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Chapter 17 - आकर्ष की चुनौती

श्रीकांत ने बिना किसी देरी के आकर्ष पर हमला कर दिया। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि श्रीकांत मिश्रा परिवार के सभा कक्ष में आकर, उन्हीं के परिवार के एक शिष्य पर हमला करने की कोशिश करेगा। इसके अलावा वह इस समय अपनी पूरी आंतरिक ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहा था। उसके इरादे साफ थे। वह किसी भी कीमत पर आकर्ष को खत्म करना चाहता था।

श्रीकांत शारीरिक मंडल के नोवे स्तर का योद्धा था इसलिए पलक झपकते ही आकर्ष के सामने पहुंच गया। उसने अपना हाथ आकर्ष की ओर बढ़ाया ताकि एक ही झटके में उसकी गर्दन तोड़ सके।

आकर्ष पहले से ही इस हमले के लिए तैयार था। इसलिए वह तुरंत चार कदम पीछे हट गया।

वो जानता था कि अगर वह एक बार श्रीकांत के हाथों पकड़ा गया तो उसे कोई भी नहीं बचा पाएगा, उसका मरना निश्चित है।

पर शायद आकर्ष की किस्मत आज खराब थी। श्रीकांत ने जब देखा कि आकर्ष उसके पहले वार से बच गया है, तो उसने तुरंत दो कदम आगे बढ़कर एक लात आकर्ष को मार दी। यह वार इतना शक्तिशाली था कि आकर्ष उड़ता हुआ दीवार से जा टकराया। श्रीकांत ने इस वार में अपनी सारी आंतरिक ऊर्जा का इस्तेमाल किया था, इसलिए आकर्ष के मुंह और कान से खून निकलने लगा।

उसका चेहरा पीला पड़ गया था। उसने किसी तरह अपने आप को संभाला और गुस्से से श्रीकांत की ओर देखने लगा। आंतरिक ऊर्जा के कारण वह घायल जरूर हुआ था, लेकिन उसे किसी भी प्रकार का दर्द महसूस नहीं हो रहा था। उसकी आंखों में कत्ल का भाव था। वह पहले वाला आकर्ष बन चुका था जिसे सब मृत्यु का देवता कहते थे।

श्रीकांत ने जब देखा कि आकर्ष उसके इस हमले से जिंदा बच गया है, तो वह फिर से उसकी ओर बढ़ा।

"श्रीकांत...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे सभा कक्ष में आकर, हमारे ही शिष्य पर हमला करने की!"

श्रीकांत को दूसरी बार आकर्ष पर हमला करते देख वर्धन सिंह अपनी जगह से खड़े हुए और चिल्लाते हुए बोले।

"श्रीकांत यह मत समझना कि तुम आहूजा परिवार से हो तो कुछ भी कर सकते हो! तुमने हमारे परिवार के सदस्य पर हमला किया है, इसलिए तुम्हें इसकी सजा जरूर मिलेगी।"

आशुतोष ने तुरंत अपनी आंतरिक ऊर्जा का इस्तेमाल किया और आकर्ष को बचाने उसके सामने पहुंच गया। उसके सिर पर इस समय चार हाथियों की परछाई प्रकट हो चुकी थी। उसने अपनी सारी आंतरिक ऊर्जा अपने हाथ में एकत्रित की और श्रीकांत की ओर बढ़ा।

उसके हाथ में इस समय चार हाथियों की ताकत थी। अगर उसका कोई भी वार श्रीकांत को लगता तो उसका मरना निश्चित था।

पर इससे पहले की श्रीकांत को कुछ भी हो, एक व्यक्ति उसे बचा लेता है। उस व्यक्ति के सिर पर आठ हाथियों की परछाई मौजूद थी। जिसका मतलब था कि वह व्यक्ति आशुतोष से बहुत ज्यादा शक्तिशाली था। आशुतोष ने जब उस व्यक्ति की ओर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति आहूजा परिवार का कुल प्रमुख 'अभय आहूजा' है।

"आकर्ष...क्या तुम ठीक हो?"

