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Chapter 4 - यह में हु?

आज शाहिद और आयत की शादी को दो महीने हो गए थे वो दोनो बिना बोले भी एक दूसरे से बात करते यह क्या था ? वो एक दूसरे से दूर नही जाना चाहते थे बस हालातो ने उनको कैद किया हुआ था शाहिद को उसके दोस्त का कॉल आता जो कहता की भाभी को लेकर आ यार मिला क्या छुपा कर बैठा है अब उन दोनो को एक कपल की तरह बाहर जाना था आयत तयार होती लेकिन उसको वो पसंद नही आती वो डर रही थी की शाहिद का लोग मजाक न बनाएं क्युकी वो तो इत्ता खूबसूरत है और मैं उसके साथ अच्छी नही लगूंगी आयत कहती क्या मेरा जाना जरूरी है आपके साथ तो शाहिद कहता क्यों मेरे साथ जाना नही चाहती तुम? इतना बुरा हु मैं ? आयत नही मैं वो कुछ नही ।।

अच्छा बताओ ठीक लगरी हु मैं?

आयत की तरफ देखता वो उसे बहोत कुछ कहना चाहता था

शाहिद हमे देर हो रही है चलो ।

आयत ने मन मैं अनेक सवाल चले थे

अब वो दोनो साथ में जाते तो सब उनका वेट करे थे

आयत को देख कर सब खुश होते यू आयत का

मन का भरम था की वो शाहिद के साथ

अच्छी नही लगती वो एक सिंपल लड़की जरूर थी लकेन उसके चहरे पर उसकी मासूमियत अलग ही देखती थी

आयत से सब खुश होकर बात करते शाहिद यह देख

खुश था वो आयत को चुपके चुपके देखता यह सोचता पता नही मेरी जिंदगी में क्या हो रहा है यह लड़की मुझे कैसे मिल गई मैं इसके लिए क्या फील करने लगा हु मैं तो ऐसा नही था यह क्या हो रहा है मेरे साथ आयत को गले लगाने का मन करा है मेरा मैं उसे बात करना चाहता हु तो एक आवाज आती अरे मिया अपनी दुल्हन को देखना बंद भी करदो अब सब शाहिद की टांग खींचने लगते उस पार्टी में शाहिद का एक दुश्मन भी था जो आयत को लगातार देख रहा था यह थोड़ी देर बाद शाहिद की नज़र मैं आता है शाहिद आयत का हाथ पकड़ता और वहा से चला जाता सब अरे क्या हो गया कहते रह जाते शाहिद आयत को कार में बैठा कर वहा से निकल जाता आयत क्या हुआ मैंने kuch गलती करदी?

मैं वहा इसलिए लोगो से सही बोली थी की वो आपके दोस्त है बस शाहिद चुप हो जाओ बिलकुल

आयत सोचती रहती की आखिर मेरे से क्या गलती हो गई है क्या किया अब मैंने