इससे पहले की रेवती कुछ कह पाती, आकर्ष अभिजीत के सामने आया और बोला.
"मैं तुम्हारी चुनौती को स्वीकार कर सकता हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है! "
"आकर्ष.! "
रेवती को बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि आकर्ष ने बिना उसकी सलाह लिए, अभिजीत की चुनौती स्वीकार कर ली थी।
अभिजीत ने बिना किसी देरी के तुरंत आकर्ष से पूछा,
"कैसी शर्त?"
जब तक आकर्ष उसकी चुनौती स्वीकार करने को तैयार था, वो भी उसकी किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार था। उसके पास अपने छोटे भाई का बदला लेने का ये सबसे अच्छा अवसर था, और वह यह अवसर कैसे जाने दे सकता था।
"मेरी शर्त बहुत साधारण है. आज से ठीक एक महीने के बाद, मै तुमसे लड़ूंगा. यदि तुम्हे यह शर्त स्वीकार नहीं है, या फिर डर लग रहा है, तो कोई बात नहीं. तुम यहां से जा सकते हो. मै सोचूंगा जैसे तुम मुझे चुनौती देने के लिए यहां कभी आए ही नही। "
आकर्ष ने शांत स्वर मे कहा, जैसे कि वो जानता हो कि अभिजीत उसकी शर्त ज़रूर स्वीकार करेगा।
"ठीक है, मै तुम्हे एक महीने का समय देता हूँ। मुझे आशा है कि तुम एक महीने बाद मुझसे लड़ोगे, ना कि कहीं छुपने की कोशिश करोगे।"
अभिजीत ने एक शैतानी मुस्कान के साथ कहा।
अमन और अभिजीत जब रेवती के घर से बाहर आये, तो अमन ने अभिजीत से कहा "अभिजीत. आकर्ष ने तुम्हारी चुनौती स्वीकार करने के लिए एक महीने का समय माँगा है। कहीं ऐसा तो नहीं की उसे अपने जीतने पर पूरा भरोसा हो। मुझे लगता है कि तुम्हे उसकी शर्त नहीं माननी चाहिए थी।"
अभिजीत ने आत्मविश्वास से भरी आवाज में कहा,
"पिताजी, एक जुगनू कितनी भी कोशिश कर ले, वो कभी सूरज नहीं बन सकता। अभी वो शारीरिक मंडल के पहले स्तर में है। एक महीना पूरा होने तक वो दूसरे स्तर में कदम भी नहीं रख पायेगा। फिर मुझे किस बात का डर?"
"लेकिन."
अमन कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन अभिजीत ने उसे टोकते हुए कहा।
"पिताजी, क्या आप पतन पंच के कारण चिंतित हैं? ऐसा है तो आप को चिंता नहीं करनी चाहिए। अगर आकर्ष दूसरे स्तर में पहुंचने में कामयाब भी रहता है, तो भी वो मेरा सामना नहीं कर पायेगा। क्या दूसरे स्तर और चौथे स्तर के बीच के अंतर को वो केवल पतन पंच के बल पर कम कर सकता है?"
