Chereads / My Poem's & Shayris (Hindi) Vol 1 / Chapter 42 - Poem No 3 तन्हाई ही तन्हाई

Chapter 42 - Poem No 3 तन्हाई ही तन्हाई

तन्हाई ही तन्हाई हैं एकांत कक्ष में

जी करता हैं भागकर खो जाऊ उस भीड़ में

फिर सोचता हूं भीड़ में क्या पाया बीमारी के सिवा

तन्हाई ही सुरक्षित हैं भीड़ से ज्यादा

चौदह साल नहीं चौदह दिन की तो बात हैं

काट जायेगा सफर नया सीख और घ्यान से

दूरी बनाया रखना हैं जब तक ये बीमारी ख़त्म ना हो जाये जड़ से

घर में और घर पर ही रहना हैं संभाल के