चांद वो, फूल वो, ताजमहल
या धरती चंचल होगी
इन चारों में कोई नहीं वो
गंगा का जल होगी
चांद ....
चेहरा एक कमल लगता है
एक अनकही ग़ज़ल लगता है
काली केश घटाओं में
आवारा बादल लगता है
मस्त हवाओं में वो बहकी
हिरनी चंचल होगी
इन चारों में कोई नहीं वो
गंगा का जल होगी. ...
आंखों में सागर रहता है
बातों में झरना बहता है
सुर्ख लबो पर है अपनापन
ऐसा एक जोगी कहता है
आवारा बादल के संग में
बदली पागल होगी
इन चारों में कोई नहीं वो
गंगा का जल होगी. ...
By -R.S Goyal