पहला अध्याय: हथियार विशेषज्ञ - आकर्ष
आकर्ष सिंघानिया की नींद एक पुराने से कमरे में खुली।
"ये अच्छा नहीं है. मैं उनके जाल में फंस गया हूँ।"
उसके पास अपनी आँखे खोलने व ठीक से देखने का समय भी नहीं था। उसने अपने हाथों को ज़मीन पर जोर से पटका और उछल कर आगे भागने की कोशिश की।
गिरने के बाद, किसी भी स्पेशल फाॅर्स के कमांडो की पहली प्रतिक्रिया यही होती है।
जैसे ही उसने अपने हाथों से ज़मीन को छुआ, तो उसे अपने हाथ में तेज दर्द महसूस हुआ। जिसे सहन कर पाना बहुत मुश्किल था। आकर्ष ने जैसे ही अपने आस पास के वातावरण को देखा तो वो कांप उठा।
"आकर्ष, आख़िरकार तुम जाग गए।"
एक महिला की सौम्य और सुखद आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
आकर्ष ने जब आवाज के स्रोत की ओर देखा तो उसने पाया कि प्यार और ममता से भरा एक नाजुक चेहरा ध्यान से उसी की ओर देख रहा है। उसके सामने एक महिला खड़ी थी, जो दिखने में बेहद खूबसूरत थी। अचानक आकर्ष के दिमाग में कुछ यादे आने लगती हैं।
आकर्ष. दिल्ली का नागरिक, स्पेशल फोर्सेज का कमांडो , आर्मी डिवीजन। अपनी पूरी सेवा के दौरान असंख्य सराहनीय कार्य किए। उसने अंतर्राष्ट्रीय विशेष सैन्य बल प्रतियोगिता में भाग लिया, शीर्ष लड़ाकू का सम्मान जीता और
"हथियार विशेषज्ञ" यानी वैपन स्पेशलिस्ट की उपाधि प्राप्त की।
बाद में एक बहुराष्ट्रीय मिशन के दौरान, उसकी ओर से हुई एक छोटी सी गलती के कारण उसके एक साथी की जान चली गई। उसे इस बात का बहुत पछतावा हुआ और उसने स्पेशल फाॅर्स को छोड़ने का निर्णय लिया।
उस घटना के बाद काफी समय तक किसी को भी उसके बारे में कोई खबर नहीं मिली। वो विदेश चला गया था और एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन का हिस्सा बन गया था। वो जिस भी मिशन में भाग लेता उसकी सफलता दर 100% होती।
हालाकि वो कई साल पहले स्पेशल फाॅर्स छोड़ चुका था। लेकिन उसका दिल अभी भी अपनी मातृभूमि के साथ था।
जब भी उसे कोई ऐसा मिशन मिलता जो उसके देश के लिए हानिकारक होता, तब वो न सिर्फ़ मिशन को अस्वीकार कर देता, बल्कि वह उस व्यक्ति की पहचान भी उजागर कर देता जिसने मिशन जारी किया था। वो उस व्यक्ति को जान से मार देता, ताकि आगे से कोई भी उसके देश के खिलाफ ऐसा मिशन जारी न कर सके।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, वो उन सभी लोगो के रास्ते का कांटा बन गया। जो उसके देश को हानि पहुँचाना चाहते थे। दूसरे देशों की नजर में वह एक टाइम बम था। वो जहां भी जाता, कत्लेआम और खून-खराबा ज़रूर होता।
कई देशों ने उसके खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी। उसे मारने के लिए विश्व स्तरीय हत्यारों को नियुक्त किया गया। पर क्योंकि आकर्ष खुद एक समय पर हत्यारे का काम कर चुका था, इसलिए कोई भी हत्यारा वापस ज़िंदा नहीं लौटा, जो उसे मारने आया।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए आकर्ष का जीवन और अधिक आरामदायक होता गया। आख़िर में सभी हत्यारों ने आकर्ष से जुड़े मिशन लेने बंद कर दिए। वो जान चुके थे कि आकर्ष को मारने की कोशिश करना आत्महत्या करने के समान था।
आकर्ष न केवल एक हथियार विशेषज्ञ था, बल्कि वह मुक्केबाज़ी में भी निपुण था। यहाँ तक कि वो अपनी आंतरिक ऊर्जा को विकसित करने में भी कामयाब हो चुका था।