शारीरिक मंडल के तीसरे और चौथे स्तर के बीच का अंतर काफ़ी बड़ा था, लगभग 40 kg का। यह अंतर बस दिखने में छोटा लगता था। पर वास्तव में इतनी ताकत उत्पन्न कर पाना बहुत मुश्किल था। जब तीसरे और चौथे स्तर का अंतर ही इतना बड़ा था, तो दूसरे और चौथे स्तर के बीच का अंतर कितना होगा। यही कारण था कि अभिजीत आकर्ष से डर नहीं रहा था।
"शायद मै कुछ ज़्यादा ही सोच रहा हूँ।"
अमन ने जब अपने बेटे अभिजीत की पूरी बात सुनी, तो वह हल्का सा मुस्कुराया और सिर हिलाया। अपने बड़े बेटे पर उसे गर्व था। उसने कभी भी उसे निराश नहीं किया था।
अमन और उसके बेटे के चले जाने के बाद, आकर्ष ने अपनी माँ रेवती की आँखों को देखा, जिनमें चिंता साफ़ झलक रही थी।
"माँ, तुम चिंता मत करो। मुझे खुद पर पूरा विश्वास है" आकर्ष ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा।
जिसपर रेवती ने चिंतित होते हुए कहा, "आकर्ष, ऐसा नहीं है कि मुझे तुम पर भरोसा नहीं है। पर तुम्हे भी हालात को समझना चाहिए। अभिजीत अपने भाई रवि जैसा कमज़ोर नहीं है। वो मिश्रा परिवार में शारीरिक मंडल के चौथे स्तर के योद्धाओ में सबसे ताकतवर है। तुम्हे उसकी चुनौती स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी।"
"माँ, मुझे आपके द्वारा कही गई सभी बातों की जानकारी है। क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? मै पक्का जीतूंगा! ये मेरा वादा है आपसे" आकर्ष ने गंभीर होकर रेवती से कहा।
"आकर्ष. मुझे किसी की चुनौती से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुझे बस तुम्हारी चिंता है। मैं नहीं चाहती कि तुम पहले के जैसे घायल हो जाओ" ये कहते हुए रेवती की आँखे भर आईं थी।
कुछ दिन पहले हुई घटना ने उसके दिल में एक छाप छोड़ दी थी। वो फिर से आकर्ष को दर्द में नहीं देख सकती थी।
"माँ, मै वादा करता हूँ कि मै आपको फिर कभी चिंतित नहीं करूँगा" आकर्ष ने मां को आश्वासन दिया तो रेवती ने अपने आप को शांत करते हुए कहा,
"ठीक है, मुझे तुम पर भरोसा है। इस महीने के दौरान अगर तुम्हे कुछ भी चाहिए, तो तुम मुझे बिना किसी संकोच के बताना।"
"माँ, मुझे वो सारी औषधीय सामग्री फिर से खरीदनी है, जो आपने पिछली बार मेरे लिए खरीदी थी। इसके अलावा, मुझे कुछ पैसो की आवश्यकता भी है। "
….
अपनी मां, रेवती से पैसे प्राप्त करने के बाद, आकर्ष बाज़ार की ओर चल दिया। इस दुनिया में आने के बाद वो पहली बार अपने घर से बाहर जा रहा था।
साँची कस्बे का बाज़ार तीन हिस्सों में विभाजित था, जिसे मिश्रा परिवार सहित दो अन्य परिवार नियंत्रित करते थे। आकर्ष सबसे पहले मिश्रा परिवार द्वारा नियंत्रित बाज़ार में गया। सड़क के दोनों तरफ़ मिठाई, कपड़ों, हथियारों व दवाईओं की विभिन्न दुकाने मौजूद थी। पर यह समय 21वी सदी से काफ़ी अलग था। एक पल के लिए, आकर्ष को ऐसा लगा मानो वो समय में काफ़ी पीछे आ चुका है।
यह एक ऐसा दृश्य था जिसे उसने केवल अपने पिछले जीवन में टेलीविजन पर देखा था।
