सभी की नजरे अपने ऊपर देख रेवती ने धीमी आवाज में बताना शुरू किया।
"1 महीने पहले जब रवि ने मेरे बेटे आकर्ष को घायल किया था तब एक वैद्य उससे मिलने आए थे। उन्होंने अपनी पहचान के बारे में तो कुछ भी नहीं बताया पर आकर्ष को देखने के बाद वो उसे अपना शिष्य बनाना चाहते थे। उन्होंने कहा था कि आकर्ष एक अच्छा वैद्य बन सकता है। वह उसे सब कुछ सीखा सकते हैं मगर उनकी बस एक शर्त है कि आकर्ष उनका शिष्य बने। जब आकर्ष ने उन्हें अपना मास्टर मान लिया तो उन्होंने उसे एक दिव्य जल बनाना सिखाया, जिससे आकर्ष शारीरिक मंडल में तेजी से वृद्धि कर सकता है। उसकी ऊर्जा शारीरिक मंडल के बाकी योद्धाओं की तुलना में कई गुना तेजी से वृद्धि करेगी। पहले तो मुझे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ पर जब आकर्ष ने उस दिव्य जल का इस्तेमाल किया तो उसके शरीर में विशेष परिवर्तन होने लगे। उसके बाद जो कुछ भी हुआ वह सब आपके सामने है।"
'ऐसा दिव्य जल जो शारीरिक मंडल के योद्धाओं की ऊर्जा में तेजी से वृद्धि कर सकता है'
रेवती की बात सुनकर सारे एल्डर्स चुप हो गए। यहां तक की अमन भी अब कुछ नहीं बोल रहा था। कुछ समय के लिए पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया।
"बस करो रेवती!!! यह क्या मजाक लगा रखा है? क्या तुम हम सबको पागल समझती हो? मैं अच्छे से जानता हूं कि यह सब तुम्हारी चाल है ताकि अपने बेटे को बचा सको। कैसा वैद्य...कैसा दिव्य जल...क्या ऐसा दिव्य जल बनाना संभव भी है? एक पल के लिए चलो मान लेते हैं कि तुमने जो कुछ भी कहा है वह सब सच है, तो आज से पहले हम सब में से किसी ने भी इस दिव्य जल के बारे में क्यों नहीं सुना?"
अमन ने कर्कश आवाज में कहा।
"वरिष्ठ आप एक नोवे स्तर के वैद्य है। कृपया आप एक बार इस निर्माण विधि को पढ़ें। यह निर्माण विधि उस दिव्य जल की है जो आकर्ष को उसके मास्टर से मिली थी। इसे देखने के बाद आपको आपके सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। यह विधि स्पष्ट तो नहीं है पर मुझे उम्मीद है कि आप इसे काफी हद तक समझ सकते हैं।"
रेवती ने एक कागज की पर्ची वरिष्ठ को देते हुए कहा।
उसने अमन को हमेशा की तरह नजरअंदाज किया। वह जानती थी कि जब तक उसके पास कोई सबूत नहीं है तब तक वह अपनी बातों को सिद्ध नहीं कर सकती।
रेवती की बात सुनकर वरिष्ठ अमर सिंह ने वह पर्ची खोली और उसे पढ़ने लगे।
"अद्भुत...अद्भुत...मैंने कभी नहीं सोचा था कि इन 6 औषधीय को मिलाकर इस प्रकार का दिव्य जल बनाना भी संभव है जो शारीरिक मंडल के योद्धाओं को जल्दी से चक्र मध्य मंडल में प्रवेश करने में सहायक होगा। इसके अलावा इस दिव्य जल का निर्माण करना भी आसान है। सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि जिन 6 औषधीय का इस्तेमाल करके यह दिव्य जल बनाया जाता है वह बहुत ही साधारण है और आसानी से मिल सकती है यानि तुम में से कोई भी अपने बेटे के लिए इस दिव्य जल का उपयोग कर सकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस दिव्य जल के कारण ही आकर्ष शारीरिक मंडल के पहले स्तर से तीसरे स्तर में प्रवेश कर पाया है।"
अमर सिंह ने सभी को वह पर्ची दिखाते हुए कहा।
उनकी आंखों में इस समय एक अलग ही चमक थी। वह बड़ी रुचि के साथ बार-बार उस निर्माण विधि को देख रहे थे।
मिश्रा परिवार के बाकी सभी एल्डर्स भी अमर सिंह की बात सुनकर लालची नजरों से उसे निर्माण विधि की ओर देखने लगे। पहले उनमें से किसी को भी रेवती की बात पर भरोसा नहीं था। पर अमर सिंह की बात सुनने के बाद उनके सारे संदेह दूर हो गए थे।
वो सभी अब बहुत ज्यादा खुश थे। यह दिव्य जल उनके बच्चों का भविष्य बदल सकता था। उनका मिश्रा परिवार इस दिव्य जल के बल पर बहुत जल्द पूरे सांची का सबसे शक्तिशाली परिवार बन सकता था।
"कुल प्रमुख"
वरिष्ठ अमर सिंह ने गंभीर भाव से कुल प्रमुख वर्धन सिंह की ओर देखा।
कुल प्रमुख वर्धन सिंह, वरिष्ठ अमर सिंह का इशारा समझ गए। वह जानते थे कि उनके पास यह सुनहरा मौका बार-बार नहीं आने वाला है।
उन्होंने एक गहरी सांस ली और रेवती से पूछा...
