"दीया तुम्हें कैसी तलवार चाहिए?"
आकर्ष ने बाजार की ओर जाते हुए दीया से पूछा।
वह इस बार मुख्य रूप से केवल दीया के लिए तलवार खरीदने बाजार जा रहा था। दीया पिछले 1 महीने से बर्फीली तलवार तकनीक का अभ्यास कर रही थी और इस युद्ध कला में महारत हासिल करने के लिए उसे एक तलवार की जरूरत थी।
वैसे इसके लिए पहले दीया का चक्रमध्य मंडल में प्रवेश करना जरूरी था। लेकिन आकर्ष चाहता था कि दीया पहले तलवारबाजी सीख ले ताकि चक्रमध्य मंडल में प्रवेश करने के बाद वह तलवार का इस्तेमाल आसानी से कर सके।
वैसे भी तलवार एक ऐसा हथियार था जिसका प्रयोग लगभग सभी योद्धा करते थे।
"मालिक...मुझे तलवारों के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपनी पसंद की कोई तलवार देख ले जिसका उपयोग करना मेरे लिए आसान हो।"
दीया ने धीमी आवाज में कहा।
आकर्ष को दीया का कहना सही लगा।
थोड़ी देर चलने के बाद वह दोनों मिश्रा परिवार के बाजार में पहुंच गए। भीड़ की दृष्टि इस समय उन पर ही थी। जल्दी ही आकर्ष इसका कारण समझ गया। असल में भीड़ उन दोनों को नहीं सिर्फ दीया को देख रही थी। उसकी सुंदरता ने उन सबको आकर्षित कर लिया था। वह सब आकर्ष से ईर्ष्या करने लगे थे।
आकर्ष इस समय कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था इसलिए उसने दीया का हाथ पकड़ा और पास ही की एक दुकान में चला गया।
"आकर्ष...आप यहां। बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?"
जैसे ही आकर्ष ने दुकान में प्रवेश किया तो उसी की उम्र का एक लड़का भागता हुआ उसके सामने आया और उससे वहां पर आने का कारण पूछने लगा।
"तुम मुझे जानते हो!"
आकर्ष ने उस लड़के से पूछा।
"बिल्कुल...मैं भला आपको कैसे नहीं जानूंगा। आपके और अभिजीत के मुकाबले को देखने के लिए तो मैंने आज दुकान से आधे दिन की छुट्टी भी ली थी। आप सच में बहुत ताकतवर हैं अभिजीत आपके सामने कुछ भी नहीं है।"
उस लड़के ने आकर्ष की प्रशंसा करते हुए कहा।
"ऐसा कुछ भी नहीं है। समय ने मेरा साथ दिया वरना शायद अभिजीत की जगह में होता। यह सब छोड़ो! मुझे बताओ क्या तुम्हारे पास कोई अच्छी तलवार है। मुझे एक तलवार खरीदनी है।"
आकर्ष ने ज्यादा देरी न करते हुए अपने वहां पर आने का कारण बताया।
"आकर्ष क्या आप यह तलवार खुद के लिए खरीद रहे हैं?"
उस लड़के ने उत्सुक होकर पूछा।
"नहीं! मैं अपने लिए तलवार नहीं खरीद रहा बल्कि यह तलवार तो मेरी दीया के लिए है।"
आकर्ष ने जवाब दिया।
आकर्ष का जवाब सुनकर दीया का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि आकर्ष ने अभी उसे 'मेरी दीया' कहा है।
"मेरे पास कुछ तलवार हैं जो शायद आपको पसंद आए। कृपया मेरे साथ चलें।"
उस लड़के ने पहले दीया की ओर देखा फिर आकर्ष से कहा।
दीया को देखने के बाद उसने अपनी नज़रें उस पर से तुरंत हटा ली थी। उसे डर था कि कहीं आकर्ष उसकी इस हरकत से गुस्सा ना हो जाए।
