घर वापस आने के बाद आकर्ष सबसे पहले उस लड़की के साथ अपनी मां रेवती से मिलने गया। रेवती को थोड़ा झटका लगा जब उसने देखा कि उसका बेटा एक जवान लड़की को घर ले आया है।
हालाँकि उस लड़की के कपड़े काफ़ी पुराने थे, लेकिन वो उसकी प्राकृतिक सुंदरता को छिपा नही पा रहे थे। वो खूबसूरत लड़की पहली नज़र मे ही, रेवती को पसंद आ गयी थी।
"यह मेरी माँ है," आकर्ष ने उस लड़की से रेवती का परिचय करावाया।
"मेरा नाम 'दीया' है, आपसे मिलकर अच्छा लगा मालकिन" दीया ने रेवती को प्रणाम करते हुए कहा।
रेवती से मिलकर उसका सुंदर चेहरा खिल उठा था, जिससे वह और भी ज़्यादा सुंदर लग रही थी। रेवती मे उसे अपनी माँ की झलक दिखाई दे रही थी।
रेवती ने फीकी मुस्कान के साथ आकर्ष की ओर देखते हुए पूछा, "आकर्ष, यह सब क्या है?"
उसे उम्मीद नही थी कि उसका बेटा, जो अभी थोड़ी देर पहले ही घर से बाहर गया था, एक खूबसूरत जवान लड़की के साथ लौट आएगा।
"माँ, आप जैसा समझ रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है." आकर्ष ने जल्दी से अपनी माँ को समझाते हुए कहा। उसने रेवती को पूरी कहानी सुनाई कि कैसे वह उस लड़की, 'दीया' से मिला। उसने कोई भी बात नही छिपाई, वह हिस्सा भी जहाँ उसने आहूजा परिवार के बेटे प्रणव आहूजा और उसके साथियों को सबक सिखाया था।
"क्या यह वही प्रणव आहूजा है जो पूरे साँची में बदनाम है? यदि तुमने उसे सबक सिखाया है तो कोई बात नही। अगर आहूजा परिवार यहां आकर परेशानी पैदा करने की कोशिश भी करता है, तो भी मै तुम्हारे साथ हूँ। वो तुम्हे कुछ करना तो दूर, छू भी नही पाएंगे। तुमने कुछ गलत नही किया है, प्रणव जैसे लड़को के साथ ऐसा ही करना चाहिए।"
रेवती ने शांत स्वर मे कहा। अब उसने दीया की ओर देखा। उसकी आँखे मातृप्रेम से भरी हुई थी।
"दीया, क्योंकि तुम्हारे परिवार का कोई भी सदस्य अब इस संसार मे नही है, इसलिए अब से तुम हमारे साथ रह सकती हो। वैसे भी, मेरी दासी शादी करने कल ही अपने गाँव चली गयी। इसलिए तुम उसके कमरे मे रह सकती हो।"
रेवती ने दीया की ओर स्नेहपूर्वक देखते हुए कहा जिसपर दीया ने जल्दी से आभार व्यक्त किया, "आप का धन्यवाद मालकिन" उसके गुलाबी चेहरे पर उत्साह से भरी एक मुस्कान आ गयी थी।
"मेरे साथ चलो, मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ कपडे हैं। तुम चाहो तो उन्हें रख सकती हो।"
रेवती ने दीया का हाथ पकड़ा और उसके साथ अपने शयनकक्ष मे चली गई।
….
