बहुत जल्द एक महीने का वो समय बीत गया, जो अभिजीत ने आकर्ष को दिया था। आख़िरकार वो दिन आ गया, जब आकर्ष और अभिजीत अखाड़े में एक दूसरे का सामना करने वाले थे। सभी के मन में इस समय केवल एक ही सवाल था कि आज के मुकाबले में क्या होने वाला है. पर सब लोगों के विचारों से दूर आकर्ष इस समय दिव्य जल मिलाये पानी से नहा रहा था। पिछले एक महीने में उसने उस पूरे दिव्य जल का इस्तेमाल कर लिया था, जो उसके पास था। नहाने के बाद आकर्ष शीशे के सामने खड़ा हो गया, और अपने शरीर को देखने लगा। उसका शरीर पहले की तुलना में काफी मज़बूत हो गया था। वो अपने शरीर में दौड़ रही ऊर्जा को महसूस कर पा रहा था। अपने शरीर में आये इन बदलावों को देखने के बाद आकर्ष पूरी तरह से संतुष्ट हो गया। आखिरकार एक महीने के कड़े अभ्यास के बाद उसका शरीर अभिजीत का सामना करने लायक बन गया था। नहाने के बाद आकर्ष ने काले रंग के कपडे पहने, जो उसके नए रूप को और भी ज़्यादा आकर्षक बना रहे थे। वो अब पहले के जैसे कमज़ोर नहीं दिख रहा था। आकर्ष अपने ख़यालों में खोया हुआ था, तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी. "मालिक. क्या आप तैयार हो चुके हैं?" यह आवाज़ दीया की थी, जो उसे मुकाबले के बारे में याद दिलाने आई थी। असल में आकर्ष पिछले एक महीने से अपने कमरे में ही अभ्यास कर रहा था। इसलिए दीया उसे बुलाने आई थी। दीया की आवाज़ सुनकर आकर्ष अपने ख़यालों से बाहर आया, उसने अपना ज़रूरी सामान लिया और कमरे का दरवाज़ा खोला। कमरे के बाहर दीया खड़ी थी, जिसने आकर्ष को देखते ही अपनी नज़रे नीचे कर ली। आकर्ष को देखने के बाद उसे बार बार वो ही दृश्य याद आ रहा था, जब आकर्ष उसे चक्र सक्रिय करना सीखा रहा था। आकर्ष ने जैसे ही दीया की ओर देखा तो वह उसे देखता ही रह गया। दीया ने इस समय हरे रंग के कपड़े पहन रखे थे, जो उसको और भी ज्यादा आकर्षक बना रहे थे। थोड़ी देर दीया को निहारने के बाद आकर्ष ने अपने आप को संभाला और दीया से पूछा, "दीया तुम यहां कैसे? क्या तुम्हें मेरी कोई मदद चाहिए.?" दीया ने जब देखा कि आकर्ष उसे एकटक देख रहा है तो उसका चेहरा शर्म से और भी ज्यादा लाल हो गया। पिछले एक महीने के दौरान दिव्य जल के कारण दीया का शरीर काफ़ विकसित हो गया था। दीया ने अपनी नजरें छुपाते हुए आकर्ष से कहा, "मालिक. मालकिन पहले ही अखाड़े की तरफ़ जा चुकी है। उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं जल्दी आ कर आपको मुकाबले के बारे में याद दिला दूं। पर मुझे क्या पता था कि आप पहले से ही मुकाबले के लिए तैयार हैं।" दीया की बात सुनकर आकर्ष मुस्कुराने लगा। दीया आकर्ष और उसकी मां के साथ पिछले एक महीने से रह रही थी। इतना समय एक साथ रहने के बाद भी दीया खुलकर आकर्ष से बात नहीं कर पाती थी। बात करना तो दूर, वह तो उससे नजर