झूठ भी बोल रहे हो! तुम कह रहे हो कि यह सब वज्रज्वाल गोली के दुष्प्रभाव के कारण हुआ है, तो मुझे बताओ तुम्हारे भाई ने भी तो यही गोली ली थी। उसे कुछ क्यों नहीं हुआ?"
"तुम मेरे यानी अनुज के बेटे हो। अगर तुम अतुल से हार गए हो तो कोई बात नहीं! जाओ और अभ्यास करो और अपने आप को इतना शक्तिशाली बनाओ कि उस अतुल को हरा सको। यह बहाने बनाना बंद करो।"
अनुज ने कमरे से बाहर जाते हुए कहा।
विनय कुछ कहना चाहता था लेकिन वह जानता था कि अभी उसके पिता कुछ भी नहीं सुनेंगे। उसने अपने दांत पीसते हुए अपने आप से ही कहा.
"हाथी के बच्चे.मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं! बस एक बार मुझे ठीक हो जाने दे, फिर मैं तुझे बताता हूं कि विनय को चोट पहुंचाने का अंजाम क्या होता है!"
उसका अभी भी यही सोचना था कि वह बस वज्रज्वाल गोली के दुष्प्रभाव के कारण हारा है।
दुख तो उसे इस बात का था कि उसके घर वाले, उसके पिता और उसका भाई भी उस पर विश्वास नहीं कर रहे थे।
"सभी को यही क्यों लगता है कि अतुल ने मुझे हराया है! क्या यह सब लोग इतनी छोटी बात भी नहीं समझ पा रहे है कि जो अतुल कल तक मेरे हाथों से मार खा रहा था वह आज एकदम इतना शक्तिशाली कैसे बन गया कि उसने मुझे. विनय को जख्मी कर दिया है।"
विनय ने दर्द से कराहते हुए कहा।