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Chapter 18 - शारीरिक मंडल का चौथा स्तर

श्रीकांत को चुनौती दिए हुए 15 दिन बीत गए थे।

आकर्ष इस समय वरिष्ठ अमर सिंह के घर आया हुआ था। अमर सिंह एक कुर्सी पर बैठे हुए थे और सुबह की धूप का आनंद ले रहे थे। आकर्ष भी उन्ही के पास खड़े होकर उनके कंधे दबा रहा था।

"वरिष्ठ 15 दिन बाद में इसी प्रकार आपका एक बार और इलाज करूंगा, जिसके बाद आपके शरीर के अंदर जितने भी जख्म है वो सब ठीक हो जाएंगे।"

आकर्ष ने कहा।

"तुम्हारा धन्यवाद आकर्ष। तुम नहीं जानते इन जख्मों ने मुझे कितना दर्द दिया है।"

अमर सिंह ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा।

उनके इन जख्मों ने पिछले कुछ सालों में उन्हे बहुत ज्यादा दर्द दिया था। यह दर्द इतना असहनीय होता था कि कई बार उन्होंने अपना संतुलन तक खो दिया था।

"वरिष्ठ मुझे धन्यवाद देने की कोई भी जरूरत नहीं है। मैं कौन सा मुफ्त में आपका इलाज कर रहा हूं। इसके बदले में आप मुझे चांदी के सिक्के भी तो दे रहे हैं।"

आकर्ष ने हंसते हुए कहा।

उसे वरिष्ठ का एक बार इलाज करने के 1000 चांदी के सिक्के मिल रहे थे। जब पैसे इतनी आसानी से मिल रहे हो तो भला उसे क्या परेशानी होगी।

"वैसे आकर्ष मैंने सुना है कि तुमने कुल प्रमुख से कोई भी मदद लेने से मना कर दिया है!"

अमर सिंह ने पूछा।

"आपने सही सुना है वरिष्ठ। मुझे अभी पैसों की कोई जरूरत नहीं है। अगर मुझे कोई सामान चाहिए होता है तो मेरी मां उसे खरीद कर दे देती है। अगर मेरी जगह कुल प्रमुख वो पैसे और औषधियां परिवार के किसी और सदस्य पर इस्तेमाल करेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। इसलिए मैंने कुल प्रमुख से मदद नहीं ली।"

आकर्ष ने जवाब दिया

"तुम अपनी बातों से यह बताना चाहते हो कि तुम कितने दयालु हो, और बाकी लोगो के बारे में कितना सोचते हो! पर हकीकत क्या है यह मैं भी जानता हूं। तुम हमारे मिश्रा परिवार से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहते। तुम मिश्रा परिवार से कोई भी एहसान नहीं लेना चाहते। मैंने ठीक कहा ना?"

अमर सिंह की बात का आकर्ष ने कोई भी जवाब नहीं दिया।

असल में अमर सिंह ने जो कुछ भी कहा था वह सब सच था। आकर्ष मिश्रा परिवार से कोई भी संबंध नहीं रखना चाहता था। वो इस नई दुनिया को देखना चाहता था इसलिए बहुत जल्द सांची छोड़कर जाने वाला था। वो हमेशा इस एक जगह कैद नहीं रह सकता था।

"वरिष्ठ आपका आज का इलाज हो चुका है।"

अचानक आकर्ष ने कंधे दबाना बंद कर दिया और वरिष्ठ से कहा।

आकर्ष की बात सुनकर वरिष्ठ ने अपनी आंखें खोली और एक चांदी के सिक्कों से भरी थैली उसे दे दी।

"वरिष्ठ मैं दो बार आपका इलाज कर चुका हूं। आज से ठीक 15 दिन बाद आपका तीसरी बार इलाज होगा, जिसके बाद आप पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे।"

आकर्ष ने अमर सिंह को प्रणाम किया और अपने घर की ओर चल पड़ा।

आकर्ष के जाने के बाद अमर सिंह अपने आप से बाते करने लगे...

