"अभी भी तुम्हारी फिक्र करता है, वह बोलता नहीं लेकिन उसके चेहरे पर यह दिखता है"।
"तुम मुझे यह सब क्यों बता रहे हो"?
"लिन लिन का चौथा जन्मदिन आने वाला है। अगर तुम बुरा ना मानो, मैं चाहूंगा कि तुम उसके जन्मदिन पार्टी पर आओ।मुझे मालूम है कि हमारा तलाक हो चुका है लेकिन, मैं तुम्हें हमारे बेटे को देखने से नहीं रोकूंगा"।
मुबाइ ने यह बातें तलाक के समय भी कही थी।उसके इस बात से और भी कई हरकतों से उसे पता था कि मुबाइ एक बहुत अच्छा पिता है। यही मुख्य कारण था कि वह अपने बेटे को उसके भरोसे छोड़ आई थी।
पिछले कुछ सालों में, जिंगे के साथ बहुत कुछ हुआ जब अपने बेटे को देखना चाहती थी लेकिन उसने हर बार खुद को रोका। वह नहीं चाहती थी कि उसके बेटे को लगे कि उसकी मां नाकारा है।
लेकिन अब, चीजें बदल चुकी थी।
"ठीक है", जिंगे ने मान लिया। मुबाइ को यह सुनकर राहत की सांस मिली।
उसे लगा था वह फिर मना कर देगी। उसे कोई अंदाजा नहीं था कि वह उसकी आंखों में हामी ढूंढ रहा था।
यात्रा के बाकी समय दोनों चुप थे।
जल्द ही वे अस्पताल पहुंच गए।जिंगे गाड़ी से बाहर निकली और सीधा प्रवेश द्वार की ओर जाने लगी;उसने एक बार भी मुड़कर नहीं देखा। मुबाइ में उसे अस्पताल में जाते हुए देखा और फिर वह वहाँ से चला गया।
अपने चाचा की सिकबे की ओर जाते हुए, जिंगे के दिमाग में उसका बच्चा छाया हुआ था।
वह किसी के सामने भी धैर्य रख सकती थी लेकिन बात जब उसके बेटे की आती, तो वह बहुत कातर-सी हो जाती....
क्या वह उसे पहचान सकेगा?
"तुम वापस आ गई", शिया ची ने ख़ुशी से कहा।
शिया ची को महसूस हुआ कि पिछले कुछ दिनों में वह अपनी बहन के ऊपर कितना निर्भर हो गया है। सुबह-सुबह, वह जब से गई थी, तब से वह शांति से नहीं बैठ सका था ।
अब जब वह आ गई है तो उसे शांति मिली।
"क्या यह मेरे लिए है"?
इससे बहुत अच्छी खुशबू आ रही है"। शिया ची ने अपनी बहन के हाथ से बैग लेते हुए कहा और उसमें रखा हीट-इंसुलेटेड लंच बॉक्स सूंघा।
जिंगे ने कहा"हाँ, यह तुम्हारे लिए है।
"दीदी,क्या तुमने कुछ खाया"?
"हाँ, मैंने खा लिया"।
शिया ची ने एक छोटे से मेज पर अपना खाना रखा। जिंगे ने उसके लिए एक दावत बना रखी थी उसमें मांस भी था।
शिया ची खाने पर टूट पड़ा और उसकी आंखों में संतुष्टि दिख रही थी। उसने पूछा, "दीदी, तुम्हें इतना स्वादिष्ट भोजन बनाने का समय कब मिला? अच्छा यह बताओ, कि तुमने ढूंढा? क्या तुम्हें वह जगह मिला जहाँ हम रह सकते हैं"?
"हाँ, मैंने ढूंढ लिया"।
"क्या बात है, मुझे लगा तुमने यह भोजन वहीँ बनाया। कहाँ है, कितना बड़ा है और वहाँ का किराया कितना है"?
"मुंह में खाने को रखकर इतना बात मत करो। तुम्हें जल्दी घर दिख जाएगा", जिंगे उसे थोड़ा चिढ़ाते हुए बोली। उसे नहीं पता था कि वह इससे कैसे संभाले, उसने पूछा "चाचा कैसे हैं"?
"बेहतर, पिताजी ने अभी दवा ली है और सोने गए हैं... " शिया ची ने अपने मुंह में दूसरा निवाला लेते हुए कहा।
उसके चेहरे पर बहुत शांति थी, " दीदी, बहुत लंबा समय गुजर गया इतने अच्छे खाने खाकर, इस वक्त मुझसे और कुछ मत बोलो"।
जिंगे की तरह, शिया ची को भी हमेशा अपने खाने के खर्चे का ध्यान रखना पड़ता था। ऐसे हालात में वह 180 सेंटीमीटर लंबा हो गया था, लेकिन उसके शरीर में सिर्फ हड्डियां ही थी कोई मांस नहीं था।
जिंगे ने उसकी तरफ देखा और कहा, "भविष्य में तुम जब चाहे इसे खा सकते हो"।
"ठीक है", शिया ची को ऐसा लगा जैसे जिंदगी ने एक मोड़ ले लिया हो और यह उसके और उसके परिवार के लिए अच्छा समय था। उसकी बहन की यादें ताजा हो गई वह जल्द ही ग्रैजुएशन कर लेगा और काम करना शुरू कर देगा।उसके पिता की हालत भी ठीक हो रही है और उसकी बहन एक प्रोग्रामिंग जीनियस साबित हुई थी।
पिछले कुछ दिनों से सब कुछ उनके हिसाब से हो रहा था।
उसे लगा कि अब जिंदगी बेहतर हो जाएगी। अब उसे पैसे बचाना और अपना घर खरीदना था, फिर उन्हें किसी और की छत के नीचे नहीं रहना पड़ेगा।
उसे क्या पता था कि जिंगे ने उसके इस सपने को पहले ही पूरा कर दिया था।
एक सप्ताह के बाद चेंगवू को अस्पताल से छुट्टी मिली। उसे घर पर रहकर आराम करना था।
जिंगे ने उन्हें बंगले में लेकर आई,जो उनका नया घर था।