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Chapter 7 - बागड़ बिल्ला

ग्लोरी में आवाज आम जीवन जैसी प्रतीत होती थी। केवल एक बार में एक आदमी बोल सकता था। उसमें ऐसी व्यवस्था थी जिस से दूरी के हिसाब से आवाज तेज या धीमे सुनाई दे। खेल में पीछे से कोई आवाज नहीं आती थी। केवल हवा की सरसराहट और इससे मिलती-जुलती आवाजें ही सुनाई देती थी। हेडफोन लगाते ही उसे लगा जैसे वह इसी दुनिया का हिस्सा हो।

ये क्सिऊ ने अनुमान लगाया की चिल्लाने वाला आदमी सुषुप्त शेखर है। उसने पहले ही छिपे हुए सरगना बागड़ बिल्ले की स्थिति जान ली थी। ये क्सिऊ ने लिखा "हा हा" और सुषुप्त शेखर की आवाज में सुना "बोलो लिखना क्यों?"

"कोई सो रहा है इसलिए बोलना सही नहीं होगा" ये क्सिऊ ने ऐसा लिखा और जेब से एक सिगरेट निकाली। उसे होठों के बीच दबाया और जला लिया। 

"ओह" सुषुप्त शेखर ने यह दर्शाया कि वह सब समझ रहा है और पूछा "बाकियों के बारे में क्या?" 

बाकी तीनों ने कुछ न कुछ कहा। सुषुप्त शेखर ने निराश होकर कहा "कोई खूबसूरत लड़की भी नहीं है" 

हँसी के बीच में उनकी पार्टी निकल पड़ी।

हरा जंगल एक निचले दर्जे की कोठरीनुमा जगह थी, जहाँ खिलाड़ी इस खेल से परिचित होते थे। यह कितना कठिन हो सकता है? इससे अधिक सुषुप्त शेखर कोई नौसिखिया नहीं है। उसने पूरी यात्रा का मार्गदर्शन किया और मारना उसके लिए सरल था, बिना किसी रुकावट के। जैसे ही ये क्सिऊ ने विकट देव को दो अरोग्यम इस्तेमाल करने के लिए कहा तुरंत ही सुषुप्त शेखर ने उसे पंडित की तरह सहायक के तौर पर इस्तेमाल किया। असल में इस तरह के निचले दर्जे की कोठरियों में लोहे की त्रिकोणीय युद्ध कौशल की जरूरत नहीं पड़ती पर सुषुप्त शेखर पहले से ही इसका आदी था और इस तरह से लड़ना उसके लिए एक आम बात थी। वह पार्टी में खुद ही मुख्य टैंक बन बैठा, बाकी के तीन खिलाड़ी आगे से नुकसान को कम कर रहे थे, विकट देव पीछे चल रहा था और वह रसद का सामान भी देख रहा था। 

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहे थे मारने की और चिल्लाने की आवाजें 5 लोगों के दरमियान सुनाई दे रही थी। ये क्सिऊ की तकनीक संभालने में बेहतरीन कला, पार्टी के नेता की तारीफों के हकदार बना रही थी। ये क्सिऊ का दिमाग अचंभे में था। वह आखिरी बार कोठरी में अन्य खिलाड़ियों के साथ कब गया था? कितना समय हुआ जब उसे इस तरह की भावनाओं का अनुभव हुआ हो?

एक के बाद एक सभी व्यक्तियों को गिरता देख ये क्सिऊ का दिमाग भटकने लगा। उसे सब कुछ याद आता चला गया। हरे जंगल में रोमांच की घटना ने उसे 10 साल पहले की सभी यादों से एक बार फिर मुखातिब करवा दिया था। 

उस समय वह ग्लोरी अपने अच्छे दोस्तों के साथ खेला करता था। वह उन यादों को कभी नहीं भूलेगा। तुमने साफ देखा, साफ बोला, अच्छे से सब तैयारी की, पर अंत में तुम्हारी एक छोटी सी भूल के कारण तुम्हारे सारे सपने और उम्मीदें शून्य में बिखर गई और तुम्हारे पास इस बहुरंगी छाते के अलावा कुछ नहीं रह गया।

"तुम्हारे पास सही में काबिलियत थी ग्लोरी में,कामयाबी से भरी हुई काबिलियत..." उसकी उंगलियां कीबोर्ड पर आराम से चल रही थी। विकट देव ने एक बार फिर आरोग्यम का इस्तेमाल सुषुप्त शेखर पर किया। जब सुषुप्त शेखर ने एक बार फिर ये क्सिऊ की तारीफ की तो उसका दिमाग खेल से बाहर निकल गया। 

"अच्छा, तो यह रहा बागड़ बिल्ला" सुषुप्त शेखर ने एक राक्षस को काटते हुए कहा ये क्सिऊ ने केवल दो शब्द सुने बागड़ बिल्ला और उसके ख्यालों की गाड़ी वापस पटरी पर लौट आई। छिपे हुए सरगना को कोई जरूरत नहीं थी कि वह किसी भी चरण के खत्म होने से पहले सामने आए। सिस्टम की मदद से, एक दृश्य बीच में भी उभर सकता है। इस समय यह बागड़ बिल्ला यहाँ प्रकट हुआ होगा। 