भी नहीं मिला पा रही थी। आकर्ष यही सब सोच रहा था तभी उसका ध्यान दीया के बदलते ऊर्जा स्तर पर गया। उसने आश्चर्य से भरी आवाज़ में पूछा, "दीया. क्या तुम शारीरिक मंडल के दूसरे स्तर में प्रवेश कर चुकी हो?" "इसके लिए मैं आपकी आभारी हूं मालिक. अगर आपने अपना बनाया हुआ दिव्य जल मुझे नहीं दिया होता तो, दूसरे स्तर की बात तो दूर, मैं शायद अभी तक योद्धा भी नहीं बन पाती।" दीया ने अपना आभार प्रकट करते हुए आकर्ष से कहा तो आकर्ष हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला, "मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं कि तुम दूसरे स्तर में प्रवेश कर चुकी हो। पर सिर्फ़ दिव्य जल से दूसरे स्तर में प्रवेश करना इतना भी आसान नहीं है। तुमने खुद भी मेहनत की है, इसलिए तुम इस मुकाम पर पहुंची हो। लगता है मेरी बर्फीली तलवार की तकनीक तुम्हारे लिए ज्यादा उचित है। अब क्योंकि तुम योद्धा बन चुकी हो तो इस तकनीक को इस्तेमाल करने के लिए तुम्हें एक तलवार की जरूरत भी होगी। बाद में तुम मेरे साथ बाज़र चलना ताकि मैं तुम्हारे लिए एक तलवार खरीद सकूं" दीया ने थोड़ा सा उदास होते हुए आकर्ष से पूछा, "मालिक.आपने कहा था कि बर्फीली तलवार तकनीक मेरे लिए सबसे ज्यादा उचित है। क्या इसका मतलब यह है कि मैं कोई दूसरी तलवार तकनीक नहीं सीख सकती?" "नहीं. ऐसा नहीं है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें दूसरी तकनीक भी सिखा सकता हूं. क्या तुम सीखना चाहती हो?" "हां बिल्कुल" दीया ने बिना किसी देरी के तुरंत जवाब दिया। उसे डर था कि कहीं आकर्ष अपनी बात से पलट ना जाए। "ठीक है, तो आज मुकाबले से लौटने के बाद मैं तुम्हें दूसरी युद्ध कलाएं सिखाऊंगा।" इतना कहकर आकर्ष ने दीया का हाथ पकड़ा और अखाड़े की ओर चल दिया। आकर्ष ने जैसे ही दिया का हाथ पकड़ा, तो दीया का उदास चेहरा खिल उठा। मिश्रा परिवार के सभी सदस्य जिन्होंने आकर्ष और दीया को एक साथ देखा, वे उनसे ईर्ष्या करने से खुद को रोक नहीं पाए। दीया इस समय 15 साल की जरूरत थी, पर दिव्य जल के कारण उसका शरीर कुछ इस प्रकार से विकसित हुआ था कि जैसे वह 20 साल की हो। लड़के तो लड़के यहां तक की लड़कियां भी दीया की सुंदरता से आकर्षित होने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। मिश्रा परिवार का युद्ध ग्रह इस समय लोगों से भरा हुआ था। क्योंकि अभिजीत पूरे परिवार का एक प्रतिभाशाली शिष्य था। इस कारण परिवार के बड़े बुजुर्गों ने उसका और आकर्ष का मुकाबला एक विशेष अखाड़े में करवाने का सोचा। यह अखाड़ा हरे रंग के चकमक पत्थरों से बना हुआ था, जिसमें सिर्फ विशेष स्थिति में ही मुकाबला करवाया जाता था। अब क्योंकि दोनों प्रतिद्वंदी परिवार के एल्डर्स के बेटे थे इस कारण दोनों का मुकाबला इस अखाड़े में आयोजित किया गया था। "मैंने