अर्ज़ कुछ यूँ किया हैं जरा गौर फरमाइयेगा
ना मैं शायर हूं और ना ही मैं कवि
ना मैं शायर हूं और ना ही मैं कवि
मैं तो बस वो इंसान हूं जो इंसान से मोहब्बत करता हूं
मोहब्बत भी ऐसे जो दिल-ओ-जान से करता हूं
कोई मेरा दिल तोड़े या फिर ना तोड़े
मोहब्बत और बस मोहब्बत करता हूं