जब दीया रेवती के साथ शयनकक्ष से बाहर आयी, तो वह सफ़ेद रंग के चमकीले और नए कपड़े पहन चुकी थी। रेवती ने उसे अच्छे से तैयार किया था, जैसे वो उसकी खुद की बेटी हो।
उसके लंबे काले बाल अब बंधे हुए थे, और उसके सुंदर चेहरे पर एक अलग और आकर्षक चमक थी, जिससे वह किसी खिले हुए कमल की तरह लग रही थी।
उसकी भौहें, आँखें, सुन्दर नाक और लाल होंठ. सब कुछ बहुत आकर्षक लग रहा था। उसकी कमर इतनी पतली थी कि उसे एक ही हाथ से पकड़ा जा सकता था; उसके कोमल हाथ, लंबे और पतले पैर। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई अप्सरा है, जो अभी अभी स्वर्ग से धरती पर उतरी है।
"दीया, तुम इन कपड़ो मे बहोत सुन्दर लग रही हो"
रेवती ने दीया की प्रशंसा करते हुए कहा,
"दीया, ये मेरे बचपन के कपड़े हैं। मै इन्हे कभी पहन नही पाई। अगर तुम्हे ये पसंद हैं तो तुम इन्हे रख सकती हो।"
आकर्ष जो अभी भी शयनकक्ष के बाहर ही खड़ा था, दीया के इस नए रूप को देखने के बाद अपनी नज़र उस पर से हटा नही पा रहा था।
आकर्ष को देख, रेवती ने हल्का मुस्कराते हुए, दीया से कहा "देखो, मैने केवल तुम्हे थोड़ा सा तैयार किया है, पर किसी की नज़र तुम से हट ही नही पा रही है। लगता है कोई तुम्हे पसंद करने लगा है।"
अपनी माँ के शब्दों से आकर्ष को थोड़ी असहजता महसूस हुई, और उसने अपनी नज़रें दूसरी ओर कर ली।
दीया की सुंदरता ने वास्तव मे उसे मंत्रमुग्ध कर दिया था।
अपने पिछले जीवन मे, आकर्ष कई महिलाओं से मिला था। वे महिलाएँ सुंदर ज़रूर थीं, लेकिन उनमे दीया जैसी सरलता और विनम्रता का अभाव था। उनकी तुलना दीया से नही की जा सकती थी।
"मालकिन, मै तो मात्र एक दासी हूँ… ऐसे सुन्दर कपड़े पहनना मेरे लिए ठीक नही है।"
रेवती ने जो प्रशंसा के शब्द उसके लिए कहे थे उन्हें सुनकर उसका पूरा चेहरा शर्म से लाल हो गया था।
रेवती ने अपनी हंसी छुपाते हुए दीया से कहा, "किसने कहा कि तुम एक दासी हो? अगर मै तुम्हें अपनी दासी बनाना भी चाहूं, तो मुझे डर है कि कोई मुझे ऐसा करने नही देगा.'
आकर्ष अवाक रह गया। शुरू से अब तक उसने एक भी शब्द नही बोला था, फिर भी उसकी माँ का निशाना बार बार वो ही बन रहा था। वहीँ रेवती की बात सुनकर दीया का चेहरा और भी ज़्यादा लाल हो गया था।
हालाँकि रेवती और आकर्ष ने दीया को दासी के रूप मे स्वीकार नही किया था, लेकिन दीया अपने आप को उनकी दासी मान चुकी थी इसलिए घर के काम मे वो रेवती की मदद करने लगी।
आकर्ष और रेवती ने उसे अपनी दासी ना बनाकर पहले ही उस पर बहुत बड़ा अहसान कर दिया था। अब रेवती ने उसे उनके घर मे रहने की अनुमति भी दे दी थी। यदि वह उनके अहसान चुकाने के लिए कुछ नही करती, तो उसके दिल को शांति नही मिलती।
दयालु, समझदार और बुद्धिमान होने के कारण दीया जल्द ही रेवती और आकर्ष के साथ घुलमिल गयी और उनके छोटे-से परिवार का हिस्सा बन गयी।
इधर आहूजा परिवार के महल मे, एक अधेड़ उम्र का आदमी महल के आँगन में खड़ा था, और बार बार पास के शयनकक्ष की ओर देख रहा था।
अचानक शयनकक्ष का दरवाज़ा खुला और अंदर से एक बूढ़ा आदमी निकला।
"आचार्य सूर्यकान्त, मेरे बेटे की हालत अब कैसी है?" अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने बूढ़े आचार्य से पूछा तो आचार्य सूर्यकान्त ने सिर हिलाते हुए आह भरी और कहा,
"श्रीकांत, जिस भी व्यक्ति ने तुम्हारे बेटे को मारा है, वह बेहद निर्दयी है। तुम्हारे बेटे की रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से टूट गई है. नौवें स्तर की सुवर्णक्षति गोली लेने के बाद भी, उसके ठीक होने के कोई संकेत नहीं है। मै कुछ भी करने मे असमर्थ हूं; मुझे क्षमा करे।"
"क्या.?" अधेड़ उम्र के व्यक्ति के चेहरे का रंग तुरंत उड़ गया।
आचार्य सूर्यकांत, जो एक नौवें स्तर के वैद्य थे और उन्हें आमंत्रित करने के लिए उनके आहूजा परिवार ने एक मोटी रकम चुकाई थी, वो भी उसके बेटे का उपचार करने मे असमर्थ थे। क्या इसका मतलब यह है कि उनका बेटा हमेशा के लिए अपंग हो गया है। वो जीवन भर बिस्तर पर ही पड़ा रहेगा?
