Chereads / Martial devil / Chapter 4 - पतन पंच

Chapter 4 - पतन पंच

तीन दिन बाद, रेवती ने जब आकर्ष को देखा तो वो अपने आप को हैरान होने से रोक नहीं पाई।

"आकर्ष, तुम. "

कुछ क्षण के बाद, उसने अपने कांपते हुए नाजुक हाथों को आकर्ष की ओर बढ़ाया, और हल्के से आकर्ष की बाहों को स्पर्श किया.

रेवती चक्रमध्य मंडल की योद्धा थी और इस कारण वो एक झलक मे ही समझ गयी थी कि आकर्ष शारीरिक मंडल में प्रवेश कर चूका है।

"शारीरिक मंडल का पहला स्तर!"

उसका बेटा आखिरकार योद्धा बन गया था। रेवती पिछले कई सालो से आकर्ष को देख रही थी जो योद्धा नहीं बन पा रहा था और ये बात उसे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी।

" माँ, आप रो क्यों रही हो? "

आकर्ष ने रेवती के चेहरे से आँसू पोंछने के लिए अपने हाथों को आगे बढ़ाया।

"मैं ठीक हूँ आकर्ष. आज मैं बहुत खुश हूँ; बहुत ज़्यादा खुश।" रेवती ने अपने चेहरे से आँसू पोंछे और मुस्कुराई।

उसके कई सालो की चिंता अब गायब हो चुकी थी।

जल्दी ही, रेवती ने महसूस किया कि उसके बेटे में ये सारे बदलाव पिछले तीन दिनों में आये हैं।

सिर्फ तीन दिन. पर कैसे? रेवती अभी भी ये समझ नहीं पा रही थी। वो हैरान थी !

अचानक, उसे याद आया कि आकर्ष ने तीन दिन पहले उसे औषधीय सामग्री खरीदने के लिए कहा था।

"आकर्ष, तुम्हारे शरीर में परिवर्तन. क्या यह औषधीय सामग्रियों के कारण आये हैं? जो तुमने मुझे खरीदने के लिए कहा था।" रेवती ने संदेह को दूर करने के लिए पूछा।

"हाँ, माँ" आकर्ष ने बिना फ़िक्र किये तुरंत जवाब दिया।

"तुमने खुद इस दवा को बनाया?" रेवती ने उत्सुकता से पूछा।

आकर्ष  ने एक बार फिर अपना सिर सहमति में हिलाया।

रेवती ने एक गहरी सांस ली और उत्सुक होकर पूछा, "आकर्ष, तुमने कौन सी दवा बनाई है, और इसे बनाना कब सीखा?"

आकर्ष इस बार चुप रहा।

वो किसी को भी लक्ष और उसकी यादो के बारे मे नही बता सकता था क्योंकि ये सारे राज़ उसकी जिंदगी से जुड़े थे, जिन्हें समझाना बेहद मुश्किल था।

"माँ, उस दिन जब रवि ने मुझे घायल किया, और मैं बेहोश था तब मुझे एक बहुत ही अजीब सपना आया। अपने सपने में, मैं एक बूढ़े व्यक्ति से मिला, जिसने मुझे ये दवा बनाना सिखाई" आकर्ष ने एक बहाना बनाया ताकि उसका राज़ किसी को भी पता न चले।

इसके बाद उसने रेवती को सप्त शारीरिक दिव्य जल और उसके उपयोग के बारे में बताया।

"एक ऐसी दवाई, जो शारीरिक मंडल के योद्धा को चक्रमध्य मंडल तक जल्दी से पहुँचाने में मदद करती हो?"

रेवती हैरान रह गयी।

उसने शारीरिक मंडल के योद्धा को ताकतवर बनाने वाली किसी भी दवाई के बारे में कभी नही सुना था। उसके अलावा, इस दवाई को केवल सामान्य औषधीयो से बनाया जा सकता था।उसने तुरंत महसूस किया कि यह दवाई कोई साधारण दवाई नही थी।

जहाँ तक वह जानती थी, ऐसी औषधीय गोलियाँ हैं, जो शारीरिक मंडल के योद्धा को ताकतवर बनाने में सक्षम है पर उन्हें कोई नौवे स्तर से ऊपर का वैद्य ही बना सकता था, और उनके निर्माण के लिए जो औषधियां चाहिए वो भी काफी महंगी थी, जिसे सामान्य व्यक्ति के लिए खरीदना बहुत मुश्किल था। इसके अलावा उन गोलियों का प्रभाव भी इस दिव्य जल से कमजोर था।

"आकर्ष, कैसी भी परिस्थिति हो, इस दिव्य जल के बारे मे किसी को मत बताना।"

