कुछ ही देर में वह दोनों चलते हुए अपने घर पहुंच गए।
"मालिक आज आपने जो कुछ भी. मेरा मतलब रेस्टोरेंट में जो कुछ भी हुआ था. क्या आहूजा परिवार उसका बदला लेगा?"
दीया ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए पूछा।
"दीया तुम चिंता मत करो.कुछ भी नहीं होगा। तुमने भी देखा था आज क्या हुआ? अंकुश ने पहले मुझ पर हमला किया था। उसके साथ जो कुछ भी हुआ उसका जिम्मेदार वो खुद था।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
वो पहले वाला आकर्ष नहीं था कि चुपचाप जुल्म सहे। वो पृथ्वी का आकर्ष था जिसके खुद के कुछ नियम थे। सामने वाले से उसे जो भी मिलता था वह उसका 10 गुना वापस लौटाता था। जब तक कोई उसे परेशान नहीं करता वह भी किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाता। पर अगर लड़ाई की शुरुआत सामने वाले ने की है तो उसे अंजाम तक हमेशा आकर्ष ही पहुंचाता था।
जिस समय अंकुश ने उसको धमकी दी थी आकर्ष ने उसी वक्त सोच लिया था कि वो अंकुश को वापस आहूजा परिवार में जिंदा नहीं लौटने देगा।
"आकर्ष.क्या आहूजा परिवार के लोगों ने फिर से कुछ किया है? क्या तुम्हारा उनके साथ फिर से झगड़ा हुआ है?"
इससे पहले की आकर्ष अपने कमरे में जाए उसकी मां रेवती ने उसे रोकते हुए पूछा।
"नहीं तो. कुछ भी तो नहीं हुआ!"
आकर्ष ने बात बदलते हुए कहा।
"आकर्ष. झूठ मत बोलो! सच-सच बताओ क्या हुआ है!"
रेवती ने पूछा।
रेवती कोई छोटी बच्ची नहीं थी कि जिसे कोई भी मूर्ख बना दे। वो एक माँ थी और माँ हमेशा अपने बच्चों की आंखों में देखकर ही पता लगा लेती है कि उसका बच्चा सच बोल रहा है या झूठ।
"मां.ज्यादा बड़ी बात नहीं है। आज जब मैं दीया के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाने गया तो वहां पर आहूजा परिवार के लोग भी आए हुए थे। उन्ही में से एक लड़का मुझे जान से मारने की धमकी दे रहा था पर.
इससे पहले की आकर्ष अपनी बात पूरी कर पाता रेवती ने गुस्सा होते हुए कहा.
"उनकी इतनी हिम्मत कि वह तुम्हें धमकी दे रहे थे! कौन था वो लड़का.मुझे उसका नाम बताओ!"
"उसका नाम अंकुश था। क्या आप उसे जानती हो? वैसे अगर आप उसे नहीं भी जानती है तो भी कोई बात नहीं। मैंने पहले ही उसे सबक सिखा दिया है।"
आकर्ष ने हंसते हुए कहा।
"अंकुश!. शांतनु का बेटा"
रेवती ने चोंकते हुए कहा।
रेवती अंकुश और उसके पिता शांतनु दोनों को अच्छे से जानती थी। शांतनु आहूजा परिवार का ही एक सदस्य था जो आहूजा परिवार के बाजार में एक दवाइयों की दुकान चलाता था।
वही उसका बेटा अंकुश ज्यादा प्रतिभाशाली योद्धा तो नहीं था पर फिर भी उसकी गिनती आहूजा परिवार के प्रतिभाशाली योद्धाओं में होती थी। आहूजा परिवार के प्रतिभाशाली योद्धाओं की सूची में उसका नाम अंतिम स्थान पर था।
रेवती ने जब सुना की अंकुश ने आकर्ष को जान से मारने की धमकी दी है तो एक पल के लिए तो उसका मन किया कि वह आहूजा परिवार में जाकर अभी अंकुश को खत्म कर दे!
