"तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए 20 वज्रपात मंत्र अभिलेख बनाऊं "
आकर्ष ने अतुल द्वारा खरीदी गई सामग्री को देखते हुए पूछा। उसे समझ नहीं पा रहा था कि अतुल को इतने सारे मंत्र अभिलेख क्यों चाहिए।
"बिल्कुल. क्या हुआ? क्या आप इतने मंत्र अभिलेख नहीं बना सकते?"
अतुल ने पूछा।
"नहीं मैं बस यह जानना चाहता था कि तुम्हें इतने ज्यादा मंत्र अभिलेख क्यों चाहिए। एक बात मैं तुम्हें पहले ही बता रहा हूं। तुम इन मंत्र अभिलेखों का इस्तेमाल हर किसी पर नहीं कर सकते। अगर तुम ऐसा करोगे तो सभी को पता चल जाएगा कि तुम मंत्र अभिलेख इस्तेमाल कर रहे हो। लेकिन विनय पर तुम इनका जितनी बार चाहे उतनी बार प्रयोग कर सकते हो। इस तरह किसी को तुम पर शक भी नहीं होगा। सभी को यही लगेगा कि विनय झूठ बोल रहा है वहीं दूसरी तरफ विनय को ऐसा लगेगा कि यह सब वज्रज्वाल गोली का दुष्प्रभाव है।"
आकर्ष ने कहा।
"अरे हां. मैंने इस बारे में क्यों नहीं सोचा! इस तरह मैं अपना बदला भी ले सकता हूं और किसी को मुझ पर शक भी नहीं होगा। वैसे मालिक. मैं ज्यादा से ज्यादा चार या पांच मंत्र अभिलेखों का इस्तेमाल विनय पर कर सकता हूं, लेकिन बाकी के जो मंत्र अभिलेख है उनका क्या?"
अतुल ने पूछा।
"बाकी के मंत्र अभिलेखों को अपने पास संभाल कर रखना। हो सकता है भविष्य में तुम्हें उनकी जरूरत पड़े। वैसे इससे याद आया कि आज तुम्हारे मंत्र अभिलेख सीखने का पहला दिन है इसलिए आज मैं तुम्हें वज्रपात मंत्र अभिलेख बनाना सिखाऊंगा। इसे बनाना सबसे आसान है और इसके बारे में तुम पहले से जानते हो इसलिए जल्दी सीख पाओगे।"
आकर्ष ने कहा।
उसकी बात सुनकर अतुल खुशी से झूम उठा। लेकिन तभी उसने देखा कि आकर्ष ने अपना एक हाथ उसकी ओर बढ़ाया है और उसे सवालिया नजरों से देख रहा है। उसे कुछ समझ नहीं आया कि आकर्ष ने अपना एक हाथ उसकी और क्यों बढ़ाया है। इसलिए उसने पूछा.
"मालिक क्या आपको कुछ चाहिए?"
"मेरी फीस"
आकर्ष ने कहा।
"अच्छा.अच्छा.माफ करना मैं भूल गया था"
अब उसने जल्दी से अपनी जेब में से चांदी के सिक्कों से भरी एक थैली निकाली और आकर्ष को देते हुए कहा.
"मालिक इसमें पूरे 1000 चांदी के सिक्के हैं। मैंने आपको फीस दे दी है तो क्या अब आप मुझे मंत्र अभिलेख बनाना सिखा सकते हैं?"
"मैं तुम्हें सीखाना तो आज चाहता हूं लेकिन आज मुझे इन सभी सामग्रियों को व्यवस्थित करना है। मैं दोपहर के बाद तुमसे मिलने तुम्हारे घर आऊंगा और वहीं पर तुम्हे रोजाना मंत्र अभिलेख बनाना सिखाऊंगा। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा। अब तुम कितना सीख पाते हो यह तुम पर निर्भर करता है!"
आकर्ष ने वो चांदी के सिक्कों से भरी थैली लेते हुए कहा।
अतुल के वहां से जाने के बाद आकर्ष ने अपने आप से ही कहा.
"मुझे जितना हो सके धन इकट्ठा करना होगा। मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। जिस रफ्तार से मेरा ऊर्जा स्तर बढ़ रहा है उसे देख तो यही लगता है कि मैं जल्दी ही चक्र मध्य मंडल में प्रवेश कर लूंगा। अगर उस समय तक मेरे पास पर्याप्त धन नहीं हुआ तो मेरे लिए आगे के मंडलों में प्रवेश करना मुश्किल हो जाएगा।"
अगले दिन से आकर्ष रोजाना अतुल के घर जाने लगा और उसे मंत्र अभिलेख बनाना सीखाने लगा। आकर्ष को रोज अपने घर आते देख शुरुआत में सोमदत्त को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन वह एक बात से खुश थे कि इसी बहाने उनका बेटा अतुल और आकर्ष अच्छे दोस्त बन गए हैं।
पर अतुल के कमरे से पीटने की आवाज सुनकर कई बार उन्हें उन दोनों पर शक भी होता।
"पट!"
