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Chapter 13 - सजा और उपाय

आकर्ष बिना रुके अभिजीत को पंच मारे जा रहा था। अभिजीत का पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया था। उसने आकर्ष से बचने के लिए अपनी पीठ उसके सामने कर दी। उसे लगा था कि इस तरह वह बच जाएगा मगर यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी। जैसे ही उसने अपनी पीठ आकर्ष के सामने की तो आकर्ष ने पंच उसके रीड की हड्डी पर मारने शुरू कर दिए।

उसने पहले ही सोच लिया था कि वह आज अभिजीत को किसी भी हालत में सही सलामत अखाड़े से बाहर नहीं जाने देगा।

Kacha!!!

अचानक सभी दर्शकों को फिर से हड्डियों के टूटने की आवाज सुनाई दी।

अभिजीत दर्द के मारे चीख उठा। उसके रीड की हड्डी टूट गई थी। अब उसमें इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि वह अपनी आंखें खुली रख सके। थोड़ी देर चिल्लाने और रोने के बाद अभिजीत अखाड़े में ही बेहोश हो गया।

अभिजीत की हालत इतनी खराब करने के बाद भी आकर्ष को शांति नहीं मिली थी। उसे याद था कि अभिजीत कितना निर्दयी है। अगर उसकी जगह अभिजीत होता तो वो उसे किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ता। यही सोच कर आकर्ष ने बेहोश हुए अभिजीत पर पंच मारने शुरू कर दिए।

कुछ देर अभिजीत को पीटने के बाद आखिरकार आकर्ष का गुस्सा कुछ शांत हुआ।

उसने अपने आप को शांत किया और वापस अखाड़े में अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो गया।

वह यह मुकाबला जीत चुका था।

ना सिर्फ मुकाबला बल्कि शर्त भी।

असल में आकर्ष के जीतने की सबसे बड़ी वजह 'मंत्र अभिलेख' से बनी अंगूठी थी। जिस समय आकर्ष और अभिजीत के पंच आपस में टकराए थे उसी समय आकर्ष ने मंत्र अभिलेख से बनी अपनी अंगूठी का इस्तेमाल किया और अभिजीत के पूरे शरीर को कुछ समय के लिए अपने वश में कर दिया।

यह सब कुछ एक पल से भी कम समय में हुआ था इसलिए किसी भी दर्शक, एल्डर्स और यहां तक की कुल प्रमुख और वरिष्ठ का ध्यान भी आकर्ष की अंगूठी पर नहीं गया।

"यह क्या हुआ?"

"आकर्ष ने सच में अभिजीत को हरा दिया।"

मिश्रा परिवार के सभी सदस्य हैरान थे। अखाड़े में कुछ ऐसा हुआ था जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

इस समय अमन भी भागते हुए अखाड़े में पहुंच चुका था। उसने अभिजीत को अपने हाथों में लिया और उसके शरीर का निरीक्षण करने लगा। जब उसने देखा कि अभिजीत अपनी आंखें नहीं खोल रहा है तो वह डर गया। उसका शरीर कांपने लगा।

अभिजीत उसकी सबसे बड़ी ताकत था। उसे उससे बहुत ज्यादा उम्मीदें थी।

पर अब सब खत्म हो गया था। उसने गुस्सा होते हुए आकर्ष से कहा...

"आकर्ष तुमने यह ठीक नहीं किया है। यह बस एक मुकाबला था पर तुमने अभिजीत को मारने की कोशिश की है। अगर मेरे अभिजीत को कुछ भी हुआ तो मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा!"

इससे पहले कि अमन और कुछ कहे रेवती भागते हुए आकर्ष के पास आई और अमन की ओर देखते हुए बोली...

"आकर्ष को कुछ करने से पहले तुम्हें मेरा सामना करना होगा। अगर तुम फिर से पिछली बार की तरह हारना चाहते हो तो जब चाहे...मुझसे लड़ने आ सकते हो!"

