तेंजिन ने आवाज़ में खुशी लाते हुए कहा, "ये तो अच्छी बात है। बहुत देर हो चुकी है, मुबाइ, तुम भी सो जाओ।"
"ओके"
"शुभ रात्रि," तेंजिन ने प्यार से कहते हुए फोन रखा।
मुबाइ ने अपना फोन रखा, रास्ते के किनारे कार रोकी और एक सिगरेट जला लिया।
अपने बाजू से गुजरते हुए कारों के काफिलों के बीच, उसने खुद में चुटकी ली।
क्या हुआ अगर शिया जिंगे गायब हो गई थी, ये क्या मुबाइ की ज़िम्मेदारी थी कि उसे ढूंढता?
वह वयस्क महिला थी, और खुद घर जा सकती थी।
मुबाइ ने कार का रुख घर की ओर मोड़ा, पर एहतियात के तौर पर कुछ लोगों को जिंगे की वर्तमान परिस्थिति का अन्वेषण करने के निर्देश दिए। कम से कम वह यह जान पाता कि वह अभी भी जीवित है कि नहीं और इस बात का अंदाज़ा लगा पाता कि इतने दिन उसपर क्या बीती थी।
उसे यह जानने में दिलचस्पी थी कि इतना बड़ा गुज़ारा भत्ता मिलने के बाद भी ऐसी औरत की ये हालत क्यों हो गई थी।
...
अगली सुबह तड़के ही, मुबाइ को जिंगे के पिछले 3 वर्षों की जानकारी मिली।
तलाक के बाद, उसके चाचा उसे ले गए थे।
पारिवारिक सूत्रों, से उसे पता चला कि चाचा का एक बेटा था और तीनों एकसाथ हिल-मिलकर रहते थे। उनके जीवन में एक अनचाहा मोड़ तब आया, जब शिया चेंगवू को किडनी के रोग का निदान हुआ।
पैसा कमाने के लिए, जिंगे को चौथी श्रेणी के काम करने पड़े।
सफ़ाई, बर्तन धोना, वेट्रेस का काम..जिंगे ने अपना समय हर तरह की मेहनत के काम करके गुज़ारा था।
लेकिन, समाज से जुड़कर रहने की उसकी अनिच्छा के कारण हर कार्यस्थल पर उसका अपमान होता और उसे अलग-थलग किया जाता था। इस कारण वह किसी काम पर एक महीने से ज़्यादा नहीं टिक पाई।
एक मुश्किल कार्य वातावरण से दूसरे में तीन साल यात्रा करने से उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ा था।
मुबाइ को उन दोनों की कल की मुलाकात पर अभी भी आश्चर्य हो रहा था। ऐसा लगता था कि तलाक के बाद वह अपनी उम्र से कहीं अधिक बड़ी दिखने लगी थी।
वह उसे मुश्किल से पहचान सका था।
उन दोनों की कल की मुलाकात न होती, तो उसे पता भी नहीं चलता कि उस बिचारी ने कितनी वेदना और क्रूरता झेली है…
फ़िर भी, मुबाइ को एक बात की हैरानी थी। उसने अपने गुज़ारे भत्ते का उपयोग क्यों नहीं किया?
वह जानता था कि जिंगे बहुत खर्च नहीं करती थी, पर वह होती तब भी इतनी बड़ी राशि इतने कम समय में कैसे खर्च हो सकती थी?
मुबाइ चेहरे पर गंभीर हावभाव के साथ कुर्सी पीछे लेकर बैठा रहा। ऐसा लग रहा था कि उससे कुछ बातें छिपी हुई थीं…
…
जब मुबाइ डाइनिंग रूम में गया, तब उसका पूरा परिवार पहले की नाश्ता कर रहा था।
शी लिन सबसे पहले उठा था, क्योंकि वह कल जल्द ही सो गया था। जब मुबाइ बैठा, तो वह अपना नाश्ता खत्म कर चुका था।
"लिन लिन को मेरे बदले स्कूल ले जाओ," मुबाइ ने एक परिचारिका को आदेश दिया।
"जी, सर," आदेश का पालन किया गया। वह शी लिन हा हाथ पकड़कर कमरे से बाहर ले गई।
बूढ़ी श्रीमती शी ने अपनी बाजरे की लाप्सी को धीरे से पोर्सलेन के चम्मच से उठाया और पूछा, "कल तुम अचानक क्यों निकल गए? तुम जानते हो हम तुम्हारे लिए आए थे? ऐसी स्थिति में तुमने अपने मॉं-बाप को क्यों छोड़ा।"
"क्या मैंने कॉल करके नहीं कहा था कि लिन लिन की तबियत ठीक नहीं है? वैसे मां…" मुबाइ ने अपनी मॉं को देखकर कहा और उसका प्रश्न गले में ही अटक गया।
बूढ़ी श्रीमती शी ने उसे मुस्कुराकर प्रोत्साहित करते हुए कहा "हॉं?"
मुबाइ बोलता रहा, "क्या जिंगे ने हमारे तलाक के बाद गुज़ारा भत्ता स्वीकार किया था?"
बूढ़ी श्रीमती शी का चम्मच हवा में ही थम गया और उसका चेहरा उतर गया…
उसकी प्रतिक्रियाओं से, मुबाइ फौरन जान गया कि उसके प्रश्न का उत्तर नकारात्मक था।
"अगर आपने उसे भत्ता नहीं दिया, तो मुझे बताया क्यों नहीं?" उसे लग रहा था कि जिंगे पैसा लेकर आराम से रह रही है। इसीलिए उसके मन में जांच करने का ख्याल न आया।
उन दोनों की कल की मुलाकात न होती, तो वह आज भी अंधेरे में रहता…
बूढ़ी श्रीमती शी का चेहरा उतर गया। उसने कंधे उचकाए, "ऐसा नहीं है कि मैंने उसे भत्ता दिया नहीं, उसे चाहिए नहीं था।"
"फ़िर भी आप मुझे बता सकती थीं।"
"क्यों? अब उसक शी परिवार से कोई ताल्लुक नहीं। अच्छा हुआ कि यह रिश्ता पूरा खत्म हो गया। अगर वह हमारी मदद नहीं चाहती, तो मैं तो कहूंगी अच्छा हुआ, जान छूटी।"