कभी नहीं सोचा था कि परिवार के दो छोटे शिष्यों के मुकाबले को देखने के लिए सभी एल्डर्स आज यहां इकट्ठा होंगे।" "सही कहा! सिर्फ एल्डर्स ही नहीं बल्कि परिवार के वह सभी लोग, जो व्यापार के लिए दूसरे शहर गए हुए थे, आज यह मुकाबला देखने के लिए वापस सांची कस्बे में आए हैं। इतने लोग तो तब भी इकट्ठे नहीं होते जब परिवार में किसी की शादी हो" "जहां तक मुझे लगता है, यह सब लोग इसलिए आए हैं क्योंकि सातवें एल्डर ने कुलप्रमुख और पहले एल्डर को, इस मुकाबले को देखने के लिए आमंत्रित किया था। अगर यह सब लोग नहीं आते, तो यह कुलप्रमुख का अपमान होता।" अखाड़े के चारों तरफ सभी दर्शकों के बैठने का इंतजाम किया हुआ था। कुछ लोगों ने तो ऐसे स्थान को चुन लिया था जहां से मुकाबले को अच्छी तरह से देखा जा सके। यह सभी लोग परिवार के वह सभी बड़े लोग थे, जिन्होंने व्यापार और युद्ध कलाओं से परिवार को जोड़े रखा था। इन सभी के बीच में मिश्रा परिवार के कुलप्रमुख वर्धन सिंह भी मौजूद थे। वर्धन सिंह के पास, कुछ चुनिंदा स्थानों को छोड़कर, बाकी सभी स्थानों पर मिश्रा परिवार के एल्डर्स और शिष्य बैठे हुए थे। सभी एल्डर्स के बीच रेवती भी मौजूद थी। क्योंकि वह 9वी एल्डर थी, इसलिए उसका स्थान किनारे पर था। रेवती का चेहरा इस समय भावहीन था। जैसे उसे आज के इस मुकाबले से कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो। "रेवती तुमने अपने आप को अच्छे से संभाल रखा है। मुझे नहीं पता था कि तुम ख़ुद पर इतना नियंत्रण रख सकती हो" सातवें एल्डर अमन ने एक कुटिल मुस्कान के साथ रेवती से कहा। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे पहले से पता हो कि आज के मुकाबले का परिणाम क्या होने वाला है। रेवती ने अमन की बात का कोई भी जवाब नहीं दिया। उसने अमन को ऐसे नजरअंदाज किया जैसे वह, वहां पर है ही नहीं। "बस. मैं भी देखता हूं तुम कब तक मुझे नजरअंदाज कर पाती हो। जल्दी तुम्हारा यह घमंड टूट जाएगा जब मेरा बेटा अभिजीत तुम्हारे बेटे आकर्ष को सभी के सामने हराएगा." अमन ने गुस्सा होते हुए अपने आप से कहा। उसे अभिजीत पर पूरा भरोसा था कि उसका बेटा आकर्ष को आज ज़रूर मारेगा। अगर आज आकर्ष बच भी जाए तो भी वह ऐसी हालत में होगा कि जिंदगी भर बिस्तर से उठ नहीं पाएगा। "प्रणाम वरिष्ठ" "प्रणाम वरिष्ठ" सभी दर्शकों के बीच से एक बुजुर्ग व्यक्ति बाहर निकला और कुल प्रमुख वर्धन सिंह की ओर जाने लगा। यह बुजुर्ग व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि मिश्रा परिवार का पहला एल्डर अमर सिंह था। इस दुनिया में परिवार के पहले एल्डर को सम्मान देने के लिए उनके नाम और पद के स्थान पर वरिष्ठ कहा जाता था। अमर सिंह मिश्रा परिवार का ना सिर्फ सबसे ताकतवर योद्धा था, बल्कि वह पूरे मिश्रा परिवार का एकमात्र नोवे स्तर का वैद्य