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Chapter 12 - आकर्ष vs अभिजीत

हर बार इलाज करने के 1000 चांदी के सिक्के!

यानी अगर में तीन बार इलाज करूंगा तो मुझे 3000 चांदी के सिक्के मिलेंगे।

हालांकि आकर्ष ने इस बात का अंदाजा लगा लिया था कि वैद्य लोग अमीर होते हैं, पर इतने अमीर होंगे इसकी उम्मीद तो उसने भी नहीं की थी।

मिश्रा परिवार के वरिष्ठ अमर सिंह मात्र नोवे स्तर के वैद्य थे। पर उन्होंने आकर्ष को 3000 चांदी के सिक्के देने की बात ऐसे कही, जैसे उनके लिए यह रकम कोई बड़ी बात नहीं है।

अमर सिंह की बात सुनकर रेवती भी हैरान थी।

जहां मिश्रा परिवार में हर एक एल्डर को हर महीने उनके खर्चे के लिए केवल 20 चांदी के सिक्के मिलते हैं, वहीं आकर्ष को 3000 चांदी के सिक्के एक साथ मिल रहे थे।

सभी एल्डर्स भी अमर सिंह के 3000 चांदी के सिक्के देने की बात से आश्चर्यचकित थे।

आकर्ष ने सिर्फ कुछ समय के लिए वरिष्ठ के कंधे दबाए और इसके लिए उसे 1000 चांदी के सिक्के मिल रहे हैं...

"वरिष्ठ...मैं भी आपके कंधे दबा सकता हूं बल्कि मैं तो 2 घंटे तक आपके कंधे दबा लूंगा। क्यों ना आप मुझे भी इसके लिए 1000 चांदी के सिक्के दे?"

आशुतोष ने अमर सिंह से कहा। उसकी आंखों में लालच साफ झलक रहा था। उसे अमीर होने का एक नया रास्ता मिल गया था। वह अमर सिंह के तरफ ऐसे देख रहा था जैसे अमर सिंह कोई सोने के अंडे देने वाली मुर्गी हो।

वरिष्ठ अमर सिंह आशुतोष से भली-भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने उसे नजरअंदाज करना ही ठीक समझा। कुछ सोचने के बाद उन्होंने आकर्ष की ओर देखा और पूछा।

"आकर्ष तुमने शरीर के अंदर मौजूद जख्मों को ठीक करने की यह विधि कहां से सीखी है। तुम्हारे इलाज से मेरे जख्मों पर काफी असर पड़ा है। अगर तुमने इसी तरह मेरा और दो बार इलाज किया तो मुझे पूरा विश्वास है कि मैं पूरी तरह से ठीक हो जाऊंगा।"

"वरिष्ठ मैंने यह विधि एक पुरानी किताब में देखी थी। पर मुझे उस किताब का नाम याद नहीं है।"

आकर्ष ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा।

आकर्ष का जवाब सुनकर वरिष्ठ अमर सिंह उसे ध्यान से देखने लगे।

वह आकर्ष के जवाब से समझ गए थे कि आकर्ष झूठ बोल रहा है। पर उन्होंने उससे आगे कुछ भी नहीं पूछा। सभी लोगों के कुछ रहस्य होते हैं जिन्हें वो दूसरों के सामने उजागर नहीं करना चाहते। इसके अलावा आकर्ष के बोलने के तरीके से भी उन्हें यह महसूस हो रहा था कि आकर्ष इस विषय पर ज्यादा बात नहीं करना चाहता।

'क्या वरिष्ठ सच में इतने समय से जख्मी थे'

सभी एल्डर्स के मन में यही सवाल घूम रहा था।

उन्हें यह भी याद था कि आकर्ष ने वरिष्ठ के कंधे दबाने से पहले उनके जख्मी होने के बारे में कहा था।

वो सभी अब यह जानना चाहते थे कि आकर्ष को वरिष्ठ के जख्मों के बारे में कैसे पता चला?

और इससे भी जरूरी सवाल यह था कि आकर्ष उन जख्मों का इलाज करना कैसे जानता है!

इस समय बाकी सब के अलावा रेवती को भी आकर्ष पर संदेह हो रहा था। पर उसके लिए समझ पाना बहुत मुश्किल था कि आकर्ष में यह बदलाव कैसे आए हैं।

सिर्फ दीया ही ऐसी थी जिसे आकर्ष को देखकर कोई हैरानी नहीं हो रही थी। वह जानती थी कि आकर्ष हमेशा से ही बाकी सब से अलग था।

"अमन क्या अब मैं तुम्हारे साथ शर्त लगा सकता हूं?"

