अगली सुबह आकर्ष जल्दी उठा और अमर सिंह से मिलने गया।
"आकर्ष तुम इतनी सुबह यहां! यह मत कहना कि मैंने कल तुम्हें जो 30000 चांदी के सिक्के दिए थे तुमने उन्हें भी खर्च कर दिया है और तुम्हें फिर से पैसों की जरूरत है।"
अमर सिंह ने मजाकिया अंदाज में पूछा।
"नहीं वरिष्ठ! मुझे पैसे नहीं चाहिए। मैं इस बार किसी और काम से आया हूं। मैं चाहता हूं कि आप अपनी आंतरिक ऊर्जा से बनी आग से इस तलवार को पिघलाकर इसकी अशुद्धियों को अलग करें।"
आकर्ष ने उक्कू से बनी तलवार अमर सिंह को देते हुए कहा।
"पर आकर्ष यह तलवार तो स्टील की बनी है। अगर मैं अपनी आंतरिक ऊर्जा से बनी आग का इस पर इस्तेमाल करूंगा तो अशुद्धियों के अलग होने से पहले ही यह स्टील हवा में मिल जाएगा।आंतरिक ऊर्जा से बनी आग का ताप बहुत ज्यादा होता है जिसे स्टील जैसी सामान्य धातु सहन नहीं कर सकती।"
अमर सिंह ने आकर्ष को समझाते हुए कहा।
"वरिष्ठ क्या आपको पूरा भरोसा है कि एक सामान्य धातु है? क्या आप मेरे साथ शर्त लगाना चाहेंगे!"
आकर्ष ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा।
उसकी मुस्कराहट देख अमर सिंह समझ गए कि जरूर कुछ गड़बड़ है। आकर्ष जैसा चालक लड़का किसी भी परिस्थिति में खुद का नुकसान नहीं करेगा। और अगर बात पैसों की है तो बिल्कुल भी नहीं।
पर आकर्ष का सवाल सुनकर वो भी यह जानने को उत्सुक थे कि इस तलवार में क्या विशेष है!
उन्होंने जल्दी से उक्कू से बनी तलवार हाथ में ली और अपनी आंतरिक ऊर्जा से बनी आग से उसे पिघलाने लगे।
आधे घंटे बाद.
उस तलवार में जितनी भी अशुद्धियां थी वह हवा में गायब हो गई और पीछे जो धातु बच गई थी वह द्रव बन गई थी। अमर सिंह ने बहुत कोशिश की पर वह द्रव को और ज्यादा गर्म नहीं कर पाए।
उनका पूरा शरीर पसीने में भीग चुका था। उन्होंने हांफते हुए आकर्ष से पूछा.
"आकर्ष यह धातु स्टील नहीं है है ना?"
वेद्य की आंतरिक ऊर्जा से बनी आग सामान्य धातु को पिघलाने में सक्षम थी। लेकिन इस दुनिया में कुछ विशेष धातुएं भी थी जिन्हें केवल हथियार शिल्पकार की आंतरिक ऊर्जा से बनी आग द्वारा ही पिघलाया जा सकता था। अमर सिंह ने जब देखा कि उनकी आंतरिक ऊर्जा से बनी आग उस धातु को पिघला नहीं पा रही है तो वह समझ गए कि यह जरूर कोई विशेष धातु होगी।
"बिल्कुल.यह कोई सामान्य धातु नहीं है"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"क्या तुम मुझे इस धातु का नाम बता सकते हो?"
अमर सिंह ने पूछा।
"उक्कू"
"क्या!"
आकर्ष का जवाब सुन अमर सिंह चौंक पड़े।
हालांकि वो एक वेद्य थे लेकिन उन्होंने उक्कू के बारे में पहले से सुन रखा था। हथियार शिल्पकारों की दुनिया में 'उक्कू' को एक बहुत ही कीमती और दुर्लभ धातु मान जाता था।
"आकर्ष उक्कू एक बहुत ही कीमती धातु है! इसका एक छोटा सा हिस्सा मिलना भी बहुत मुश्किल है, फिर तुम्हें उक्कू से बनी यह तलवार कहां से मिली?"
