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Chapter 9 - बर्फीली तलवार और चक्र

आकर्ष इस समय पानी के कुंड मे बैठकर सर्प शक्ति का अभ्यास कर रहा था। उसकी ऊर्जा के कारण कुंड का पानी उसके चारो ओर घूम रहा था, मानो कोई पानी का बवंडर हो।

कुंड के इस पानी मे आकर्ष ने सप्त शारीरिक दिव्य जल भी मिलाया था। इसलिए जैसे जैसे वो पानी उसके शरीर मे समा रहा था, उसकी ताकत भी लगातार बढ़ रही थी।

उसके शरीर मे मौजूद मांसपेशियां हर गुजरते समय के साथ मज़बूत हो रही थी।

जब कुंड मे मौजूद सारा दिव्य जल आकर्ष के शरीर में समा गया, तब आकर्ष ने अपनी आँखें खोली।

"लगता है दूसरे स्तर में प्रवेश करना इतना भी आसान नही है जितना मैंने सोचा था।"

इतना कहकर आकर्ष ने अपने शरीर की जांच की। उसका शरीर पहले से ज़्यादा मज़बूत हो गया था मानो पत्थर का बना हो। वो अपने शरीर मे मौजूद शक्ति को महसूस कर पा रहा था।

"अगर मैंने जल्दी से शारीरिक मंडल के तीसरे स्तर मे प्रवेश नहीं किया तो मै अभिजीत से हार जाऊंगा। उसे हराने के लिए मुझे कम से कम तीसरे स्तर मे तो प्रवेश करना ही पड़ेगा। वरना मै  शिलालेख तकनीक से बनी इस अंगूठी के होते हुए भी अभिजीत से हार जाऊंगा।"

अभिजीत शारीरिक मंडल के चौथे स्तर का योद्धा था। इस कारण वो आकर्ष से कई गुना ज़्यादा ताकतवर था। इसके अलावा चौथे स्तर मे प्रवेश करने के कारण उसका शरीर भी काफ़ी मज़बूत था। यानी अगर वो अपने कमज़ोर शरीर के साथ उस पर छुपकर वार भी करता है, तो भी वो उसे नहीं हरा सकता। अब आकर्ष के पास केवल एक ही रास्ता था, जिससे वो अभिजीत को हरा सकता था। और वो रास्ता था अपने आप को अभिजीत के जितना मज़बूत बनाना।

अगर आकर्ष इस महीने के अंत तक तीसरे स्तर मे प्रवेश नहीं करता है, तो चाहे अभिजीत उसके सामने पंचिंग बैग की तरह ही क्यों ना खड़ा हो, वो फिर भी उसे हरा नहीं सकेगा। यह बिलकुल ऐसा ही था जैसे एक बच्चे से एक आदमी का मुकाबला करवाया जाए। बच्चा कितनी ही कोशिश क्यों ना कर ले वो एक आदमी को नहीं हरा सकता। यदि एक आदमी अपने दुश्मन के कवच को भेद कर उसे घायल नहीं कर सकता तो उसकी ताकत का क्या फायदा?

"अरे नहीं, मुझे दीया से मिलने भी जाना था।"

आकर्ष को अचानक से याद आया कि उसे दीया से मिलने भी जाना था। इसलिए वो जल्दी से अपने कमरे से बाहर निकला और दीया के कमरे की ओर जाने लगा।

वो सोचने लगा कि वो दीया को कोनसी युद्ध कला सिखाये। क्योंकि उसके पास कोई सामान्य युद्ध कला नहीं थी। उसके पास मौजूद सारी युद्ध कलाएं लक्ष की थी, जिन्हें केवल अनंत मंडल के योद्धा सिख सकते थे। उसके पास ऐसी युद्ध कलाएं बहुत कम थी जिनका अभ्यास शुरूआती स्तर के योद्धा कर सकते थे।

ऐसा नहीं था कि आकर्ष दीया को अनंत मंडल की युद्ध कला सिखाना नहीं चाहता था, पर वो चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता था। क्योंकि अनंत मंडल की युद्ध कला बहुत ही ज़्यादा शक्तिशाली और रहस्यमयी थी। उनका अभ्यास करना तो दूर उन्हें समझना भी बेहद मुश्किल था।

"शायद यह तकनीक दीया के लिए सही रहेगी। पर इसका नाम बहुत ही ज़्यादा कठिन है। क्यों ना मै खुद ही इसको एक नया नाम दे दूँ? ठीक है. अब से मै इस कला को बर्फीली तलवार कहूंगा।" आकर्ष ने अपने आप से ही कहा।