वह लड़का आकर्ष और दीया को लेकर एक दूसरे कमरे में आया और उनके सामने कुछ तलवारे रख दी। बीच-बीच में वह अभी भी दीया की ओर ही देख रहा था।
आकर्ष के पास लक्ष की यादें थी इसलिए एक झलक में ही वह पहचान गया था कि वहां मौजूद तलवारों की गुणवत्ता कैसी है। थोड़ी देर में ही उसे एक तलवार पसंद आ गई।
यह तलवार आकार में बहुत छोटी और चमकदार थी। पर सिर्फ इसी कारण से आकर्ष ने इसको नहीं चुना था। इस तलवार को चुनने का सबसे बड़ा कारण था 'उक्कू'।
यह एक प्रकार का लोहा था जिससे बने हथियार बहुत ज्यादा ताकतवर होते थे। इसके अलावा यह लोहा उक्कू बहुत ज्यादा दुर्लभ भी था। किसी भी खदान से उक्कू का निकलना लगभग नामुमकिन था। उक्कू लोहे का सबसे शुद्ध रूप था। 10 ग्राम उक्कू की कीमत 1000 चांदी के सिक्कों से भी ज्यादा थी। जो लोग हथियार बनाते थे यानी हथियार शिल्पकार उनके अनुसार 10 ग्राम उक्कू को 60 से 70 ग्राम सामान्य लोहे में बदला जा सकता था।
अपने सामने इतनी दुर्लभ धातु को देख आकर्ष के हृदय की गति एकदम से तेज हो गई।
"आकर्ष...आपके सामने रखी यह तलवार बाकी सभी तलवारों से थोड़ी महंगी है क्योंकि यह बहुत चमकदार है। इसके निर्माण में लोहे के साथ दूसरी धातुओं का भी इस्तेमाल हुआ है। इस कारण यह बाकी तलवारों की तुलना में बहुत ज्यादा मजबूत भी है।
उस लड़के ने तलवार की विशेषता बताते हुए कहा।
"लोहे के साथ दूसरी धातुओं का इस्तेमाल"
उस लड़के की बात सुनकर आकर्ष मन ही मन में हंसने लगा। उसने कभी नहीं सोचा था कि इस दुकान में उसे उक्कू मिल जाएगा और दुकान का मालिक भी उसे एक सामान्य धातु समझ लेगा।
उक्कू और दूसरी धातु जैसे एल्यूमिनियम और स्टील दिखने में एक जैसे जरूर थे पर दोनों के बीच का अंतर काफी बड़ा था। एक उक्कू से बनी तलवार 500 एल्यूमिनियम और स्टील की तलवारों को नष्ट कर सकती थी। अगर कोई योद्धा उक्कू से बनी तलवार का इस्तेमाल अपनी आंतरिक ऊर्जा के साथ करता तो उसे हराना और भी मुश्किल हो जाता।
आकर्ष का नसीब बहुत अच्छा था। उसे यह दुर्लभ धातु बहुत आसानी से मिल गई थी।
वैसे इसमें दुकान के मालिक की कोई गलती नहीं थी। उक्कू के बारे में बहुत ही कम हथियार शिल्पकारों को पता था।
"इस तलवार की क्या कीमत है?"
आकर्ष ने अपने मन को शांत करते हुए उसे लड़के से पूछा।
"200 चांदी के सिक्के"
"आकर्ष क्योंकि आप मिश्रा परिवार का हिस्सा है इसलिए मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा। यह तलवार वास्तव में स्टील की तलवार से थोड़ी कमजोर है। इसलिए आप मुझे 180 चांदी के सिक्के दे दीजिए।"
उस लड़के ने कहा।
"दीया...तुम्हें यह तलवार कैसी लगी? क्या यह तुम्हें पसंद है?"
आकर्ष ने दीया से पूछा।
"मालिक...यह तलवार बहुत ज्यादा महंगी है। क्या आप सच में इसे खरीदना चाहते हैं?"