आकर्ष ने अमन की ओर देखते हुए पूछा।

"हाँ बिलकुल... अगर तुम्हें यह चांदी के सिक्के मुझे देने के लिए इतनी ही जल्दी है तो मैं क्या कर सकता हूं? मुझे तुम्हारी शर्त स्वीकार है।"

अमन ने अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाते हुए कहा।

अब आकर्ष वर्धन सिंह के पास गया और उन्हें 500 चांदी के सिक्के देते हुए कहा...

"कुल प्रमुख यह मेरे शर्त के 500 चांदी के सिक्के हैं जिन्हें मैं आपके पास जमा करवा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि आप इस शर्त और मुकाबले के साक्षी बने।"

आकर्ष की बात सुनकर वर्धन सिंह ने कुछ देर सोचा और फिर चांदी के सिक्के अपने पास रख लिए।

"कुल प्रमुख यह मेरे और आशुतोष द्वारा लगाई शर्त के चांदी के सिक्के हैं, आप इन्हें भी अपने पास रखें।"

अमन ने 500 चांदी के सिक्के वर्धन सिंह को देते हुए कहा।

"ठीक है, अब तुम लोग अपना मुकाबला शुरू कर सकते हो।"

वर्धन सिंह ने सभी सिक्के अपने पास रखें और आकर्ष से कहा...

आकर्ष ने सबसे पहले बचे हुए 500 चांदी के सिक्के अपनी मां रेवती को दिए और फिर अभिजीत का सामना करने के लिए अखाड़े में प्रवेश किया।

सभी लोग ध्यान से अखाड़े की ओर देखने लगे। आखिरकार बहुत इंतजार के बाद मुकाबला शुरू होने वाला था।

"आकर्ष आखिरकार तुम मुझसे मुकाबला करने आ गए। मुझे तो लगा था कि तुम मुझसे डर गए हो, इसलिए वरिष्ठ की चापलूसी कर रहे हो।"

अभिजीत ने जोर से हंसते हुए कहा।

"और तुम्हें क्यों लगता है कि मैं तुम से डर गया। लगता है तुम्हें अपने आपसे बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। अच्छा रहेगा तुम पूरी ताकत से मेरा सामना करो। अगर तुम हार गए तो तुम्हारा परिवार सड़क पर आ जाएगा। जानते भी हो तुम्हारे पिता ने मेरे साथ कितने ज्यादा चांदी के सिक्कों की शर्त लगाई है?"

आकर्ष का सवाल सुनकर अभिजीत का चेहरा उतर गया।

उसे अपने पिता द्वारा लगाई शर्त के बारे में कुछ भी पता नहीं था।

"तुम क्या कहना चाहते हो?"

अभिजीत ने आकर्ष से पूछा।

"मैं क्या कहना चाहता हूं उसका मतलब तुम बहुत जल्दी जान जाओगे।"

आकर्ष ने हल्का हंसते हुए कहा।

आकर्ष की उस हंसी को देख अभिजीत थोड़ा डर गया। यह पहली बार था जब उससे आकर्ष से डर लग रहा था। उसका मन उससे कह रहा था कि उसे आकर्ष से कोई खतरा है... पर क्या?

अभिजीत ने जैसे तैसे अपने आप को संभाला और मुकाबले के लिए तैयार हुआ। उसने अपने शरीर में मौजूद ऊर्जा को इकट्ठा किया और आकर्ष की ओर भागा।

आकर्ष तुमने मेरे छोटे भाई रवि की जो हालत की थी, मैं उससे भी कई गुना ज्यादा खराब हालत तुम्हारी करने वाला हूं।

अभिजीत ने चिल्लाते हुए कहा।

उसने अपने दोनों हाथों को मोड़ा और और अपनी युद्ध कला पर्ण पंच का इस्तेमाल किया जो कि पीले वर्ग मध्यम स्तर की युद्ध कला थी।

"पर्ण पंच"

"अमन...अभिजीत वास्तव में बहुत प्रतिभाशाली है। उसने इतनी छोटी उम्र में ही पर्ण पंच में महारत हासिल कर ली है।"

"मैंने भी पर्ण पंच का अभ्यास शारीरिक मंडल के पहले स्तर में करना शुरू किया था। पर मुझे महारत सातवें स्तर में जाकर मिली थी, वही अभिजीत सिर्फ चौथे स्तर में ही महारत हासिल कर चुका है।

"सही कहा...अमन...अभिजीत वास्तव में बहुत प्रतिभाशाली है मुझे तो उससे ईर्ष्या हो रही है।"

अमन ने जैसे ही बाकी एल्डर्स को उसके बेटे अभिजीत की प्रशंसा करते सुना तो वह मुस्कुराने लगा। अभिजीत के कारण आज उसका सिर गर्व से ऊंचा हो गया था।

"यह आकर्ष कौन सी युद्ध कला का इस्तेमाल कर रहा है?"