रेवती ने यह सब बातें शांत स्वर में कही थी। पर अमन जानता था कि रेवती के कहने का क्या मतलब है। पिछली बार की लड़ाई के बाद कहीं ना कहीं उसके मन में रेवती को लेकर डर बैठ गया था। वह जानता था कि रेवती उससे बहुत ज्यादा ताकतवर है और उसके सामने वह कुछ भी नहीं है। इसलिए वह अभिजीत को लेकर वरिष्ठ के पास गया और उनसे अभिजीत का इलाज करने को कहने लगा।

वरिष्ठ अमर सिंह ने, अमन के कहे अनुसार अभिजीत के शरीर का निरीक्षण करना शुरू किया। कुछ देर निरीक्षण करने के बाद उन्होंने हैरान होकर आकर्ष से कहा...

"आकर्ष यह तुमने क्या किया? तुमने अभिजीत की रीड की हड्डी तोड़ दी है। तुम जानते हो इसका क्या मतलब है। अभिजीत अब कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता। उसे जीवन भर बिस्तर पर लेट कर रहना होगा। अगर इसे सातवें स्तर की स्वर्ण क्षति गोली भी दी जाए तो भी इसका इलाज संभव नहीं है। तुमने अभिजीत की पूरी जिंदगी नष्ट कर दी है।"

यह कहते हुए अमर सिंह की आवाज कांप रही थी। अभिजीत मिश्रा परिवार का वह शिष्य था जिससे पूरे परिवार को बहुत ज्यादा उम्मीदें थी। सभी को पूरा विश्वास था कि अभिजीत एक दिन पूरे मिश्रा परिवार का नाम रोशन करेगा। वह उनके परिवार को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएगा। पर अब सब कुछ खत्म हो गया था, उनकी सारी आशाएं टूट गई थी। यह मिश्रा परिवार के लिए बहुत बड़ा नुकसान था।

"नहीं!... ऐसा नहीं हो सकता!... वरिष्ठ आप से कोई गलती हुई है। आप फिर से अभिजीत की जांच कीजिए।"

वरिष्ठ अमर सिंह ने अभिजीत के बारे में जो कुछ भी कहा था उसे सुनकर अमन का शरीर कांपने लगा उसे एक बहुत बड़ा झटका लगा था।

किसी भी पिता के लिए यह सदमा सहन कर पाना बहुत मुश्किल था कि उसका बेटा अब कभी भी अपने पैरों पर चल नहीं पाएगा।

"रीड की हड्डी टूट गई है!!!"

"सातवें स्तर की स्वर्ण क्षति गोली भी इसका इलाज नहीं कर सकती!!!"

इन सब बातों से अमन को इतना आघात लगा था कि वह रोने लगा।

वही आशुतोष की हालत भी इस समय कुछ ठीक नहीं थी। वह शर्त हार चुका था...पूरे 500 चांदी के सिक्कों की।

पर इसके विपरीत सोमदत्त काफी खुश था।

"आकर्ष मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा!!!"

अचानक भीड़ को अमन की आवाज सुनाई दी जो अपने बेटे के गम में अपना संतुलन खो चुका था।

उसने अपनी सारी ताकत इकट्ठा की और आकर्ष पर हमला कर दिया। तुरंत उसके सिर पर 4 हाथियों की परछाइयां दिखाई देने लगी।

इधर रेवती भी पहले से तैयार थी। वह आकर्ष के सामने आकर खड़ी हो गई। अचानक उसके सिर पर 6 हाथियों की परछाइयां प्रकट हुई और उसने एक मुक्का अमन को दे मारा।

मुक्का लगते ही अमन उड़ते हुए अखाड़े के दूसरे किनारे पर जाकर गिर पड़ा।

"अमन...अगर तुमने आकर्ष पर दोबारा हमला करने की कोशिश भी की तो मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगी। भूल गए कि वो तुम और तुम्हारा बेटा अभिजीत ही थे जो यह मुकाबला करवाना चाहते थे।"

रेवती ने गुस्सा होते हुए अमन से कहा।

"रेवती तुम..."

