रेवती ज्यादा समय उस सवाल को अपने मन में रख नहीं पाई और आखिरकार उसने आकर्ष से पूछ ही लिया। सवाल पूछते समय वह आकर्ष की आंखों में देख रही थी जैसे कुछ पता लगाने की कोशिश कर रही हो।
"मां आपका सवाल एकदम सही है। असल में यह पहली बार नहीं है जब मैंने किसी को जान से मारा हो।"
आकर्ष ने बहुत समय पहले ही जवाब तैयार कर लिया था। वह जानता था कि उसकी मां उस पर आसानी से विश्वास नहीं करेगी। इसलिए उसने अपने आप को इतना शांत रखा कि रेवती के लिए यह जानना मुश्किल हो गया कि आकर्ष सच कह रहा है या झूठ। उसने अपने पिछले जन्म में कई प्रकार के टेस्ट दिए थे इसलिए झूठ बोलते समय भी अपने आप को सामान्य रखना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।
"यह पहली बार नहीं था? आज से पहले तुमने और किसको मारा है और मुझे इसके बारे में कुछ पता क्यों नहीं है?"
रेवती ने शक करते हुए पूछा।
"मां आज से पहले मैंने बहुत से लोगों को अपने सपने में मारा है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन वह सपना बिल्कुल वास्तविक लग रहा था। यह सब मेरे अभ्यास का हिस्सा था जो उस बूढ़े व्यक्ति ने मेरे लिए अपनी शक्तियों से तैयार किया था। जब मैंने पहली बार किसी की जान ली थी तो मैं बहुत डर गया था। मुझे खुद से नफरत हो रही थी।"
आकर्ष ने कहा।
"फिर से सपना"
रेवती को आकर्ष की बातों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं था। भला कोई सारी चीजें सपने में ही कैसे सीख सकता है। पर आकर्ष के अंदर जो परिवर्तन आए थे उन्हें देखने के बाद रेवती उसकी बातों को नकार भी नहीं सकती थी।
"लगता है तुम उस बूढ़े व्यक्ति के काफी करीब हो। हम फिर कभी इस बारे में बात करेंगे। अभी सभा कक्ष में चलो कुल प्रमुख हमारा इंतजार कर रहे हैं।"
रेवती ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा।
कुछ ही देर में वह दोनों सभा कक्ष के बाहर पहुंच गए।
"वर्धन सिंह मुझे उम्मीद थी कि तुम सकुशल होगे।"
जैसे ही वह दोनों सभा कक्ष में प्रवेश करने वाले थे उन्होंने एक आवाज सुनी।
"शशांक.यह यहां क्या कर रहा है?"
रेवती ने चोंकते हुए कहा। सभा कक्ष में गुप्ता परिवार के कुल प्रमुख शशांक गुप्ता को देख रेवती को थोड़ा अजीब लगा। पर जैसे ही उसने आकर्ष के चेहरे के भाव देखे तो उसकी हैरानी चिंता में बदल गई।
"आकर्ष अब यह मत कहना कि तुमने गुप्ता परिवार के लोगों से भी झगड़ा किया है!"
रेवती ने पूछा।
आहूजा और गुप्ता दोनों परिवार का एक साथ उनके मिश्रा परिवार के महल में आना रेवती की चिंता को बढ़ा रहा था।
अपनी मां का सवाल सुनकर आकर्ष ने रेस्टोरेंट में हुई सारी घटना के बारे में बताया।
"पक्का यही सब कुछ हुआ था ना?"
रेवती ने फिर से पूछा।
"हां मां बस इतना ही हुआ था।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"फिर ठीक है। मैं तो एक पल के लिए डर ही गई थी कि अब तुमने क्या कर दिया? वैसे जहां तक मुझे लगता है शशांक इतनी छोटी बात के लिए तो यहां पर नहीं आएगा। यानी वह जरूर किसी और काम से आया है।"
रेवती ने राहत की सांस लेते हुए कहा।
जैसे ही वह दोनों सभा कक्ष में आए ठीक इसी वक्त दो लोग सभा कक्ष से बाहर जाने लगे।
वह दोनों लोग जाते समय आकर्ष को इस तरह देख रहे थे जैसे कोई भूखा भेड़िया अपने शिकार को देख रहा हो।
"कुल प्रमुख.क्या हुआ?"