वह दुनिया भर में किसी प्रतिद्वंद्वी से शायद ही कभी मिल पाता। अगर कभी कोई उसे चुनौती दे भी देता, तो आकर्ष चुनौती देने वाले की वो हालत करता, की वो आगे से कभी किसी और को चुनौती नहीं दे पाता।
अभी कुछ समय पहले, आकर्ष को अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त से एक खबर मिली थी।
उसके कुछ दुश्मनो ने एक प्रकार का रंगहीन और स्वादहीन जैविक हथियार यानी biological wepon बनाया था। जिसका इस्तेमाल वो उसके देश पर करना चाहते थे। आकर्ष अब भला शांत कैसे बैठता! उसने अपने दोस्त से उन लोगो के ठिकाने का पता किया और उन्हें रोकने चला गया।
आकर्ष के दोस्त ने उसे बताया था कि उसके सारे दुश्मन एक साथ एक गुफा में छुपे हुए हैं। पर आकर्ष ने जैसे ही गुफा में प्रवेश किया तो अचानक से वो गुफा ढहने लगी और वो वहाँ मौजूद एक पिंजरे में फंस गया।
जब उसने देखा कि उसके सारे दुश्मन हथियार लेकर पिंजरे के बाहर खड़े हैं, तो वो तुरंत समझ गया की अभी वहाँ पर क्या हुआ था। ये एक साजिश थी. उसके खिलाफ साजिश।
उसे उस व्यक्ति ने धोखा दिया जिस पर उसने सबसे अधिक भरोसा किया था। वरना उसके दुश्मनो को कैसे पता चला कि वो उन्हें मारने आ रहा हैं। यहां तक कि मरते समय भी आकर्ष इसका पता नहीं लगा पाया की उसके दोस्त ने उसे धोखा क्यों दिया?
"हा हा हा हा."
जैसे ही ये यादें उसके दिमाग में आयी, आकर्ष खुद को रोक नहीं सका और ज़ोर से हँसने लगा। उसका मन प्रसन्नता से भर गया।
"आकर्ष, तुम्हें क्या हुआ है? अपनी माँ को ऐसे मत डराओ।"
वो कोमल आवाज फिर से सुनाई दी, पर इस बार उसमें चिंता साफ़ झलक रही थी।
आकर्ष के मन में उथल-पुथल हो रही थी। उसे पूरा यकीन था कि वो उस महिला को नहीं पहचानता है। जो उसके सामने खड़ी हैं।
पर उस महिला की आँखों को देख, आकर्ष ये भी समझ पा रहा था की इस महिला से इसे कोई खतरा नहीं हैं।
जैसे ही आकर्ष उस खूबसूरत महिला से कुछ पूछने वाला था, उसके दिमाग में विदेशी यादोंं की एक धारा बहने लगी।
आकर्ष को ऐसा महसूस हुआ जैसे उस पर बिजली गिर गई हो, वो पूरी तरह से अवाक रह गया।
आकर्ष को इन नई यादों से पता चला कि वो किसी और के शरीर में आ गया हैं। पर इससे भी अजीब बात ये थी कि वो जिसके शरीर में आया था, उसका नाम भी "आकर्ष सिंघानिया" ही था।
आकर्ष सिंघानिया, उम्र 15 वर्ष.
साँची का निवासी, मिश्रा परिवार का सदस्य और शिष्य। वो भी मिश्रा की जगह सिंघानिया उपनाम के साथ। उसकी मां रेवती मिश्रा, मिश्रा परिवार की नौवीं एल्डर थीं।
[#एल्डर= परिवार के ऐसे सदस्य जो बाकी सब सदस्यों की तुलना में ज़्यादा ताकतवर थे, परिवार का मुखिया जिसे कुल प्रमुख भी कहा जाता है। एल्डर का मुखिया के समान आदर किया जाता था।]
पिता से जुडी उसके पास कोई याद नहीं थी।
इन विदेशी यादों से नए आकर्ष को पुराने आकर्ष के गंभीर रूप से घायल होने और बिस्तर पर पड़े होने का कारण पता चला।
आज सुबह, मिश्रा परिवार के सातवें एल्डर के सबसे छोटे बेटे, रवि ने आकर्ष को एक नाजायज़ बेटा कहकर उसका अपमान किया। जो केवल अपनी मां को जानता था लेकिन अपने पिता को नहीं।
ये सुनकर आकर्ष को गुस्सा आ गया, और वो रवि से लड़ने लगा।
लेकिन आकर्ष जो अभी शारीरिक मंडल में प्रवेश नहीं कर पाया था, वो रवि का मुकाबला कैसे कर सकता था? जो पहले से ही शारीरिक मंडल के दूसरे स्तर का योद्धा था। रवि ने उसे तुरंत गंभीर रूप से घायल कर दिया और मौत की कगार तक पहुंचा दिया।