वैसे उसे पता नहीं था कि आकर्ष ने यह काम पहले ही कर दिया है।
"आकर्ष.उसने तुम्हें कोई चोट तो नहीं पहुंचाई ना"
रेवती ने आकर्ष के शरीर की जांच करते हुए पूछा।
उसके बोलने के तरीके से यह साफ था कि अगर अंकुश ने आकर्ष को चोट पहुंचाई होगी तो अंकुश कल सुबह का सूरज नहीं देख पाएगा।
रेवती के लिए सबसे जरूरी आकर्ष था। वो उसके लिए कुछ भी कर सकती थी।
"मां आप फिक्र मत करें। अंकुश मुझे चोट पहुंचाना तो दूर.मुझे छू भी नहीं पाया था। अगर आपको मुझ पर भरोसा नहीं है तो आप दीया से पूछ लो!"
आकर्ष ने अपनी मां रेवती के गुस्से को शांत करते हुए कहा। रेवती उसकी वास्तविक मां नहीं थी लेकिन वह उसकी वास्तविक मां से कम भी नहीं थी। इस दुनिया में आने के बाद अगर वह किसी पर सबसे ज्यादा भरोसा करता था तो वह उसकी मां थी।
आकर्ष की बात सुनकर रेवती दीया की ओर देखने लगी। रेवती की नजरे अपने ऊपर देख दीया पहले तो डर गई, पर फिर किसी तरह उसने अपने आप को संभाला और अपना सिर सहमति में हिला दिया।
लेकिन रेवती ने उसकी आंखों में मौजूद घबराहट को देख लिया था।
उसने दीया के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.
"दीया.तुम इतनी डरी हुई क्यों हो? क्या कुछ हुआ है?"
उसकी आवाज में प्यार साफ झलक रहा था। हालांकि आकर्ष और दीया की शादी नहीं हुई थी लेकिन भविष्य में भी नहीं होगी यह जरूरी नहीं था। रेवती जानती थी कि दीया आकर्ष को पसंद करती है और आज नहीं तो कल वो शादी जरूर करेंगे। इसलिए वो दीया की भी उतनी ही फ़िक्र करती थी.जितनी की आकर्ष की।
रेवती का सवाल सुनकर दीया ने कोई जवाब नहीं दिया। रेवती को लगा कि शायद दीया थक चुकी है इसलिए वह उसे लेकर अपने कमरे में चली गई। इसके विपरीत आकर्ष वहीं खड़े होकर उन दोनों को कमरे में जाते देख रहा था। उसके हिसाब से दीया का ऐसे डरना सामान्य था। वो आकर्ष के जैसी नहीं थी जिसने अपने जीवन में कई लोगों को मारा था।
उन दोनों के वहां से जाने के बाद आकर्ष भी अपने कमरे में आया और हथियार बनाने की सामग्री को छुपाने लगा। कुछ देर बाद वह अपनी मां रेवती से मिलने गया और उनकी आज्ञा लेकर घर से बाहर चला गया। वो सबसे पहले वरिष्ठ अमर सिंह से मिलने गया।
"आकर्ष तुम यहां. जहां तक मुझे याद है तुमने कहा था तुम 15 दिन बाद मेरा इलाज करोगे। फिर इतनी जल्दी यहां कैसे? क्या तुम्हें मुझसे कोई काम है?"