बर्फीली तलवार का वास्तविक नाम शीतखड्ग था। पर क्योंकि आकर्ष इस दुनिया मे अपनी पहचान सभी से छुपाना चाहता था, इसलिए उसने इस युद्ध कला का नाम बदल दिया। बर्फीली तलवार नामक यह युद्ध कला लक्ष को अपने पहले जीवन के दौरान एक अनत मंडल के योद्धा से मिली थी। इसके अलावा वो योद्धा भी एक महिला थी, इस कारण आकर्ष को यह युद्ध कला दीया के लिए बिल्कुल सही लगी।

चाहे धरती की बात हो या इस दुनिया की, जिसमें आकर्ष अभी था, महिलाएं पुरषों की तुलना में कमज़ोर थी। यह एक ऐसा तथ्य है, जिसे कोई भी नकार नहीं सकता। इसके अलावा, अगर सोमाली महाद्वीप में कोई महिला ताकतवर बनना चाहती और अपने आप को साबित करना चाहती, तो उसे पुरुषों की तुलना में अधिक मेहनत करनी पड़ती थी।

इस कारण आकर्ष उस महिला के बारे मे जानने को बहुत उत्सुक था, जिसने लक्ष के पहले जीवन के दौरान अपने आप को इतना शक्तिशाली बनाया था, कि ना सिर्फ़ उसने अनंत मंडल मे प्रवेश किया बल्कि बर्फीली तलवार जैसी ताकतवर युद्ध कला का भी निर्माण किया।

"अच्छा हुआ। मेरे पास लक्ष की यादें हैं। वरना मेरा क्या होता। और जहां तक बात है दीया की, तो उसके लिए बर्फीली तलवार ही सही है।"

यही सब सोचते हुए वो दीया के कमरे के बाहर पहुंच गया।

उसने हल्के से दरवाजा खटखटाया.

थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुला और एक लड़की की आवाज़ आकर्ष को सुनाई दी।

"मालिक, आप यहां.?"

दीया ने जब आकर्ष को अपने सामने देखा तो उसका चेहरा लाल होने लगा। वो आकर्ष से अपनी नज़रे छुपाने लगी।

आकर्ष ने दीया से कुछ नहीं कहा। उसने चुपचाप कमरे में प्रवेश किया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया।

"दीया, मैने सोच लिया है कि मै तुम्हे कोनसी युद्ध कला दूंगा, पर पहले तुम्हे शारीरिक मंडल के बारे मे जानना होगा। इसके अलावा जो युद्ध कला मै तुम्हे दूंगा तुम्हे उसे भी अच्छे से समझना होगा और उसका अभ्यास करना होगा।"

आकर्ष ने हल्का मुस्कराते हुए दीया से कहा। जो अभी भी उससे अपनी नज़रे छुपा रही थी। वैसे इसमे दीया की भी कोई गलती नहीं थी। आकर्ष ने दीया से जो शब्द कहे थे, उनका दीया ने अलग ही मतलब निकाल लिया था।

अब आकर्ष की बात सुनकर दीया ने हल्के से अपना सिर सहमति में हिलाया। अब जाकर उसे समझ आया, कि आकर्ष ने पहले उससे जो कहा था उसका असल मतलब क्या था।

दीया वास्तव में एक बुद्धिमान लड़की थी।

अब आकर्ष ने दीया को बर्फीली तलवार के बारे मे बताना शुरू किया। दीया के लिए यह युद्ध कला बिलकुल नई थी, इस कारण उसे युद्धकला समझने और अभ्यास करने मे समस्या आने लगी। असल मे आकर्ष ने युद्धकला का नाम ज़रूर बदल दिया था, पर जिस प्राचीन भाषा में यह युद्धकला आकर्ष को याद थी, उसे सिर्फ़ वो ही समझ सकता था।

"मालिक, मैंने इस युद्ध कला को याद ज़रूर कर लिया है, पर इसका अभ्यास कैसे करना है उसके बारे में मुझे कोई भी जानकारी नहीं है। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इस युद्ध कला मे बताये चक्र हमारे शरीर मे कहाँ पर स्थित है?" दीया ने आकर्ष की ओर उत्सुकता से देखते हुए पूछा।

आकर्ष ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा, "माफ़ करना मै जल्दबाज़ी मे तुम्हे चक्रों के बारे मे बताना तो भूल ही गया?"

इस बात पे दीया चौंक कर हस दी, और अपना चेहरा छुपाते हुए आकर्ष से बोली, "मालिक आप मुझसे माफ़ी क्यों मांग रहे हैं?"