हमेशा की तरह अतुल के कमरे से फिर से मारने पीटने की आवाज सुनाई दी।
कमरे के अंदर आकर्ष इस समय अतुल को मार रहा था।
"तुम इतने मूर्ख कैसे हो सकते हो? मैंने कितनी बार कहा कि इन दोनों औषधियों को सीधा मत मिलाओ पर तुम्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा। तुम बार-बार एक ही गलती कैसे कर सकते हो?"
आकर्ष ने गुस्सा होते हुए कहा।
"मालिक. आप बार-बार मुझे मारते क्यों है? मैं धीरे-धीरे सीख जाऊंगा।"
अतुल ने अपने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि मैं तुम्हें यह मंत्र अभिलेख बनाना सिखा ही क्यों रहा हूं? तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा है। मेरी बात ध्यान से सुनो!.अगर इस महीने के अंदर-अंदर तुम यह मंत्र अभिलेख बनाना नहीं सीखे तो चाहे तुम मुझे कितने भी चांदी के सिक्के दे देना मैं तुम्हें मंत्र अभिलेख बनाना नहीं सिखाऊंगा।"
आकर्ष ने कहा।
उसकी बात सुनकर अतुल निराश हो गया। उसने रूखी आवाज में कहा.
"मालिक आप चिंता मत करो! मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा!"
"उम्मीद करता हूं कि ऐसा ही हो। आज के लिए इतना बहुत है मैं कल फिर आऊंगा। तब तक के लिए आज जो सीखा है उसी का अभ्यास करो!"
आकर्ष ने कमरे से बाहर जाते हुए कहा।
आधे महीने बाद
मिश्रा परिवार का युद्ध गृह फिर से दशकों से भरा हुआ था। आज अखाड़े में फिर से एक मुकाबला होने वाला था। विनय और अतुल का मुकाबला!
"मैंने सुना है कि इस बार विनय ने अतुल को चुनौती दी है। क्या पिछली बार उसको जितने भी जख्म मिले थे वह ठीक हो गए।"
"मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं पता। वैसे विनय ने कहा है कि वो पिछली बार अतुल से सिर्फ इसलिए हारा था क्योंकि वह बीमार था। क्या सच में ऐसा था?"
"वह तो आज के मुकाबले में पता चल जाएगा। अगर वह फिर से अतुल के हाथों मार खाता है तो समझ लेना कि वह झूठ बोल रहा था।"
"सही कहा.वो हर बार बीमार होने का बहाना नहीं बना सकता!"
विनय बहुत पहले ही युद्ध गृह में आ गया था और अखाड़े में सीना तानकर खड़ा था। लेकिन जब उसने वहां मौजूद शिष्यों की बातें सुनी तो उसका चेहरा शर्म से झुक गया। उसके पिता अनुज ने उसे वज्रज्वाल गोली के दुष्प्रभाव के बारे में किसी को भी बताने से मना किया था। इसलिए विनय ने सभी के सामने उस दिन बीमार होने का बहाना बनाया था। पर उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि सभी लोग उस पर शक करेंगे। क्या सभी को यही लगता है कि वह अतुल का सामना नहीं कर सकता।
"अतुल मैं इस बेइज़्ज़ती का बदला लेकर रहूंगा। आज मैं तुम्हें इतना मारूंगा कि तुम आधे महीने तक बिस्तर से उठ नहीं पाओगे।"
विनय ने अपने दांत पीसते हुए कहा।
"देखो अतुल आ गया है"
अचानक एक शिष्य की आवाज सभी के कानों में पड़ी। युद्ध गृह के प्रवेश द्वार पर अतुल दो लोगों के पीछे खड़ा था जैसे उनका नौकर हो। वह दोनों लोग कोई और नहीं बल्कि आकर्ष और दीया थे।
"मैंने सुना है कि अतुल ने आकर्ष को अपना मालिक घोषित किया है।"
"एक दूसरे परिवार के लड़के को अपना मालिक बनाना, इस अतुल ने हमारी नाक कटवा दी है।"
"तुम लोग सिर्फ धीमी आवाज में ही बात कर सकते हो! अगर तुम्हारे अंदर हिम्मत है तो आकर्ष के सामने यह सारी बातें बोल कर दिखाओ।"
"सही कहा.आकर्ष भले ही मिश्रा परिवार का शिष्य नहीं है लेकिन उसने हमारे मिश्रा परिवार का नाम कई बार रोशन किया है। उसी की वजह से आहूजा परिवार अब मिश्रा परिवार का सामना करने से डरता है।"
वैसे तुम लोगों को याद है ना! आकर्ष और श्रीकांत का मुकाबला कल है। क्या आकर्ष आहूजा परिवार के महल में यह मुकाबला करने जाएगा?"