"रेवती मैं तुमसे कुछ जानना चाहता हूं। जैसा कि तुमने बताया यह दिव्य जल आकर्ष के मास्टर ने आकर्ष को बनाना सिखाया था तो क्या आकर्ष यह दिव्य जल बन सकता है?"
"बिल्कुल...पिछले 1 महीने से आकर्ष ही यह दिव्य जल बना रहा है।"
रेवती ने अपना सिर सहमति में हिलाते हुए कहा।
रेवती का जवाब सुनकर एक बार फिर से पूरे कमरे में शांति छा गई।
सभी एल्डर्स की कुछ संताने थी। अगर उन सब को यह दिव्य जल दिया जाता है तो वह समय दूर नहीं होगा जब मिश्रा परिवार सांची का सबसे शक्तिशाली परिवार बन जाएगा।
"रेवती जब तुम्हारे बेटे आकर्ष के पास इतनी कीमती निर्माण विधि है तो उसे यह निर्माण विधि परिवार के सभी सदस्यों को देनी चाहिए। इससे हमारा पूरा परिवार शक्तिशाली बनेगा। आप सबका इस बारे में क्या सोचना है?"
अमन ने सभी की ओर देखते हुए पूछा।
"बिल्कुल सही कहा। अमन मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं। ऐसा कीमती दिव्य जल तो परिवार के सभी सदस्यों को मिलना चाहिए जो शारीरिक मंडल में है।"
आशुतोष ने अमन का पक्ष लेते हुए कहा।
हा हा हा हा हा हा
इससे पहले की रेवती कोई जवाब दे पाती, सभी को कमरे के बाहर से एक हंसी की आवाज सुनाई दी।
"कुल प्रमुख...क्या मैं इस सभा का हिस्सा बन सकता हूं?"
सभी का ध्यान अचानक से आवाज की ओर गया।
दरवाजे के ठीक सामने आकर्ष खड़ा था।
उसको कमरे में आया देख सभी एल्डर्स की आंखें चमक उठी। आज से पहले आकर्ष उनके परिवार का हिस्सा नहीं था। पर अब सबकुछ बदल गया था। आकर्ष अब उनके लिए वह सूरज बन चुका था जिसकी रोशनी उनके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना सकती थी।
"बिल्कुल...तुम भी इस सभा का हिस्सा बन सकते हो।"
वर्धन सिंह ने हल्का मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"आशुतोष...मेरे कान खराब हो गए हैं या मैंने सही सुना है। तुमने अभी कहा कि मुझे दिव्य जल और उसकी निर्माण विधि पूरे परिवार के साथ साझा करनी चाहिए जिससे पूरे परिवार को लाभ मिल सके।"
आकर्ष ने कठोर आवाज में आशुतोष से पूछा।
"तुमने बिलकुल सही सुना है। मैं जानता हूं कि तुम मिश्रा परिवार का हिस्सा नहीं हो। पर इसके बाद भी तुम रहते तो मिश्रा परिवार के घर में ही हो। तुम हमारे परिवार का खाना खाते हो और तुमने अभी जो कपड़े पहन रखे हैं वह भी हमारे परिवार के पैसे से खरीदे गए हैं। तुम्हें नहीं लगता अब तुम्हें हमारा एहसान चुकाना चाहिए।"
आशुतोष ने कहा।
"तुम कौन से एहसान की बात कर रहे हो? मेरे कपड़े, खाना और घर...तीनों मेरी मां के पैसों से खरीदे गए हैं और यह पैसे मेरी मां ने तुम्हारे मिश्रा परिवार के लिए काम करके कमाए हैं। इस भूल में मत रहना कि सिर्फ तुम्हारा मिश्रा परिवार ही हमें पैसे दे सकता है। हम आहूजा परिवार के लिए काम करके भी पैसे कमा सकते हैं।"
आकर्ष ने हंसते हुए कहा।
"आकर्ष तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे परिवार को धोखा देने की। तुम हमसे गद्दारी करना चाहते हो!"