वैसे वो सच मे एक योद्धा बनना चाहती थी ताकि हमेशा आकर्ष के साथ रह सके और उसकी मदद कर सके। उसके लिए आकर्ष ही उसका सब कुछ था। क्योंकि अगर वो नहीं होता तो शायद इस समय वो भी ज़िंदा नहीं होती।

कुछ सोचने के बाद आकर्ष ने दीया को अपने सामने बैठने को कहा। अब उसने दीया के पेट की ओर इशारा करते हुए पहले चक्र के बारे मे बताना शुरू किया। वास्तव मे यह चक्र कोई शारीरिक सरंचना नहीं थे। यह कुछ ऐसे विशेष बिंदु थे जो सिर्फ योद्धा बनने वाले लोगों के शरीर पर मौजूद होते थे। जैसे एक सामान्य व्यक्ति के शरीर मे एक्यूपंक्चर पॉइंट्स होते हैं। और इन बिंदुओं को चक्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनसे जो ऊर्जा बनती है, वो पुरे शरीर में प्रवाहित होती है, जिससे योद्धा एक के बाद एक मंडल मे प्रवेश करके ताकतवर बनता जाता है।

अब आकर्ष ने दीया की नाभि की ओर इशारा करते हुए दूसरे चक्र के बारे में बताना शुरू किया।

जहां एक तरफ आकर्ष दीया को चक्रो के बारे मे बता रहा था, वहीँ दूसरी तरफ दीया के मन मे कुछ और ही चल रहा था। इस समय तक उसका चेहरा पूरी तरह से लाल हो चुका था। आकर्ष उसके बहुत करीब बैठा था और क्योंकि वो मन ही मन आकर्ष को पसंद करती थी, इस कारण वो अपना ध्यान एक जगह केंद्रित नहीं कर पा रही थी।

आकर्ष को पहले तो समझ नहीं आया कि दीया को क्या हुआ है। पर जैसे ही उसे एहसास हुआ, तो वो दीया से थोड़ा दूर हो गया और पूछा।

"दीया, क्या अब तुम्हे युद्ध कला याद हो गयी है? क्या तुम इसका अभ्यास कर सकती हो?"

"ह.ह.ह.हाँ. म.म.म.मैं अब इसका अभ्यास कर सकती हूँ।"

दीया का चेहरा सेब की तरह लाल हो गया था। उसकी आवाज़ कांप रही थी क्योंकि वह बहुत शर्म महसूस कर रही थी।

आकर्ष ने बिना किसी देरी के बाकी चक्रों के बारे मे बताना शुरू किया।

जैसे जैसे आकर्ष का हाथ चक्रों के बारे मे बताते हुए दीया के नाभि से होकर ऊपर की ओर जा रहा था, वैसे वैसे दीया और भी ज़्यादा शर्म से लाल हो रही थी। हालाँकि दीया की उम्र मात्र 15 वर्ष ही थी, पर सोमाली महाद्वीप मे इसे विवाह योग्य उम्र माना जाता था।

आकर्ष अपने पहले जीवन में बहोत सी महिलाओं से मिला था, पर दीया की बात कुछ अलग थी। वैसे इस दुनिया में 15 वर्ष शादी की उम्र थी। लेकिन आकर्ष एक कमांडो था, और उसकी दुनिया में यह उम्र शादी लायक नहीं थी। आकर्ष सब कुछ कर सकता था। पर उसके कुछ नियम थे, जिन्हे वो किसी भी हालत में नहीं तोड़ सकता था।

साथ में वो यह भी जानता था कि दीया उसे सच में पसंद करती है। यह कोई आकर्षण नहीं था। वो उसकी भावनाओ को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था। इस दुनिया में रहते हुए और लक्ष की यादों से उसे यह भी समझ आ चुका था कि यह दुनिया जितनी अच्छी दिखती है, उतनी है नहीं। अगर किसी दिन उसके किसी दुश्मन ने दीया को हानि पंचाई, तो वो अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पायेगा। इसलिए उसने दीया से इस बारे में बात ना करना ही ठीक समझा। आख़िरकार धोखे और षड्यंत्र के लिए दीया बेहद मासूम थी।

"दीया, तुम चाहो तो थोड़ा आराम कर सकती हो!"