"आकर्ष मुझे आशा है कि तुम मेरा विश्वास नहीं तोड़ोगे और श्रीकांत से मुकाबला कर उसे हराओगे। तुमसे पूरे मिश्रा परिवार को बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मिश्रा परिवार के लिए यह बहुत बड़ा नुकसान होगा।"

इधर आकर्ष...अमर सिंह के घर से निकलकर सीधे अपने घर की ओर चल पड़ा। उसने जैसे ही अपने घर में कदम रखा तो उसकी नजर दीया पर पड़ी, जो अभी भी तलवारबाजी का अभ्यास कर रही थी। उसका पूरा शरीर पसीने से लथपथ था। पर उसकी झील सी शांत आंखों में अभी भी थकावट का कोई नामो निशान नहीं था।

इतने समय दीया के साथ रहने के बाद आकर्ष उसके प्रति एक खिंचाव महसूस कर पा रहा था।

"दीया तुम तलवारबाजी का अभ्यास कर रही हो, यह अच्छी बात है। पर अगर तुम हर समय इसी तरह अभ्यास करती रहोगी तो तुम्हारे हाथों को चोट लग जाएगी। अगर चोट गहरी हुई तो तुम फिर कभी तलवारबाजी नहीं कर पाओगी।"

आकर्ष ने दीया का हाथ पकड़ते हुए कहा।

"मालिक में जानती हूं कि आपको मेरी चिंता हैं। पर मैं जितना जल्दी हो सके तलवारबाजी सीखना चाहती हूं। मैं जल्द से जल्द आपके स्तर पर पहुंचना चाहती हूं ताकि आपकी मदद कर सकूं। अगर मैं निरंतर अभ्यास नहीं करूंगी तो कमजोर रह जाऊंगी और हमेशा आपके साथ नहीं रह पाऊंगी।

दीया ने धीमी आवाज में कहा।

आखरी वाक्य कहते हुए दीया का चेहरा शर्म से लाल हो गया था।

"तुम बिल्कुल पागल हो। मैं तुम्हें खुद से दूर क्यों करूंगा। मैंने पहले भी तुमसे कहा है तुम जब तक चाहे हमारे साथ रह सकती हो। अब ज्यादा अभ्यास मत करो और जाकर थोड़ा आराम करो।"

आकर्ष ने दीया के बालों को ठीक करते हुए कहा।

दीया से बात करने के बाद आकर्ष अपने कमरे में आया। उसने अपने नहाने के पानी में दिव्य जल मिलाया और उसी पानी में बेठकर सर्पशक्ति का अभ्यास करने लगा। धीरे-धीरे सारा दिव्य जल उसके रोम छिद्रो से होकर उसके शरीर में प्रवेश करने लगा। रात होते-होते आकर्ष ने सारा दिव्य जल अवशोषित कर लिया।

"जिस तरीके से मेरा ऊर्जा स्तर बढ़ रहा है, उस हिसाब से मैं कल सुबह तक शारीरिक मंडल के चौथे स्तर में प्रवेश कर लूंगा। पर अगर मुझे श्रीकांत को हराना है तो कम से कम शारीरिक मंडल के सातवें स्तर में पहुंचना होगा। यह दिव्य जल मेरी ताकत बढ़ा तो रहा है, पर साथ में समय भी बहुत ज्यादा ले रहा है। अगर मैं सिर्फ इसके भरोसे रहा तो मुकाबला होने तक पांचवें स्तर में भी नहीं पहुंच पाउंगा। लगता है मुझे बाजार से कुछ सामान खरीदना पड़ेगा।"

आकर्ष ने अपने आप से कहा।

अगली सुबह आकर्ष जल्दी उठा और फिर से दिव्य जल अवशोषित करने लगा। वो बिना रुके सर्पशक्ति का अभ्यास कर रहा था।

कुछ समय बाद उसके शरीर में कुछ परिवर्तन होने लगे। उसकी मांसपेशियां मजबूत होने लगी और शरीर पहले की तुलना में और ज्यादा कठोर हो गया। वह पहले से ज्यादा आकर्षित लग रहा था। आकर्ष ने अपनी आंखें खोली और अपने शरीर को ध्यान से देखा। जल्दी ही उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई।

