जलेदी राक्षस के महाराजा अपने समाज में कुर्शी पे बैठ था तभी एक चकूदार महाराजा के सामने आकर सर झुका कर कहा," महाराज की जय, महाराज कौवा राज एक चिट्ठी लाकर दी है, आपकी आज्ञा हो तो इस चिट्ठी को मैं निखार को दिखा सकता हूं!." महाराज उस चकुदार के बात सुन कर चुप रहे तभी एक दरबार से ज्ञानी पुरुष पूछा," इस चिट्ठी में ऐसा क्या है जिसे कौवा राज ने इतनी हसरत से लाया है, क्या वो स्वयं नही आ सकता था!." चकुदार उस ज्ञानी पुरुष की बात सुन कर कहा," परंतु कौवा राज को वापस जाना जरूरी था, इसलिए वो मुझे इस चिट्ठी को से गय!." फिर से वो ज्ञानी पुरुष बोलना चाहा तभी महाराजा कहे," हूं खोलो और पढ़ कर सुनाओ!." वो चकुदार अपने हाथ का चिट्ठी को खोला और पढ़ कर सुनाने लगा," महाराज की जय, महराज मैं इस चिट्ठी को स्वयं लेकर नही आ सकते क्यू की मुझे वापस जल्द आना पारा,!." वो चकुदार इतना पढ़ कर चुप हो गया आगे नही पढ़ पा रहा था, और आगे क्या लिखा हुआ था सब खत्म हो गया था, वो ज्ञानी पुरुष उस चकुदार से कहा," क्या हुआ क्यू रोक गय, आगे पढ़ो!." वो चकुदार की अकबक बंद हो गई और कुछ नही बोला, तभी महाराजा गुस्सा में पूछे," क्या हुआ , आगे पढ़े क्या लिखा था!." वो चकुदार डरते डरते इतमीनान से कहा," महाराज इसके आगे का पृष्ठ आर्द्र हो चुका है!." महाराजा गुस्सा में खड़ा हो कर कहे," क्या सफा नम हो चुका, जाओ और कौवा राज को संदेश भेज कर बुलाओ!." वो चकूदार इत्मीनान से कहा," जी महाराज!." इतना कह कर चकूदार दरबार से बाहर निकल गया।
राम्या और राम्या की गुरु हरिदास जी दोनो जब अपने आश्रम पहुंचे तो वहा पे आरती की सारे तैयारी हो चुकी थी, राम्या और हरिदास को पहुंचते ही आरती सुरू हो गई,"
आरती की जय हनुमान लाला की, दुशात दलन रघुनाथ कला की |
जा के बाल से गिरिवर कानपे, रोग दोष जा के निकत ना जानके ||
अंजनी पुत्र महाबलदाय, संतान के प्रभु सदा सहाय |
दे बिराहा रघुनाथ पठाई, लंका जारी सिया सुधि लाईये ||
लंका सो कोट समुन्द्र से खैय, जात पावन सुत बार न लाये |
लंका जारी असुर सब मारे, सिया रामजी के काज सांवरे ||लक्ष्मण मूरचित परहे सकारे, आन सजीवन प्राण उभारे |
पैठ पाताल तोरी यमकारे, अहिरावण के भुजा उखारे ||
बायें भुजा असुर दल मारे, डायन भुजा सब संता जाना तारे |
सुरनार मुनिजन आरती उतारे, जय जय जय हनुमान ऊंचारे||
कंचन थार कपूर लो छै, आरती करत आजानी माई |
जो हनुमानजी की आरती गावे, बसि बैकुंठ अमर पद पावे ||
लंका विध्वंस किये रगुराई, तुलसीदास स्वामी आरती गाये |
आरती की जय हनुमान लाला की, दुशात दलन रघुनाथ कला की ||
पवन तनय संकट हरन मनागल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय भासु सुर भूप!."