उन दोनों लोगों को जाता देख रेवती ने वर्धन सिंह से पूछा।
असल में वह दोनों लोग आहूजा परिवार से थे, तीसरा एल्डर सुरेंद्र और शांतनु। वह दोनों कुछ समय पहले तक तो आकर्ष को पकड़ना चाहते थे फिर अब क्या हुआ? वह बिना आकर्ष को कुछ किये सभा कक्ष से बाहर क्यों जा रहे थे?
"यह सब सोनाक्षी की वजह से हुआ है। वह जानती थी कि आहूजा परिवार के लोग हमारे पास आकर्ष की शिकायत करने आएंगे। इसलिए सच्चाई बताने वह अपने पिता शशांक के साथ यहां पर आई थी। सोनाक्षी ने ही हम सबको बताया कि आकर्ष की कोई गलती नहीं थी। अंकुश ने उस पर पहले हमला किया था।"
वर्धन सिंह ने सोनाक्षी की ओर इशारा करते हुए रेवती से कहा।
"तुम्हारा धन्यवाद सोनाक्षी! मुझे अच्छा लगा कि तुमने मेरे बेटे आकर्ष का पक्ष लिया।"
रेवती ने सोनाक्षी से कहा।
"आकर्ष. सोनाक्षी ने तुम्हारी इतनी बड़ी मदद की है। कम से कम तुम उसका शुक्रिया अदा तो कर ही सकते हो!"
रेवती ने गुस्सा होते हुए आकर्ष से कहा।
रेवती की बात सुनकर आकर्ष दुविधा में पड़ गया। सोनाक्षी का लोगों के साथ बर्ताव कैसा था उसके बारे में वह अच्छे से जानता था। फिर वह इस समय उसकी मदद क्यों कर रही थी?
आकर्ष के मन में बार-बार यही सवाल घूम रहा था।
" मेरी मदद करने के लिए तुम्हारा धन्यवाद.सोनाक्षी!"
वह अपनी मां की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता था इसलिए ना चाहते हुए भी उसने सोनाक्षी को धन्यवाद कहा।
"कोई बात नहीं.तुम्हारे लिए मैं इतना तो कर ही सकती हूं"
सोनाक्षी ने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया। वो इस समय उस सोनाक्षी से बिल्कुल ही अलग लग रही थी जिस सोनाक्षी से आकर्ष मेरु रेस्टोरेंट में मिला था।
"शशांक तुम्हारी बेटी सोनाक्षी काफी समझदार है। तुमने उसकी परवरिश काफी अच्छे से की है।"
वर्धन सिंह ने सोनाक्षी की तारीफ करते हुए कहा।
वर्धन सिंह के मुंह से अपनी बेटी की तारीफ सुनकर शशांक हंसने लगे और आकर्ष की तरफ देखते हुए कहा.
"मेरी बेटी की तुलना आकर्ष से नहीं की जा सकती। यह इतनी छोटी उम्र में इतना ताकतवर है तो जब बड़ा हो जाएगा तब तो पूरे सांची कस्बे में इसका सामना करने वाला कोई नहीं होगा। लगता है मिश्रा परिवार बहुत जल्दी ही नई ऊंचाइयों को छूने वाला है।"
"वैसे रेवती में आपसे कुछ पूछना चाहता था! क्या आपके बेटे आकर्ष की शादी या सगाई हो चुकी है?"
अचानक शशांक ने रेवती की ओर देखते हुए पूछा।
उसका सवाल सुनकर आकर्ष, रेवती और वर्धन सिंह तीनों एक दूसरे की ओर देखने लगे। जैसे तीनों मन ही मन में एक दूसरे से कुछ पूछ रहे हो। अब उन तीनों का ध्यान सोनाक्षी पर गया जिसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। अब जाकर उन्हें शशांक के वहां पर आने का असली कारण पता चला था।
"सोनाक्षी यह मत कहना कि तुम सच में मुझे पसंद करने लगी हो?"