"श्रीकांत!"
ठीक इसी समय, एक मध्यम आयु वर्ग का व्यक्ति अंदर आया और उसने श्रीकांत को एक बक्सा दिया।
"यह आठवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली है, जल्दी से इसे तुम्हारे बेटे को दो। क्या पता इससे उसके घाव जल्दी भर जाए।"
"कुलप्रमुख!" श्रीकांत ने हैरानी से आहूजा परिवार के कुलप्रमुख की ओर देखा।
पहले वो भी कुलप्रमुख से आठवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली माँगना चाहता था। पर वो यह भी जानता था कि आहूजा परिवार के पास केवल एक ही आठवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली है, इसलिए उसने कुलप्रमुख से गोली नही मांगी थी।
लेकिन अब कुलप्रमुख ख़ुद उसे सुवर्णक्षति गोली दे रहे हैं, तो वह ख़ुद को उत्साहित होने से रोक नहीं सका।
"श्रीकांत, अगर मेरा बेटा परेशानी पैदा नही करता, तो तुम्हारा बेटा घायल नही होता। मैं इस घटना के लिए माफ़ी मांगता हूं. जहां तक मेरे बेटे की बात है, मै निश्चित रूप से उसे कड़ी सजा दूंगा."
आहूजा परिवार के कुलप्रमुख अभय आहूजा ने शर्म और अफसोस व्यक्त करते हुए श्रीकांत से कहा।
कुलप्रमुख अभय की बात सुनकर श्रीकांत का गुस्सा भी शांत हो गया और वह घुटनों के बल बैठ गया; उसके दिल मे नाराजगी का जो भी अंश था, वो आंसुओं द्वारा पूरी तरह से तिरोहित हो गया।
"श्रीकांत. यह तुम क्या कर रहे हो। जल्दी से उठो और अपने बेटे को यह औषधीय गोली दो" अभय आहूजा ने कहा।
श्रीकांत खड़ा हो गया और अभय से सुवर्णक्षति गोली लेने के लिए अपने हाथों को आगे बढ़ाया।
तभी आचार्य सूर्यकान्त ने अचानक से कहा,
"श्रीकांत, अगर मैं सीधे-सीधे कहूं तो आठवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली तो क्या, सातवे स्तर की सुवर्णक्षति गोली भी तुम्हारे बेटे का उपचार करने मे असमर्थ होगी! अगर तुम्हारे पास अस्थिचक्र गोली हो तो तुम्हारा बेटा ठीक हो सकता है. लेकिन अस्थिचक्र गोलियाँ बहुत समय पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। आज के समय शायद ही ऐसा कोई वैद्य मौजूद है, जो इस गोली को बना सकता हो।"
श्रीकांत का बढ़ाया हुआ हाथ बीच हवा मे ही रुक गया और उसके दिल मे जो आशा थी वो बेरहमी से टूट गई।
अभय ने श्रीकांत का होंसला बढ़ाते हुए कहा,
"फिर भी, तुम्हारे बेटे को इस सुवर्णक्षति गोली का सेवन करने दो। क्या पता उसकी हालत मे कुछ सुधार आ जाए।"
श्रीकांत ने अपना सिर निराशा में हिलाया।
"कुलप्रमुख, इसकी कोई आवश्यकता नही है। मुझे आचार्य सूर्यकान्त की क्षमता पर पूरा भरोसा है। अगर इनका कहना है कि इस गोली का मेरे बेटे पर कोई असर नही होगा, तो मै भी यही चाहूंगा कि मेरे बेटे पर इस बहुमूल्य औषधीय गोली को बर्बाद ना किया जाए।"
"अभी मैं बस उस व्यक्ति का पता लगाना चाहता हूं. जिसने मेरे बेटे की यह हालत की है। जब तक मै उस व्यक्ति को मार नहीं दूंगा तब तक मेरे कलेजे को ठंडक नही मिलेगी।"