आकर्ष ने भी सभी शिष्यों की यह बातें सुनी थी। लेकिन उसने उन सभी को नजरअंदाज किया।
उसने अतुल की ओर देखते हुए कहा.
"यह बस एक मुकाबला है उसे ज्यादा चोट मत पहुंचाना। उसे अपनी हार स्वीकार करने का मौका देना। अगर तुमने उसे फिर से घायल किया तो मुझे डर है कि दूसरे एल्डर अनुज तुम्हारे पिता सोमदत्त के पास शिकायत करने जाएंगे। यह मुकाबला सिर्फ तुम दोनों के बीच में है इसलिए बड़ों को इसमें ना घसीटो हो तो ही अच्छा है।"
उसकी बात सुनकर अतुल ने तुरंत सहमति में अपना सिर हिलाया। वह अगर किसी की सबसे ज्यादा इज्जत करता था तो वो था आकर्ष।
अब अतुल ने अखाड़े में प्रवेश किया और विनय की ओर देखते हुए कहा.
"विनय तुम्हारी चोट तो काफी जल्दी ठीक हो गई! पर चिंता मत करो मैं तुम्हें फिर से कुछ नई चोटें देने वाला हूं।"
"तुम्हारी तो. अतुल मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं! आज मैं उन सभी जख्मों का बदला लूंगा जो आधे महीने पहले तुमने मुझे दिए थे।"
विनय ने कर्कश आवाज में कहा। उसका चेहरा गुस्से से पूरा लाल हो गया था।
"मेरे मालिक ने मुझसे कहा है कि मैं तुम्हें ज्यादा चोट ना पहुंचाऊँ। वरना."
अतुल ने हंसते हुए कहा।
उसका जवाब सुनकर विनय ने अपना संयम खो दिया। अतुल की बातें हर बार उसे उकसा रही थी। "बाघ का पंजा"
विनय ने गुस्से में अतुल की ओर भागते हुए कहा।
बाघ के पंजे का नाम सुनकर आकर्ष को याद आया कि रवि ने भी इसी युद्ध कला का अभ्यास कर रखा था। लेकिन विनय के बाघ के पंजे और रवि के बाघ के पंजे में थोड़ा अंतर था। विनय इस युद्ध कला के अंतिम चरण में था। यानी वह जैसे चाहे इस युद्ध कला का प्रयोग कर सकता था।
जैसे ही विनय का मुक्का अतुल को लगने वाला था अतुल ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मंत्र अभिलेख को सक्रिय कर दिया।
अचानक सभी दर्शकों के सामने आधे महीने पहले का वही दृश्य फिर से प्रकट हो गया जब अतुल ने विनय को हराया था।
विनय का पूरा शरीर पिछली बार की तरह अपनी जगह पर रुक गया। उसके शरीर में फिर से दर्द होने लगा जैसे उस पर बिजली गिर गई हो।
विनय कुछ समझ पाता उससे पहले ही अतुल ने एक मुक्का मार कर उसे अखाड़े के दूसरे हिस्से में पटक दिया।
पूरे युद्ध गृह में सन्नाटा छा गया।
दशकों में कुछ ऐसे शिष्य भी मौजूद थे जिन्होंने अतुल और विनय के पिछले मुकाबले को देखा था। आज का यह मुकाबला भी उन्हें पिछले मुकाबले के जैसा ही लग रहा था। सब कुछ समान था।
"नहीं.यह नहीं हो सकता!. ऐसा कैसे हो सकता है?"
जैसे ही उन दोनों का मुकाबला खत्म हुआ था वैसे ही विनय के शरीर का सारा दर्द भी गायब हो गया था। उसके साथ अभी जो कुछ हुआ था उसे उस पर विश्वास नहीं हो रहा था।
अगर आधे महीने पहले अतुल की किस्मत अच्छी थी तो आज क्या था? आज उसे फिर से वह दर्द महसूस क्यों हुआ?
क्या यह मात्र एक संयोग था?
"आज तो मैंने तुम पर दया दिखाई है। लेकिन अगर तुम इसी तरह मुझे चुनौती देते रहे तो मैं वादा करता हूं कि अगली बार कोई भी दया नहीं दिखाऊंगा।"
अतुल ने विनय को चेतावनी देते हुए कहा।
इसके बाद वह अखाड़े से बाहर आया और आकर्ष के पास जाकर खड़ा हो गया।
"मालिक जैसा आपने कहा था मैंने विनय को ज्यादा चोट नहीं पहुंचाई। क्या अब तो आप मानेंगे कि मैं आपके लिए वफादार हूं।"
अतुल ने आकर्ष से पूछा।
लेकिन आकर्ष ने कोई जवाब नहीं दिया। उसे चुप देख अतुल ने दीया की ओर देखते हुए कहा.