आकर्ष ने दीया से कहा, जो अपने चक्रों को सक्रिय करते हुए पसीने से पूरी तरह भीग गयी थी।

"मालिक.चिंता ना करे। मैं बिलकुल ठीक हूँ।" दीया ने निडरता से कहा।

दीया का जवाब सुनकर आकर्ष ने अगले चक्र को सक्रिय करने के बारे में बताना शुरू किया।

पर दीया ने जैसे ही चक्र को शुरू करना चाहा, तो उसे अचानक से कमज़ोरी महसूस होने लगी। वो अपने आप को संभाल नहीं पायी और आकर्ष की बांहों मे गिर गयी।

इससे पहले की आकर्ष कुछ समझ पाता, दीया उसके ठीक सामने थी। वह उसके इतने करीब थी कि वो उसकी साँसों की आवाज को भी साफ़ सुन पा रहा था।

इस समय अगर कोई दूसरा व्यक्ति होता तो वो दीया का फायदा उठाने की सोचता, पर आकर्ष बाकी सबसे अलग था। वो अपने नियमों को नहीं तोड़ सकता था।

आकर्ष को शुरू शुरू में तो कुछ महसूस नहीं हुआ, पर कुछ देर बाद अचानक उसके शरीर में तेज दर्द होने लगा। दरअसल दीया ने जिस युद्ध कला का अभ्यास अभी किया था, वो उसकी ऊर्जा को नियंत्रित नहीं कर पा रही थी। इसलिए अब वो ऊर्जा उसके शरीर से होते हुए आकर्ष के शरीर में प्रवेश कर रही थी। यह ऊर्जा इतनी शक्तिशाली थी कि आकर्ष के पुरे शरीर में दर्द होने लगा।

"म.म.मालिक.क्या आप ठीक है?" दीया ने कांपते हुए स्वर में आकर्ष से पूछा।

आकर्ष को बहुत तेज दर्द हो रहा था, पर उसने इस बारे में दीया को कुछ भी नहीं बताया। उसने धीरे से कहा "दीया. तुम बाकी के चक्रों के बारे में, मां से पूछ लेना। अभी मुझे जाना होगा।"

आकर्ष ने दीया से कुछ भी नहीं कहा, पर अब तक दीया समझ चुकी थी कि आकर्ष की हालत ठीक नहीं है।

इससे पहले की दीया आकर्ष से कुछ कहे, आकर्ष तुरंत अपनी जगह से खड़ा हुआ और जल्दी से कमरे के बाहर चला गया।

आकर्ष यह भी समझ चुका था कि अगर वो ज़्यादा देर तक दीया के कमरे में रहा, तो लोग दीया के बारे में उल्टी सीधी बातें करने लगेंगे। जो कि आकर्ष को स्वीकार नहीं था। दीया इस समय मात्र 15 साल की थी। अगर उसे ऐसे अपमान का सामना करना पड़ा तो वो अपने आप को ख़त्म कर लेगी।

"आकर्ष, तुम इस समय दीया के कमरे से बाहर आ रहे हो?"

दर्द और हड़बड़ाहट में चलता हुआ आकर्ष, बाहर खड़ी रेवती से जा टकराया। अपनी माँ को सामने देख आकर्ष थोड़ा घबरा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अब क्या जवाब दे।

"माँ, मुझे कुछ काम करने हैं। मैं अपने कमरे में वापस जा रहा हूँ।" आकर्ष ने जल्दी से अपने कमरे में जाते हुए,  रेवती से कहा।

रेवती ने जब आकर्ष को घबराया देखा, तो वो समझ गयी कि क्या हुआ होगा। वो खुद एक अनुभवी महिला थी।  पर साथ में उसे आकर्ष का वो चेहरा याद कर हंसी भी आ रही थी।

कुछ देर बाद रेवती ने दीया के कमरे में प्रवेश किया, जिसका दरवाज़ा अभी भी खुला था।

"दीया, तुम."

रेवती ने कमरे में आते ही दीया की ओर देखा, जो अपने बिस्तर पर बैठी थी। दीया की हालत देख, एक पल के लिए रेवती को थोड़ा शक हुआ, क्योंकि दीया की ऊर्जा पहले की तुलना में बढ़ चुकी थी।

दीया ने जल्दी से रेवती की ग़लतफ़हमी दूर करते हुए कहा,

"मालकिन जैसा आप सोच रही है, वैसा कुछ भी नहीं है। मालिक मुझे बस चक्रों के बारे में बता रहे थे। पर मेरी ऊर्जा के एकदम से बढ़ने के कारण मालिक को बाहर जाना पड़ा"

"चक्रों के बारे में.?"

दीया की बात सुनकर रेवती का मुस्कराता चेहरा एकदम से गंभीर हो गया। जहां तक उसे याद था, आकर्ष ने कभी भी चक्रों का अध्ययन नहीं किया था। फिर उसे चक्रों के बारे में जानकारी कैसे मिली? क्या इसके बारे में भी उस बूढ़े व्यक्ति ने ही आकर्ष को बताया होगा?

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