रेवती इस दिव्य जल की कीमत पहचानती थी। इसलिए उसने आकर्ष को सतर्क करते हुए कहा।

"माँ, मुझे पता है कि ये दिव्य जल कितना कीमती है। मैं सिर्फ आपको इसके बारे में बता रहा हूँ।" आकर्ष ने मुस्कराते हुए कहा।

वो अपनी पिछली जिंदगी मे अनाथ था, इसलिए रेवती का उसके लिए चिंता करना उसे अच्छा लग रहा था। उसे पहली बार माँ का प्यार मिल रहा था।

"आकर्ष, तुम शारीरिक मंडल में प्रवेश कर चुके हो इसलिए तुम्हे मिश्रा परिवार के युद्धःगृह से अपने लिए कोई युद्ध कला सीखनी चाहिए।"

"ठीक हैं माँ। मैं अभी जाता हूँ।"

हालांकि लक्ष की यादो से उसे कई युद्ध कलाएँ मिली थी। पर वो मिश्रा परिवार की कोई युद्ध कला देखना व सीखना चाहता था, ताकि कोई उस पर शक न करे।

….

युद्ध गृह मिश्रा परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान था क्योंकि वहां पर सारी ज़रुरी युद्ध कलाएं संगृहीत थी और इस कारण हर समय परिवार का कोई बुजुर्ग व्यक्ति उसकी सुरक्षा करता था।

" पांचवे एल्डर "

आकर्ष ने दरवाजे पर एल्डर को प्रणाम किया।

"आकर्ष.? "

आकर्ष को युद्ध गृह मे आया देख पांचवें एल्डर 'सोमदत्त' को थोड़ा झटका लगा।

जब उन्होंने आकर्ष के शरीर में आए बदलाव पर ध्यान दिया, तो वह खुद को हैरान होने से रोक नही सके, "तुम. शारीरिक मंडल  के पहले स्तर में पहुंच चुके हो?"

आकर्ष हल्का सा मुस्कुराया और सहमति में सिर हिलाया।

"चलो अच्छा हुआ, कम से कम अब तुम्हारी माँ को तुम्हारी ज़्यादा चिंता नही करनी पड़ेगी। ठीक है. अब तुम युद्ध गृह मे जा सकते हो और अपनी पसंद की एक युद्ध कला का चयन कर सकते हो।" सोमदत्त ने हल्का मुस्कराते हुए कहा।

रेवती और सोमदत्त हमेशा से अच्छे दोस्त थे। इसलिए आकर्ष पर सोमदत्त विशेष ध्यान देते थे।

आकर्ष ने ज़्यादा देर न करते हुए युद्धगृह में प्रवेश किया।

"आकर्ष शारीरिक मंडल के पहले स्तर में पहुंच चुका हैं?"

आकर्ष की उम्र के बाकी लड़को ने जब आकर्ष को युद्धगृह मे देखा तो वो आश्चर्य मे एक-दूसरे को देखने लगे। आकर्ष ने शारीरिक मंडल पहले स्तर मे प्रवेश करके उन्हें जो झटका दिया था, वो कुछ ऐसा था जैसे सूअर का पेड़ पर चढ़ना या गाय का हवा में उड़ना।

आकर्ष ने बाकी सब को नज़रअंदाज़ किया और वहां मौजूद युद्ध कलाओ को पढ़ने लगा।

कुछ युद्ध कलाओ को पढ़ने के बाद, उसने महसूस किया कि मिश्रा परिवार की सारी युद्ध कलाएं साधारण थी.

ये सारी युद्ध कला पीले वर्ग के निम्न और मध्यम स्तर की थी, जो आकर्ष के लिए बहोत कमज़ोर थी। उसने अपने पिछले जन्म में जो मुक्केबाज़ी सीखी थी वो भी इन युद्ध कलाओ की तुलना में ज़्यादा बेहतर थी। आकर्ष ने मुक्केबाज़ी मे ग्रैंडमास्टर का पद हासिल किया था।

यही सब सोचते हुए आकर्ष युद्ध गृह से बाहर आ गया।

सोमदत्त ने जब देखा, कि आकर्ष खाली हाथ बाहर आया है, तो वो बड़ी रूचि के साथ आकर्ष को देखने लगे। क्योंकि ये पहली बार था जब कोई युद्ध गृह से बिना कोई युद्ध कला लिए बाहर आया था।

"क्या हुआ, क्या तुम्हे ऐसी कोई युद्ध कला नही मिली जो तुम्हारे लायक हो?"

आकर्ष ने सहमति में सिर हिलाया.

