Chapter 43 - शी मुबाइ वहाँ था

"हम देख लेंगे," जिंगे ने जवाब दिया। उसके धैर्य और निडरता को देखकर वू रोंग के होश उड़ गए और उसने गुस्से में अपने दांत पीस लिए।

वू रोंग ने बहुत कोशिश की, कि वह अपना सर ऊंचा रखे, लेकिन वह इस बात से इंकार नहीं कर सकती थी कि वह हार चुकी थी।

वू रोंग में शिया परिवार के बंगले को छोड़ दिया और जिंगे के दिल को आखिर चैन आया।

अपनी संपत्ति को वापस लेना जिंगे का पहला कदम था, बहुत जल्दी वह सब कुछ वापस लेने वाली थी और वह भी ब्याज के साथ।

वू रोंग तुम्हारा अंत आने वाला है, जो कुछ दिन बचे हैं उसमें मज़े करो।

जिंगे अपने नजर को फेरते हुए दूसरी ओर देखने लगी और उसे सामने की बालकनी में एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा। 

उसे ज़रा आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह शी मुबाइ था।

दो बंगलों के दूरी के बीच उनकी आंखें टकराई।

मुबाइ ने एक सफेद शर्ट पहनी थी और हाथ में रेड वाइन लिए उसकी तरफ टकटकी बॉंधे देख रहा था।

उसके शरीर पर सूरज की किरणें पड़ रही थीं, जिससे वह और भी आकर्षक दिख रहा था।

जिंगे को बिल्कुल नहीं पता था कि वह कितनी देर से बाहर खड़ा था और उसने वहां पर क्या देखा, वह सिर्फ़ उसकी तीखी नज़र को देख रही थी।

जिंगे ने उसे भावनाओं के बिना देखा।

जिंगे ने अपनी नजर फेरी और वापस बंगले में चली गई।

जुंतिंग उसकी तरफ आया और पूछा "तुम क्या देख रहे हो?"।

जुंतिंग हाल ने हीं में एक नए घर में प्रवेश किया था और आज उसके घर का गृहप्रवेश उत्सव था।

लेकिन, जब से पार्टी शुरू हुई थी, मुबाइ शराब की एक ग्लास को लेकर बालकनी की ओर टकटकी लगाए था।

बात यह थी कि मुबाइ ने जिंगे को तब देखा था, जब से वह शिया परिवार के बंगले के गेट पर खड़ी थी, वह उसे तब से देखे जा रहा था।

हालाँकि, उसे नहीं पता था कि क्या हो रहा है, उसने अंदाजा लगाया कि वह अपने पुराने घर को वापस लेने आई है।

उसकी पूर्व पत्नी एक नई व्यक्तित्व में बदल गई थी, जो बहुत साहसिक था।

जब से उसने उसे अस्पताल में देखा तब से वह उसके बदलते स्वभाव से चकित था और आज अपने परिवार के बंगले को वापस लेने की उसकी हिम्मत से वह बहुत आश्चर्यचकित हुआ। 

उसे हो क्या गया था.....

"वहाँ क्या हो रहा है?" जुंतिंग ने पूछा, जब उसने वहाँ पुलिस और सुरक्षाकर्मी को बंगले से निकलते हुए देखा।

मुबाइ ने कंधा हिलाते हुए जवाब दिया "क्या पता, चलो अंदर चलते हैं"। 

जुंतिंग उस घटना की उपेक्षा करके घर के अंदर आ गया। 

आखिरकार, सभी चले गए।

जिंगे ने अपने पीछे का दरवाजा बंद किया और बंगले में घूमने लगी, ये वह जगह थी, जिसे वह कभी अपना घर कहती थी।

वह घर जिसे उसने अपने पिता की मृत्यु के बाद खो दिया था।

हालांकि, आज के बाद से यह फिर से उसका घर हो गया, उसने जिंदगी की एक नई शुरुआत की।

हां, एक नई शुरुआत।

जिंगे की आंखों में आशा तैर रही थी, उसकी जिंदगी का मकसद शी साम्राज्य के सामने बराबरी में खड़ा होने का था। 

इस तरह से वो अपने बेटे का अधिकार मांगने के लिए खड़ी हो सकती थी...

हालांकि, रास्ता बहुत लंबा और कठिन था, पर उसे यकीन था कि वह ऐसा कर लेगी। 

जिंगे ने बंगले के हर कोने का जायजा लिया, फिर उसने लोहार को बुलाकर घर के हर ताले को बदल दिया।

यकीनन, उसे कुछ लोगों को किराए पर लेना था, ताकि वे वू रोंग की सारी चीजों को वहां से हटा सके। नए रंग के साथ यह जगह फिर से नया हो जाएगा।

जिंगे ने सारी जरूरी बदलाव किए और घर छोड़ने से पहले शिया ची के लिए खाना बनाने चली गई। 

वह बंगले से ज़्यादा दूर नहीं गई थी की एक गाड़ी चुपके से उसके पीछे आ खड़ी हुई...

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