अमर सिंह ने पूछा।
"मैंने इसे मिश्रा परिवार के बाजार से 200 चांदी के सिक्कों के बदले खरीदी है।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
'सिर्फ 200 चांदी के सिक्कों में'
अमर सिंह को आकर्ष की किस्मत से जलन हो रही थी। उसे उक्कू का इतना बड़ा टुकड़ा मिल गया था वो भी सिर्फ 200 चांदी के सिक्कों में। और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उक्कू दिखने में बिल्कुल स्टील जैसा होता था। यह कई धातुओं के मिश्रण में पाया जाता था इसलिए इसकी पहचान कर पाना बहुत कठिन था।
"तो इसलिए तुम इस तलवार की अशुद्धियां अलग करना चाहते थे क्योंकि यह उक्कू से बनी थी है ना!"
अमर सिंह ने पूछा।
"वरिष्ठ क्या आप उक्कू के बारे में पहले से जानते है?"
आकर्ष ने जवाब देने की जगह वापस अमर सिंह से ही सवाल पूछा।
"मैंने कुछ प्राचीन किताबों में इसके बारे में पढ़ा था। वहीं से मुझे पता चला था कि उक्कू दिखने में बिल्कुल स्टील जैसा होता है और कई धातुओं के मिश्रण में पाया जाता है इसलिए हर कोई इसकी पहचान नहीं कर पाता। वैसे तुम्हें उक्कू के बारे में कैसे पता?"
अमर सिंह ने पहले आकर्ष के सवाल का जवाब दिया फिर उससे एक नया सवाल पूछा।
लेकिन इस बार आकर्ष चुप रहा। उसने कोई भी जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर चुप रहने के बाद आकर्ष ने कहा.
"वरिष्ठ अभी मुझे कुछ काम है इसलिए मुझे जाने की आज्ञा दें। हम फिर कभी इस बारे में बात करेंगे।"
इतना कह कर आकर्ष ने वह पिघला हुआ उक्कू लिया और वहां से चला गया।
"यह पहले वाले आकर्ष से बिल्कुल अलग है। कभी-कभी तो मुझे शक होता है कि यह कोई बच्चा नहीं बल्कि कोई नौजवान है। लगता है इसके मास्टर ने इस सब कुछ बहुत अच्छे से सिखाया है।"
आकर्ष के वहां से जाने के बाद अमर सिंह ने एक गहरी सांस ली और अपने आप से कहा।
अमर सिंह से मिलने के बाद आकर्ष सीधा अपनी मां के पास आया और उन्हें अपने साथ बाजार चलने को कहा।
"आकर्ष.तुम इस पिघली हुई धातु से दो तलवारे बनवाना चाहते हो!"
रेवती ने पूछा।
उसके हिसाब से यह पिघली हुई धातु इतनी कम थी कि इससे एक चाकू तक बनाना मुश्किल था, दो तलवार बनाने की बात तो छोड़ ही दो!
"बिल्कुल क्या आपको कोई शक है!"
आकर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा।
रेवती ने ज्यादा सवाल जवाब नहीं किए और उसे लेकर मिश्रा परिवार के बाजार में स्थित एक लोहार की दुकान में आ गई।
"रेवती आप यहां"
उन दोनों के दुकान में प्रवेश करते ही एक आदमी ने उन्हें प्रणाम किया।
"तुम्हारे मालिक कहां है? उन्हें बुलाओ! मुझे उनसे कोई काम है।"
रेवती ने उस आदमी से कहा।
"हा हा हा हा हा"
"रेवती आप यहां, बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?"
एक बूढ़े आदमी ने दुकान में प्रवेश करते हुए कहा। उसने पहले रेवती को प्रणाम किया और फिर आकर्ष की ओर देखते हुए कहा.
"तुम जरूर आकर्ष होंगे.है ना?"