कुल प्रमुख वर्धन सिंह ने अचानक आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।

वर्धन सिंह की आवाज सुनकर सभी लोग आकर्ष की ओर देखने लगे।

उन्होंने देखा कि आकर्ष अपने शरीर को पीछे की ओर मोड़ रहा है। वह किसी खींचे हुए धनुष की तरह व्यवहार कर रहा था।

जैसे ही अभिजीत का पर्ण पंच उसे लगने वाला था उसने अपने शरीर को घुमाया और अभिजीत के ठीक सामने खड़ा हो गया। उसका शरीर किसी चीते की तरह झुका हुआ था। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे वह अभिजीत के पर्ण पंच से अपना बचाव नहीं करना चाहता।

धम...

जैसे ही अभिजीत का पर्ण पंच उससे टकराया अभिजीत का शरीर कांपने लगा। वहीं दूसरी ओर पर्ण पंच के प्रभाव से आकर्ष कुछ कदम पीछे चला गया। उसका चेहरा इस समय पूरी तरह लाल हो चुका था।

"आकर्ष"

उसकी ऐसी हालत देख रेवती को उसकी चिंता होने लगी।

अमन की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी। वह हैरान था कि आकर्ष ने अभिजीत के पर्ण पंच का सामना कैसे किया। जहां तक उसे लग रहा था आकर्ष अभिजीत के एक पंच का सामना भी नहीं कर पाएगा। पर यहां आकर्ष अभी भी सही सलामत खड़ा था। मरना तो दूर उसके शरीर से खून की एक बूंद भी नहीं निकली थी।

"सोमदत्त तुम्हारे 500 चांदी के सिक्के तो गए। मैं आभारी हूं कि तुमने मुझे यह सिक्के उपहार में दिए।"

आशुतोष ने हंसते हुए सोमदत्त से कहा।

वह सोमदत्त पर इस प्रकार हंस रहा था जैसे वह शर्त जीत चुका हो!

"जैसा मैंने सोचा था चौथे स्तर के योद्धा का सामना करने के लिए अभी भी मेरा शरीर कमजोर है। मुझे और ज्यादा अभ्यास की जरूरत है। पर शायद मैं अभी भी जीत सकता हूं!"

आकर्ष ने अपने हाथ में मौजूद अंगूठी को देखते हुए अपने आप से कहा।

यह अंगूठी मंत्र अभिलेख से बनी हुई थी जिसे उसने अभिजीत का सामना करने के लिए बनाया था।

"आकर्ष मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि तुम शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर में प्रवेश कर पाओगे। पर इसका कोई भी फायदा नहीं है। तुम अभी भी मेरा सामना नहीं कर सकते। तुमने मेरे भाई का हाथ तोड़ा था। आज मैं तुम्हारे पूरे शरीर की हड्डियां तोडूंगा। मैं तुम्हारी हालत ऐसी करूंगा कि तुम मरना भी चाहोगे तो भी मर नहीं पाओगे। तुम्हारी पूरी जिंदगी बिस्तर पर लेटे हुए ही बीतेगी।"

अभिजीत ने चिल्लाते हुए कहा।

अभिजीत की बातें सुनकर आकर्ष की आंखें चमक उठी। उसे नहीं लगा था कि अभिजीत इतना निर्दयी होगा।

जब रवि ने उसे उकसाया था तो उसने दया करके उसका सिर्फ एक हाथ तोड़ा था। पर अभिजीत के लिए उसके मन से दया खत्म हो गई थी।

अभिजीत उससे ताकतवर जरूर था पर उसे विश्वास था कि अगर वह अपनी अंगूठी का इस्तेमाल करेगा तो अभिजीत उसका सामना नहीं कर पाएगा।

वह दोनों मिश्रा परिवार के शिष्य थे। इसलिए आकर्ष पहले अभिजीत को सिर्फ हराना चाहता था। पर अभिजीत की बातें सुनकर उसने अपना विचार बदल दिया।

"अभिजीत तुम मुझे हमेशा के लिए बिस्तर पर सुलाना चाहते हो। तुम मेरी हालत ऐसी करना चाहते हो कि मैं अगर मरना भी चाहूं तो भी ना मर पाऊं। अच्छी बात है...पर तुमने जो कुछ भी कहा है उसे याद रखना। कहीं बाद में तुम्हें अपनी कही इन बातों का पछतावा ना हो!"