था। सोमाली महाद्वीप में उन्हीं लोगों को वैद्य माना जाता था, जो वैद्य के नोवे स्तर में प्रवेश कर चुके हो। वैद्य बनना बहुत मुश्किल काम था। कहा जाता है कि हज़ार चक्र मध्य मंडल के योद्धाओं में से केवल एक योद्धा ही वैद्य बन पाता है। क्योंकि वैद्य बनने के लिए किसी भी योद्धा को, युद्ध कलाओं के साथ साथ जड़ी बूटियों और रसायनों का ज्ञान भी प्राप्त करना होता था। जिसका मतलब था कि वह योद्धा, युद्ध कला का अच्छे से अभ्यास नहीं कर पाता था और बिना अभ्यास के उसके शरीर में मौजूद ऊर्जा अगले मंडल में प्रवेश नहीं कर सकती थी। सांची कस्बे के तीनों शक्तिशाली परिवारों के पास एक-एक नोवे स्तर का वैद्य मौजूद था। पर केवल मिश्रा परिवार ही एक ऐसा परिवार था, जिनके खुद के परिवार का सदस्य वैद्य था। बाकी दोनों परिवारों के पास जो वैद्य थे, उन्हें पैसों के बदले बुलाया गया था। यानी वह दोनों वैद्य अपनी इच्छा से जब चाहे उन दोनों परिवारों को छोड़कर जा सकते थे। अमर सिंह धीरे धीरे चलते हुए वर्धन सिंह के पास वाले स्थान पर बैठ गए और अखाड़े की ओर देखने लगे। "अभिजीत. अब वरिष्ठ भी आ चुके हैं तो तुम जल्दी से अखाड़े में प्रवेश करो और मुकाबला शुरू करो!" अमन ने एक तेज़ आवाज़ में अभिजीत से कहा। अपने पिता का आदेश मिलते ही अभिजीत अखाड़े की ओर जाने लगा। "वरिष्ठ भी आ चुके हैं और अभिजीत भी अखाड़े में प्रवेश कर चुका है, फिर यह आकर्ष कहां रह गया। वह अभी तक क्यों नहीं आया?" "यह आकर्ष अपने आप को समझता क्या है.वह हम सबके साथ वरिष्ठ को भी इंतजार करवा रहा है।" "कहीं ऐसा तो नहीं.कि आकर्ष अभिजीत से मुकाबला करने से डर रहा है और कहीं जाकर छुप गया है।" एक-एक करके मिश्रा परिवार के सभी सदस्य आकर्ष के बारे में बातें करने लगे। "रेवती. अब तो वरिष्ठ भी आ चुके हैं। तुम्हारा बेटा आकर्ष कहां रह गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अभिजीत का सामना करने से डर रहा है।" अमन ने जानबूझकर तेज़ आवाज़ में रेवती से कहा ताकि उसकी आवाज़ सभी को सुनाई दे सके। "तुम इसकी चिंता मत करो अमन. जब मेरे बेटे ने तुम्हारे बेटे की चुनौती स्वीकार की है तो वह उसका सामना करने भी जरूर आएगा।" रेवती ने हल्का गुस्सा करते हुए अमन से कहा। "रेवती.मुझे लगता है कि हमें यह मुकाबला करवाने की कोई भी जरूरत नहीं है। तुम्हारे बेटे की जगह तुम्हें अखाड़े में प्रवेश करना चाहिए। इस तरह कम से कम तुम अपने बेटे को चोट लगने से तो बचा पाओगी।" परिवार के छठे एल्डर आशुतोष, जिसके चेहरे पर एक बड़े से घाव का निशान था, अमन का पक्ष लेते हुए रेवती से कहने लगा. "आशुतोष तुम्हारी बातों से लग रहा है कि तुम्हें अभिजीत के जीतने पर पूरा भरोसा है।" पांचवे एल्डर सोमदत्त ने रेवती का पक्ष लेते हुए आशुतोष से पूछा। "इसमें भरोसे की क्या जरूरत!. यह तो सभी