आकर्ष ने एक लम्बी साँस ली। नए आकर्ष ने पुराने आकर्ष के पूरे शरीर पर काबू कर लिया। जिसमें पुराने आकर्ष की यादें भी शामिल थीं। वह जानता था, इस क्षण से उसे पुराने वाले आकर्ष की तरह जीना होगा। अब से वो इस दुनिया का आकर्ष होगा।
"मालकिन, कुल प्रमुख ने कुछ दवाएँ भेजीं हैं।"
आकर्ष को एक नई आवाज सुनाई दी। उसने जब आवाज की दिशा में देखा तो पाया कि रेवती कि नौकरानी दरवाज़े के पास खड़ी थी। उसके हाथो में एक छोटा डिब्बा था। नौकरानी जल्दी से कमरे में दाखिल हुई और वो डिब्बा रेवती को सौंप दिया। जैसे ही छोटा सा डिब्बा खोला गया, हवा में एक औषधीय सुगंध फैल गई।
"आकर्ष, यह औषधीय गोली ले लो। तब तक मैं तुम्हारी चोटों का इलाज करती हूँ ।"
रेवती ने डिब्बे से एक काले रंग की औषधीय गोली निकाली और आकर्ष को दे दी।
एक गहरी साँस लेते हुए, आकर्ष ने अपना मुँह खोला और गोली निगल ली।
गोली उसके मुँह में जाते ही घुल गई और उसके शरीर में जाते ही गर्म ऊर्जा में बदल गई।
इसके बाद आकर्ष ने देखा कि रेवती ने अपना हाथ उसकी छाती पर रखा। तुरंत एक ठंडी धारा उसके शरीर में प्रवाहित हुई। जिससे गोली की गर्म धारा घुल गई और उसकी चोटें ठीक हो गईं।
एक घंटे बाद.
आकर्ष ने देखा कि उसके शरीर का आधा दर्द गायब हो गया था। उसकी चोटें भी भर गयी थी। वो हैरान रह गया। क्या मैंने अभी जो गोली ली थी वो कोई जादुई दवा थी?
इस बीच, आकर्ष ने देखा कि रेवती का चेहरा पीला पड़ गया था। उसके माथे से ठंडे पसीने की बूंदें टपक रही थीं। ज़ाहिर है रेवती ने उसके इलाज में बहुत अधिक आंतरिक ऊर्जा खर्च की होगी।
"माँ, क्या तुम ठीक हो?" आकर्ष ने प्यार से पूछा।
आकर्ष ने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था, जैसा कि वो इस समय महसूस कर रहा था। आज से पहले कभी भी किसी ने उसके लिए कुछ नहीं किया था। पर आज रेवती का उसके लिए फ़िक्र करना उसे अच्छा लग रहा था।
"मैं ठीक हूँ. मुझे बस कुछ देर आराम करने की जरूरत है।" रेवती ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया।
अपने बेटे की खातिर आंतरिक ऊर्जा का थोड़ा उपयोग करना उसके लिए कुछ भी नहीं था।
आधे घंटे बाद, नौकरानी ने कमरे में प्रवेश किया और हल्के से कहा, "मालकिन, कुल प्रमुख ने किसी को यह पूछने के लिए भेजा था कि क्या आप रवि को अब रिहा करेंगी? कुलप्रमुख और सातवें एल्डर अभी भी सज़ागृह में आपका इंतजार कर रहे हैं।"
"उसे छोड़ दूँ? जाओ और उस संदेशवाहक से कहो, के कुलप्रमुख से कहे, की मैं इस मामले की जांच स्वयं करुँगी !"
रेवती के चेहरे पर से सौम्य और मिलनसार का भाव अब पूरी तरह से गायब हो गया था। उसकी जगह गुस्से ने ले ली थी।
आकर्ष भी थोड़ा असहज होने लगा।
उसने कभी नहीं सोचा था कि यह महिला जो फूल जैसी कोमल और खूबसूरत थी, जो अभी तक इतने प्यार और ममता से बात कर रही थी, एकदम से इतनी क्रोधित हो उठेगी।
"माँ, वह कौन सी गोली थी जो आपने मुझे पहले दी थी? मुझे लगता है कि मेरे घाव लगभग ठीक हो गए हैं।"
आकर्ष बिस्तर से उठा, और अपने शरीर को हल्का मोड़ते हुए रेवती से पूछा।
"अच्छा वो ! वो आठवे स्तर की 'सुवर्णक्षतिः' गोली थी, जो घाव जल्दी से भर सकती हैं।" रेवती ने हल्का मुस्कराते हुए कहा।
आठवे स्तर की सुवर्णक्षति: गोली !