अमन ने आकर्ष पर आरोप लगाते हुए कहा।
"मैं परिवार से गद्दारी कर रहा हूं! अमन मैं जानता हूं कि तुम मुझसे नफरत करते हो क्योंकि मैंने तुम्हारे बेटे रवि और अभिजीत दोनों को विकलांग कर दिया है। पर इसके लिए तुम मुझ पर गद्दारी का आरोप नहीं लगा सकते। मैंने उन दोनों को अखाड़े में सबके सामने हराया है। तुम बस उनका बदला लेने के लिए मुझ पर झूठा आरोप लगा रहे हो।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
"मैं कोई झूठा आरोप नहीं लग रहा, तुमने खुद अभी कहा कि तुम आहूजा परिवार के लिए काम कर सकते हो। यह परिवार से गद्दारी नहीं तो और क्या है?"
आकर्ष को अपने ऊपर हंसता देख अमन ने चिल्लाते हुए कहा।
"मुझे नहीं लगा था कि तुम सच में इतने बड़े मूर्ख हो। यहां मौजूद सभी लोग जानते हैं कि मैंने वह बात सिर्फ आशुतोष को यह समझाने के लिए कही थी कि मिश्रा परिवार ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है। अगर मैं आज यहां पर खड़ा हूं तो वह सिर्फ मेरी मां की वजह से। मैं तुम लोगों के साथ सिर्फ इसलिए रह रहा हूं क्योंकि तुम मेरी मां के परिवार का हिस्सा हो।"
आकर्ष ने गुस्सा होते हुए कहा।
"आशुतोष...अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे बेटों के लिए दिव्य जल बनाऊं, तो आगे से मुझे कुछ भी कहने से पहले 10 बार सोचना। कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारी कही कोई बात हमारे परिवार के रिश्तों में कड़वाहट ले आए। तुम चाहो तो इसे सलाह या चेतावनी में से कुछ भी समझ सकते हो।"
आकर्ष ने आशुतोष की ओर देखते हुए कहा।
'सलाह या चेतावनी'
आकर्ष ने दो शब्दों का प्रयोग जरूर किया था पर वहां मौजूद सभी लोग जानते थे कि यह कोई सलाह नहीं है। यह चेतावनी है।
आकर्ष की बात सुनकर आशुतोष का चेहरा उतर गया। उसने तुरंत अपना मुंह बंद कर दिया। वह जानता था कि अगर उसने कुछ भी कहा तो उसके बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। सूरज सिर्फ रोशनी ही नहीं देता, समय आने पर वह जला भी सकता है और आशुतोष के लिए यह समझना मुश्किल नहीं था कि वह सूरज आकर्ष ही है।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद आकर्ष ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा...