अभय आहूजा को अपने सामने देख आशुतोष की उससे लड़ने की हिम्मत नहीं हुई। वह आकर्ष के पास आया और उसे सहारा देते हुए पूछा।

"मैं ठीक हूं। मुझे बचाने के लिए तुम्हारा धन्यवाद आशुतोष।"

आकर्ष ने धीरे से कहा।

वह इस समय घायल जरूर था पर उसने किसी भी प्रकार की कोई आवाज नहीं की थी। उसका मानना था कि चोट लगने पर वह लोग चिल्लाते हैं जो कमजोर होते हैं।

"अभय!!!"

अचानक एक आवाज पूरे सभा कक्ष में गूंज उठी।

आकर्ष और प्रणव के बीच में जो कुछ भी हुआ था, इस बारे में हमारे परिवार ने पता किया है। सारी गलती प्रणव की थी। तुम भी इस बात से भली भांति परिचित हो। इसके बावजूद तुम आकर्ष पर आरोप लगाने हमारे महल में आ गए और तो और श्रीकांत ने उसे मारने की कोशिश भी की। तुम्हें क्या लगता है हमारा परिवार इतना कमजोर है कि तुम यहां आकर कुछ भी कर सकते हो। तुम आकर्ष से उस लड़ाई का जवाब चाहते थे...तो अब तुम्हारे पास आज जो कुछ भी हुआ उसका कोई जवाब है..."

वर्धन सिंह ने गुस्सा होते हुए कहा। आकर्ष मिश्रा परिवार के लिए बहुत जरूरी था। अगर उसे कुछ भी हो जाता है तो मिश्रा परिवार, गुप्ता और आहूजा परिवार से ताकतवर बनने का अपना मौका खो देगा।

अभय आहूजा एक चालाक व्यक्ति था। वह नहीं चाहता था कि एक छोटी सी बात को लेकर दोनों परिवार आपस में लड़े, इसलिए उसने वर्धन सिंह को समझाते हुए कहा...

"वर्धन सिंह...मैं जानता हूं कि श्रीकांत ने गलती की है, पर इसका जिम्मेदार तो आकर्ष ही है। अगर उसने श्रीकांत के बेटे को घायल नहीं किया होता तो श्रीकांत भी उस पर हमला नहीं करता। वैसे भी आकर्ष तुम्हारे मिश्रा परिवार का सदस्य नहीं है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसके लिए इतना गुस्सा होना चाहिए। सांची में हम तीनों परिवार बहुत समय से शांति से रह रहे हैं। अब एक छोटी सी बात के लिए अगर दो परिवार झगड़ा करेंगे तो नुकसान दोनों परिवारों को होगा। बाकी तुम खुद समझदार हो। तुम समझ गए होगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं।"

"अभय!!!"

वर्धन सिंह ने चिल्लाते हुए कहा। वह जानते थे कि अगर आज उन्होंने आकर्ष का पक्ष नहीं लिया तो आकर्ष नाराज हो जाएगा। लेकिन वह इस मामले की गंभीरता को भी जानते थे।

इससे पहले कि वह कुछ कहे, आकर्ष उनके सामने आया और बोला...

"कुल प्रमुख...आपको चिंता करने की कोई भी जरूरत नहीं है। मुझे पता है कि इस मामले से कैसे निपटना है।"

इससे पहले की वर्धन सिंह कुछ जवाब दे, आकर्ष ने श्रीकांत की ओर देखा और कहा...

"श्रीकांत या चंद्रकांत, जो भी तुम्हारा नाम है। तुम अपने बेटे का बदला लेना चाहते हो ना, तो मैं तुम्हें एक मौका देता हूं। आज से ठीक 3 महीने बाद मैं तुम्हारे आहूजा परिवार के महल में तुमसे मुकाबला करने आऊंगा और अपने हाथों से तुम्हारी जान लूंगा। क्या तुम्हें मेरी चुनौती स्वीकार है?"

"क्यों नहीं...मुझे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है। यह तो वक्त ही बताएगा कि 3 महीने बाद तुम मेरी जान लेते हो या मैं तुम्हारी।"

श्रीकांत ने तुरंत जवाब दिया। वह पहले इस बात से गुस्सा था कि वह अपने बेटे का बदला नहीं ले पाएगा। लेकिन अब उसका सारा गुस्सा गायब हो गया था।

"देखते हैं क्या तुम्हारे पास मुझे खत्म करने की क्षमता है या नहीं"