आकर्ष ने घबराते हुए पूछा।
वह सोनाक्षी से आज सुबह ही मिला था और उस समय तक वह दोनों आग और पानी के जैसे थे। उस समय उसने सिर्फ मजाक में कह दिया था कि क्या सोनाक्षी उसे पसंद करती है। पर उसका यह मजाक इस तरह सच हो जाएगा इसकी तो उसने कल्पना भी नहीं की थी।
रेवती ने शशांक के सवाल का जवाब देने से पहले आकर्ष की ओर देखा। वो जानना चाहती थी कि आकर्ष का इस रिश्ते के बारे में क्या सोचना है। आकर्ष का चेहरा देख रेवती समझ गई कि उसका जवाब क्या है। उसने एक गहरी सांस ली और शशांक से कहा.
"कुल प्रमुख शशांक. मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि आपने आकर्ष को अपनी बेटी सोनाक्षी के लायक समझा। लेकिन माफ करें. मैंने पहले ही आकर्ष के लिए एक लड़की पसंद कर ली है।"
"लगता है हमें देरी हो गई। पर कोई बात नहीं। कुल प्रमुख वर्धन सिंह. मैं जिस काम के लिए आया था वो नहीं हो पाया! इसलिए अब हमारे यहां पर रुकने का कोई मतलब नहीं है। हमें आज्ञा दे!"
शशांक ने कहा।
आज्ञा मिलने के बाद वह अपनी बेटी सोनाक्षी के साथ सभा कक्षा से बाहर जाने लगे। जाने से पहले सोनाक्षी ने एक बार आकर्ष की ओर देखा। वो बहुत उदास लग रही थी।
"रेवती तुमने अभी कहा कि तुमने आकर्ष के लिए कोई लड़की पसंद की है। फिर तुमने इस बारे में मुझे कुछ क्यों नहीं बताया?"
शशांक और सोनाक्षी के वहां से जाने के बाद वर्धन सिंह ने रेवती से पूछा।
"कुल प्रमुख. मैंने जिस लड़की को आकर्ष के लिए चुना है उसे आप पहले से जानते हो। वो लड़की दीया है।"
रेवती ने मुस्कुराते हुए कहा।
वहीं आकर्ष अपनी मां का जवाब सुनकर आश्चर्यचकित था। उसने अपने आप से ही कहा.
'एक तो पहले से ही दीया मुझसे बात कम करती है। अब अगर उसे पता चला कि मेरी मां ने आज कुल प्रमुख से क्या कहा है तो वो बात करना तो दूर, शर्म के मारे मेरी तरफ देखेगी भी नही।
"ओह! तो वह लड़की दीया है।"
वर्धन सिंह ने हंसते हुए कहा।
"रेवती मुझे तुम्हारा निर्णय बहुत पसंद आया। अभी मुझे जाना होगा। वरिष्ठ मुझसे मिलना चाहते हैं। वो मुझसे कोई जरूरी बात करना चाहते थे, पर शांतनु और सुरेंद्र के कारण मैं उनसे मिल नहीं पाया। अगर मैं जल्दी से उनसे मिलने नहीं गया तो वह गुस्सा हो जाएंगे।"
वर्धन सिंह ने सभा कक्ष से बाहर जाते हुए कहा।
आकर्ष ने जैसे ही सुना कि वर्धन सिंह, अमर सिंह से मिलने जा रहे हैं, तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वह अच्छे से जानता था कि वरिष्ठ अमर सिंह ने वर्धन सिंह को मिलने क्यों बुलाया है!