"अगर तुम लोग यह सोच रहे हो कि मैं तुम सबके लिए यह दिव्य जल बनाऊंगा, तो तुम गलत हो। मेरे मास्टर ने मुझे इसके लिए साफ मना किया है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा है कि अगर कोई मुझसे यह दिव्य जल या इसकी निर्माण विधि छीनने की कोशिश करेगा तो वह उसे अपने हाथों से खत्म करेंगे।"
आकर्ष ने सभी की ओर गंभीरता से देखते हुए कहा।
आकर्ष की बात सुनकर सभी एल्डर्स की सांसे तेज हो गई। अब जाकर उन्हें याद आया था कि रेवती ने पहले भी आकर्ष के मास्टर के बारे में बताया है। अगर वह व्यक्ति दिव्य जल बन सकता है तो उसकी खुद की ताकत कितनी होगी। निर्माण विधि के चक्कर में वह सब यह भूल गए थे कि आकर्ष के साथ उसका मास्टर है।
"आकर्ष तुम्हारे मास्टर कौन से स्तर के वैद्य है?"
वरिष्ठ अमर सिंह ने उत्सुक होकर पूछा।
दिव्य जल के निर्माण विधि देखने के बाद वह इतना तो समझ गए थे कि आकर्ष का मास्टर उनसे उच्च स्तर का वैद्य है। अगर उनका सोचना सही हुआ तो वह अपने बेटे वेदांत को भी आकर्ष के मास्टर का शिष्य बनने को कहेंगे। अमर सिंह की तरह उनका बेटा वेदांत भी एक वैद्य था। पर उसने अभी वैद्य के किसी भी स्तर में प्रवेश नहीं किया था। अमर सिंह अब काफी बुजुर्ग हो चुके थे और ज्यादा दवाइओं का निर्माण नहीं करते थे। इसलिए मिश्रा परिवार के एकमात्र वैद्य के रूप में वेदांत को ही जाना जाता था।
"वरिष्ठ मुझे उनके स्तर के बारे में तो कोई भी जानकारी नहीं है, पर एक बार जब वह एक दवाई का निर्माण कर रहे थे तो मैंने उनकी आंतरिक ऊर्जा से बनी आग को देखा था। वह एक सुनहरे रंग की आग थी।"
आकर्ष ने अपनी आंखें बंद की और कुछ याद करने का दिखावा करने लगा।
"क्या!!!"
आकर्ष का जवाब सुनकर अमर सिंह अचानक अपनी जगह से खड़े हो गए और चिल्लाते हुए बोले।
"सातवें स्तर का वैद्य"
'आकर्ष का मास्टर सच में सातवें स्तर का वैद्य है'
अमर सिंह की बात सुनकर मिश्रा परिवार के सभी एल्डर्स चौंक पड़े।
वर्धन सिंह ने सभी को शांत करते हुए अमर सिंह की ओर देखा और पूछा...
"वरिष्ठ...क्या आपको पूरा भरोसा है कि आकर्ष के मास्टर एक सातवें स्तर के वैद्य है।"
"बिल्कुल...मुझे कोई भी संदेह नहीं है। कोई भी वैद्य सुनहरे रंग की आग उस समय ही उत्पन्न कर सकता है जब वह वैद्य के सातवें स्तर में प्रवेश करें। इसके अलावा अगर मेरा सोचना सही है तो आकर्ष के मास्टर सृष्टि मंडल के सातवें स्तर में भी प्रवेश कर चुके हैं।"
"सृष्टि मंडल का योद्धा"
"सातवें स्तर का वैद्य"
अमर सिंह की बात सुनकर सभी एल्डर्स के माथे से पसीना आने लगा।
सृष्टि मंडल...चक्र मध्य मंडल से आगे का मंडल था। मिश्रा परिवार के सबसे ताकतवर योद्धा वरिष्ठ अमर सिंह थे जिन्होंने कुछ समय पहले ही चक्र मध्य मंडल के छठे स्तर में प्रवेश किया था। अब उन्हें समझ आ गया था कि आकर्ष के मास्टर ने क्यों कहा था कि अगर कोई आकर्ष से दिव्य जल की निर्माण विधि छीनने कोशिश करेगा, तो वह खुद उसे अपने हाथों से मारेंगे। आकर्ष के मास्टर सृष्टि मंडल के सातवें स्तर के योद्धा थे। वह चाहे तो अपनी एक उंगली से पूरे मिश्रा परिवार को खत्म कर सकते थे। उनके परिवार में से किसी ने भी आज तक सातवें स्तर के वैद्य को नहीं देखा था।
"इस आकर्ष की किस्मत इतनी अच्छी क्यों है?"