"मालकिन आपको मेरा मुकाबला कैसा लगा? मेरी गिनती भी अब मिश्रा परिवार के ताकतवर योद्धाओं में हो सकती है.है ना"
अतुल के मुंह से अपने लिए 'मालकिन' शब्द सुनकर दीया ने अपना चेहरा झुका लिया। वह इस समय शर्मा रही थी क्योंकि आकर्ष अतुल का मालिक था। वो उसकी मालकिन तभी हो सकती थी जब आकर्ष से उसकी शादी हो जाए।
"अपनी बकवास बंद करो। तुम्हें सच में लगता है कि तुम शक्तिशाली हो गए हो। वज्रज्वाल गोली और दिव्य जल का प्रयोग करने के बाद भी तुम अभी तक सिर्फ पांचवें स्तर में पहुंच पाए हो। तुम्हें शर्म नहीं आती खुद को ताकतवर कहते हुए!"
आकर्ष ने अतुल को डांटते हुए कहा।
जबरदस्ती ही सही लेकिन अतुल अब उसका साथी बन गया था। इसलिए आकर्ष ने उसे दूसरे दिव्य जल की जगह सप्त शारीरिक दिव्य जल दे दिया था। उसके पास दो दिव्य जल है इस बारे में सिर्फ वो और अतुल ही जानते थे। आकर्ष ने अतुल से इस बारे में किसी को भी बताने से मना किया था यहां तक की उसके पिता सोमदत्त को भी नहीं।
अतुल को जब पहली बार पता चला था कि आकर्ष को एक दूसरा दिव्य जल भी बनाना आता है जिसका प्रभाव मिश्रा परिवार के पास मौजूद दिव्य जल से ज्यादा है तो उसके दिल में आकर्ष की इज्जत और ज्यादा बढ़ गई। बढ़ती भी क्यों ना!.उसका मालिक था ना सिर्फ एक ताकतवर योद्धा था बल्कि उसे मंत्र अभिलेखों और जड़ी बूटियां का भी ज्ञान था।
आकर्ष के मुंह से अपनी बेइज्जती सुनकर अतुल ने झूठी हंसी हंसते हुए कहा.
"मालिक.आपको क्या लगता है सभी आपके और मालकिन के जैसे होंगे, जिनके ऊर्जा स्तर बाकी सभी की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ते हो। मानता हूं कि आप दोनों बहुत ज्यादा अभ्यास करते हैं लेकिन अब हर कोई तो आपके जैसा नहीं हो सकता ना।"
अतुल ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि उसके और विनय के मुकाबले से ठीक 1 दिन पहले दीया ने शारीरिक मंडल के सातवे स्तर में प्रवेश कर लिया था। अतुल पहले तो सिर्फ आकर्ष के बढ़ते ऊर्जा स्तर को देख हैरान था लेकिन अब तो दीया भी उस लिस्ट में शामिल हो गई थी।
"बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे अतुल!"
आकर्ष ने हंसते हुए कहा और उन दोनों (दीया और अतुल) के साथ युद्ध गृह से बाहर जाने लगा।
युद्ध गृह में मौजूद बाकी शिष्यों को इस समय अतुल से जलन हो रही थी। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उस मोटे, भद्दे और हाथी के बच्चे अतुल ने आकर्ष से दोस्ती कर ली थी जिसका सम्मान मिश्रा परिवार के कुल प्रमुख तक करते हैं। कुछ शिष्यों को तो इस समय पछतावा भी हो रहा था कि उन्होंने समय रहते आकर्ष से दोस्ती क्यों नहीं की? अगर उन्होंने आकर्ष के साथ अच्छे से व्यवहार किया होता तो आज शायद अतुल की जगह वो खड़े होते।
आकर्ष, अतुल और दीया के वहां से जाने के बाद सभी का ध्यान विनय पर गया जो इस समय अखाड़े में लेटा हुआ था।
"क्या विनय का अब भी यही कहना है कि वह अतुल से आज इसलिए हारा क्योंकि वह इस बार भी बीमार था।"
"यार हद होती है! इसे कोई और बहाना नहीं मिला! कम से कम बहाना तो कोई ऐसा बनाता जिस पर लोग विश्वास करें।"
"सही कहा! इसकी जगह मैं होता तो अब तक हार मान लेता। भला कोई इतना बेशर्म कैसे हो सकता है?"
सारे शिष्य एक-एक करके विनय का मजाक उड़ाने लगे।
विनय भी उनकी बातें साफ सुन पा रहा था लेकिन वो चुप था। वह सभी का मुंह बंद नहीं करवा सकता था।