अमन कुछ कहना चाहता था पर वह कह नहीं पाया। वह जानता था कि रेवती ने अभी जो कुछ भी कहा है वह सच है। वो और उसका बेटा अभिजीत ही इस मुकाबले का प्रस्ताव लेकर रेवती के पास गए थे,  और यह बात किसी से छुपी नहीं थी।

"वरिष्ठ आपको कुछ भी करके मेरे बेटे अभिजीत को ठीक करना होगा। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम उसे न्याय देना होगा। आप जानते हैं कि आकर्ष ने मेरे बेटे की क्या हालत की है। यह बस एक मुकाबला था...कोई युद्ध नहीं जो आकर्ष ने अभिजीत पर जानलेवा हमला किया।

अमन ने रोते हुए वरिष्ठ से कहा। वह वरिष्ठ के सामने घुटनों के बल बैठ गया रोते हुए मदद मांगने लगा।

जब रवि का हाथ आकर्ष ने तोड़ा था तो उसने जैसे तैसे वह सदमा सहन कर लिया था, पर इस बार नहीं। रवि के घायल होने के बाद अमन को अपने बड़े बेटे अभिजीत से बहुत ज्यादा उम्मीद थी। पर आकर्ष ने उस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया था। उसने अमन के वंश का कोई अंश नहीं छोड़ा था।

"अमन...हमारे मिश्रा परिवार के नियम के अनुसार अगर दो योद्धा अखाड़े में मुकाबला करते हैं और उनमें से कोई एक घायल हो जाता है तो उसका जिम्मेदार दूसरे योद्धा को नहीं ठहराया जाएगा। अगर पहला योद्धा दूसरे योद्धा को जान से मार देता है तो ही उसे सजा दी जाती है, वरना दूसरे योद्धा की कोई भी जिम्मेदारी नहीं होती। अखाड़े में घायल होना आम बात है। आज तुम्हारा बेटा अभिजीत घायल हुआ है अगर उसकी जगह मेरा बेटा आकर्ष घायल हुआ होता तो क्या तुम वरिष्ठ से मेरे बेटे के लिए न्याय की मांग करते? क्या तुम अपने बेटे अभिजीत को जिम्मेदार ठहराते?"

रेवती ने चिल्लाते हुए अमन से कहा। उसकी आवाज से यह साफ था कि वह हर बार की तरह इस बार चुपचाप अमन के षड्यंत्र में नहीं फंसने वाली है।

"रेवती...तुम्हारे बेटे आकर्ष ने पहले रवि का हाथ तोड़ा और अब उसने अभिजीत की रीड की हड्डी भी तोड़ दी है। मेरे हिसाब से आकर्ष को इसके लिए सजा मिलनी चाहिए। उसने जानबूझकर अभिजीत की रीड की हड्डी तोड़ी है ताकि अमन का वंश आगे ना बढ़े। उसने मिश्रा परिवार के नियमों का उल्लंघन किया है। इसके अलावा सभी ने आज का मुकाबला देखा है। जब अभिजीत ने अपनी पीठ आकर्ष के सामने की तो आकर्ष को उस पर दया दिखानी चाहिए थी, पर उसने ऐसा नहीं किया। इससे पता चलता है कि आकर्ष के मन में अमन और उसके परिवार के लिए कितनी नफरत है।"

आशुतोष ने अमन का पक्ष लेते हुए कहा।

"आशुतोष जो तुम कह रहे हो वह गलत है। अभिजीत चाहता तो हार मान सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया। उसे लगा कि शायद वह जीत सकता है और इसलिए वह अखाड़े में चुपचाप आकर्ष से मार खाता रहा। इसके अलावा तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आकर्ष केवल शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में है। अगर वह लगातार अभिजीत पर वार नहीं करता तो अभिजीत उसे हरा देता।"

सोमदत्त ने बीच बचाव करते हुए कहा।

कहीं ना कहीं उसका कहना सही भी था। अगर आकर्ष लगातार अभिजीत पर वार नहीं करता तो अभिजीत आकर्ष को हरा देता। अगर ऐसा होता तो आकर्ष ना सिर्फ यह मुकाबला हारता बल्कि अपना जीवन भी हार जाता क्योंकि अभिजीत ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह आकर्ष की क्या हालत करना चाहता है।

"बस करो! अब कोई भी इस बारे में बात नहीं करेगा। किसको क्या सजा मिलनी चाहिए यह आज होने वाली सभा में तय किया जाएगा। अभी के लिए सबसे जरूरी अभिजीत का जीवन है। उसे तुरंत उसके कमरे में लेकर जाओ और उसका इलाज करो।"

कुल प्रमुख वर्धन सिंह ने सभी को शांत करते हुए कहा।

"जैसा आपको ठीक लगे...कुल प्रमुख!"

