राम्या रात को जंगल में खड़ा था राम्या के सामने एक राक्षस खड़ा था राम्या उस राक्षस को देख कर कहा," परंतु आप मुझे उठाना क्यू चाहते है!." वो राक्षस राम्या को जवाब दिया," हे बालक इस प्रश्न का उतर मेरा महाराजा ही देंगे अर्थात मुझसे बार बार प्रश्न पूछ कर तुम मुझे जलील मत करो!." राम्या उस राक्षस से पूछा," परंतु आपसे तो मैं कुछ ऐसा तो नहीं पूछा जिसे आप जलील हो गय!." वो राक्षस गुस्सा होकर राम्या से पूछा," हे बालक मुझे तुम गुस्सा क्यों दिला रहे हो, तुम खुद मेरे महाराजा के सरण में चलोगे या फिर मैं उठा कर ले चालू!." राम्या उस राक्षस का बात सुन कर आश्चर्य से कहा," परंतु मेरी माता मेरी प्रतीक्षा कर रही है, मुझे जाना होगा!." वो राक्षस राम्या को गुस्सा से कहा," हे मूर्ख बालक तुम ऐसे नही मानोगे, मुझे ही उठाना परेगा तुमको!." वो राक्षस इतना कह कर राम्या की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया। राम्या उस राक्षस से पीछे की तरफ हटने लगा और राम्या अपने आंख से आग का गोला निकाल कर उस राक्षस की तरफ छोड़ दिया। वो राक्षस भी अपने मूंह से जल निकाल कर राम्या का आग को बुझा दिया, वो राक्षस पूछा," हे बालक तुम अभी नादान हो युद्ध के लिए मुझे मत ललकारों!." राम्या उस राक्षस का बात सुन कर कहा," परंतु युद्ध के मैदान में, उम्र का लिहाज़ नही होता है!." वो राक्षस राम्या से कहा," तो तुम नही मानोगे मुझसे युद्ध करोगे!." राम्या उस राक्षस से कहा," परंतु मेरे पास तो समय नही है युद्ध करने के लिए, क्युकी मेरी माता मेरी प्रतीक्षा कर रही है!." वो राक्षस राम्या की बात सुन कर कहा," कैसे वर्तलाप कर रहे हो तुम, कभी युद्ध के लिए कहते हो तो कभी माता प्रतीक्षा कर रही है बोलते हो! यदि तुमको जाना है तो मुझसे पहले युद्ध करो!." राम्या उस राक्षस का बात सुन कर कहा," अवस्य, मैं तैयार हूं!." वो राक्षस राम्या का बात सुन कर जोर जोर से हसने लगा," हा.. हा.. हा... हा.. हा..!." राम्या उस राक्षस का हसी देख कर कहा," हे राक्षस अब युद्ध करोगे या ऐसे ही हस्ते रहोगे!." वो राक्षस राम्या से कहा," अवस्य बालक, परंतु तुम्हारा उम्र देख कर मुझे लिहाज हो रहा है! क्या तुम इस युद्ध को जीत पाओगे !." राम्या उस राक्षस से कहा ," पहले युद्ध तो चालू करो!." इतना कहते ही वो राक्षस अपने सकती से श्री राम का एक बाण छोड़ा, राम्या उस बाण को देख कर समझ गया की," ये बाण मेरे श्री राम का है!." वो बाण जैसे राम्या के पास आया, राम्या उस बाण को प्रणाम किया, उस बाण से श्री राम निकले और राम्या को आशीर्वाद देकर वही से लुप्त हो गय।
वो राक्षस ये सब देख कर दंग रह गया और फिर से एक शंकर जी का वरदान दिया हुआ बाण छोड़ दिया, राम्या अपना धनुष ताना तभी बादल गरजे लगा, राम्या समझ गया कि ये मेरे बाबा शंकर जी का बाण है, राम्या अपना धनुष नीचे कर लिया, उस बाण से शंकर जी झलक रहे थे वो बाण राम्या के पास आकर रुक गया। राम्या उस बाण को हस्ते हुए प्रणाम किया, उस बाण से शंकर जी आशीर्वाद दे कर वो बाण भी लुप्त हो गया।