अमन ने दांत पीसते हुए अपने आप से कहा।
"कुल प्रमुख...मुझे कुछ काम है। इसलिए अभी मुझे जाना होगा। अगर आप में से कोई भी दिव्य जल बनवाना चाहता है तो वह आवश्यक सामग्री लेकर मेरे पास आ सकता है। अच्छा हां... मैं तो भूल ही गया था कुल प्रमुख आपके पास अमन और आशुतोष के दिए 1000 चांदी के सिक्के जमा है। अब क्योंकि मैं शर्त जीत चुका हूं तो आपको नहीं लगता कि वह सिक्के आपको मुझे दे देने चाहिए।"
आकर्ष ने कुल प्रमुख वर्धन सिंह की ओर देखते हुए कहा।
वर्धन सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी जेब से एक थैली निकाल कर आकर्ष को दे दी।
सिक्के मिलने के बाद आकर्ष तुरंत कमरे से बाहर चला गया।
वैसे उसने आज सभा में जो दिव्य जल और उसकी निर्माण विधि दिखाई थी वह वास्तविक निर्माण विधि नहीं थी। यह एक दूसरे दिव्य जल की निर्माण विधि थी जिसे 'सम शारीरिक दिव्य' जल कहा जाता था। वह कोई मूर्ख नहीं था कि अपना इतना कीमती दिव्य जल दूसरों को इतनी आसानी से दे दे।
"कुल प्रमुख...वरिष्ठ...अभिजीत को अब होश आ गया होगा इसलिए मुझे जाने की आज्ञा दे।"
अमन ने दुखी होते हुए कहा। उसके दोनों बेटे विकलांग हो गए थे लेकिन उसे कोई भी न्याय नहीं मिला। यहां तक की उसके सबसे करीबी आशुतोष ने भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए उससे दूरी बना ली थी। सभी ने उसका साथ छोड़ दिया था।
"मुझे भी जाने की आज्ञा दें।"
रेवती ने कहा।
उसे डर था कि अमन कहीं गुस्से में उसके बेटे आकर्ष को कुछ करना दे।
अमन और रेवती के कमरे से बाहर जाने के बाद वर्धन सिंह अमर सिंह और बाकी सभी एल्डर्स मिलकर इस बारे में विचार करने लगे कि उन्हें दिव्य जल के संबंध में आगे क्या करना चाहिए।
वह सब नहीं चाहते थे कि इस दिव्य जल के बारे में बाहर के लोगों को पता चले। इसलिए वर्धन सिंह द्वारा यह निर्णय किया गया कि आज की सभा में मौजूद एल्डर्स के बच्चों के अलावा, किसी को भी यह दिव्य जल नहीं दिया जाएगा।
"कुल प्रमुख...आज की सभा में आकर्ष को कोई सजा नहीं मिली है और इस बात से अमन बहुत दुखी है। कहीं उसने गुप्ता या आहूजा परिवार में से किसी को इस बारे में बता दिया, तो वह लोग किसी भी कीमत पर इस दिव्य जल को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे। चाहे उनके सामने आकर्ष के मास्टर ही क्यों न खड़े हो।"
सोमदत्त ने कहा।
"हां कुल प्रमुख... मैं भी सोमदत्त की बात से सहमत हूं। गुप्ता और आहूजा परिवार कितने लालची है यह तो हम सभी पहले से जानते हैं। मुझे नहीं लगता कि उनके मन में आकर्ष के मास्टर को लेकर ज्यादा डर होगा।"
आशुतोष ने डरते हुए कहा।
जैसे उसने अपनी बात पूरी की, तो उसने देखा कि सोमदत्त उसकी तरफ बड़े विचित्र भाव से देख रहा है।
आशुतोष समझ गया कि सोमदत्त इस समय क्या सोच रहा है। इसलिए उसने धीरे से कहा...
"अगर मैं तुम्हारा साथ नहीं दूंगा तो मेरे बेटे का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। इतना तो मुझे भी पता है कि तुम और आकर्ष कितने करीब हो। मैं बेवजह कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता।"
वो और सोमदत्त दोनों एक दूसरे के विरोधी थे। दोनों कभी भी एक बात पर सहमत नहीं हुए। पर आज सवाल उसके बेटे का था इसलिए उसने समझौता करना ठीक समझा।
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