"इस बागड़ बिल्ले के हमले से तुम श्रापित भी हो सकते हो। पर शापित होने से, डरने की कोई जरूरत नहीं है। हालांकि जानवर तेज है इसलिए मुझे उसे समझने में कुछ देर लगी। सब लोग मेरी सहायता करो, घबराओ मत और साथ रहो" सुषुप्त शेखर ने एक तरीका सुझाया। 

सभी ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और ये क्सिऊ ने कुछ नहीं कहा। पार्टी के नेता ने जो भी कहा था उसमें कुछ भी गलत नहीं था। 

"सिस्टम ने अभी तक इसकी घोषणा नहीं की है। साथियों हो सकता है दसवें सर्वर में हम पहले हो जो छिपे हुए सरगना को मारे" सुषुप्त शेखर ने उत्साह से सभी को आक्रोशित करने की कोशिश की। 

"आगे बढ़ो" सुषुप्त शेखर ने आदेश दिया और पांचो आगे बढ़ने लगे। काले बादलों ने सूरज को घेर लिया था जिससे हरे जंगल पर एक गहरा साया मंडराने लगा। सभी के पैरों की आहट साफ़ सुनी जा सकती थी। किसी ने कुछ नहीं कहा था और सब का ध्यान अपने आसपास हो रही घटनाओं पर था। 

"फालेन सुन, अब आकाश में देखने की कोई जरूरत नहीं है। बागड़ बिल्ला ऊपर से नहीं कूदने वाला" सुषुप्त शेखर ने कहा। ग्लोरी एक व्यक्ति के नजरिए को लेकर चलता है। स्क्रीन पर दिखने वाला नजरिया असली व्यक्ति का नजरिया होता है। क्योंकि कुछ चीजें कितनी खास थी जैसे जब आकाश में देख रहे हो तो पात्र को सर उठाना ही होता है। सुषुप्त शेखर सब को लगातार सर उठाते देख रहा था इसलिए वह इस और इशारा करने से रोक न सका। 

"हा हा हा" सभी लोग हँस पड़े। ये क्सिऊ ने अचानक जंगल में तेज सरसराहट सुनी। इस तरह की आवाज पैरों से नहीं आ रही थी। यह आवाज पत्ते से शरीर के घर्षण की थी। 

"यहाँ है ये" ये क्सिऊ ने देखा की लिखने की रफ्तार काफी धीमी है इसलिए वह तेजी से चिल्लाया। उसके मुंह में अभी भी सिगरेट थी। इस दौरान उसने उंगलियों को हल्के से दो बार ठोका। विकट देव पीछे कूद के दाएं बाएं देखने लगा और फिर एक गहरी सांस ली। उसने पहले ही बागड़ बिल्ले की सामान्य दिशा बता दी थी। 

सभी ने देखा विकेट देव की हरकतें और जानते थे यही वह साथी था जिसने तुरंत ही इस जरूरी मौके पर आने वाले खतरे से आगाह कराया था। 

"सभी लोग पीछे हो जाओ" सुषुप्त शेखर चिल्लाया पर वह खुद पीछे नहीं हटा। वह बागड़ बिल्ले के हमले से पहला शिकार होना चाहता था। 

इसके बाद बाकी 3 पीछे हो लिए और विकेट देव के बगल खड़े हो गए। उन्होंने सुषुप्त शेखर से एक निश्चित दूरी बना ली। सभी ने अपनी सांसे थाम ली और घूरने लगे पर बागड़ बिल्ले द्वारा निकाली गई सरसराहट की आवाज अब रुक सी गई थी। 

"क्या..." जैसे ही पार्टी के सदस्य फालेन सुन ने ये शब्द कहे, एक काली परछाई बिल्ली की चीखने की आवाज के साथ उड़ती हुई सी आई। पहला हमला सही में सुषुप्त शेखर पर हुआ। 

"समय का बेहतरीन प्रयोग" सुषुप्त शेखर ने खड़े होकर कहा। उसके चेहरे पर डर का कोई निशान नहीं था और वह तुरंत ही तलवार लहराने लगा। बागड़ बिल्ले के शरीर छोटा था और वह तेजी से भागता था। इस तरह के दैत्य, खिलाड़ियों की सटीकता का परिचय लेते हैं। ये क्सिऊ ने बाकी चार खिलाड़ियों के कौशल को पहले ही जान लिया था। उसका अंदाजा था की बागड़ बिल्ले से टक्कर में कुछ समय लग जाएगा। उसका यह भी सोचना था कि उसकी अरोग्यम की कुशलता शायद दुश्मन को पीछे खींच ले। अगर ऐसा होता भी तो यह दिक्कत का विषय नहीं था। ये क्सिऊ अकेला ही बागड़ बिल्ले के लिए काफी था। 