"आकर्ष.इनका नाम वसंत है। मिश्रा परिवार के बाजार में जितनी भी तलवारें है वो सब इन्होंने ही बनाई है।"
रेवती ने वसंत का परिचय आकर्ष से करवाते हुए कहा।
"प्रणाम वसंत चाचा"
आकर्ष ने कहा।
"रेवती.तुम मेरा परिचय अपने बेटे से इस प्रकार करवा रही हो जैसे तुम मुझे जानते ही नहीं हो। शायद तुम भूल गई हो लेकिन मुझे अभी भी याद है कि किस प्रकार तुमने कुछ साल पहले कुल प्रमुख से मेरी जान बचाई थी।"
वसंत ने कुछ साल पहले का वह दृश्य याद करते हुए कहा।
"वसंत जो समय बीत चुका है उसे याद करके क्या फायदा? आज मैं तुम्हारे पास इसलिए आई हूं क्योंकि आकर्ष तुमसे अपने लिए तलवार बनवाना चाहता है।"
रेवती ने कहा।
"ओह.तो यह बात है। आकर्ष क्या आप बता सकते हैं कि आपको कैसी तलवार चाहिए?"
वसंत ने आकर्ष की ओर देखते हुए पूछा।
"वसंत चाचा मेरे पास एक धातु है। मैं चाहता हूं कि आप इससे दो लचीली तलवार बनाएं। और हां आप जितना हो सके तलवार को पतली बनाने की कोशिश करें।"
आकर्ष ने वह पिघला हुआ उक्कू वसंत को दिखाते हुए कहा।
"लचीली तलवार"
"आकर्ष शायद आपको पता नहीं है लेकिन लचीली तलवार बनाने के लिए हमें ऐसी धातु का इस्तेमाल करना पड़ता है जिसकी शुद्धता बहुत ज्यादा हो! और आपके हाथ में जो धातु है वैसी धातु मैंने पहले कभी भी नहीं देखी। जब मैं इसको पहचान ही नहीं पा रहा हूं तो इससे तलवार कैसे बनाऊं?"
वसंत ने कहा।
वसंत ने जो कुछ कहा था उसे सुनकर रेवती भी हैरान थी। वसंत ने अपना आधे से ज्यादा जीवन धातुओं के बीच बिताया था। अगर वह भी इस धातु को पहचान नहीं पा रहा है तो ऐसी विचित्र धातु उसके बेटे आकर्ष के पास कहां से आई?
"वसंत चाचा.अगर मैं आपको इस धातु के बारे में बात भी दूंगा तो भी आप इसको पहचान नहीं पाएंगे। अभी यह धातु द्रव अवस्था में है इसलिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप इससे जितना जल्दी हो सके तलवार बनाये।"
आकर्ष ने कहा।
आकर्ष के लिए वसंत की बात एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं थी। पूरे सोमाली महाद्वीप में उक्कू से ज्यादा शुद्ध धातु कोई और नहीं थी। हथियार शिल्पकारों के लिए भी यह धातु इतनी दुर्लभ और कीमती इसलिए थी क्योंकि इसकी शुद्धता बहुत ज्यादा थी।
"ठीक है। मैं जितना हो सके तलवार को पतली बनाने की कोशिश करूंगा।"
वसंत ने कहा।
अब वह आकर्ष के साथ अपने कमरे में आया और उक्कू को भट्टी में डालकर गर्म करने लगा।
लगभग 1 घंटे तक लगातार भट्टी में रखने के बाद उक्कू का वह टुकड़ा गर्म होने लगा। वसंत ने एक राहत की सांस ली, पर साथ में वो आश्चर्यचकित भी था। उसने पहली बार ऐसी धातु देखी थी जो सिर्फ गर्म होने में 1 घंटे का समय ले रही थी। उस धातु के बारे में जानने की उसकी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ गई थी।
जब उक्कू पर्याप्त रूप से गर्म हो गया तब वसंत ने उसे भट्टी में से बाहर निकाला और हथौड़े से उस पर प्रहार करने लगा। कुछ देर इसी तरह प्रहार करने के बाद वसंत ने आकर्ष से कहा.