अमन ने अभिजीत को अपने हाथों में उठाया और अपने घर की ओर चल पड़ा।

जाने से पहले उसने एक बार आकर्ष की ओर घूर कर देखा। उसकी आंखों में आकर्ष को जान से मारने का भाव साफ नजर आ रहा था।

आकर्ष ने जब अमन की आंखों में कत्ल का भाव देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराने लगा। वह खुद एक समय पर हत्यारा रह चुका था इसलिए अमन के उस कत्ल के भाव से उसे कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा था।

उसे इस बात का भी कोई पछतावा नहीं था कि उसने अभिजीत की रीड की हड्डी तोड़ दी है। उसके पिछले जीवन में यह सब आम था। अगर वह पहले वाला आकर्ष होता तो अमन को कब का मार चुका होता। उसके पास किसी को मारने के लिए तरीकों की कोई कमी नहीं थी।

एक-एक करके मिश्रा परिवार के सभी सदस्य अखाड़े से बाहर जाने लगे। पर वह सभी अभिजीत के लिए दुखी थे। आखिरकार अभिजीत उनका अपना था, उनका खुद का खून। पर आकर्ष से उनका कोई संबंध नहीं था। वह तो उनके परिवार का हिस्सा भी नहीं था। उसका परिवार सिंघानिया परिवार था जिसके बारे में कोई नहीं जानता था।

मिश्रा परिवार के सभी शिष्य इस समय शर्मिंदा थे। उनके परिवार के सबसे ताकतवर शिष्यों में से एक अभिजीत, जो शारीरिक मंडल के चौथे स्तर का योद्धा था वह एक तीसरे स्तर के योद्धा से हार गया था। यह उनके लिए एक शर्मिंदगी का विषय था।

"मुझे लगा था कि अभिजीत बहुत ताकतवर है। पर वह इस तरह हार जाएगा इसकी मैंने कोई भी उम्मीद नहीं की थी।"

"आकर्षइस समय सिर्फ शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में है और अभिजीत को हरा सकता है। जब वह नोवे स्तर में प्रवेश कर लेगा तो शारीरिक मंडल का कोई भी योद्धा उसे हरा नहीं सकेगा।"

"मैं तो इस बात से हैरान हूं कि आकर्ष का गुरु कौन है? ऐसा कौन है जिसने आकर्ष को 1 महीने के अंदर पहले स्तर से तीसरे स्तर में प्रवेश करने में मदद की है?"

मिश्रा परिवार के सभी सदस्य इस समय आकर्ष के बारे में ही बात कर रहे थे।

जिस आकर्ष को आज से पहले कोई जानता भी नहीं था वह अब उन सब की चर्चाओं का विषय बना हुआ था।

एक-एक करके सभी सदस्य अखाड़े से बाहर चले गए थे। इस समय अखाड़े में केवल चार लोग मौजूद थे।

आकर्ष, रेवती, दीया और सोमदत्त।

"मां...आपको क्या हुआ है? आप थोड़ी चिंतित लग रही हो!"

आकर्ष ने रेवती से पूछा जो अपने ही विचारों में खोई हुई थी।

"आकर्ष...जानते भी हो तुमने क्या किया है? तुमने अभिजीत को घायल किया है। वो अभिजीत जिससे पूरे परिवार को बहुत ज्यादा उम्मीदें थी। तुम्हें क्या लगता है आज की जो सभा होने वाली है उसमें क्या होगा? वहां पर तुम्हें कोई भी विजेता घोषित नहीं करने वाला!  बल्कि वह सब मिलकर तुम्हें सजा देंगे। यही सब सोच कर तुम्हारी मां चिंतित है।"

सोमदत्त ने आकर्ष को पूरा मामला समझाते हुए कहा।

"बस इतनी सी बात। आप शायद भूल रहे हैं कि उस सभा में वरिष्ठ भी मौजूद होंगे। वह मुझे इतनी आसानी से कुछ भी नहीं होने देंगे। आखिरकार उन्हें अभी भी मुझसे दो बार अपना इलाज करवाना है।"