काफ़ी देर मिश्रा परिवार के बाज़ार में घूमने के बाद आकर्ष दूसरे बाज़ार की ओर चल पड़ा। इस बाज़ार को गुप्ता परिवार द्वारा नियंत्रित किया जाता था। गुप्ता परिवार साँची कस्बे के तीन सबसे ताकतवर परिवार में से एक था। ये तीन परिवार थे;
मिश्रा परिवार, गुप्ता परिवार और आहूजा परिवार।
साँची के ये तीनो परिवार, साँची पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए काफ़ी समय से छुपकर लड़ रहे थे। वैसे तीनो परिवारों के पास शक्ति की कोई कमी नहीं थी। लेकिन कोई भी पहले हमला करके साँची के इस शांतिपूर्ण वातावरण को ख़त्म करने का दोषी नहीं बनना चाहता था।
जैसे ही आकर्ष ने गुप्ता परिवार की हथियारों की दुकान में प्रवेश किया, एक व्यक्ति तुरंत उसका स्वागत करने आया "प्रिय ग्राहक, क्या मैं पूछ सकता हूं कि आपको किस हथियार की आवश्यकता है?" उस व्यक्ति ने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा।
आकर्ष ने अपना सिर हिलाया और कहा "मै कोई हथियार नहीं खरीदना चाहता, मै बस कुछ, सामग्री खरीदना चाहता हूं।"
आकर्ष की बात सुनकर, वो व्यक्ति हैरान था।
एक हथियार शिल्पकार कोई लुहार नहीं होता, जो हथियारों की दुकान में काम करता हो। जैसे देवताओं के हथियार शिल्पकार 'विश्वकर्मा' हैं, पर वो कोई लुहार नहीं है। सोमाली महाद्वीप में हथियार शिल्पकार उतने ही दुर्लभ थे, जितने की वैद्य। एक हथियार शिल्पकार को अपने परिवार का हिस्सा बनाने के लिए बड़े बड़े योद्धा तैयार रहते थे। वो हथियार शिल्पकार को उनके परिवार का एल्डर तक बनाने में नहीं चूकते थे।
लोहारों द्वारा बनाए गए हथियारों को केवल सामान्य हथियार माना जाता था, लेकिन हथियार शिल्पकारों द्वारा तैयार किए गए हथियारों मे, उसे प्रयोग करने वाले योद्धा की आत्मा बसती थी। जिससे उस हथियार को प्रयोग करने वाले योद्धा की शक्ति कई गुना बढ़ जाती थी। इस कारण ऐसे हथियारों को बहुत असाधारण माना जाता था।
साँची कस्बे के तीनो परिवारों के पास एक नौवें स्तर का वैद्य था, पर किसी के भी पास एक हथियार शिल्पकार नहीं था। यह बात साबित करने के लिए काफ़ी थी कि एक हथियार शिल्पकार कितना दुर्लभ था।
"प्रिय ग्राहक, क्या मैं पूछ सकता हूं कि आपको किन सामग्रियों की आवश्यकता है?"
उस व्यक्ति के बोलने का रवैया तुरंत बदल गया था। आकर्ष समझ गया कि उस व्यक्ति ने ज़रूर उसे एक हथियार शिल्पकार समझ लिया है। पर आकर्ष ने कोई सफ़ई पेश नहीं की, के वो जो सामग्री खरीद रहा था, वह हथियार बनाने के लिए नहीं थी।
लक्ष एक राज स्तर का हथियार शिल्पकार था। अब क्योंकि लक्ष की सारी यादें आकर्ष के पास थी, इसलिए हथियार बनाना उसके लिए बाक़ी सब से ज़्यादा आसान था। पर इसके लिए पहले उसे चक्रमध्य मंडल में प्रवेश कर आंतरिक ऊर्जा का निर्माण करना होगा। बिना आंतरिक ऊर्जा के वो आग का निर्माण नहीं कर सकता था, जो हथियार बनाने के लिए सबसे ज़रूरी थी। वैद्य के लिए भी दवाइयों का निर्माण करने से पहले, चक्रमध्य मंडल में प्रवेश कर आंतरिक ऊर्जा का निर्माण करना आवश्यक था।