आकर्ष ने अपने दिमाग में मौजूद विदेशी यादोंं को खंगाला।
अब जाकर उसे पता चला की साँची के इस मिश्रा परिवार के पास सिर्फ दो ही सुवर्णक्षति: गोली थी, जिसमें से एक का वो उपयोग कर चूका है। इससे आकर्ष को इतना तो समझ आ गया था कि मिश्रा परिवार में उसकी माँ का रुतबा काफ़ी ऊँचा था।
"आकर्ष, कुलप्रमुख हमारा इंतजार कर रहे हैं। चलो!"
इतना कहते हुए रेवती आकर्ष को लेकर मिश्रा परिवार के सज़ागृह में आ गयी ।
इस कमरे में सभी अपराधियों को सजा दी जाती थी, चारो तरफ़ यातना के उपकरण बिखरे पड़े थे।
यहीं पर मिश्रा परिवार के शिष्यों को सज़ा दी जाती थी। इसलिए इस कक्ष को सज़ागृह के नाम से जाना जाता था। आकर्ष जिस दुनिया से था, वहां ऐसे कक्ष को "न्यायालय" कहा जाता था।
ठीक दोपहर का समय था और सूरज आसमान में तप रहा था।
सज़ागृह लोगों से भरा हुआ था। मिश्रा परिवार के सारे शिष्य इस खेल को आनंद से देख रहे थे। उन्हें ना रवि से फ़र्क पड़ता था, ना ही आकर्ष से। वो सब तो सिर्फ़ ये देखना चाहते थे की सज़ा किसे मिलती हैं।
आँगन के बीच में, एक युवक तेज़ धूप में एक खंभे से बंधा हुआ था और दो अधेड़ उम्र के आदमी उसके पास खड़े थे।
दाहिनी ओर वाले अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने जब आकर्ष और उसकी मां को आते देखा, तो उसके चेहरे पर क्रोध के भाव प्रदर्शित होने लगे।
"देखो,आकर्ष आ गया है। मुझे नहीं लगा था कि परिवार की बहुमूल्य आठवे स्तर की सुवर्णक्षति: गोली वास्तव में इतनी असरदार होगीकी वो आकर्ष के गहरे ज़ख़्म इतनी जल्दी और आसानी से भर देगी। "
"हां, जब आकर्ष को अधमरा करके ले जाया गया था तब मैं वहीं था। मुझे लगा था कि वो फिर कभी बिस्तर से उठ नहीं पायेगा। लेकिन अब देखो, आठवे स्तर कि सुवर्णक्षति: गोली लेने के बाद वह फिर से जोश और शक्ति से भरपूर हो गया है।"
"आम तौर पर रवि बस यूं ही आकर्ष को धमकाता था और नौंवी एल्डर रेवती चाची इसके बारे में कुछ नहीं कहता थी । पर इस बार रवि ने आकर्ष को लगभग मार दिया था, बेशक रेवती चाची इस मामले को आसानी से नज़रअंदाज़ नहीं करेंगी।"
एक-एक करके मिश्रा परिवार के शिष्यों ने रेवती और आकर्ष के आने के बाद एक-दूसरे से कानाफूसी शुरू कर दी।
बाईं ओर खड़े अधेड़ उम्र के व्यक्ति को प्रणाम करते हुए रेवती ने कहा।
"कुलप्रमुख!"
"रेवती, आज के मामले में मेरा बेटा रवि गलत था। पर क्यूंकि आपका बेटा अब ठीक है। तो आप रवि को जाने दे जो अभी भी धुप में खड़ा हैं।"
दाहिनी ओर खड़े अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने रेवती से कहा। यह व्यक्ति मिश्रा परिवार का सातवा एल्डर "अमन" था।
रेवती ने उसे कोई जवाब नहीं दिया और सीधे तौर पर उसे नजरअंदाज करने लगी।
वो आकर्ष को लेकर रवि के सामने आयी, जो अभी भी बंधा हुआ था।
"आकर्ष, अब बदला लेने का समय आ गया है। तुम भी रवि को वैसे ही मारो जैसे रवि ने तुम्हे मा