दीया को तलवार पसंद जरूर आई थी। पर वह आकर्ष की आर्थिक स्थिति भी जानती थी। वो नहीं चाहती थी कि आकर्ष उसके लिए ऐसे पैसे बर्बाद करे।
दीया की बात सुनकर आकर्ष हंसने लगा। दीया के अनुसार एक सामान्य तलवार के लिए 180 चांदी के सिक्के बहुत ज्यादा थे। पर उसे यह पता नहीं था कि यह तलवार उक्कू से बनी है। अगर पता होता तो वह आकर्ष को यह तलवार खरीदने से मना नहीं करती।
"ठीक है...मैं यह तलवार खरीदना चाहता हूं। पर मेरे पास अभी इतने ज्यादा चांदी के सिक्के नहीं है। क्यों ना तुम अभी मुझे यह तलवार दे दो। मैं बाद में अपनी मां से कह कर तुम्हें पैसे दिलवा दूंगा।"
आकर्ष ने उस लड़के से पूछा।
"जी जरूर। मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है।"
उस लड़के ने भी तुरंत सहमति में अपना सिर हिलाया। आकर्ष मिश्रा परिवार के एल्डर रेवती का बेटा था। इसलिए उस लड़के को बिल्कुल भी डर नहीं था कि आकर्ष अपनी बात से पलट जाएगा।
"दीया यह तुम्हारी पहली तलवार है। तुम्हें इसका अच्छे से ध्यान रखना होगा। जो भी योद्धा तलवारबाजी सीखते हैं उनके लिए उनकी तलवार सबसे जरूरी होती है।"
आकर्ष ने उक्कू से बनी वह तलवार दीया को देते हुए कहा।
"जी मालिक"
दीया ने धीमी आवाज में जवाब दिया। उसे वह तलवार बहुत पसंद आई थी और इससे भी ज्यादा जरूरी उसके लिए यह था कि यह तलवार उसको आकर्ष ने खरीद कर दी है। आकर्ष से संबंधित हर वस्तु उसके लिए बहुत कीमती थी।
तलवार खरीदने के बाद आकर्ष ने बाजार से दीया के लिए कुछ जरूरी सामान खरीदा और वापस अपने घर की ओर चल पड़ा।
वह अपने घर में प्रवेश करने वाला ही था तभी उसका ध्यान एक परछाई पर गया। यह परछाई उसका पीछा पूरे दिन से कर रही थी। मिश्रा परिवार के बाजार, उस तलवार वाली दुकान और अब उसके घर तक। सब जगह वह परछाई उसके साथ थी। जैसे ही आकर्ष ने उसे परछाई की ओर देखा तो वह परछाई गायब हो गई।
"क्या हुआ मालिक?"
आकर्ष को एक ही जगह खड़ा देख दीया ने पूछा।
"कुछ नहीं!"
आकर्ष ने बात बदलते हुए कहा। वह नहीं चाहता था कि दीया बेवजह परेशान हो।
उस परछाई ने अपने आप को अच्छे से छुपा रखा था लेकिन फिर भी आकर्ष ने उसे पहचान लिया था। वह व्यक्ति आहूजा परिवार से था। जो उस पर नजर रख रहा था।
आकर्ष नहीं चाहता था कि वह परछाई सचेत हो। इसलिए उसने ऐसे व्यवहार किया जैसे उसने उस परछाई को अभी तक नहीं देखा है।
उसने दीया का हाथ पकड़ा और अपने घर के अंदर चला गया।
ठीक इसी समय मिश्रा परिवार के एक कमरे में, परिवार के सभी एल्डर्स की एक सभा आयोजित की गई थी। जिसमें परिवार के कुल प्रमुख वर्धन सिंह और वरिष्ठ अमर सिंह भी मौजूद थे। इस सभा में अमन भी मौजूद था जो बार-बार रेवती की ओर गुस्से से देख रहा था।
"मुझे अच्छा लगा कि तुम सभी इस सभा में आए। आज का हमारा मुद्दा है आकर्ष और अभिजीत का मुकाबला। तुम सभी ने देखा था कि आकर्ष ने अभिजीत की रीड की हड्डी तोड़ दी है। अभिजीत हमारे परिवार का भविष्य था इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि आप लोगों का इस बारे में क्या सोचना है।"
कुल प्रमुख वर्धन सिंह ने निष्पक्ष होते हुए पूछा।
वर्धन सिंह की बात सुनकर सभी एल्डर्स वरिष्ठ अमर सिंह की ओर देखने लगे। वह सभी जानना चाहते थे कि इस बारे में अमर सिंह के क्या विचार है। अगर अमर सिंह इस बारे में कुछ भी नहीं कहते हैं तो वह सब आकर्ष पर आसानी से आरोप लगा सकते हैं।
सभी की नजरे अपने ऊपर देख अमर सिंह ने कहा...
"मुझे लगता है कि हमें आकर्ष को सजा देनी चाहिए। वह इतनी छोटी उम्र में इतना निर्दयी है। पता नहीं आगे जाकर वह क्या बन जाए?"
"वरिष्ठ आप सच में न्याय की मूर्ति हैं। आपने सही फैसला लिया है। मैं भी आपके फैसले से सहमत हूं।"
आशुतोष ने अमर सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा। वह बीच-बीच में सोमदत्त की ओर भी देख रहा था। अब यह कह पाना मुश्किल था कि उसके सोमदत्त की ओर देखने का कारण क्या था आकर्ष या शर्त में हारे हुए चांदी के सिक्के।
आशुतोष ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा...
