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Chapter 8 - क्या यह सच है?

शाहिद की आंखों में उस वक्त बस मोहब्बत थी

जो भी बातें शाहिद को आयत के करीब जाने से रोक

रही थी वो उन सबको भुला देता है और यकीन कर लेता है

उसको आयत से मोहब्बत है पहली बार आयत की आंसू किसी

और ने पोछे पहली बार आयत के सर पर किसी ने मोहब्बत से हाथ रखा आयत उस लम्हे अपनी जिंदगी के सारे गम भुला देती है

शाहिद उसका हाथ पकड़ कर कहता है आज मैं फोन अपने ऑफिस मै ही भूल आया भी देर तक काम करा था फिर टाइम

देखा तो तुम्हारा खयाल आया इसलिए हड़बड़ी में फोन

वही रह गया आयत मुझे माफ करदो मैं अब

तुमसे दूर नही रहना चाहता मैं थक गया हु इस जिंदगी से

मुझे बचा लो एक दर्द भरी आवाज़ से कहता

आयत उसको अपनी बाहों मैं भर लेती

है उस रात शाहिद और आयत के सारी गलतफहमी उन आंसू के साथ बह जाते दोनो एक दूसरे को लिपट कर इतना रोते है

शायद यह जरूरी भी था शाहिद कहता है आयत में कभी कुछ गलती करू तो तुम मूझे मार भी लेना लेकिन मुझे कभी अकेला छोड़ कर मत जाना मे तुम्हारे साथ रहना चाहता हु आखिरी वक्त तक हालात जो भी हो तुम मेरी हो आयत

पता है यह सब वो बातें थी जो आयत हमेशा से सुना चाहती थी वो रात तो आयत की एक एक दुआ मानो एक के बाद एक पूरी हो रही थी वो कुछ कहने से पहले यकीन करना चाहती थी मैं इतनी लकी कबसे हो गई

यह मेरे ख्वाब मैं रहने वाला शख्स मेरा हो गया आयात आंखों में आंसू भर कर बस शाहिद को देखती

शाहिद उसको देख के पूछता आयत तुम मुझसे अभी भी नाराज़ हो कुछ बोलती क्यों नही आयत कहती शाहिद क्या यह कोई ख्वाब है तो मुझे नींद से जागा दो मै आयत आगे कुछ बोले इसे पहले ही शाहिद उसके होठों पर अपने होठ रख देता है ये लम्हा आयत की जिंदगी का सबसे खूबसूरत लम्हा था शाहिद को आयत को यकीन दिलाने का यह तरीका इतना प्यारा क्यों था

शहीद आयत को किस करने के बाद उसकी आंखों में देखते है आयत की आंखों में मानो गम हटा कर खुशियां भर गई हो शाहिद कहता है अब से मै इन आंखो इन होठों पर से तुम्हारे सारे इख्तयार छीन रहा हु यह मेरे है आयत