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Chapter 28 - शिया जिंगे में भारी बदलाव

मदद?

जिंगे को यह मदद नहीं लग रही थी।

शिया ची ने भी तेंजिन के शब्दों में घृणा देखी थी। अपने तरुणसुलभ आक्रोश के साथ वह तेंजिन पर बरस पड़ा।

"हमें तुम्हारा झूठा दान नहीं चाहिए। शिया परिवार खुद के बल-बूते अच्छे से रह रहा है।"

शिया ची के गुस्से का एक और कारण था।

मुबाइ से तलाक के बाद जिंगे अवसाद में डूब गई थी।

कहना नहीं था, कि उसके चेहरे से मुस्कान गायब हो गई थी।

इतना दबाव न होता, तो अपनी मर्ज़ी से कौन मॉं अपने बच्चे को छोड़ती?

शिया ची अपनी बहन के व्यक्तित्त्व से परिचित था, जिंगे में प्राकृतिक लगन की प्रवृत्ति थी। बीते कुछ दर्दनाक वर्षों के बावजूद उसने आह तक न भरी थी।

इसी से यही पता चलता था कि शी परिवार के हाथों उसने कितना कष्ट और दुख सहन किया था।

इस कारण से शिया ची के मन में शी परिवार से जुड़े लोगों के प्रति प्राकृतिक द्वेष था।

शी मुबाइ की नई पत्नी उसी फूटी ऑंख नहीं सुहाती थी।

साहजिक था कि उसकी बहन पर कहर बरपानेवाली औरत के प्रति वह सौजन्यपूर्ण क्यों होता?

तेंजिन उसकी ऑंखों में देखने की हिम्मत जुटा न पाई और उसकी नज़र शिया जिंगे की ओर रही।

"जिंगे, तुम्हें भी ऐसा ही लगता है? सच मानो, हम तुम्हें पैसे देने सिर्फ़ इसलिए आए हैं, क्योंकि तुम लिन लिन की मॉं हो…"

"बहुत हो गया," जिंगे अचानक चीख उठी। उसका स्वर धीमा पर प्रभावी था।

तेंजिन को लगा कि उसके शब्द गले में ही कैद होकर रह गए हों।

न जाने क्यों, जिंगे के शब्दों और भयावह दृष्टि ने उसके दबाकर मौनकर कर दिया था।

उसका सोचना गलत था कि उसने जिंगे की दुखती रग पर हाथ रख दिया था।

"जिंगे, ये भावनाओं में बहने का समय नहीं है। अपने चाचा के बारे में सोचो…"

"चुप बैठो," जिंगे ने कठोरता से कहा, "मैं तुमसे बात नहीं कर रही हूं।"

"तुम…" तेंजिन का चेहरा अचानक गुस्से से लाल हो गया और उसकी ऑंखों में खून दौड़ने लगा।

शिया जिंगे, कुतिया, मुझसे ऐसे बात करने की इसकी हिम्मत कैसे हुई‽

तेंजिन ने अपने आप को संभाला और झूठे दुख के साथ कहा, "जिंगे, मैं तुम्हें ढूंढ रही थी।"

"मेरी बहन तुमसे बात नहीं करना चाहती, क्या तुम बहरी हो‽" शिया ची का गुस्सा समय के साथ बढ़ता जा रहा था।

शी मुबाइ ने इस मूर्ख औरत में क्या देखा?

ज़रूर वह अपना दिमाग कहीं भूल आया होगा, क्योंकि यह औरत मेरी बहन के पासंग में भी नहीं बैठती है।

तेंजिन शुक्रगुज़ार थी कि उस लड़के ने उसे यह जालसाज़ी करने का मौका दिया और वह अपना नाटक चालू रखना चाहती ही थी कि मुबाइ ने धीमे स्वर में कहा, "मैं यहॉं तुम्हें दान दे नहीं आया हूं।"

जिंगे की नज़र से नज़र मिलाकर उसने कहा।

मुबाइ आज उस मकाम पर इसीलिए था कि उसके प्रतिभा को पहचाननेवाली ऑंख थी।

वह चुप रहा था, क्योंकि जिंगे में हुआ बदलाव देखकर उसके पॉंव उखड़ गए थे।

वह किसी और को समझ न आता।

वह अभी भी वही जिंगे थी, पर उसकी ऑंखों में कोई उद्देश्य या स्वत्त्व नहीं था, मानो वह एक आभासी विश्व में रह रही हो।

हालांकि, इस नई जिंगे की ऑंखों में तेज और जोश तो था।

मुबाइ ने उसकी ऑंखों में वह देखा, जो पूरी दुनिया को कदमों पर झुकानेवाले यशस्वी व्यक्तियों में होता है।

यह वह था, जो पैदाइशी महान लोगों में होता है, जिंगे में इस्पात जैसा निश्चय और अपार उत्साह झलक रहा था।

ऐसा लग रहा था कि जिस शिया जिंगे से उसकी शादी हुई थी, वह मूर्छा में थी और उसके सामने एक जागी हुई औरत खड़ी थी।

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