गहरी सांस लेते हुए श्रीकांत ने अभय से कहा। उसकी आँखे गुस्से और नफरत से भरी हुई थी।
जवाब मे अभय आहूजा ने कठोर स्वर मे कहा,
"श्रीकांत, तुम चिंता मत करो, पूरा आहूजा परिवार उस व्यक्ति को ढूंढने मे कोई कसर नही छोड़ेगा"
"धन्यवाद! कुलप्रमुख"
वहीँ दूसरी ओर मिश्रा परिवार के महल में, सभी मिश्रा परिवार के सदस्यों को यह खबर मिल चुकी थी कि अगले महीने, मिश्रा परिवार का प्रतिभाशाली योद्धा 'अभिजीत' और नौवें एल्डर का बेटा आकर्ष अखाड़े में मुकाबला करने वाले हैं।
यहां तक कि अमन को अभिजीत के जीतने पर इतना भरोसा था कि वो मिश्रा परिवार के कुलप्रमुख 'वर्धन सिंह' और पहले एल्डर को भी निमंत्रण देकर आ गया था। वो चाहता था कि सभी उसके बेटे को जीतते हुए और आकर्ष को हारते हुए देखे। इस तरह उसे दोगुनी खुशी मिल रही थी। इस मुकाबले से ना सिर्फ़ रवि का बदला पूरा हो रहा था, बल्कि वो भी रेवती से अपनी हार का बदला ले पा रहा था।
इस खबर से मिश्रा परिवार के सभी सदस्यों में एक सनसनी फ़ैल गयी थी।
"जिस समय आकर्ष ने रवि को घायल किया था, मैं उसी समय समझ चुका था कि सातवे एल्डर अमन और अभिजीत, आकर्ष को इतनी आसानी से नहीं जाने देंगे। वो आकर्ष से इसका बदला लेंगे। और देखो.जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ।"
"अभिजीत शारीरिक मंडल के चौथे स्तर का योद्धा है। पर अपने भाई के लिए वो आकर्ष से भी मुकाबला करने को तैयार है। जो कि शारीरिक मंडल के पहले स्तर का योद्धा है। इस कारण शायद सब अभिजीत का मज़ाक उड़ाएंगे, पर उसके लिए उसकी इज़्ज़त से भी ज़्यादा ज़रूरी उसका भाई है। "
"मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा है कि आकर्ष ने अभिजीत की चुनौती स्वीकार क्यों की? उसे भी पता है कि वो अभिजीत से नहीं जीत सकता। कहीं ऐसा तो नहीं कि जब रवि ने पिछली बार उसे पीटा था तो उसके दिमाग में चोट लग गयी हो?"
"अभिजीत आसानी से आकर्ष को जाने नहीं देगा। वो भले ही उसे जान से ना मार पाए, पर उसे हमेशा के लिए अपंग तो ज़रूर बना देगा।"
आकर्ष से किसी को भी उम्मीद नहीं थी। वैसे यह स्वाभाविक भी था क्योंकि उन दोनों की ताकत का अंतर कुछ ऐसा था मानो एक शेर हो और दूसरा बकरा।
उनमें से एक इतना प्रतिभाशाली था कि उसने सोलह वर्ष की उम्र मे ही, शारीरिक मंडल के चौथे स्तर में प्रवेश कर लिया था।
तो दूसरा इतना कमज़ोर कि अभी तक केवल शारीरिक मंडल के पहले स्तर मे ही प्रवेश कर पाया था।
हालाँकि आकर्ष का पतन पंच दूसरे स्तर के योद्धा रवि को हराने में सफल हो गया था। पर अभिजीत की बात अलग थी। रवि और अभिजीत भाई ज़रूर थे लेकिन उन दोनों की ताकत समान स्तर पर नहीं थी।
सभी आकर्ष और अभिजीत के मुकाबले के बारे मे बातें कर रहे थे। पर उनकी बातो का मुख्य विषय आकर्ष इस समय गायब था।
"आख़िरकार!"