आकर्ष ने एक ही सांस में आवश्यक नौ प्रकार की सामग्रियों का नाम उस व्यक्ति को बता दिया।
यह सब सामग्री मंत्र अभिलेख के लिए थी। यह मंत्र तकनीक सोमाली महाद्वीप में बहुत दुर्लभ थी। इन मंत्रो को किसी भी हथियार या वस्तु पर विशेष विधि द्वारा लिखा जाता था। जिससे उस हथियार की ताकत कई गुना बढ़ जाती थी। ये मंत्र बहुत अजीब तरह से काम करते थे। इनका ज़्यादातर उपयोग धमाके के लिए होता था। पर इनमें कुछ कमियां भी थी। जैसे एक मंत्र अभिलेख का उपयोग केवल एक ही बार किया जा सकता था। एक बार उपयोग करने के बाद अभिलेख नष्ट हो जाता था। दोबारा उपयोग करने के लिए मंत्र अभिलेख का फिर से निर्माण करना पड़ता था। आकर्ष को लक्ष की यादों से पता चला था कि मंत्र अभिलेखों का सबसे अधिक इस्तेमाल उसके दूसरे जीवनकाल के समय हुआ था। इसी कारण अपने दूसरे जीवन में लक्ष ने हथियार निर्माण के साथ मंत्रो का भी ज्ञान प्राप्त किया था।
इस बात को अब 10,000 साल बीत चुके थे, और समय के साथ हुए परिवर्तनों में मंत्र अभिलेख की यह तकनीक कहीं खो गयी। मंत्रों का उपयोग करने वाले योद्धाओं को 'मंत्रकार' कहा जाता था। जब मंत्र अभिलेख की तकनीक समय के साथ विलुप्त होने लगी, तो मंत्रकारो की मांग सुमाली महाद्वीप में, हथियार शिल्पकारों व वैद्यों से भी ज़्यादा हो गयी। मंत्रकार इतने दुर्लभ हो गए कि उन्हें देखने मात्र से ही, हर कोई अपने आप को सौभाग्यशाली मानता।
यह नौ प्रकार की सामान्य सामग्री जो आकर्ष खरीदना चाहता था, उससे निम्न स्तर का मंत्र अभिलेख तैयार किया जा सकता था।
"प्रिय ग्राहक, आपके द्वारा खरीदी इन सामग्रियों की कुल लागत सात चांदी के सिक्के हैं।"
आकर्ष ने बिना कोई देरी किए अपनी माँ से प्राप्त पैसो में से, सात चांदी के सिक्के उस व्यक्ति को दे दिए।
सम्मानपूर्वक आकर्ष को बाहर जाता देखने के बाद, वो व्यक्ति तुरंत अपनी दुकान से निकला और गुप्ता परिवार के महल की ओर चल पड़ा।
वो जल्दी से गुप्ता परिवार के कुलप्रमुख को उसकी दूकान पर आये हथियार शिल्पकार के बारे मे बताना चाहता था। वो नहीं चाहता था कि मिश्रा या आहूजा परिवार उनसे पहले उस हथियार शिल्पकार यानि आकर्ष को अपने परिवार मे शामिल कर ले।
"मुझे कहीं से और पैसो का इंतजाम करना होगा। माँ ने मुझे बीस चाँदी के सिक्के दिए थे, और मैं इतने कम समय में लगभग आधे सिक्को का उपयोग कर चूका हूँ। "
आकर्ष ने निराश होकर अपना सिर हिलाया और मिश्रा परिवार के महल की ओर चल पड़ा।
बाज़ार से लौटते समय, आकर्ष का ध्यान कुछ लोगों के समूह पर गया, जो सड़क किनारे खड़े हुए थे। जिज्ञासा के कारण आकर्ष भीड़ की ओर चल पड़ा।
जब वो भीड़ के पास पहुंचा तो उसका ध्यान एक लड़की पर गया, जो भीड़ के सामने घुटनो के बल बैठी थी। उसके लम्बे काले घने बालो ने उसके चेहरे को ढक रखा था। वो देखने पर लगभग आकर्ष की ही उम्र की लग रही थी। उसके सामने एक काग़ज़ पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था "अगर कोई मेरी माँ के अंतिम संस्कार के लिए पैसे देता है, तो मै. उस व्यक्ति की जीवनभर दासी बनकर रहूंगी! "