जानते हैं कि अभिजीत आकर्ष से कितना ताकतवर है। पर शायद तुम्हारी आंखों में सच्चाई देखने की काबिलियत नहीं है।" आशुतोष ने सोमदत्त का मजाक उड़ाते हुए कहा। "आशुतोष अगर ऐसा है तो तुम मेरे साथ एक शर्त क्यों नहीं लगाते. अगर अभिजीत जीता तो मै तुम्हें 500 चांदी के सिक्के दूंगा. और अगर आकर्ष जीता तो तुम मुझे 500 चांदी के सिक्के देना. क्या कहते हो?" सोमदत्त की बातें सुनकर सभी एल्डर्स और शिष्य आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे क्योंकि मिश्रा परिवार में एल्डर्स को हर महीने उनके खर्चे के लिए केवल 20 चांदी के सिक्के मिलते थे। यानी जिन 500 चांदी के सिक्कों की शर्त सोमदत्त इस समय लगा रहा था, उन्हें इकट्ठा करने में उसे कई वर्षों का समय लगा होगा। मिश्रा परिवार के कुलप्रमुख वर्धन सिंह और वरिष्ठ अमर सिंह भी हैरानी के साथ सोमदत्त को देखने लगे। सोमदत्त की बातों से यह स्पष्ट था कि उसे आकर्ष के जीतने पर पूरा भरोसा था। मगर सोचने वाली बात यह थी कि सोमदत्त को आकर्ष पर इतना भरोसा क्यों था? क्या आकर्ष का कोई ऐसा रहस्य भी था जिसके बारे में केवल सोमदत्त जानता था। वहीं दूसरी तरफ सोमदत्त की शर्त सुनकर आशुतोष की आंखें लालच से चमक उठी! आशुतोष को वास्तव में जुआ खेलना बहुत पसंद था। सोमदत्त की शर्त सुनकर उसे ऐसा लग रहा था जैसे सोमदत्त उसे चांदी के सिक्के उपहार में दे रहा है। मगर समस्या यह थी कि आशुतोष के पास इस समय 500 चांदी के सिक्के मौजूद नहीं थे। "क्या हुआ आशुतोष.क्या तुम्हें हारने से डर लग रहा है? मुझे लगता है तुम्हें भी अपनी मां से कहना चाहिए कि वह मेरे साथ शर्त लगाए. इससे तुम भी चांदी के सिक्के गवाने से बच जाओगे।" सोमदत्त ने रेवती की बेइज्जती का बदला लेते हुए आशुतोष से कहा। सोमदत्त का कथन सुनकर आशुतोष का चेहरा तुरंत शर्म से लाल हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह सोमदत्त की बातों का अब क्या जवाब दे। उसने लाचारी से अमन की ओर देखा। "आशुतोष चाचा. आप चांदी के सिक्कों की चिंता ना करें। मैं आपको 500 चांदी के सिक्के देता हूं। इसके अलावा मैं अपनी तरफ से भी 500 चांदी के सिक्कों की शर्त सोमदत्त चाचा के साथ लगाना चाहता हूं. सोमदत्त चाचा क्या आप मेरे साथ शर्त लगाना चाहेंगे?"
अभिजीत ने घमंड से भरी आवाज में कहा। अभिजीत की बात सुनकर सोमदत्त को थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि इतने सालों की बचत के बाद भी वह केवल 800 चांदी के सिक्के बचा पाया था। लेकिन अभिजीत जो कि परिवार का मात्र एक शिष्य था तुरंत 1000 चांदी के सिक्के पेश करने को तैयार था। अगर सोमदत्त यह शर्त हार जाता है तो अपने जीवन भर की पूंजी खो देगा। सोमदत्त के लिए फैसला कर पाना बहुत मुश्किल था कि वो क्या करे। एक तरफ भरोसा था तो दूसरी तरफ जीवन भर की पूंजी