अमर सिंह ने पूछा।
"वरिष्ठ आज मैं यहां.आपके इलाज के बारे में बात करने नहीं आया हूं। असल में मुझे आपकी मदद चाहिए। मैं चाहता हूं कि आप मेरे लिए एक गोली का निर्माण करें।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"ओह! क्या मैं जान सकता हूं कि तुम मुझसे कौन सी गोली का निर्माण करवाना चाहते हो? क्योंकि ऐसा बहुत ही कम होता है जब तुम मुझसे मदद मांगने आते हो! "
अमर सिंह ने हंसते हुए पूछा।
"वज्रज्वाल गोली"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"आकर्ष जहां तक मुझे पता है वज्रज्वाल गोली शारीरिक मंडल के योद्धाओं के लिए बहुत लाभदायक है। पर साथ में यह बहुत कीमती और दुर्लभ भी है। इसके अलावा मैंने सिर्फ इस गोली का आज तक का नाम ही सुना हैं। मुझे इसका निर्माण करना नहीं आता। इसलिए माफ करना.पर मैं इस बार तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।"
अमर सिंह ने एक फीकी मुस्कान के साथ जवाब दिया। आकर्ष ने उनके लिए जो कुछ किया था उसकी कीमत वह अच्छे से जानते थे। अगर आकर्ष की जगह कोई और होता तो 1000 चांदी के सिक्के तो क्या.10000 चांदी के सिक्कों के बदले भी उनके आंतरिक जख्मों को ठीक करने के लिए नहीं मानता!
"वरिष्ठ अगर मैं आपको वज्रज्वाल गोली की निर्माण विधि दे दूं, तो क्या आप मेरे लिए वज्रज्वाल गोली बना सकते हैं?"
आकर्ष ने पूछा।
उसका सवाल सुनकर अमर सिंह की सांसे तेज हो गई। उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए उन्होंने पुष्टि करने के लिए आकर्ष से पूछा.
"क्या तुमने अभी कहा कि तुम मुझे वज्रज्वाल गोली की निर्माण विधि दे सकते हो?"
अमर सिंह एक वेद्य थे इसलिए उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी। अगर उनके पास किसी चीज की कमी थी तो वह थी गोलियों के निर्माण विधियों की। एक वेद्य के पास जितनी ज्यादा गोलियों की निर्माण विधि होती थी वह उतनी ही ज्यादा अलग-अलग प्रकार की गोलियों का निर्माण कर सकता था। ज्यादा से ज्यादा गोलियों का निर्माण करके वो अपने वेद्य के ऊर्जा स्तर को बढ़ा सकता था और अगले स्तर में प्रवेश कर सकता था।
अमर सिंह एक नौवें स्तर के वैद्य थे इसलिए उनके पास कुछ ही गोलियों की निर्माण विधि थी।
"वरिष्ठ आपने सही सुना है। अगर आप मेरे लिए वज्रज्वाल गोली का निर्माण कर सकते हैं तो मैं उसकी निर्माण विधि आपको दे दूंगा।"
आकर्ष ने कहा।
"पर तुमने तो कहा था कि तुम्हारे मास्टर ने कोई भी निर्माण विधि किसी और को देने से मना किया है। अगर तुम मुझे वज्रज्वाल गोली की निर्माण विधि दोगे तो क्या तुम्हारे मास्टर गुस्सा नहीं होंगे?"
अमर सिंह ने डरते हुए पूछा।
"वरिष्ठ आप उसकी चिंता ना करें। वज्रज्वाल गोली की निर्माण विधि इतनी भी दुर्लभ नहीं है कि वो मैं आपको ना दे सकूं। इसके अलावा मेरे मास्टर ने मुझे गोलियों की निर्माण विधियां देते हुए कहा था कि अब से यह निर्माण विधियां मेरी है। मैं जो चाहूं इनके साथ कर सकता हूं.जिसे चाहे उसे दे सकता हूं!"
आकर्ष ने हंसते हुए जवाब दिया।
आकर्ष का जवाब सुनकर अमर सिंह चुप हो गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे?
वज्रज्वाल गोली लेने के बाद शारीरिक मंडल के योद्धा के दर्द सहन करने की क्षमता बढ़ जाती थी। यह गोली इतनी लाभदायक इसलिए थी क्योंकि इसका सेवन करने के बाद शारीरिक मंडल के योद्धा का ऊर्जा स्तर दोगुनी रफ्तार से बढ़ने लगता था। लेकिन इसकी एक कमी भी थी, इसे केवल शारीरिक मंडल के योद्धा ही ले सकते थे। चक्र मध्य मंडल और उससे ऊपर के मंडल के योद्धाओं के ऊर्जा स्तर पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता था। वज्रज्वाल गोली इतनी दुर्लभ थी कि सांची कस्बे तो क्या.आसपास के कई शहरों में भी इसके बारे में कोई खबर नहीं थी, मिलना तो दूर की बात है। और आकर्ष का कहना था कि उसके लिए वज्रज्वाल गोली इतनी भी दुर्लभ नहीं है। तो उसके लिए दुर्लभ क्या है?