आकर्ष ने बिना किसी भाव के अभिजीत से कहा।

"पछतावा...और मुझे... मुझे अपनी कही किसी भी बात का पछतावा नहीं है।"

अभिजीत ने गुस्सा होते हुए कहा।

वह जानता था कि आकर्ष इस समय सबसे ज्यादा कमजोर है। अगर उसने यह मौका अपने हाथों से जाने दिया तो वह फिर कभी अपना बदला नहीं ले पाएगा। यही सोचकर उसने एक बार फिर पर्ण पंच का इस्तेमाल आकर्ष पर किया।

लेकिन इस बार आकर्ष पहले से ही तैयार था। वह अभिजीत के पहली बार पर्ण पंच इस्तेमाल करने से ही समझ गया था कि उस पंच की क्या विशेषताएं हैं...और क्या हानियां है।

उसने पर्ण पंच से अपना बचाव करने के बजाय हमला करना ज्यादा ठीक समझा।

उसने अपने हाथों को मोड़ कर पतन पंच बनाया और अभिजीत पर हमला कर दिया।

दोनों के पंच एक साथ एक दूसरे से टकराए और पहली बार की तरह अभिजीत का शरीर फिर से कांपने लगा। आकर्ष इसी मौके का इंतजार कर रहा था। उसने सबसे पहले पर्ण पंच का प्रभाव खत्म होने दिया और फिर अपने पतन पंच का इस्तेमाल अभिजीत पर किया।

अभिजीत को ऐसे किसी अचानक हमले की उम्मीद नहीं थी। इसलिए अपने पंच का प्रभाव खत्म होने के बाद भी वह निडर होकर अपनी जगह पर ही खड़ा था। पर अब आकर्ष के इस अचानक हमले से वह डर गया। इससे पहले कि वह अपना बचाव कर पाता आकर्ष का पतन पंच उसे जा लगा।

इस पंच का प्रभाव इतना शक्तिशाली था अभिजीत का हाथ एक झटके में टूट गया।

हड्डियों के टूटने और अभिजीत के चिल्लाने की आवाज सभी के कानों में गूंज उठी।

इससे पहले कि बाकी सब कुछ समझ पाते कि क्या हुआ है आकर्ष आगे बढ़ा और एक और पंच अभिजीत को दे मारा। इस बार के पतन पंच के प्रभाव के कारण अभिजीत का शरीर हवा में 3 मीटर ऊपर उड़ते हुए अखाड़े के किनारे पर जा गिरा।

आकर्ष ने अभिजीत को दोबारा खड़ा होने का कोई मौका नहीं दिया और एक के बाद एक कई पंच अभिजीत को मारता रहा। अभिजीत समझ चुका था कि उसने आकर्ष को कमजोर समझ लिया है अगर उसने जल्दी कुछ नहीं किया तो वो हार जाएगा। उसने फिर से उठने की कोशिश की, पर आकर्ष ने एक लात उसके पेट पर दे मारी। अभिजीत के शरीर में जो कुछ भी बची हुई ताकत थी वह अब खत्म हो चुकी थी। उसने रोते हुए अमन से कहा...

"पिताजी...मुझे बचाइए! यह आकर्ष मुझे मार देगा!"

उसकी आवाज अब पहले की तरह घमंड से भरी हुई नहीं थी पर उसमें डर जरूर था।

आकर्ष का डर...उसके हाथों मरने का डर...

आकर्ष अभी भी नहीं रुका था। वह लगातार एक के बाद एक पंच मारे जा रहा था।

"नहीं... रुक जाओ... उसे जाने दो!"

अपने बेटे अभिजीत की आवाज सुनकर अमन तुरंत अपनी जगह से खड़ा हुआ और अखाड़े की ओर भागने लगा। वह जानता था कि अगर उसने थोड़ी सी भी देर की, तो उसका बेटा आकर्ष के हाथों मारा जाएगा।

अमन को अखाड़े की ओर भागता देख रेवती भी अखाड़े की ओर भागने लगी। वह भी इस बात से भली भांति परिचित थी कि अमन क्या करना चाहता है...