साथ ही साथ हरिदास बाबा अपने आरती थाली को लेकर चारो दीक्षा में घूम घूम कर दिखाते थे, कुछ समय बाद आरती सम्पूर्ण गया,
कौवा राज एक पेड़ पे बैठ कर सब देख रहा था तभी दूसरी कौवा आकर उसी पेड़ पे बैठ गया, कौवा राज उस कौवा को देख कर पूछा," तुम्हे यहां क्यू आना पारा!." दूसरा कौवा बोला," कौवा राज तुम्हे महाराजा बुलाए है!." कौवा राज उस कौवा की बात सुन कर पूछा," परंतु क्यू, मैं तो चिट्ठी लिख कर पहुंचा दिया हूं!." दूसरी कौवा कहा," कौवा राज जिस चिट्ठी को तुम हमे दिया था वो चिट्ठी जल से सफा नम हो गई थी !." वो कौवा राज दूसरी कौवा की बात सुन कर आश्चर्य से कहा," क्या पृष्ठ आर्द्र हो गई थी, परंतु कैसे!." वो कौवा कहा," कौवा राज ये तो मुझे भी नही पता, आपको चलना परेगा महाराजा के पास!." वो कौवा राज कहा ,"ठीक है चलो मेरे साथ!." फिर वो कौवा राज और दूसरी कौवा भी वहा से उड़ान लगा दिया,
रात को महाराजा अपने खिड़की के पास खड़ा होकर कौवा राज का इंतजार कर रहे थे, तभी कौवा राज महाराजा के सामने आकर खड़ा हो गया, कौवा राज इतमीनान से पूछा," महाराज की जय, महाराज इतनी क्या जरूरत थी जिसे मुझे इतनी रात को बुलाना पड़ा!." महाराजा उस कौवा राज की बात सुन कर कहा," कौवा राज जो तुम आज समाज में पाती भेजा था वो सफा नम हो चुका था, उसमे क्या ऐसा लिख कर भेजा था!." वो कौवा राज महाराजा की बात सुन कर आश्चर्य से पूछा,"परंतु वो खत नम कैसे हो गया!." महाराजा उस कौवा राज की बात सुन कर कहा," ये तो मुझे भी नही पता की वो सफा नम कैसे हुआ, अर्थात ये बताओ उसमे लिखा क्या था!." वो कौवा राज महाराजा की बात सुन कर कहा," महाराज,आज मैने उस बालक को आम तोड़ते हुए देखा, परंतु बालक का बाण उस आम से हट कर एक हिरण को लग गया, और वो हिरण एक साधु का भेष बना लिया, परंतु एक शब्द समझ नही आ रही है उस साधु के पास बाण कहा से आया!."
महाराजा उस कौवा राज की बात सुन कर आश्चर्य से पूछा," क्या उस साधु के पास बाण था, परंतु वो बाण कौन उठाया!." वो कौवा राज महाराजा की शब्द का जवाब दिया," महाराज वो बाण तो, उस बालक की गुरु हरिदास ने उठाया, परंतु उस बाण को देख कर बहुत ही शक्ति शाली लगता है?!." महाराजा उस कौवा राज की वाक्य सुन कर आश्चर्य से कहा," परंतु उस बाण मैं ऐसा क्या है जिसे शक्ति शाली लगता है!." वो कौवा राज महाराजा की बात सुन कर जवाब दिया," महाराज, वो बाण ब्रम्हा शास्त्र है जो आपको नही मिला है!." महाराजा उस कौवा राज की बात सुन कर गुस्सा में कहा ," क्या ब्रह्मा शास्त्र, ये कैसे हो सकता है कितने सालों से प्रतिज्ञा कर रहा हूं मुझे नहीं मिला परंतु उसे इतनी आसानी से कैसे मिल गया!." इतना कह कर महाराजा कुछ सोचने लगा तभी वो कौवा राज इतमीनान से कहा," महराज आपकी प्रतिज्ञा में जरूर कुछ खोट होगी, यदि आपको व्यथा न हो तो उस बालक से युद्ध का पैगाम मत मांगिए, !." महाराजा उस कौवा राज की बात सुन कर गुस्सा में कहा," नही मैं उस बालक से शिकस्त नही हो सकते, तुम अपनी ज्ञान अपनी पास रखो, और चले जाओ यहां से जब तक काम्या नही दिखेगी तब तक तुम यहां मत आना!." वो कौवा राज महाराजा की शब्द सुन कर उतर दिया," परंतु उस बालक की कोई बहन नही है, आपको जिसने भी पैगाम दिया है वो त्रुटिपूर्ण है!." महाराजा उस कौवा राज की वाक्य सुन कर गुस्सा में कहा," चले जाओ यहां, जब तक काम्या नही दिखेगी तब तक तुम्हे इस समाज में नही आना है!." वो कोई राज अपनी महाराजा की शब्द सुन कर कहा," परंतु आप एक सोच लीजिए, क्यू की संकट ते ब्योरना पग डग स्मर ते ना आए अमुक!." महाराजा उस कौवा राज की वाक्य सुन कर गुस्सा में कहा," चले जाओ यहां से मुझे तुम्हारा ज्ञान नहीं चाहिए!." वो कौवा राज अपनी महाराजा की आज्ञा मान कर जाते जाते एक शब्द और कहा," माहराज, नारी को उठाना तो बहुत सुगम होता है , परंतु उस वनिता को गोष्ठी में मान दिलाना बहुत दुष्कर है, रावण भी सिया को तुंगता किया था, परंतु पूरी लंका दहन हो गई!." वो कौवा राज इतना कहा ही था की महाराजा अपनी हाथ में चन्द्रहास लेकर कौवा की तरफ भीरा दिए, वो कौवा इतमीनान से कहा," महाराज गुस्से पे अंकुश होगा, अब मैं चलता हूं!." वो कौवा राज वहा चल दिया राम्या के पास पेड़ पे,
to be continued...
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