उसे याद आया की उनके तलाक के बाद उसने गुज़ारे भत्ते के रूप में जिंगे को एक अच्छी खासी रकम दी थी।
बची हुई अपनी पूरी ज़िन्दगी बेहद आराम से व्यतीत करने के लिए वो रकम उसके लिए पर्याप्त होनी चाहिए थी, तो फिर वह उसे इस स्थिति में क्यों मिली थी?
जब से वह अस्पताल से निकला था तब से ही ये प्रश्न उसके मस्तिष्क में छाया हुआ था।
"मुंबई, तुम क्या सोच रहे हो? तेंजिन ने उत्सुकता से पूछा , जिसका मुबाई ने रूखेपन से जवाब दिया,"कुछ नहीं"।
तुम जिंगे के बारे में सोच रहे हो, है न? तेंजिन ने गहरी सांस भरते हुए कहा मैं भी यकीन नहीं कर पा रही हूं की ये वही जिंगे है जिसे हमने वहां देखा। उसने ऐसा जीवन क्यों चुनाजब की उसके पास बेहतर ज़िन्दगी के सभी संसाधन उपलब्ध थे। वह इतनी नीरस क्यों है?
नीरस…. जिंगे की बिलकुल यही छवि मुबाई के मन में थी।
नीरसता कभी कभी आकर्षक हो सकती है लेकिन जिंगे में नीरसता और हठ का घातक मेल था। इसकी वजह से ही मुसीबतें उसका उसके आस पास के लोगों का पीछा नहीं छोड़ती थी।
असल में ये कहा जा सकता है की उसके ज़िद्दी और नीरस स्वभाव ने ही उनके विवाह को असफल किया था।
गुज़ारे भत्ते के रूप में एक अच्छी खासी रकम देने के बाद उसे उस से इस मूर्खता की उम्मीद नहीं थी की वह खुद की देखभाल भी अच्छी तरह नहीं कर पाएगी।
सीधे शब्दों में कहा जाए तो उस दिन शिया जिंगे से हुई मुलाक़ात ने उस पर एक गहरा असर डाला था।
अपने ख्यालों में खोये रहने के कारण मुबाई ने तेंजिन के किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।
शीघ्र ही कार रेस्तरां पहुँच गई।
दोनों के परिवार वहां पहले से ही उपस्थित थे।
चूँकि यह डिनर उनके भावी विवाह संस्कार के विचार विमर्श के लिए था इसलिए इसमें शामिल होने वाले लोगों में दोनों के अभिभावकों के साथ साथ उसका पुत्र, शी लिन, भी शामिल था। वह उसकी और जिंगे की संतान था।
जब उनका तलाक हुआ तब उसकी आयु एक साल थी और अब वह 4 साल का हो चुका था।
"क्यों न हम 2 नवम्बर का दिन विवाह के लिए निश्चित कर लेते, यह एक पवित्र दिन है और हमारे देश का राष्ट्रीय दिवस भी है, मुस्कुराते हुए बुज़ुर्ग श्रीमती 'शी" ने कहा।
तेंजिन की माँ ने ख़ुशी से हामी भरते हुए कहा , "निश्चित रूप से यही दिन ठीक है क्योंकि मैं भी इसी दिन का सुझाव देने वाली थी। मुबाई, तेंजिन क्या यह तिथि तुम दोनों के लिए सुविधाजनक है? "
"जी, बिल्कुल , इस तरह के काम हमेशा माता-पिता के कुशल हाथों में सौंप देना ही ठीक हैं" तेंजिन ने सकुचाते हुए कहा।
"मेरे लिए कोई भी दिन ठीक रहेगा", मुबाई ने कंधे उचकाते हुए कहा।
"ठीक है , फिर दिन निश्चित हो गया। अब हम विवाह की तैयारियों पर पूरा ध्यान दे सकते हैं।
तेंजिन ईश्वर हमारे प्रति बहुत दयालु रहा है , उसकी कृपा से अब तुम हमारी बहू बन जाओगी, " उम्रदराज़ श्रीमती शी ने तेंजिन के दोनों हाथो को अपने हाथो में समटते हुए ख़ुशी से कहा, दोनों आनंद पूर्वक मुस्कुराने लगी।
तेंजिन करीब-करीब उनकी आँखों के सामने ही बड़ी हुई थी। उन्हें तेंजिन का व्यक्तित्व, चरित्र, और खूबियां बहुत ज्यादा पसंद थी।
वो काफी समय से मुबाई को राज़ी करने में लगी हुई थी की वो तेंजिन को शी परिवार का हिस्सा बना ले और आखिरकार अब उनकी ये इच्छा पूरी होने जा रही थी।
खाने की उस मेज पर एक और महिला थी जिसका सपना सच होने जा रहा था और वो थी चू तेंजिन।
ले-देकर शी मुबाई उसके नियंत्रण में था।
आखिरकार वो आदमी उसका होने जा रहा था।
ठीक उसी वक़्त, शी लीन के हाथ से जूस का गिलास छूटा और ज़मीन पर गिर कर टूट गया, पता नहीं कैसे उसने थोड़ा सा जूस अपनी कमीज पर भी गिरा लिया।
"लिन, लिन , तुम्हे थोड़ा ज्यादा सावधान रहना चाहिए", बुज़ुर्ग श्रीमती शी ने उसे हल्की सी डाँट लगाई।
"लिन, लिन, तुम्हे चोट तो नहीं लगी? ", कहते हुए तेंजिन ने अपने हाथ के रुमाल से उसकी कमीज पर गिरे जूस को पोंछना चाहा लेकिन वह उस से बचता हुआ तेज़ी से अपने छोटे छोटे क़दमों से चलता हुआ मुबाई की बाहों में समा गया।
तेंजिन का बढ़ा हुआ हाथ वहीं हवा में रुक गया।
मैं इसे साफ़ कर के ले कर आता हूं, मुबाई ने उसे गोद में उठा कर बाथरूम की तरफ जाते हुए कहा।
बाथरूम में मुबाई ने अपने बेटे को सिंक के बगल में काउंटर पर बिठा दिया।
शी लीन जान बूझ कर हवा में लहराते अपने पैरों की तरफ देखता रहा, उसका दिमाग चकरा रहा था।
मुबाई उसकी कमीज से जूस साफ़ कर ही रहा था की अचानक उसे मुबाई का हाथ तेज़ी से झटक दिया।
"क्या हुआ?, " मुबाई ने उसकी तरफ देखते हुए कोमलता से कहा। डिनर के शुरू से ही तुम कुछ अजीब व्यवहार कर रहे हो, क्या तुम्हे कोई चीज़ परेशान कर रही है?
शी लिन ने बिना कुछ कहे अपना सिर झुका लिया।
जब मुबाई ने बेटे के चेहरे को ऊपर उठाया तो उसने दो दृढ़संकल्प आँखों को अपनी तरफ देखते पाया।