"हाहाहाहाहाहाहाहा"

अचानक, एक हंसी की आवाज़ आकर्ष को सुनाई दी।

"आकर्ष, तुम अपने आप को क्या समझते हो? हमारे मिश्रा परिवार के युद्ध गृह मे से कोई भी युद्ध कला तुम्हारे लायक नही है? मै ये जानने के लिए बहोत उत्सुक हूं, कि तुम शारीरिक मंडल के पहले स्तर मे प्रवेश करने मे कामयाब कैसे रहे? तुम्हारी माँ ने तुम्हे ऐसी कौन सी युद्ध कला सिखाई है, जिसके बल पर तुम इतना उछल रहे हो। पर क्योंकि अब तुम शारीरिक मंडल मे प्रवेश कर चुके हो तो मुझे कुछ दांव-पेच क्यों नही सिखाते?"

आकर्ष ने अपना सिर उठाकर आवाज़ की ओर देखा और उसने पाया कि रवि उसके ठीक सामने खड़ा है।

उसके गालों पर अभी भी चोट के निशान मौजूद थे जो की आकर्ष ने ही दिए थे।

"ओह, मै सोच रहा था कि यह कौन हो सकता है, और अब पता चला की ये तो तुम हो, हमारे महान योद्धा रवि। वैसे तुम्हारा चेहरा तो ठीक हैं ना. कहीं दर्द तो नहीं हो रहा?"

रवि के इतना उकसाने के बाद भी आकर्ष को गुस्सा नहीं आया, बल्कि उसे तो उल्टा रवि की लाचारी पर हंसी आ रही थी।

"आकर्ष, मै तुम्हे चुनौती देना चाहता हूं! सोमदत्त दादा को हमारा गवाह बनने दो, क्या तुममें मेरी चुनौती को स्वीकार करने की हिम्मत है?" रवि ने गहरी सांस ली और भारी आवाज़ में आकर्ष से कहा।

तीन दिन पहले की घटना रवि के लिए ऐसी याद थी जिसे वह चाहकर भी भूल नही पा रहा था। पुरे परिवार के सामने आकर्ष ने उसे जूतों से मारा था और रवि कैसे भी करके उस बात का बदला लेना चाहता था।

पिछले तीन दिनों के दौरान, वह सिर्फ एक चीज़ के बारे में सोच रहा था और वो था, आकर्ष से अपने अपमान का बदला!

आज, जब उसने सुना कि आकर्ष शारीरिक मंडल के पहले स्तर मे प्रवेश कर चुका है, तो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था। अब वो आकर्ष को चुनौती दे सकता था और उसे हराकर अपने अपमान का बदला ले सकता था। पर इसके लिए ज़रूरी था कि आकर्ष उसकी चुनौती स्वीकार करे। इसलिए वो आकर्ष को उकसाने की कोशिश कर रहा था।

रवि की ये बचकानी हरकत देख आकर्ष हल्का सा मुस्कराया और बोला "मै हिम्मत क्यों नहीं करूंगा?"

"आकर्ष जोश में आकर कोई फैसला मत लो!" सोमदत्त ने आकर्ष को समझाते हुए कहा, क्योंकि वो साफ़-साफ़ देख पा रहे थे कि रवि क्या करना चाह रहा है।

उनकी राय मे, आकर्ष ने अभी-अभी शारीरिक मंडल में प्रवेश किया है। इसके अलावा उसने अभी तक कोई युद्ध कला का भी चयन नहीं किया है। वो रवि का सामना कैसे करेगा, जो पहले ही शारीरिक मंडल के दूसरे स्तर में प्रवेश कर चुका है।

"सुनकर अच्छा लगा कि तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत तो है कि तुम मेरी चुनौती स्वीकार कर रहे हो।" रवि ने हल्का हँसते हुए कहा, उसकी योजना आखिरकार सफल हो गई थी।

"सोमदत्त दादा, कृपया हमारे बीच की लड़ाई के गवाह बनें, ताकि रेवती चाची बाद में मुझे भला बुरा न कह सके"

रवि ने सोमदत्त की ओर सम्मानपूर्वक देखते हुए कहा।

"हाँ सोमदत्त दादा, कृपया गवाह बने. मै भी नही चाहता की बाद में अमन चाचा मुझे भला बुरा कहे।"

आकर्ष भी सभी को बताना चाहता था कि वो कमजोर नही है।अगर यह कुछ दिन पहले होता, तो रवि से लड़ने से पहले आकर्ष थोड़ा सोचता, पर अब हालात बदल चुके थे।

हालांकि, युद्धगृह की सारी युद्ध कला आकर्ष को कुछ ख़ास पसंद नहीं आयी थी, लेकिन वो रवि को नज़रअंदाज़ भी नही कर सकता था।

"यह आकर्ष बहुत जल्दबाज़ी में है. पर कोई बात नही, अगर रवि से इसे थोड़ा सबक मिलता है, तो वो इसके लिए ही अच्छा है. कम से कम ये आगे से जल्दबाज़ी में तो कोई फ़ैसला नहीं लेगा।"

यही सब सोचते हुए सोमदत्त ने एक बार फिर आकर्ष की ओर देखा और युद्धगृह से बाहर चले गए।