आकर्ष ने निश्चित होते हुए कहा।

"अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि वरिष्ठ तुम्हारा पक्ष लेंगे तो तुम गलत हो। तुम्हें क्या लगता है परिवार में सभी उनका सम्मान क्यों करते हैं? इसलिए नहीं कि वह एक नोवे स्तर के वैद्य है बल्कि इसलिए क्योंकि वह परिवार के एक बुजुर्ग है। इसके अलावा शायद तुम्हें पता नहीं है वरिष्ठ कभी भी सभा में कोई फैसला नहीं लेते ना ही कोई सुझाव देते हैं।"

सोमदत्त ने कहा।

आकर्ष अवाक रह गया।

उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका गुप्त हथियार 'वरिष्ठ' इतनी जल्दी उसका साथ छोड़ देंगे।

सभा में वरिष्ठ उसका सबसे बड़ा सहारा थे। लेकिन वास्तविकता जानने के बाद उसके चेहरे का रंग उड़ गया था।

कुछ देर बाद आकर्ष रेवती और दीया के साथ वापस अपने घर आ गया। घर में अभी भी चिंता का माहौल था। आकर्ष ने जब देखा कि रेवती अभी भी चिंतित है तो उसने अपनी मां को समझाते हुए कहा...

"मां आप मेरी चिंता मत करें। आपको यही डर है ना कि आज की सभा में सभी मुझे सजा देंगे। लेकिन मेरे पास एक ऐसा उपाय है जिससे वह सभी लोग, जो अभी मुझे सजा देना चाहते हैं मेरा पक्ष लेने लगेंगे।"

"कैसा उपाय?"

रेवती ने संदेह करते हुए आकर्ष से पूछा।

उसे अभी भी आकर्ष की बात पर भरोसा नहीं था।

"वो मैं आपको अभी नहीं बता सकता। इसके लिए आपको दोपहर तक इंतजार करना होगा!"

आकर्ष ने रेवती को शांत करते हुए कहा।

"क्या अब तुम अपनी मां से भी बातें छुपाने लगे हो?"

"मां ऐसा नहीं है कि मैं आपको बताना नहीं चाहता! पर पहले मुझे भी कुछ तैयारी करनी है। आप मेरी चिंता मत करो मुझे कुछ भी नहीं होगा।"

आकर्ष ने रहस्यमय ढंग से मुस्कुराते हुए कहा।

अपनी मां से थोड़ी देर बात करने के बाद आकर्ष अपने कमरे में चला गया।

आकर्ष के वहां से जाने के बाद रेवती ने दीया की ओर देखते हुए पूछा...

"दीया...आकर्ष अभी जिस उपाय के बारे में बात कर रहा था क्या उसके बारे में तुम्हें कुछ पता है?"

"क्षमा करें मालकिन... पर मुझे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।"

दीया ने अपना सिर असहमति में हिलाते हुए कहा।

अपने कमरे में आने के बाद आकर्ष ने सबसे पहले स्नान किया और खाना खाया। फिर अपनी मां रेवती से कुछ पैसे लिए और दीया को लेकर बाजार की ओर जाने लगा।

परिवार के सभी शिष्य आकर्ष को देख हैरान थे।

"यह आकर्ष इतना सब कुछ होने के बाद भी बिना किसी चिंता के कैसे घूम रहा है?"

"कहीं यह सजा के डर से भागने की कोशिश तो नहीं कर रहा?"

"तुम पागल हो गए हो! अगर यह भागना भी चाहे तो भी नहीं भाग सकता। परिवार के सभी बुजुर्गों की नजर इस पर है।"

"कुछ भी कहो! इसमें कुछ तो अलग है। अगर इसकी जगह में होता तो छुपकर अपने कमरे में बैठ जाता। पर इसे देखो! यह बिना किसी चिंता के बाजार की ओर जा रहा है। मैंने तो सोच लिया है कि अगर आज की सभा में आकर्ष बच जाता है तो मैं उसका शिष्य बन जाऊंगा। क्या पता इस बहाने मैं उसके गुरु से मिल पाऊं!!!