आकर्ष ने सभा कक्ष से बाहर जाते हुए कहा। उसकी हिम्मत देख सभी हैरान थे। पर उन्हें यह पता नहीं था कि जिस आकर्ष ने चुनौती दी है वह हत्यारा आकर्ष है, जिसने कभी किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया था। फिर वह भला एक छोटे से आहूजा परिवार के सामने अपना सिर कैसे झुका लेता।

"वर्धन सिंह मुझे नहीं लगा था कि तुम्हारे मिश्रा परिवार में ऐसे भी योद्धा है जो मरने से नहीं डरते। आकर्ष जैसे योद्धा बहुत ही कम होते हैं। पर यह तो तुम भी जानते हो कि ऐसे लोगों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती। पर हमें इससे क्या? श्रीकांत ने आकर्ष की दी चुनौती स्वीकार कर ली है, इसलिए हमारा इस मामले पर ज्यादा बात करने का कोई मतलब नहीं है। आहूजा परिवार को आकर्ष के आने का इंतजार रहेगा।"

अभय आहूजा ने हंसते हुए कहा और श्रीकांत के साथ आहूजा परिवार के महल की ओर चल पड़ा।

"कुल प्रमुख...आपको आकर्ष को रोकना चाहिए था। यह तो आप भी जानते हैं कि आकर्ष चाहे कुछ भी कर ले, 3 महीने के बाद श्रीकांत को नहीं हरा सकता।"

आशुतोष ने कहा।

उसे आकर्ष के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उसे डर सिर्फ इस बात का था कि अगर आकर्ष को कुछ हो गया तो वह दिव्य जल कैसे बनाएंगे। बिना दिव्य जल के मिश्रा परिवार ताकतवर नहीं बन पाएगा।

दिव्य जल मिलने के बाद उसके बेटे का ऊर्जा स्तर बहुत तेजी से बढ़ने लगा था। अगर दिव्य जल नहीं होगा तो उसका बेटा पहले के जैसे ही शारीरिक मंडल में फंसा रहेगा।

आशुतोष की बात सुनकर वर्धन सिंह भी चिंतित थे।

उन्होंने आकर्ष की आंखों में कत्ल का भाव देखा था। ऐसा भाव उन्हीं लोगों की आंखों में होता था जिन्होंने कई हजार लोगों को खत्म किया हो। मगर हैरानी वाली बात तो यह थी कि आकर्ष ने आज तक एक मच्छर को भी नहीं मारा था। फिर उसकी आंखों में इतना खतरनाक कत्ल का भाव कैसे आया। आज पहली बार आकर्ष की आंखों को देख वर्धन सिंह तक को डर लग रहा था।

असल में योद्धा आम व्यक्ति से बहुत अलग थे। वह किसी की भी आंखों को देख यह पता लगा सकते थे कि सामने वाला व्यक्ति उनके बारे में कैसे भाव रखता है।

"आशुतोष...मैं इसमें कुछ भी नहीं कर सकता। यह फैसला आकर्ष का है इसलिए उस पर भरोसा रखने के अलावा हम कुछ नहीं कर सकते। उम्मीद करो कि आकर्ष हमेशा की तरह हमें फिर से गलत साबित कर दे। अभी के लिए तुम एक काम करो। जाओ और पता लगाओ कि आकर्ष और प्रणव के बीच में लड़ाई किस बात को लेकर हुई थी। मुझे दोनों पक्ष के पहलू जानने हैं। इसलिए मामले की अच्छे से जांच करना।"

वर्धन सिंह ने कहा।

"जैसी आपकी आज्ञा, कुल प्रमुख"

आशुतोष ने जल्दी से वर्धन सिंह को प्रणाम किया और कमरे से बाहर चला गया। उसके दिमाग में अभी भी आकर्ष ही घूम रहा था।

आकर्ष ने अभिजीत को हराकर अपनी काबिलियत साबित की थी, पर श्रीकांत अलग था। अभिजीत केवल शारीरिक मंडल के चौथे स्तर का योद्धा था, वही श्रीकांत नोवे स्तर का।

शारीरिक मंडल 9 स्तरों में बंटा था जिसमें आकर्ष केवल तीसरे स्तर में था। वह श्रीकांत को कैसे हरा सकता था जो शारीरिक मंडल के शिखर पर खड़ा था।