"मैं उम्मीद करता हूं कि कुल प्रमुख कंजूस नहीं होंगे और वज्रज्वाल गोली का महत्व अच्छे से समझेंगे।"
आकर्ष ने धीमी आवाज में कहा।
उसने मिश्रा परिवार के लिए बहुत कुछ किया था। पहले दिव्य जल और अब यह वज्रज्वाल गोली। इन दोनों के बल पर मिश्रा परिवार पूरे सांची पर नियंत्रण कर सकता था। वह चाहता तो वज्रज्वाल गोली का राज अपने तक सीमित रख सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे उसका खुद का एक मकसद था। वह जल्द से जल्द शारीरिक मंडल के सातवें स्तर में प्रवेश करना चाहता था और इसके लिए उसे वज्रज्वाल गोली की आवश्यकता थी। इसमें उसकी मदद सिर्फ वरिष्ठ अमर सिंह ही कर सकते थे। वह चाहता तो किसी और वेद्य की मदद ले सकता था लेकिन अगर वह ऐसा करता तो वज्रज्वाल गोली का राज सभी को पता चल जाता। इसके अलावा अगर वह वेद्य उसकी पहचान उजागर कर देता तो सब लोग उसकी जान के दुश्मन बन जाते।
"आकर्ष तुम क्या सोच रहे हो? अगर तुम्हारा विचार दीया से पीछा छुड़वाने का है तो मैं तुम्हें पहले ही बता रही हूं, तुम्हारी शादी सिर्फ और सिर्फ दीया से ही होगी।"
रेवती ने आकर्ष को डांट लगाते हुए कहा।
उसने जब आकर्ष को गहरी सोच में खोया देखा तो उसे लगा कि शायद आकर्ष दीया से पीछा छुड़वाने का कोई तरीका सोच रहा है।
"मां आप क्या कह रही है? मैं भला ऐसा क्यों करूंगा?"
आकर्ष ने एक कड़वी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह रेवती की बात पर खुश हो या दुखी। उसकी मां हमेशा दीया का पक्ष लेती थी। चाहे उसकी गलती हो या ना हो पर अगर मामला दीया से संबंधित हैं तो उसे हमेशा डांट पड़ती थी।
"आकर्ष मेरी बात ध्यान से सुनो! अब से तुम घर से बाहर नहीं जाओगे। अगर तुम्हें घर से बाहर जाना होगा तो मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।"
रेवती ने कहा।
"मां क्या आपको आहूजा परिवार से डर लग रहा है?"
आकर्ष ने पूछा।
"मैं शांतनु और सुरेंद्र को अच्छे से जानती हूं। आज भले ही वो तुम्हें नहीं पकड़ पाए, लेकिन वह हार नहीं मानेंगे।"
"मां मुझे एक बात समझ नहीं आ रही! अंकुश तो शांतनु का बेटा था, फिर सुरेंद्र मुझसे किस बात का बदला लेना चाहता है?"
आकर्ष ने पूछा।
"क्योंकि सुरेंद्र और शांतनु दोनों भाई है।"
रेवती ने कहा।
अब जाकर आकर्ष को पूरी बात समझ में आई थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि जिस अंकुश की उसने हत्या की है वह आहूजा परिवार के तीसरे एल्डर सुरेंद्र का भतीजा होगा।
"तो सुरेंद्र यहां अपने भतीजे के लिए आया था। लेकिन उसके साथ आहूजा परिवार के बाकी लोग नहीं आए थे यानी उन्हें भी पता है कि गलती अंकुश की थी।"
आकर्ष ने अपने आप से ही कहा।
10 दिन बाद वरिष्ठ अमर सिंह ने आकर्ष को मिलने बुलाया।
आकर्ष ने सबसे पहले अमर सिंह का इलाज किया और फिर वज्रज्वाल गोली के बारे में पूछा।
आकर्ष का सवाल सुनकर अमर सिंह ने एक संदूक उसे थमा दिया। आकर्ष ने जैसे ही संदूक खोला तो उसकी आंखें चमक उठी। संदूक में 30 वज्रज्वाल गोलियां थी।
"आकर्ष यह 1000 चांदी के सिक्के मेरे इलाज करने के, और यह 30000 चांदी के सिक्के परिवार की तरफ से वज्रज्वाल गोली के लिए तुम्हें दिए गए हैं। तुमने हमारे लिए जो कुछ भी किया है उसके लिए हमारी तरफ से यह एक छोटी सी भेंट है।"
अमर सिंह ने चांदी के सिक्कों से भरी दो थैलियां आकर्ष को देते हुए कहा।
"बहुत-बहुत धन्यवाद वरिष्ठ।"
आकर्ष ने जल्दी से पैसे लिए और वरिष्ठ का आभार प्रकट किया।
"वैसे आकर्ष में देख पा रहा हूं कि तुम्हारा ऊर्जा स्तर बहुत तेजी से बढ़ रहा है। मेरे हिसाब से तुम बहुत जल्दी पांचवें स्तर में प्रवेश करने वाले हो। अगर सब कुछ सही रहा तो तुम इन वज्रज्वाल गोलियों की मदद से मुकाबले से पहले सातवें स्तर में प्रवेश कर लोगे। सातवें स्तर में प्रवेश करने के बाद मुझे यकीन है कि तुम अपनी रफ्तार के बल पर श्रीकांत को आसानी से खत्म कर पाओगे।"
अमर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा।
"वरिष्ठ मेरु रेस्टोरेंट में जो कुछ हुआ था आप उसके बारे में जानते हैं?"
