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Chapter 2 - हमारा पहला दिन

उसने खुदको मुश्किल से संभाल कर जवाब दिया जी शाहिद ने कहा हमारी शादी तो हो चुकी है लेकिन मैं तुम्हे किसी झूठे दिलासे मैं नही रखना चाहता मैं तुम्हे पसंद नही करता मेरी बहन की यह ख्वाइश थी की मेरी शादी हो मैं कभी शादी नही करना चाहता था तुमसे क्या किसी से भी मुझे किसी को अपनी जिंदगी में लाना अच्छा नही लगता तो तुम मेरे से इस शादी को लेकर कोई उम्मीद मत रखना हम कुछ वक्त साथ रहेगी और फिर अलग हो जाएंगे आयत उस वक्त कुछ बोलने की हालात में नही थी मानो उस पार आसमान टूट पड़ा हो शाहिद अपनी बात खत्म कर कमरे से बाहर चला जाता है आयत के लिए वो रात एक डरावनी रात थी वो जहा खड़ी थी वही गिर गई वो उस वक्त अपनी मां का सोच रही थी की क्या मेरी जिंदगी भी मेरी मां की तरह ही लिखी थी आयत को कभी बाप का प्यार नही मिला वो बचपन से ही ऐसे ही रही आयत समझ नही पा रही थी की यह उसके साथ क्या हो था है जो मेरा प्यार था वो ऐसा इंसान नही हो सकता अगर हमारी शादी भी न होती तो कम से कम एक ख्वाब तो रहता लेकिन अब तो कुछ भी नही वो जीने की उम्मीद खो चुकी थी आखिर कोई इंसान ऐसा कैसे कर सकता है ?? किसी के साथ ।

उस पूरी रात बारिश आई मानो आसमान भी उसके दुख से दुखी था अधेरी रात में आयत वही रोते रोते फर्श पर कब सो गई उसको पता नही लगा और जब वो उठी तो शाहिद उसको देख रहा था यह तो साफ था की वो उसको प्यार से नही देख रहा था आयत अचानक से डर कर उठती है शाहिद अपनी वही घमंड की आवाज में बोलता है मेरी बहन आने वाली है उसको नही पता लगना चाहिए इस शादी की सचाई तो अपना हुलिया सही करो हमे कुछ देर बाद सबसे मिलने के लिए निकलना है अब आयत पर कहने के लिए कुछ नही था वो चुप खुद को संभालती हुए आगे बढ़ती है कुछ देर बाद वो दोनो अपनी फैमिली से मिलने के लिए जाते यह कुछ शादी की बाद की रस्मे थी जिनको पूरा करने में दोनो को ही कोई इंटरेस्ट नही था फिर भी वो करते है शाहिद की बहन जब आयत से मिलती तो वो हमेशा की तरह खुश होती लेकिन इस बार आयत की नजरो में उसको लिए मोहब्बत नही थी आयत सोचती क्या अपने भाई की असली चेहरे से यह भी वाकिफ है ?? अगर हां तो इसने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया?यह सोच ही रही थी की आयत से मिलने उसकी मां आती है आयत उनको देखते ही रोने लगती है आयत की मां डर जाती है कहती है मेरी बच्ची क्या हुआ कुछ हुआ है ?? तू खुश नही है क्या हुआ है आयत के मन में ही यह सवाल आते मेरी मां यह सब बर्दाश्त नही कर पाएगी उनको लगेगा उन्होंने मेरी जिंदगी खराब करदी मैं उनको यह नही बता सकती वो मुस्कुराती और बोली नही मां बस तुम्हे देख कर खुश हु मैं पहली बार अलग रही हु न इसलिए वो उसके सर पर हाथ रख कहती ऐसे ही खुश रह मेरी बच्ची आयत उनको देखती हैं और सोचती मां आज पहली बार तूने मुझे बद्दुआ दे दी ।

कुछ देर बाद पार्टी खत्म होती तो वो वापस घर के लिए निकलते शाहिद और लोगो के सामने जो हस रहा था आयत के सामने ऐसे नफरत से घूमता की उसे खुद पर शर्म आती की ते मेरा प्यार यह नही हो सकता ।

शादी का ३ दिन होता आयत ने भले ही मोहब्बत गलत इंसान से की थी लेकर उसकी मोहब्बत सच्ची थी वो हार नही मान सकती वो खुदको खूब समझती है और वादा करती है की में अपनी कोशिश करूंगी इस शादी को चलाने के लिए चाहे कुछ भी हो जाए मैं हार नही मानूंगी और वो एक नई सुबह के साथ उठती और किचन में शहीद के लिए ब्रेक फास्ट तयार करने में लग जाती शाहिद जॉगिंग से आता तो वो डरते हुए बोलती नाश्ता लगा दिया है आ कर खा लीजिए शाहिद उसको इग्नोर कर कमरे में जाता आयत चुप हो जाती कोई बात नही सुना नही होगा फिर कोशिश करते शाहिद बाहर आया तो आयत ने बोला नाश्ता गर्म करदू आप जाने से पहले खा लेना शाहिद उसकी तरफ गुस्से से देखता घर से बाहर चला जाता आयत आह भर कर। फिर चुप हो जाती वो पूरे दिन बस ये सोचती अब क्या करना है कैसे शाहिद के करीब जाना है कहते हैं ना प्यार मैं इंसान को कुछ नही देखता रात को जब शाहिद आता