वीर और स्वाति को इस कदर प्यार में देखकर मधु का भी बुरा हाल हो चुका था ! अब वीर ने स्वाति की गले की चैन को छोड़ दिया ! और अपने दोनों हाथों से स्वाति के उभारों के साथ खेलना शुरू कर दिया ! जैसे घड़ी की सुइयां घूमती हैं वैसे वैसे धीरे-धीरे वीर के हाथ स्वाति के उभारो पर चलने लगे !
स्वाति के मुख से कामवासना से परिपूर्ण वीर का नाम बढ़ता ही जा रहा था ! अब वीर ने अपनी उंगलियों और अंगूठे के बीच में दोनों मनको को ले लिया और दोनों मनको को एक दूसरे के साथ घर्षण करना शुरू कर दिया और अपने मुख् मंडल को सीधा उनके ऊपर ले जाकर अपनी जीभ से लार उनके ऊपर तक आने लगा ! दोनों मनके वीर की लार गिरने के कारण गीले हो चुके थे ! दोनों मनकों पर छोटी-छोटी जो लाइने सी बनी होती हैं उनके अंदर वीर की लार अच्छे से समा चुकी थी !
स्वाति के दोनों हाथ वीर की बाजू पर थे और वह वीर के हाथों को अपने सीने पर और दबा रही थी लेकिन वीर इस खेल को जल्दी खेत खत्म करने की क्लास में बिल्कुल भी नहीं लग रहा था वीर बिल्कुल एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह काम कर रहा था !
वीर का पूरा वजन हाथों के माध्यम से स्वाति के सीने पर ही था ! कामवासना से वशीभूत होकर स्वाति ने अपने चेहरे को उठाया और वीर की गर्दन पर काटने की भरपूर कोशिश की लेकिन वीर का पूरा का पूरा ध्यान सिर्फ स्वाति के उभारो पर ही लग रहा था और स्वाति की है कोशिश नाकामयाब साबित हुई है !
अचानक से स्वाति ने अपने दोनों पैर मोड़ते हुए अपने बीच का हिस्सा यानी कि नितंब को उठाते हुए ए उठने की कोशिश की !लेकिन उसकी यह कोशिश भी विफल साबित हुई !
वीर ने स्वाति के पेट के निचले हिस्से पर अपनी कोहनी को इस तरह से गड़ा रखी थी स्वाति चाह कर भी उठ नहीं पा रही थी ! उसके लिए अब ऐसा लग रहा था ! कि कंट्रोल करना बिल्कुल भी आसान नहीं था ! वह इस खेल को अभी खत्म करने की फिराक में थी !
वीर को अचानक से दिमाग में एक और नई युक्ति आई! वीर ने झटपट से अपने एक हाथ से बेड के दूसरे किनारे पर पड़े हुए अपने बैग में से जूते पॉलिश करने का एक ब्रश निकाला !
वह देखने में थोड़ा सा बड़ा लग रहा था उसमें जो बाल लगे हुए थे बड़े और मुलायम लग रहे थे !
वीर ने ब्रश से स्वाति की उभारो के साइड से ऊपर की तरफ ब्रश करना शुरू कर दिया ! मंजर देखने में बहुत ही शानदार लग रहा था ! उस मुलायम सी ब्रश के घर्षण के कारण स्वाति अपने चरम सीमा पर पहुंच गई ! वीर की भी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी तुम्हें एक छोर से दूसरे छोर तक उभारो पर ब्रश को जल्दी-जल्दी दाएं से बाएं बाएं से दाएं कर रहा था ! बाहर खड़ी हुई मधु का भी देख कर बुरा हाल था
बाहर खड़ी मधु और और अंदर वीर के साथ प्यार कर रही स्वाति दोनों के मुख से एक साथ निकला " वीर र र र र "
स्वाति ने कहा वीर प्लीज उसको अंदर डालो ना मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है और स्वाति का छटपटाना लगातार बढ़ता ही जा रहा था ! स्वाति ने वीर के हाथ से ब्रश को पकड़ कर बैठ कर दूसरे किनारे पर फेंक दिया ! लेकिन ऐसा लग रहा था कि वीर के मन में कुछ और ही चल रहा था वह इस खेल को अभी समाप्त करने के बिल्कुल भी सहमत नहीं था !