आकर्ष ने पूछा।
"मैं ही नही पूरा सांची इसके बारे में जानता है। कुल प्रमुख ने मुझे बताया था कि उस दिन क्या हुआ था। मैं पहले से ही जानता था कि अभिजीत की रीड की हड्डी का टूटना उसकी लापरवाही नहीं बल्कि तुम्हारी चालाकी थी। अपनी ताकत छुपाना तो कोई तुमसे सीखे आकर्ष!"
अमर सिंह ने कहा।
"वरिष्ठ आप अच्छे से जानते हैं कि मैं यह सब क्यों कर रहा हूं!"
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा।
कुछ देर बात करने के बाद आकर्ष वहां से चला गया। उसको जाता देख अमर सिंह ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा.
"भला मैं कैसे नहीं जानूंगा की तुम्हारी मंजिल सांची में नहीं है! तुम जितना जल्दी हो सके यहां से जाना चाहते हो। अगर तुम सांची में रहोगे तो पूरा सांची हमारा होगा। हमें गुप्ता और आहूजा परिवार से डरने की कोई भी जरूरत नहीं होगी।"
अगर आकर्ष ने इस समय वरिष्ठ अमर सिंह की बातें सुनी होती, तो वह बहुत खुश होता। पर इस समय वह अपने कमरे में बैठकर सप्त शारीरिक दिव्य जल से नहा रहा था। जैसे ही दिव्य जल उसके रोम छिद्रों से होकर उसके शरीर में समाने लगा तो उसने अमर सिंह के दिए उस संदूक को खोला और उसमें से एक वज्रज्वाल गोली निगल ली।
गोली निगलते ही उसके पूरे शरीर पर लाल निशान बनने लगे और उसे असहनीय दर्द होने लगा। उसे ऐसा लग रहा था मानो उसके शरीर पर बिजलियां गिर रही हो!
Kach! Hisss! Kachh! hisss!
लगभग आधे घंटे बाद उसका दर्द कुछ कम होने लगा। इस समय तक सारा दिव्य जल उसके शरीर में समा गया था। हमेशा की तुलना में आज उसने बहुत ही कम समय में सारा दिव्य जल अवशोषित कर लिया था। उसका ऊर्जा स्तर इतना बढ़ चुका था कि वह किसी भी समय पांचवें स्तर में प्रवेश कर सकता था। उसने जल्दी से अपने मन को शांत किया और सर्पशक्ति का अभ्यास करने लगा।
पिछली बार की तरह ही उसकी मांसपेशियों में फिर से परिवर्तन होने लगा। उसकी हड्डियां चटकने लगी और कुछ ही देर में.
boom!
एक धमाके की आवाज के साथ आकर्ष ने अपनी आंखें खोली और अपने शरीर की जांच करने लगा।
"आखिरकार मैं पांचवें स्तर में पहुंच ही गया। जैसा मैंने सोचा था वज्रज्वाल गोली ने मुझे निराश नहीं किया।"
आकर्ष ने हंसते हुए अपने आप से कहा।
सामान्यतः उसे दिव्य जल अवशोषित करने में आधा दिन लगता था लेकिन वज्रज्वाल गोली की मदद से यह समय घटकर 3 घंटे हो गया था। ना केवल वज्रज्वाल गोली ने उसके दिव्य जल को अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ा दिया था पर साथ में उसके ऊर्जा स्तर को भी बहुत तेजी से बढ़ाया था।