"आखिरकार इतनी कोशिश के बाद मैं चौथे स्तर में प्रवेश करने में सफल रहा। जैसा मैंने सोचा था, चौथे स्तर में प्रवेश करने के बाद मुझे 300 पाउंड की ताकत मिली है।"

आकर्ष ने हंसते हुए कहा। उसके हंसने का सबसे बड़ा कारण था 300 पाउंड की ताकत। एक सामान्य योद्धा को शारीरिक मंडल के चौथे स्तर में प्रवेश करने के बाद 200 पाउंड की ताकत प्राप्त होती थी, वही आकर्ष को 300 पाउंड की ताकत प्राप्त हुई थी। वो भला खुश कैसे नहीं होता। यह ताकत का अंतर लक्ष की बनाई युद्ध कला शर्पशक्ति के कारण आया था। आखिरकार वो एक अनंत मंडल के योद्धा की युद्ध कला थी। उसका दूसरी युद्ध कलाओं से अलग होना सामान्य था।

दिव्य जल अवशोषित करने के बाद आकर्ष ने अपने कपड़े पहने और अपने कमरे से बाहर आया।

woosh! Clang! Woosh! Clang!

कमरे से बाहर आते ही आकर्ष को कुछ आवाजें सुनाई दी। उसने आवाज की ओर देखा तो पाया कि दीया हमेशा की तरह तलवारबाजी का अभ्यास कर रही है। वो तलवार को इस प्रकार चल रही थी कि ज्यादा आवाज ना हो। सुबह का समय था इसलिए वह नहीं चाहती थी कि किसी की भी नींद खराब हो।

आकर्ष समझ गया कि दीया इतना अभ्यास क्यों कर रही है। दीया यह सब उसके लिए कर रही थी। जब श्रीकांत ने आकर्ष को घायल किया था तो वह बहुत डर गई थी। वह नहीं चाहती थी कि आकर्ष के साथ ऐसा फिर कभी हो! इसलिए वह निरंतर अभ्यास कर रही थी। अभ्यास के कारण वह शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में पहुंच गई थी। पर अपनी सफलता पर उसे बिल्कुल भी खुशी नहीं थी बल्कि वह अपने आप को ज्यादा ताकतवर बनाने के लिए और अधिक अभ्यास करने लगी। वह यह सारी मेहनत सिर्फ और सिर्फ उसके लिए कर रही थी।

"दीया यह अभ्यास करना बंद करो और मेरे साथ बाजार चलो। मुझे कुछ सामान खरीदना है।"

आकर्ष ने कहा।

"जी मालिक...पर आपको थोड़ा इंतजार करना होगा, मैं अभी आपके लिए खाना बना कर लाती हूं।"

दीया ने धीमी आवाज में कहा।

"इसकी कोई भी जरूरत नहीं है। हम खाना बाहर ही खा लेंगे।"

"तो मैं मालकिन के लिए खाना बना लेती हूं।"

"तुम इसकी चिंता मत करो। मेरी माँ अपने लिए खाना खुद बना लेगी।"

यह कहते हुए आकर्ष ने दीया का हाथ पकड़ा और बाजार की ओर जाने लगा। लेकिन जाने से पहले उसने अपनी मां को आवाज देते हुए कहा...

"मां...मैं और दीया खाना बाहर खाएंगे। आप अपने लिए खाना बना लेना।"

इतना कह कर आकर्ष और दीया बाजार की ओर चल पड़े।

"यह कुछ ज्यादा नहीं हो रहा। उसे एक पत्नी क्या मिली वो तो अपनी मां को ही भूल गया।"

रेवती ने हंसते हुए कहा।

"मालिक रुकिए...मैं भी आ रहा हूं।"

अचानक आकर्ष के कानों में एक व्यक्ति की आवाज सुनाई दी।

उसने आवाज की ओर देखा तो पाया कि एक मोटा सा लड़का भागते हुए उसी की ओर आ रहा है।

"क्या तुम मुझे आवाज दे रहे थे?"

आकर्ष ने उस मोटे लड़के से पूछा।

उस लड़के को देख आकर्ष को ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे जानता है। शायद यह पहले वाले आकर्ष का कोई साथी था। पर वह आकर्ष तो हमेशा बीमार रहता था भला उससे कोई दोस्ती क्यों करेगा?