इसके अलावा आकर्ष का कहना था कि वो गोली बनाने के बदले उन्हें उसकी निर्माण विधि तक देगा। किसी भी गोली से ज्यादा कीमती उसकी निर्माण विधि होती थी। कोई भी वेद्य किसी भी हालत में अपने पास मौजूद निर्माण विधि दूसरे व्यक्ति को नहीं देता था।
यही सब सोचकर अमर सिंह को आकर्ष पर संदेह हो रहा था।
"धन्यवाद आकर्ष। अगर तुमने अभी जो कुछ भी कहा है वह सच है, तो मैं जीवनभर तुम्हारा आभारी रहूंगा!"
अमर सिंह ने अपना आभार प्रकट करते हुए कहा। उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी वज्रज्वाल गोली की निर्माण विधि थी। इसके लिए अगर उनको किसी के सामने हाथ भी फैलाने पड़ते तो भी उन्हें कोई संकोच नहीं होता। और यहां तो उन्हें इतनी आसानी से निर्माण विधि मिल रही थी।
"वरिष्ठ आपको मुझे धन्यवाद देने की कोई भी जरूरत नहीं है। मैं आपको निर्माण विधि देकर आप पर कोई एहसान नहीं कर रहा। मैं चाहता हूं कि आप मेरे लिए कुछ वज्रज्वाल गोलियों का निर्माण करें और यह उसकी कीमत है।"
आकर्ष ने कहा।
आकर्ष तुम्हारा कहना गलत है। तुम्हारे लिए यह निर्माण विधि शायद दुर्लभ ना हो पर मेरे लिए यह बहुत ज्यादा कीमती है। वज्रज्वाल गोली का निर्माण करने के लिए मुझे केवल थोड़ी सी आंतरिक ऊर्जा का इस्तेमाल करना होगा। लेकिन इसके बदले में मुझे जो मिल रहा है वह कई गुना ज्यादा कीमती है।"
अमर सिंह ने कहा।
वो निर्माण विधि मिलने से बहुत ज्यादा खुश थे। अगर वज्रज्वाल गोली मिश्रा परिवार के शिष्यों को दी गई तो बहुत जल्द मिश्रा परिवार पूरे सांची पर राज करेगा।
"वरिष्ठ अगर आपको लगता है कि निर्माण विधि आपके लिए बहुत ज्यादा कीमती है और मैं आप पर कोई एहसान कर रहा हूं, तो आप मुझे हर महीने कुछ चांदी के सिक्के दे दीजिएगा।"
आकर्ष ने हंसते हुए कहा।
"तुम हर समय बस पैसों के बारे में सोचते रहते हो! पर चिंता मत करो मैं इस बारे में कुल प्रमुख से बात करूंगा।"
अमर सिंह ने गुस्से होने का दिखावा करते हुए कहा।
'पर एक बात सोचकर तो वह भी परेशान थे कि आकर्ष को पैसों से इतना ज्यादा प्यार क्यों है?'