"आकर्ष मुझे लगता है मैं इस धातु से दो तलवारे बन सकता हूं।"
वसंत की बात सुनकर आकर्ष की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने जल्दी से वसंत का आभार प्रकट किया।
Clang!
Clang!
Clang!
Clang!
वसंत बिना रुके हथौड़े से उक्कू पर प्रहार कर रहा था। कुछ ही देर में उक्कू दो हिस्सों में बंट गया और दो तलवारों की आकृति दिखाई देने लगी। आकर्ष.जो की पास में ही खड़े होकर यह सारा नजारा देख रहा था, उसके दिल में वसंत के लिए इज्जत और ज्यादा बढ़ गई थी। उक्कू को गर्म करने से लेकर उस पर प्रहार करने तक और फिर उसको दो हिस्सों में बाँटकर उससे दो तलवारों का निर्माण करने तक! जिस कुशलता से उसने यह सब काम किया था यह सब उसकी वर्षों की मेहनत को दिखा रहा था।
लगभग 2 घंटे बाद वसंत ने तलवारों का निर्माण कर लिया।
जैसा आकर्ष ने कहा था, वसंत ने बिल्कुल वैसे ही उन तलवारों को पतला बनाया था। उसने उन दोनों तालवारों की धार पर भी विशेष ध्यान दिया था। यह पहली बार था जब वो इस प्रकार की लचीली तलवार बन रहा था। इसलिए वह नहीं चाहता था कि इनमें किसी भी प्रकार की कोई कमी हो!
Kang!
वसंत ने एक स्टील की तलवार ली और उस पर उक्कू से बनी तलवार का प्रहार किया।
प्रहार होते ही तुरंत स्टील की वो तलवार दो हिस्सों में कट गई।
"यह तो मैंने जितनी उम्मीद की थी उससे भी कई गुना बेहतर बनी है।"
आकर्ष ने कहा।
वसंत की हथियार बनाने की कला देख आकर्ष हैरान था। वसंत हथियार बनाने में कितना निपुण था, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उसकी बनाई यह दोनों तलवारें नौवें स्तर के हथियार शिल्पकार द्वारा बनाए हथियार को टक्कर दे सकती थी।
"आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आकर्ष "
वसंत ने कहा।
"वसंत चाचा आप मुझे किस बात का धन्यवाद दे रहे हैं?"
आकर्ष ने पूछा।
मैं तुम्हें धन्यवाद इसलिए दे रहा हूं क्योंकि यह तलवार तुम्हारी जरूर है पर जब भी तुम इस तलवार से किसी को पराजित करोगे तो लोग मेरी प्रशंसा करेंगे, और कहेंगे कि मेरी बनाई तलवार के कारण तुम जीते हो।
वसंत ने हंसते हुए कहा।
हर लोहार का सपना होता है कि उसके बने हथियार सर्वश्रेष्ठ हो। और वसंत उनसे अलग नहीं था।
Whoosh! Whoosh! Whoosh!
आकर्ष ने उक्कू से बनी तलवार उठाई और उससे वार करने लगा। यह तलवार जितनी पतली थी उतनी ही हल्की भी थी। अगर वह इस तलवार के साथ युद्ध करें तो उसकी रफ्तार और तेज हो सकती थी। वो इस तलवार से पूरी तरह संतुष्ट था। उसने वसंत की ओर देखते हुए पूछा.
"चाचा आपने तलवार तो बना दी! पर मेरे पास इसके लिए कोई म्यान नहीं है। क्या आपके पास इस तलवार की माप की कोई म्यान होगी?"
"वैसे मेरे पास कुछ म्यान है तो सही! पर अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए एक विशेष म्यान बन सकता हूं जो इन तलवारों के लिए बिल्कुल उचित रहेगी।"
वसंत ने हंसते हुए कहा।
वह आज इन दोनों तलवारों का निर्माण करके बहुत ज्यादा खुश था।
"आपका एक बार फिर से बहुत-बहुत धन्यवाद चाचा!"
आकर्ष ने जल्दी से अपना आभार प्रकट करते हुए कहा।