अपने दाहिने हाथ की मध्य उंगली पर मौजूद अंगूठी को देखते हुए, आकर्ष के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
लक्ष की यादों की मदद से उसने इस अंगूठी का निर्माण किया था। जो कि शिलालेख तकनीक पर आधारित थी।
"अभिजीत, अब तुम बस हमारे मुकाबले का इंतज़ार करो। जब समय आएगा तब मैं तुम्हे एक ऐसा उपहार दूंगा जिसे तुम ज़िंदगी भर नहीं भूल पाओगे।"
आकर्ष के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कराहट आ चुकी थी।
"मालिक, आपका नहाने का पानी तैयार है।" दीया ने शयनकक्ष में आकर आकर्ष से कहा।
आकर्ष ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और दीया के माथे से पसीना पोंछते हुए कहा, "दीया, तुम थक गई होगी। जाओ, थोड़ा आराम कर लो।"
आकर्ष के चेहरे से वो शैतानी भाव अब गायब हो चुके थे।
उसने हल्का मुस्कराते हुए दीया से कहा, "दीया, अब से तुम्हे यह सब काम करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अपने सारे काम खुद कर सकता हूँ। वैसे भी तुम मेरी दासी नहीं हो।"
"मालिक आप मेरी चिंता ना करे। आपके दिए उस दिव्य जल से नहाने के बाद मेरा शरीर पहले से ज़्यादा मज़बूत हो चुका है। मैं ये सब काम आसानी से कर सकती हूँ।"
दीया ने अपने छोटे हाथों को आकर्ष की ओर करते हुए कहा। आकर्ष को अपने लिए फ़िक्र करता देख उसे एक अलग ही खुशी मिल रही थी।
आकर्ष ने दीया के हाथों को पकड़ते हुए कहा, "लगता है हमारी दीया जल्दी ही योद्धा बन पायेगी। उस दिव्य जल ने तुम्हारे शरीर को पहले से ज़्यादा मज़बूत और फुर्तीला बना दिया है। तुम्हे बस थोड़ा युद्ध कला के बारे में जानने की ज़रूरत है और तुम एक योद्धा बन पाओगी।"
दीया ने समझदारी का प्रदर्शन करते हुए कहा,
"मालिक, मैं जानती हूं कि आप मेरी फ़िक्र करते हो। मिश्रा परिवार एक शक्तिशाली परिवार है और यहां के कुछ नियम भी होंगे। युद्ध कला किसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं दी जा सकती। इसलिए आप मेरी इतनी फ़िक्र ना करें। मुझे योद्धा नहीं बनना। मेरे लिए तो इतना ही काफ़ी है कि मै हमेशा आपके और बड़ी मालकिन के साथ रह सकूँ।"
आकर्ष ने दीया की सम्हाजदारी को मन ही मन सराहा, और फिर बोला, "दीया, अगर मैं तुम्हे कोई युद्ध कला देना चाहूंगा, तो वो मेरी खुद की युद्ध कला होगी, ना कि मिश्रा परिवार की। अभी के लिए तुम जाओ. मैं आज शाम को तुम्हारे कमरे मे आऊंगा. दीया. क्या हुआ? तुम्हारा चेहरा एकदम से इतना लाल क्यों हो गया है?"
आकर्ष ने हल्का सा मुस्कुराते हुए पूछा।
दीया ने कोई जवाब नहीं दिया और भागकर कमरे से बाहर चली गयी।
….….