वो राक्षस राम्या का शक्ति देख कर दंग रह गया, वो राक्षस राम्या से पूछा," बालक तुम कौन हो, मेरा एक बाण भी तुमपे वार नही हो रहा है!." राम्या उस राक्षस से कहा," राक्षस इतना जल्द हार मत मानो, अभी युद्ध तो चालू हुआ है!." राम्या इतना कह कर एक बाण को अपने धनुष में लगा कर और अपने सर पे टिका कर मन में नाम लिया," हे ब्रह्माहे विष्णु.. हे ब्रह्माहे विष्णु.. हे ब्रह्माहे विष्णु.. हे ब्रह्माहे विष्णु.. हे ब्रह्माहे विष्णु !." राम्या इस मंत्र को जप करने के बाद अपना बाण को उस राक्षस की तरफ छोड़ दिया। वो राक्षस राम्या की बाण को देख कर थोड़ा चकित हो गया, वो राक्षस भी अपने विष्णु जी का एक बाण निकाल कर राम्या की तरफ वार कर दिया, राम्या और उस राक्षस का बाण टकड़ा कर दोनो का बाण भस्म हो गया। राम्या देख कर दंग रह गया। वो राक्षस देख कर हसने लगा। तभी राम्या फिर से एक बाण निकाल कर उस राक्षस पे वार कर दिया। वो राक्षस भी अपने शक्ति से एक बाण को वार कर दिया। दोनो का बाण टकड़ा कर भस्म हो गया। राम्या ये देख कर दंग रह गया।
राम्या को लगा की ," लगता है मेरे पास उतना ज्ञान नहीं है धनुष के बारे में!." तभी वो राक्षस एक ब्रह्मा जी का बाण राम्या पे वार कर दिया, वो बाण आकर राम्या के गाल पे सांप की तरह काट लिया, राम्या वही पे बेहोश हो कर गिर गया। वो राक्षस राम्या को घायल देख कर हसने लगा और फिर वो राक्षस राम्या को अपना मुट्ठी में उठा कर अपने महाराजा के पास जाने के लिए चल दिया था।
बाबा कबीर अपने मंदिर में बैठ कर राम्या और उस राक्षस का युद्ध अपने शक्ति से आंख बंद कर के देख रहे थे, जब वो राक्षस राम्या को घायल कर के अपने महाराजा के पास ले जा रहा था तो बाबा कबीर गुस्सा में अपना आंख खोले और और मंत्र पढ़ कर हवन में घी डाल दिए," वॉम पंच-चण्ड कई नमः .. वाॅम पंच-चण्ड कई नमः .. वाॅम पंच-चण्ड कई नमः ..!." तभी वो चिड़िया रानी बाबा कबीर के सामने आकर खड़ा हों गई। (वही चिड़िया रानी जो राम्या को जंगल में मिली थी)
वो चिड़िया रानी कही," बाबा मैने तो बहुत उसे रुकने का प्रतिशा की परंतु वो मेरा एक नही सुना!." वो बाबा कबीर कहा," उस बालक का प्राण संकट में है जल्द जाकर कैसे भी सुबह होने तक उस बालक को उसके माता के पास होना चाहिए!." वो चिड़िया रानी बाबा कबीर के बात सुन कर कहा," अवश्य, आपकी आज्ञा हो तो जाय!." बाबा कबीर कहे," जा सकते हो!." वो चिड़िया रानी उस राक्षस के पास चल दिया।
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to be continued...
प्लीज़ आप लोग कमेंट या सपोर्ट नही कर रहे है प्लीज ये कहानी पूरा एंटरटेनमेंट से भरा हुआ है।
क्या होगा इस श्रोत का अंजाम, क्या वो चिड़िया रानी राम्या को बच्चा पायेगी या फिर वो राक्षस राम्या को लेकर चला जायेगा राम्या की मां का क्या होगा जो बेहोश जंगल में पड़ी थी जानने के लिए पढ़े" RAMYA YUDDH"