आकर्ष धीरे-धीरे चलते हुए अपने घर की ओर बढ़ रहा था। उसके पूरे शरीर पर खून  लगा था पर अभी भी उसके चेहरे पर कमजोरी के कोई भाव नहीं थे। जब वह अपने घर पहुंच गया, तब जाकर उसने अपना वह चेहरा दिखाया जिसे उसने सभी से छुपा रखा था। सिर्फ वही जानता था कि इतने समय तक उसने अपने शरीर में मौजूद दर्द को कैसे सहन किया है। उसे खून की उल्टियां होने लगी। वह इतना थक चुका था कि एक कदम भी आगे नहीं रख सकता था। उसे चक्कर आ रहे थे, उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और वह बेहोश होकर वहीं गिर गया।

"मालिक आप ठीक तो है, आपकी ऐसी हालत किसने की?"

दीया, जो कि खाना बना रही थी, जैसे ही उसने आकर्ष को जमीन पर गिरा देखा तो वह भाग कर उसके पास आई और उसे उठाया। वह किसी तरह उसे लेकर उसके कमरे में गई और बिस्तर पर सुलाया। उसकी आंखों में आंसू थे। वह आकर्ष की हालत देख डर गई थी।

उसने रोते हुए कहा...

"मालिक...आपको क्या हुआ है?अपनी आंखें खोलिए"

दीया के रोने की आवाज सुनकर आकर्ष ने अपनी आंखें खोली और धीरे से कहा...

"डरो मत...मुझे कुछ भी नहीं हुआ है। मैं बस थक गया हूं इसलिए थोड़ा आराम करना चाहता हूं।"

उसने जब दीया की आंखों में आंसू देखे, तो अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसके आंसू पोछने लगा।

कुछ समय बाद रेवती भी घर लौट आई जो कि बाजार गई हुई थी। उसने जैसे ही घर के दरवाजे के पास खून देखा तो वह डर गई।

वह भागते हुए सीधे आकर्ष के कमरे में आई और उसकी हालत देख पूछा...

"आकर्ष तुम्हारी यह हालत किसने की?"

"मां चिंता मत करिए...मैं ठीक हूं। मैंने इस बारे में कुल प्रमुख से भी बात की है। मैं इस मामले को अपने आप हल कर लूंगा।"

आकर्ष ने हंसते हुए कहा।

उसकी हालत पहले से बेहतर थी। जब कुल प्रमुख वर्धन सिंह को पता चला था कि आकर्ष बेहोश हो गया है तो उन्होंने वेदांत से कहकर नोवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली भिजवाई थी। जिसके कारण उसके काफी जख्म भर गए थे।

"क्या यह सब अभय आहूजा ने किया है?"

रेवती ने धीरे से पूछा।

"नहीं! उसका नाम श्रीकांत था, जो अभय आहूजा के साथ आया था। पर आप चिंता ना करें, वो ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेगा। उसके पास सिर्फ 3 महीने बचे हैं।"

आकर्ष ने जवाब दिया।

उसकी आंखों में फिर से कत्ल का भाव आ गया था।

कुछ देर अपनी माँ से बात करने के बाद आकर्ष गहरी नींद में सो गया। दरअसल नोवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली में वेदांत ने नींद की दवाई भी मिला दी थी, ताकि आकर्ष गहरी नींद में सो जाए और उसके जख्म ज्यादा जल्दी भर सके।

"दीया तुम आकर्ष का ध्यान रखना, मुझे कुछ काम है।"

रेवती ने दीया से कहा और वर्धन सिंह से मिलने चली गई।

वर्धन सिंह से मिलने के बाद उसे पूरा मामला समझ में आ गया। उसने एक गहरी सांस ली और अपने गुस्से को शांत किया। उसका मन कर रहा था कि वह श्रीकांत को अभी खत्म कर दे। पर आकर्ष के कारण उसने अपने आप को रोक लिया। वह खुद भी देखना चाहती थी कि क्या आकर्ष 3 महीने बाद श्रीकांत को हरा पाएगा।

उसने सोच लिया था कि अगर 3 महीने बाद आकर्ष श्रीकांत को नहीं हरा पाता है तो वह खुद श्रीकांत को खत्म करेगी। चाहे इसके लिए उसे पूरे आहूजा परिवार का सामना ही क्यों ना करना पड़े।