दरअसल इसका कारण था लक्ष की यादें! आकर्ष के पास सब कुछ था, बस कमी थी तो पैसों की। अभी वह सिर्फ शारीरिक मंडल में था। लेकिन जैसे-जैसे वह चक्र मध्य मंडल, सृष्टि मंडल और उससे ऊपर के मंडलों में प्रवेश करेगा, उसे अपना ऊर्जा स्तर बढ़ाने के लिए कई सामग्रियों की आवश्यकता होगी। उनमें से कई सामग्रियों की कीमत बहुत ज्यादा थी। इसलिए आकर्ष अभी से पैसे जमा कर रहा था। वह नहीं चाहता था कि उसके सर्व शक्तिशाली बनने के रास्ते में पैसा एक रुकावट बने। उसे अपने योद्धा के ऊर्जा स्तर के साथ साथ.हथियार शिल्पकार, वेद्य और मंत्रकार के ऊर्जा स्तरों को भी बढ़ाना था और इसके लिए उसे बहुत ज्यादा धन की आवश्यकता थी।
अभी वह सिर्फ शारीरिक मंडल में था लेकिन एक बार चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने के बाद वह अपनी आंतरिक ऊर्जा का निर्माण कर सकता था। यानी इसी मंडल से उसके एक वेद्य, हथियार शिल्पकार और मंत्रकार बनने का सफर शुरू होने वाला था।
वेद्य, हथियार शिल्पकार और मंत्रकार तीनों के स्तर योद्धाओं के स्तर से थोड़े अलग थे। यह स्तर नौवें स्तर से शुरू होकर पहले स्तर तक जाते थे। इनके आगे भी तीन स्तर थे जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे। आकर्ष जानता था कि योद्धा, वेद्य, हथियार शिल्पकार और मंत्रकार चारों के स्तर एक साथ बढ़ाना बहुत मुश्किल था। उसे इन चारों पर एक साथ ध्यान देना होगा। उसके पास लक्ष की तरह दो और जीवन नहीं थे। इसलिए उसे जो कुछ भी करना है इसी जीवन में करना होगा।
अमर सिंह को वज्रज्वाल गोली की निर्माण विधि देने के बाद आकर्ष वहां से जाने लगा। पर जाने से पहले उसने अमर सिंह से कहा.
"वरिष्ठ मेरे पास अभी ज्यादा पैसे नहीं है। पर मुझे किसी भी हालत में वज्रज्वाल गोली चाहिए। इसलिए इस गोली के निर्माण के लिए जितनी भी आवश्यक सामग्री है वह आप ही को खरीदनी होगी।"
वरिष्ठ अमर सिंह कुछ जवाब दे, उससे पहले ही आकर्ष वहां से चला गया। अमर सिंह आकर्ष की चालाकी देख हैरान थे।
"इसने कल ही मुझे 1000 चांदी के सिक्के लिए हैं और यह कह रहा है कि इसके पास पैसे नहीं है?"
अमर सिंह ने एक गहरी सांस ली और अपने आप से ही कहा।
अमर सिंह के घर से लौटने के बाद आकर्ष सीधा अपने कमरे में आया और उस सारी सामग्री को बाहर निकाला जो उसने थोड़ी देर पहले छुपायी थी। वो इससे एक मंत्र अभिलेख बनाने वाला था। उसने पिछली बार अभिजीत को हराने के लिए जिस मंत्र अभिलेख को बनाया था, वह सिर्फ शारीरिक मंडल के सातवें स्तर तक के योद्धाओं को हरा सकता था। यदि उसे श्रीकांत को हराना है तो उसे ज्यादा शक्तिशाली मंत्र अभिलेख की आवश्यकता थी। अगर वह अपनी खुद की ताकत के बल पर 2 महीने बाद श्रीकांत को मुकाबले में नहीं हरा पाता है तो वह इस मंत्र अभिलेख का इस्तेमाल कर उसकी जान ले सकता था।
"श्रीकांत. मैं भी देखता हूं कि तुम मेरे इस मंत्र अभिलेख का सामना कैसे करोगे?"
आकर्ष ने गुस्सा होते हुए अपने आप से कहा। उसे बार-बार वही दृश्य याद आ रहा था जब श्रीकांत ने मिश्रा परिवार के सभा कक्ष में आकर उसे घायल किया था। वो और श्रीकांत आग और पानी के जैसे थे। वो दोनों एक साथ इस दुनिया में नहीं रह सकते थे। वो जब तक श्रीकांत को खत्म नहीं कर देगा उसे शांति नहीं मिलने वाली थी।
आकर्ष जैसे ही मंत्र अभिलेख का निर्माण शुरू करने वाला था.