वीर ने अचानक अपने छोटे छोटे मनको को स्वाति के मन को के साथ मिला दिया फिर उसके 1 मनके को अपने उंगलियों के बीच लेकर अपने मन के पर जोर जोर से रगड़ने लगा
स्वाति _ वीर र र र
वीर र र र प्लीज और जोर से करो ना मुझे बहुत अच्छा लग रहा है
वीर ने अपनी आंखें थोड़ी सी बड़ी करते हुए अपनी भोहों को ऊपर माथे की तरफ लगाया ! और अगले ही पल वीर ने दाएं हाथ में एक पीतल का कड़ा पहना हुआ था अचानक उसने कड़े और कलाई के बीच में जो जगह खाली पड़ी हुई थी उसमें अपनी उंगली की मदद से स्वाति के उभार का एक मन का फसा दिया और सीधा उसको पेट की तरफ खींचने लगा
उस की पांचों उंगलियां उभार के ऊपर विराजमान थी और कलाई का जोर उसकी पेट की तरह बार-बार झटके के साथ कर रहा था !
स्वाति _ वीर मैं मर जाऊंगी यार जल्दी करो ना मैं होने वाली हूं बाबू मुझे तुम्हारी जरूरत है ! खो जाओ मेरे रूह में
समा जाओ मेरे सांसों की गर्मी में बार-बार उसके मुंह से कुछ ना कुछ निकल रहा था !
अब स्वाति ने अचानक से अपनी दोनों टांगे वीर की कमर पर कैंची बनाकर फसादी और अपने नितंबों को जोर-जोर से ऊपर नीचे करने लगी ! वह अपनी यो नि का घर्षण वीर के लिं ग पर कर रही थी ! वीर मगन होकर स्वाति के उभारो से रसपान कर रहा था ! उसके दोनों हाथ वीर के लंबे बालों को खींच रहे थे !
बाहर खड़ी हुई मधु ने अपना एक हाथ अपने दोनों पैरों के बीच में लिया और जोर से अपने दोनों के पैरों के बीच में दबा लिया और अपना दूसरा हाथ अपने सीने को छूने लगी ! उसके लंबे लंबे नाखून ब्लाउज के ऊपर से ही उबले हुए मनको को दबाने लगी उसका मुंह खुला हुआ था !
इतनी ही देर में स्वाति ने बलपूर्वक एकदम से पलटी ली और वीर के ऊपर आ गई और पूरा खेल लगता है 1 मिनट में बदल जाएगा ! स्वाति ने अपना पूरा सीना वीर के सीने पर रगड़ना शुरू किया !
बाहर खड़ी हुई मधु अचानक तंद्रा टूटी उसको आभास हुआ जैसे उसको कोई पीछे से आवाज लगा रहा है
पीछे से आती हुई आवाज सुनकर मधु सीधा खड़ा हो जाती है और उसका सर सुराग के ऊपर ऐसी से टकराता है और वो पीछे पलट कर देखती है वह तो उसका ठरकी पड़ोसी रेहान है
रेहान _ भाभी जी क्या हो गया काफी देर से झुक कर देख रहे हो ! कैसे खराब हो गया क्या ? मैं आकर मदद करू !
मधु ने इसारा किया कि नहीं कोई बात नहीं है और वह चलती चलती रेहान की तरफ गई जो छत के दूसरे हिस्से पर अपनी छत पर था और कहने लगी भाई साहब आज तो हमारे ऐसी से पता नहीं किसी चूहे की आवाज आ रही थी और काफी मशक्कत के बाद भी मुझे चूहा नजर नहीं आया इतना कहकर मधु सीधा धम धम करते हुए नीचे आ गई !