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Chapter 7 - तुम मेरी मोहब्बत हो

शाहिद आयत को पहले बैठा कर उसके सर पर हाथ रखता है

सर पर हाथ इसे पहले बस आयत की मां ने रखा था

शाहिद का सर पर हाथ आयत को इतनी सुकून देता है

वो चाहती है बस अब मुझे मौत आ जाए मैं इसके लिए इतना तरसी हु पता है जब कोई सर पर हाथ रखने वाला हो

तो वो पल कैसा होता है ?

जैसे बच्चे की बेफिक्र नींद

जैसे अकेले बच्चे को कोई हाथ थाम कर अधेरे से रोशनी मे ले आए शाहिद कहता है आयत अगर में किसी से नफ़रत करता हु

तो वो में खुद से करता हु मै गलत हु मुझे पता है मे तुम्हारी जिंदगी बर्बाद करा हु आयत यह आंसू के काबिल नही मै

तुम जैसी लड़की मैं अपने नसीब मैं कभी मागने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था तुमसे कोई नफरत नही कर सकता तुम मोहब्बत हो आयत मेरी मोहब्बत हो तुम आयत शाहिद को बस देखती रहती है

वो बस सोचती है अगर यह कोई ख्वाब है तो मै जागना चाहती हू

क्युकी अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत नही है तुम्हे पा कर खोने की हिम्मत अब नही है मुझमें शाहिद