वो अपने बेटे के लिए कुछ भी कर सकती थी।

जल्दी ही पूरे सांची कस्बे में आकर्ष और श्रीकांत के मुकाबले की बात फैल गई।

"क्या तुमने सुना...मिश्रा परिवार के शिष्य आकर्ष ने आहूजा परिवार के एल्डर श्रीकांत को चुनौती दी है कि वह 3 महीने बाद उससे मुकाबला करेगा और सभी के सामने उसे खत्म भी करेगा।"

"हां मैंने इस बारे में सुना है। मैंने तो यह भी सुना है कि आकर्ष ने एक महीने पहले किसी लड़की के लिए आहूजा परिवार के कुल प्रमुख के बेटे प्रणव आहूजा को सभी के सामने मारा था और अभी यह जो मुकाबला होने वाला है यह इसी कारण से हो रहा है।"

"मुझे तो श्रीकांत के लिए बुरा लग रहा है। आकर्ष ने उसके इकलौते बेटे को विकलांग कर दिया है।"

"अच्छा...अभी मुझे याद आया। जब प्रणव आहूजा को आकर्ष ने मारा था तब मैं वहीं पर था। पर उस समय मुझे नहीं लगा था कि जिस लड़के ने उसकी पिटाई की है वह आकर्ष है। वह तो अभी मुश्किल से 16 साल का है और उसने श्रीकांत को चुनौती दे दी?"

"अब हम इसमें क्या कर सकते हैं। शायद आकर्ष को अपना जीवन प्यार नहीं है। श्रीकांत शारीरिक मंडल के नोवे स्तर में है, वहीं आकर्ष ने कुछ समय पहले ही तीसरे स्तर में प्रवेश किया है। वह कुछ भी कर ले श्रीकांत के स्तर तक नहीं पहुंच पाएगा।"

पूरे सांची कस्बे में लोग इसी प्रकार की बातें कर रहे थे।

सभी का यही सोचना था कि आकर्ष का यह आखिरी मुकाबला होगा।

मिश्रा परिवार के सभा कक्ष में इस समय एक आपातकालीन सभा बुलाई गई थी, जिसमें सभी एल्डर्स मौजूद थे। यहां तक की अमन भी इस सभा में मौजूद था जो पिछले कई दिनों से अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था।

सभी एल्डर्स ने सांची कस्बे में हो रही चर्चाओं को सुना था, इसलिए वो सभी डरे हुए थे।

अगर 3 महीने बाद आकर्ष को कुछ भी हो गया तो उनके लिए दिव्य जल कौन बनाएगा?

"कुल प्रमुख अब हम क्या करें?"

वरिष्ठ अमर सिंह, अमन और रेवती को छोड़कर बाकी सभी एल्डर्स मुकाबले के बारे में सुनकर परेशान थे। वो बार-बार वर्धन सिंह से इस मुकाबले को रोकने के लिए कह रहे थे।

"मैं जानता हूं कि तुम सभी लोग क्या चाहते हो! तुम चाहते हो कि मैं यह मुकाबला होने से रोक दूं! पर मैं ऐसा नहीं कर सकता। आहूजा परिवार ने जानबूझकर  इस मुकाबले के बारे में लोगों को बताया है। तुम लोगों ने भी सुना होगा कि सभी लोग इस मुकाबले  के बारे में क्या बात कर रहे हैं। अगर अब हम यह मुकाबला करने से मना करते हैं तो सांची में इतने समय से हमने जो इज्जत कमाई है, वो खत्म हो जाएगी। हमारे पास आकर्ष के ऊपर  भरोसा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। मैंने इस बारे में वरिष्ठ से बात की है। उन्होंने कहा है कि वो आकर्ष को यह मुकाबला जीताने  की हर संभव कोशिश करेंगे।"

वर्धन सिंह की बात सुनकर सभी एल्डर्स उदास होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। वो जानते थे कि समय उनके हाथ से निकल चुका है, इसलिए उन्होंने अपने नसीब को स्वीकार करना ही ठीक समझा।

एक-एक करके सभी एल्डर्स वापस अपने घर की ओर जाने लगे।

इस समय सिर्फ एक एल्डर सबसे ज्यादा खुश था और वह था अमन। उसने हंसते हुए अपने आप से कहा...

"अभिजीत चिंता मत करो, तुम्हारा बदला कोई और लेने वाला है। वो आकर्ष अब ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेगा!"