अंत में सुषुप्त शेखर की काबिलियत फूट के सामने आई। उसकी तलवार चलाने की कुशलता बेहद सटीक थी और उसने बागड़ बिल्ले को दो टुकड़ों में काट के हवा में बिखेर दिया होता, अगर वह हल्का सा बच न गया होता तो। साथ ही उसने तुरंत ही लुढ़क कर बिल्ले के पंजों से भी खुद को बचाया और आरोग्यम के इस्तेमाल भी बचा लिया जो विकट देव ने पहले ही बना के रख लिया था। 

हालांकि बागड़ बिल्ला बच गया था पर उसने तुरंत ही अपनी प्रतिक्रिया दी। वह अपने शरीर के बल पलटा और फिर पंजों से नोचने की कोशिश की। सुषुप्त शेखर ने खड़ी तलवार की नोक से उसे रोकने की कोशिश की। "डाँग" तलवार बिल्ले के पंजे से टकराई और सुषुप्त शेखर आधा कदम पीछे फिसल गया। उसने तुरंत तलवार उठाई और हमले के लिए फिर तैयार हो गया।

"सुंदर!" ये क्सिऊ तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाया। सुषुप्त शेखर ने खड़क कौशल रक्षा का सही समय पर प्रयोग किया। उसके विपक्षी का वार, किसी भी तरह से कमजोर नहीं था। हालांकि उसके नेतृत्व की क्षमता गजब की थी पर उसने यह उम्मीद नहीं की थी। क्या उसने उसके बारे में गलत राय बना ली? सुषुप्त शेखर की कुशलता उसकी उम्मीदों से परे थी।

सुषुप्त शेखर ने बागड़ बिल्ले को गिरा दिया और धरती को हिला देने वाले झटके के साथ जमीन पर कदम रखें। उसके बाद वह फिर से बागड़ बिल्ले की ओर लपका और गाढ़े भटीले रंग की तलवार से उसे काट दिया। इस दृश्य से सभी लोग प्रसन्न चित्त हो गए। सुषुप्त शेखर ने उसे उबरने का मौका नहीं दिया और तुरंत ही दोबारा काट दिया। वह चिल्लाया "काट दिया" 

पार्टी के 3 सदस्य पहले से ही तैयार थे। उन्होंने तुरंत ही अपने हथियार हिलाएं और अपनी सभी कुशलता का प्रदर्शन किया जो उन्होंने यहाँ सीखी। सुषुप्त शेखर को दाएं बाएं झुककर बचने की जरूरत नहीं थी। विकट देव के आरोग्यम के भरोसे उन्होंने बागड़ बिल्ले को आसान अवस्था में फंसा लिया था। 

यह अवस्था बहुत अच्छी लग रही थी बागड़ बिल्ला लहर दर लहर चिल्ला रहा था। सभी बहुत खुश थे। उन तीनों नए खिलाड़ियों ने सुषुप्त शेखर के समझाने के अनुसार छिपे हुए सरगना की कीमत को जान लिया था। सभी देख रहे थे और इंतजार में थे की बागड़ बिल्ला कब गिरेगा। पर विकट देव ने अलग तरह से सोचा। 

"लाल खून। ठीक होते जा रहा" बागड़ बिल्ले की जीवन रेखा 10% से कम रह गई थी। सभी खिलाड़ी इस अवस्था को लाल खून कहते थे। बहुत सारे सरगनाओं का अंतिम अवस्था में पहुंचने पर अलग अलग स्थिति दिखती थी। हरा जंगल एक नई कालकोठरी ही थी। सरगनाओं के पास कोई खास काबिलियत नहीं होती पर बागड़ बिल्ला अलग था क्योंकि वह छिपा हुआ सरगना था। वह छिपा हुआ ना होता अगर उसमें कोई खास काबिलियत ना होती। 

पर बागड़ बिल्ले का बदलाव काफी सरल था। वह निडरता पूर्वक अपने आक्रमण की रफ्तार को घटने दे रहा था और नुकसान को बढ़ने दे रहा था। इसलिए ठीक होने का दबाव भी इस समय बढ़ने लगा। 

ये क्सिऊ ने अनुमान लगाया कि सुषुप्त शेखर की कुशलता के अनुसार यदि वह थोड़ा झुक जाए तो इसे मारना उतना कठिन नहीं होगा। किसने सोचा था यह आदमी सीधे बागड़ बिल्ले से लड़ेगा? साथ ही उसका विपक्षी हमलावर थोड़ा पीछे हटता सा दिख रहा था। 

"नहीं..." ये क्सिऊ ने पार्टी के पैनल को पार कर लिया। साफ तौर पर यह दिक्कत नहीं थी। सुषुप्त शेखर के अचानक बदलाव ने कि अब कुछ प्रयास नहीं करना है, ने तय कर दिया था। उसने पहले ही कुछ सोच रखा था। जैसे ही ये क्सिऊ सबको आगाह करने वाला था, वैसे ही उसने सुषुप्त शेखर को चिल्लाते सुना "धत तेरी की फट..."

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