मिश्रा परिवार के बाकी सभी शिष्य बड़ी रूचि के साथ ये नज़ारा देख रहे थे। उनके लिए ये बस एक मनोरंजन का साधन था।युद्धगृह के बाहर खाली मैदान मे, आकर्ष और रवि एक दूसरे के सामने खड़े थे। गवाह के रूप में, सोमदत्त भी वही खड़े होकर उन दोनों की ओर देख रहे थे।

"आकर्ष, आज मैं उस अपमान का बदला लूंगा, जो तुमने मुझे आखिरी बार दिया था।"

रवि के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी, जैसे कि आकर्ष उसका शिकार हो और वो शिकारी। एक सही मौका और आकर्ष का काम तमाम।

"फिर मै ज़रूर देखना चाहता हूँ, कि तुम्हारे पास अपना बदला लेने की क्षमता है या नही" आकर्ष ने हल्का सा हँसते हुए कहा।

रवि शर्मिंदगी से क्रोधित हो उठा, और जोर से चिल्लाया, "मरने के लिए तैयार हो जाओ आकर्ष !"

इतना कहकर रवि तुरंत आकर्ष की ओर उछल पड़ा, जैसे कोई बाघ अपने शिकार की ओर उछलता है।

बाघ का पंजा !

रवि ने अपने हाथ हवा मे लहराए, अचानक एक बिजली उत्पन्न हुई, और सीधे आकर्ष की ओर जाने लगी।

"यह पीले वर्ग के मध्यम स्तर की युद्ध कला 'बाघ का पंजा' है। मुझे नहीं लगा था कि रवि ने इस युद्ध कला का अभ्यास किया हैं। "

"आकर्ष ने हाल ही में शारीरिक मंडल के पहले स्तर में कदम रखा है, इसलिए उसने अभी तक किसी भी युद्ध कला का अभ्यास नहीं किया है।"

आसपास के मिश्रा परिवार के शिष्य एक के बाद एक चर्चा कर रहे थे, किसी को भी आकर्ष से ज़्यादा उम्मीदें नहीं थी।

आखिरकार, शारीरिक मंडल के पहले स्तर और दूसरे स्तर के बीच का अंतर बहुत बड़ा था।

"बाघ का पंजा? मुझे तो ये किसी बिल्ली का पंजा लग रहा है" आकर्ष ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा।

आकर्ष ये साफ़ साफ़ देख पा रहा था कि रवि की युद्ध कला "बाघ के पंजे" में कई कमियां थी। जो किसी को भी नहीं दिख रही थी। पर आकर्ष सबसे अलग था। उसके पास लक्ष की यादे थी इसलिए रवि के वार से बचना उसके लिए एकदम आसान था।

भाट!

भीड़ की आंखों के सामने, आकर्ष रवि के सामने आया और रवि के हमले को आसानी से रोक दिया। जैसे ही रवि का मुक्का आकर्ष को लगने वाला था. आकर्ष ने तुरंत झुककर रवि से अपना बचाव किया।

"अब!"

आकर्ष ने अपने पैरों को हल्का झटका दिया, अपनी दाहिनी मुट्ठी को बंद करते हुए, उसका ऊपरी शरीर अचानक पीछे की ओर झुक गया।

आकर्ष ने अपना बचाव करने के बाद तुरंत मुड़कर एक जोरदार मुक्का रवि के दाहिने कंधे पर दे मारा।

कट कट. कचाक!

अचानक भीड़ को हड्डियों के टूटने की आवाज़ सुनाई दी।

रवि के चिल्लाने व रोने की आवाज़ पुरे मैदान में गूँज उठी। आकर्ष ने बिलकुल भी दया नही दिखाई थी। उसने ऐसा हमला किया था मानो वो रवि पर नहीं, एक पागल कुत्ते पर हमला कर रहा हो।

भले ही रवि ताकत आकर्ष से ज़्यादा थी, लेकिन उसके पास उस ताकत का उपयोग करने का कोई तरीका नहीं था।

बैंग!

अगले ही पल रवि का शरीर ज़मीन पर धराशायी पड़ा था, बीच बीच में रवि के रोने व दर्द में चिल्लाने की आवाज़ भीड़ को अभी भी सुनाई दे रही थी।

शशशशशशश.

पूरा इलाका शांत हो गया था। इतना शांत की किसी के सांस लेने की आवाज़ को भी साफ़ सुना जा सकता था।

सोमदत्त से लेकर मिश्रा परिवार के सभी सदस्य अपनी आँखों को बार-बार साफ़ करके अखाड़े की ओर देख रहे थे। क्योंकि अखाड़े में कुछ ऐसा हुआ था, जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी।

वो मुक्का जो आकर्ष ने रवि को मारा था, उसकी छाप अभी भी, सभी के दिलों में मौजूद थी.