"आज आकर्ष ने मिश्रा परिवार के नियमों का उल्लंघन किया है। उसने अपने ही परिवार के लोगों को हानि पहुंचाई है। अगर हमने उसे ऐसे ही जाने दिया तो वह फिर से ऐसी गलती करेगा। क्या पता कल वह आप में से किसी के बेटे को घायल कर दे। हमें उसे ऐसी सजा देनी चाहिए ताकि आगे से कोई भी हमारे मिश्रा परिवार के लोगों पर हमला करने की हिम्मत ना करें।"
आशुतोष की बात सुनकर सभी एल्डर्स एक दूसरे की ओर देखने लगे।
"आशुतोष इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके हैं। अगर आकर्ष अभिजीत पर लगातार हमला नहीं करता तो अभिजीत उसे जख्मी कर देता और अगर अभिजीत अखाड़े में ही हार मान लेता तो यह सब कुछ होता ही नहीं। पर उसे हार मानना स्वीकार नहीं था। उसे लगा कि वह जीत सकता है और इस कारण वह आकर्ष से मार खाता रहा।"
सोमदत्त ने आकर्ष का पक्ष लेते हुए कहा।
"सोमदत्त...तुम्हारे हिसाब से अगर दो योद्धा लड़ रहे हैं तो जब तक पहला योद्धा दूसरे को मार नहीं देता तब तक उसे कोई सजा नहीं मिलेगी। यानी वह चाहे तो दूसरी योद्धा को कुछ भी कर सकता है बस वह जिंदा रहना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो सारे शिष्य आपस में एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाएंगे।"
अमन ने गुस्सा होते हुए कहा।
जब भी किसी योद्धा के रीड की हड्डी टूट जाती है तो वह हमेशा के लिए विकलांग हो जाता है। रीड की हड्डी पूरे शरीर को संतुलित करती है। उसके बिना किसी भी व्यक्ति का चलना-फिरना, उठना-बैठना बहुत मुश्किल होता है।
सभी के विपरीत इस समय रेवती बिल्कुल शांत थी। उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था। सोमदत्त उम्मीद कर रहा था कि रेवती अपने बेटे आकर्ष का पक्ष ले, पर रेवती बिल्कुल चुप थी।
"क्या तुम लोग और भी कुछ कहना चाहते हो!"
सभी की बात सुनने के बाद वर्धन सिंह ने पूछा।
"कुल प्रमुख हमें लगता है कि आकर्ष को सजा मिलनी चाहिए। हम अमन की बात से सहमत हैं।"
कुछ एल्डर्स ने अमन का पक्ष लेते हुए कहा।
यह लोग बिल्कुल निष्पक्ष थे और हालात को समझते हुए फैसला कर रहे थे।
पर यह कहना भी बिलकुल झूठ था कि यह सब अपना फायदा नहीं देख रहे थे। आपका चाहे कितना ही करीबी क्यों ना हो वह बिना फायदे की आपका साथ नहीं देगा। यह इंसान की प्रकृति थी जिसे कोई भी नहीं बदल सकता था।
उनके लिए अभिजीत उनके परिवार का हिस्सा था लेकिन आकर्ष नहीं, चाहे वह कितना ही प्रतिभाशाली क्यों ना हो।
"ठीक है। तो हम मत (वोट) द्वारा इस मामले का परिणाम देखते हैं।"
वर्धन सिंह ने कहा।
"कुल प्रमुख"
अचानक रेवती ने अपना मौन व्रत तोड़ते हुए वर्धन सिंह से कहा।
सभी गौर से रेवती की ओर देखने लगे। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इतनी देर से चुप रेवती अचानक से बोलेगी।
"रेवती...क्या तुम कुछ कहना चाहती हो?"
वर्धन सिंह ने थोड़ा नाखुश होते हुए रेवती से पूछा। उन्हें रेवती का ऐसा बीच में बोलना बिलकुल भी पसंद नहीं था।
"आप सभी को यह बात तो पता होगी कि आकर्ष एक महीने पहले बहुत कमजोर था। फिर इस 1 महीने में ऐसा क्या हुआ कि वह एकदम से इतना शक्तिशाली हो गया। तुम में से बहुत लोग यही सोच रहे होंगे कि आकर्ष को जरूर कुछ कीमती सामान मिला है जिसके बल पर वह इतना बदल गया है। वैसे सच कहूं तो तुम सब लोगों का सोचना सही है। आकर्ष को सच में कुछ कीमती सामान मिला है।"
रेवती ने सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हुए कहा।
रेवती की बात सुनकर आशुतोष और अमन भी चुप हो गए। वह दोनों भी यह जानने को उत्सुक थे कि आकर्ष को ऐसा क्या मिला है, जिसके कारण उसमें यह परिवर्तन आया है।
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