"आकर्ष"
अचानक कमरे के बाहर से उसे अपनी मां रेवती की आवाज सुनाई दी।
आवाज सुनते ही आकर्ष समझ गया कि क्या हुआ होगा!
"इन आहूजा परिवार के लोगों को और कोई काम नहीं है क्या? मुझे नहीं लगा था कि वो इतनी जल्दी यहां पर आ जाएंगे!"
आकर्ष ने अपने आप से कहा।
उसने कमरे का दरवाजा खोला और अपनी मां से पूछा.
"मां.क्या हुआ?"
रेवती ने कोई जवाब नहीं दिया और ध्यान से आकर्ष को देखने लगी।
कुछ समय पहले ही आहूजा परिवार के लोग मिश्रा परिवार के महल में आए थे, और उन्होंने जो कुछ कहा था उसे सुनकर रेवती को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था।
अंकुश आहूजा जो की शारीरिक मंडल के छठे स्तर में था किसी ने उसकी हत्या कर दी थी। और जिसने उसकी हत्या की थी वह उसका बेटा आकर्ष था। रेवती को पहले तो लगा था कि शायद आहूजा परिवार के लोग उसके बेटे पर झूठा आरोप लगा रहे हैं। पर जब उसने पता लगाया तो सच्चाई जानकर वह और भी ज्यादा हैरान थी।
आकर्ष जो कि सिर्फ चौथे स्तर में था उसने अंकुश को खत्म कर दिया था, वो भी सिर्फ एक वार से!
पर कैसे?
पर कुछ देर सोचने के बाद रेवती को सब समझ में आ गया। आकर्ष की तलवारबाजी कितनी तेज थी इस बात से वह भली भांति परिचित थी।
"आकर्ष.तुमने अंकुश के बारे में मुझे क्यों नही बताया? तुमने उसे मार दिया है यह बात तुमने मुझसे क्यों छुपाई?"
रेवती ने नाराज और गुस्सा होते हुए कहा।
"मां आपने मुझे मेरी बात पूरी करने ही नहीं दी! मेरे कुछ कहने से पहले ही आप गुस्सा हो गई! वैसे अब क्या हुआ है? क्या आहूजा परिवार के लोग फिर से आए थे?"
आकर्ष ने उदास होते हुए पूछा।
वो जानता था कि उसने बातें छुपाकर गलती की है। इसके लिए अगर रेवती उसे कोई सजा देती तो उसे कोई समस्या नहीं थी। रेवती का गुस्सा उसे समझ आ रहा था पर उसका नाराज होना.
पता नहीं क्यों.पर रेवती को नाराज देख आकर्ष का मन उदास हो गया था। वह आज से पहले कभी उदास नहीं हुआ था। यह सब उसके लिए नया था।
रेवती ने भी आकर्ष के उदासी को भांप लिया था। उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
मैं जानती हूं कि तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। अंकुश ने तुम पर पहले हमला किया था। थोड़ी देर पहले आहूजा परिवार के तीसरे एल्डर सुरेंद्र और शांतनु तुम्हें पकड़ने आए थे। लेकिन तुम चिंता मत करो। अगर आहूजा परिवार का कुल प्रमुख अभय आहूजा खुद तुम्हें पकड़ने आता है तो भी वो तुम्हें कुछ नहीं कर पाएगा।
रेवती को लगा था कि सुरेंद्र और शांतनु का नाम सुनकर आकर्ष डर जाएगा। पर वह यह देख हैरान थी कि आकर्ष बिल्कुल पहले जैसा ही था। उसकी आंखों में चिंता, डर या पश्चाताप के कोई भी भाव नहीं थे। उसे आकर्ष का यह बर्ताव थोड़ा अजीब लगा। उसके मन में बार-बार एक ही सवाल घूम रहा था.
" आकर्ष ने आज से पहले किसी को भी जान से नहीं मारा था। यह पहली बार है जब आकर्ष ने किसी की जान ली है। अंकुश को मारने के बाद भी यह इतना शांत कैसे हैं?"