"जी मालिक...मैं आपको ही आवाज दे रहा था।"

उस मोटे लड़के ने तुरंत जवाब दिया।

"पर मैं तो तुम्हें नहीं जानता।"

आकर्ष ने शक करते हुए पूछा।

"मालिक माना कि बचपन में मैं आपके कपड़े फाड़ देता था। पर इसके लिए आपको गुस्सा होने की कोई जरूरत नहीं है। बचपन में कौन शरारती नहीं होता। इसके अलावा जब आपने अभिजीत को सबके सामने हराया था। तो आपने एक प्रकार से मेरी भी मदद की थी। अभिजीत हमेशा मुझे परेशान करता था।"

उस मोटे लड़के ने जवाब दिया।

'मेरे कपड़े फाड़ देता था?'

उस मोटे लड़के का जवाब सुनकर आकर्ष को गुस्सा आ गया। पर फिर उसे याद आया कि यह सब तो पहले वाले आकर्ष के साथ हुआ था। आकर्ष ने अपने आप को शांत किया और उस मोटे लड़के से पूछा...

"तुम अतुल हो?"

आकर्ष को पहले वाले आकर्ष की यादों से इस मोटे लड़के के बारे में पता चला था। यह मोटा लड़का जिसका नाम अतुल था, सोमदत्त का बेटा था। अतुल बचपन में ही अपने दादाजी के साथ व्यापार करने सांची से बाहर चला गया था। पर कुछ दिन पहले जब अभिजीत और आकर्ष का मुकाबला होने वाला था तो परिवार के सभी सदस्य सांची वापस लौटे थे। उन में अतुल और उसके दादाजी भी शामिल थे।

"मालिक तो आपने मुझे पहचान लिया।"

अतुल ने चुलबुले ढंग से हंसते हुए कहा।

"तुम वापस कब आए और इसके अलावा मुझे अपना मालिक क्यों कह रहे हो?"

आकर्ष ने पूछा।

जहां तक उसे याद था पहले वाला आकर्ष और अतुल ज्यादा बार नहीं मिले थे। फिर आकर्ष अतुल का मालिक कैसे बना?

"मैं दो महीने पहले वापस आया था। और रही बात आपको मालिक कहने की तो वह इसलिए क्योंकि आपने अभिजीत को हराकर मेरा बदला लिया है। मैंने उसी समय सोच लिया था कि 'अब से आप ही मेरे मालिक हो' अब क्योंकि मैं आपका आदमी हूं तो आपको मेरा अच्छे से ख्याल रखना होगा।"

अतुल ने कहा।

अतुल की बात सुनकर आकर्ष समझ गया कि अतुल के साथ क्या हुआ होगा। अतुल जब वापस लौटा होगा तो किसी बात को लेकर रवि के साथ उसका झगड़ा हो गया होगा। अब क्योंकि रवि अतुल को नहीं हरा सकता है तो रवि ने अपने बड़े भाई अभिजीत की मदद ली होगी। इस तरह अतुल और अभिजीत एक दूसरे के दुश्मन बन गए होंगे।

"मैंने अभिजीत को सबक सिखाया क्योंकि उसने मुझे चुनौती दी थी। मैंने यह तुम्हारे लिए नहीं किया। इसके अलावा मुझे तुम्हारा मालिक बनने का भी कोई शौक नहीं है। इसलिए तुम यहां से जाओ और मुझे अपना काम करने दो।"

आकर्ष ने कहा। उसने दीया का हाथ पकड़ा और बाजार की ओर जाने लगा।

अपने पिछले जीवन में उसने अपने एक दोस्त पर भरोसा किया था, पर उस दोस्त ने धोखे से उसकी हत्या करवा दी। वो इस जीवन में यह गलती वापस दोहराना नहीं चाहता था।

आकर्ष का जवाब सुनकर अतुल आश्चर्यचकित था। अगर आकर्ष की जगह कोई और होता तो उसका मालिक बनने के लिए तुरंत मान जाता। पर आकर्ष का इस तरह उसे मना करना उसे थोड़ा अजीब लगा।