आकर्ष ने कभी नहीं सोचा था कि वह एक ऐसे दृश्य को सच में देखेगा, जिसे अभी तक उसने सिर्फ टेलीविजन पर देखा था।
लक्ष की यादें मिलने के बाद आकर्ष की सोचने समझने की क्षमता एक नए स्तर पर पहुंच चुकी थी। वो उस लड़की को देखने मात्र से उसकी आभा ओर ऊर्जा का पता लगा पा रहा था।
"सुनो लड़की, तुम पहले अपना चेहरा मुझे क्यों नहीं दिखाती। अगर तुम सच में सूंदर हुई, तो मै तुम्हे अपनी दासी के रूप मे स्वीकार कर लूंगा।"
एक मोटे से व्यक्ति ने वासना से भरी आवाज़ मे उस लड़की से कहा।
"हाँ, अगर तुम अपना चेहरा नहीं दिखाओगी तो तुम्हे कोई भी नहीं खरीदेगा." एक अन्य व्यक्ति ने उकसाना जारी रखा।
"मैं केवल अपना सिर तभी उठाऊंगी, जब आप मे से कोई एक व्यक्ति मेरी माँ के अंतिम संस्कार के लिए पैसे देगा।" उस लड़की ने बिना अपना चेहरा दिखाए वहाँ मौजूद लोगों से कहा। उसकी आवाज़ बहुत सुरीली और ढृढ़ निश्चय से भरी थी।
"तुम्हारी आवाज़ तो ठीक है, लेकिन हमने अभी तक तुम्हारा चेहरा नहीं देखा है। क्या पता अगर तुम बदसूरत हुई तो?"
उस मोटे व्यक्ति के ज़्यादा कुछ कहने से पहले ही आकर्ष ने उसे रोक दिया। वो उस मोटे व्यक्ति की वासना से भरी बातें अब और अधिक बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था।
आकर्ष अब उस लड़की के सामने गया और हल्के से कहा, "मै तुम्हे दस चांदी के सिक्के दे सकता हूं. अपनी माँ का ठीक से अंतिम संस्कार कर लेना।"
"धन्यवाद."
उस लड़की का शरीर कांप उठा। अपने कांपते हुए हाथों से उसने अपने चेहरे के सामने मौजूद बालो को हटाना शुरू किया। उसका चेहरा बहुत कोमल और सुन्दर था। उसकी घुमावदार भौंहों के नीचे दुःख से भरी सुंदर, स्पष्ट आँखों की एक जोड़ी थी, लेकिन उनमे मज़बूत इच्छाशक्ति की भावना भी थी।
सभी की तरह आकर्ष ने भी शुरू में यही मान लिया था, कि वो लड़की शायद इसलिए अपना सिर उठाने के लिए मना कर रही है, क्योंकि वह अच्छी नहीं दिखती होगी, लेकिन किसने सोचा था कि वो लड़की वास्तव में इतनी सुन्दर होगी। वो अपने नाजुक शरीर के साथ जब बड़ी होगी तो निश्चित रूप से और भी ज़्यादा सुन्दर होगी, बिलकुल किसी अप्सरा की तरह।
लड़की का चेहरा देखने के बाद वहाँ मौजूद लोगों की आँखे वासना से भर उठी।
"इसने केवल दस चांदी के सिक्के दिए हैं। मै तुम्हे बीस सिक्के दूंगा! अब से तुम मेरी दासी हो!"
उस लड़की के चेहरे को देखने के बाद, उस मोटे व्यक्ति की आंखें भी वासना से भर चुकी थी। उसने अपनी गलती सुधारते हुए तुरंत लड़की को लालच देने की कोशिश की।
"मैं तुम्हे तीस सिक्के दूंगा!"
एक अन्य व्यक्ति ने भी उस लड़की को लालच देते हुए कहा।
" मैं तुम्हे पचास सिक्के दूंगा! "
" मैं साठ सिक्के दूंगा! "
आकर्ष ने गुस्से में उन सभी लोगो की और देखा, जो लड़की को लालच दे रहे थे। वो सभी, कीमत ऐसे बढ़ा रहे थे, मानो वहाँ कोई नीलामी चल रही हो। उसने मन ही मन सोचा 'दुनिया भले ही बदल जाए, इंसान की फ़ितरत सब जगह एक जैसी है.'