सुबह में राम्या और राम्या की मां अंजन दोनो दोनो साथ ही गुरु जी के आश्रम जा रहे थे, राम्या थोड़ा पंगु की तरह जंगम कर रहा था, राम्या की मां अंजन जब राम्या को देखी की," राम्या तो अपंग की तरह चर रहा है!." राम्या की मां राम्या को गोद उठाते हुए कही," पुत्र तुम्हारे कदम में खार ते खलना!." अंजन राम्या को गोद में उठा कर चलने लगी, उस समय राम्या की उम्र थोड़ा बढ़ गया था, अंजन राम्या को उठा कर धीरे धीरे आगे की तरफ चलने लगी, अंजन का आसन थोड़ा कमजोर होने के कारण अंजन को सर घूम रहा था परंतु मां तो मां होती है, राम्या की मां अपने पुत्र राम्या की दर्द देख कर अपना दर्द भूल गई और धीरे धीरे लेकर अपने गुरु जी के आश्रम चल दी थी, राम्या अपने मां के लोचन देख कर राम्या का नैन नम से भर गया था, राम्या की मां दर्द पीड़ित सह कर कैसे भी राम्या को आश्रम तक लेकर आई, राम्या के मां अंजन के पैर में भी कितना कांटा चुभ रहा था परंतु राम्या की मां सारे दर्द सह जा रही थी,और राम्या को गोद में लेकर इतमीनान से आगे की तरफ बढ़ते जा रही थी, राम्या अपने मां के गोद में आंख में नम लिया हुआ सोच रहा था," माते मुझसे ये आपका दुख देखा नही जा रहा है, जो हो जाए मैं आपको पिता श्री से एक दिन जरूर मिलाऊंगा!." राम्या इतना सोचा ही था की तभी गुरु जी के आश्रम आ गया था, राम्या की मां राम्या को आश्रम के गेट पे अधोभाग में जनना कर दी, राम्या और राम्या की मां अंजन दोनो वहा से धीरे धीरे गुरु जी के पास आने लगे, गुरु जी हवन के आगे बैठ कर हवन कर रहे थे तभी गुरु जी का नजर राम्या और राम्या की मां पे पड़ा, गुरु जी तो पहले से ही राम्या और राम्या की मां पे रोष थे गुरू जी अंजन को देख कर फिर से कोप हो गय, और राम्या और राम्या की मां जैसे गुरु जी के पास आए तो गुरु जी प्रतिघात हो कर कहे," निवास होना व्यक्ति!." राम्या और राम्या की मां अंजन दोनो जाने गुरु जी वाक्य सुन कर वही पे नियति हो गए, राम्या की मां देखते हुए गुरु जी से पूछी," परंतु क्यू गुरु जी, मेरा पुत्र कल तमी में जो किया है उसके लिए मैं सदा आभारी रहना चाहती हूं!." गुरु जी आक्रोश में आकर कहे," तुम एक पुत्र नही संभाल पा रही हो, तुम्हारे बालक ने कल रात जो किया है उसके लिए तो ये श्राप अभी बहुत छोटा है!." गुरु जी के शब्द सुन कर अंजन के आंख में चक्षुजल भर आया और अंजन वही से दौर कर गुरु जी के चरण में आकर गिर कर रोने लगी," गुरु जी मैं अपने पुत्र के तरफ से छम्मा चाहती हूं, उसे इस श्राप से मुक्त कर दीजिए, बरबस ते कामना निरीक्षण ले सकते है!." गुरु जी अंजन की बात सुन कर चुप हो गय और कुछ सोच लगे, तभी नारायण जी विष्णु जी से कहे," नारायण नारायण नारायण नारायण... प्रभु आप क्या कर रहे है, उस छोटी सी बालक का क्या परीक्षण होगा!." विष्णु जी इतमीनान से कहे," नारायण, श्री राम ने खुद उस औरत को अपना दास बनाए है,!." नारायण जी विष्णु जी की बात सुन कर कहे," क्या श्री राम ने उस औरत को अपना दास बनाए है, फिर आज वो इतनी बड़ी संकट में क्यू है!." विष्णु जी नारायण जी से कहे," नारायण, इस पृथ्वी पे तो हजारों उनका भक्त तो क्या सबको वो खुशियां दे देंगे तो फिर उनका भक्त कौन बनेगा, अर्थात मनुष्य को तब तक भक्ति रहती है जब तक वो संकट से गुजरता है और जिस दिन संकट से मुक्त हुआ वो मनुष्य भक्ति छोड़ देता है!." नारायण जी विष्णु जी की बात सुन कर आश्चर्य से पूछा," परंतु इतने दास में उनको सिर्फ एक राम्या ही दिखा जो, अर्थात वो एक ज्ञानी बालक है परंतु उसके उप्पर इतना संकट क्यू है!." विष्णु जी नारायण जी का वाक्य सुन कर मुस्कुराने लगे, तभी नारायण जी आश्चर्य से आगे कहे," प्रभु आप मुस्करा रहे है, जल्द कुछ करिए नही तो उस बालक के लिए परीक्षण का अवकाश आ जायेगा!." विष्णु जी नारायण जी का बात सुन कर कहे," नारायण जिस भक्त का बेला संकट से गुजरता है वो कभी किसी मैदान में नही हार्ता है, अर्थात श्री राम चंद्र ने उस बालक का परीक्षण कर रहे है!." नारायण जी विष्णु जी की बात सुन आश्चर्य से पूछे," परंतु एक बालक का परीक्षण करना क्या ये सही है, अर्थात आप कुछ करिए नही तो मुझे श्री राम यों बजरंग बल्ली के पास होगा!." विष्णु जी नारायण जी की आज्ञा मान कर और अपनी नेत्री को बंद कर के मन में जप करने लगे,"ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा नमस्ते परमात्ने। निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सदुयाय नमो नम:।। !." ये मंत्र पढ़ने के बाद स्वयं ब्रम्हा जी उपस्थित हो गय, नारायण जी ब्रम्हा जी को देख आश्चर्य से प्रणाम किए, विष्णु जी ने भी अपना नैन खोले तो सामने ब्रम्हा जी प्रकट हो चुके थे, विष्णु जी भी ब्रम्हा जी को प्रणाम किए, तो ब्रम्हा जी विष्णु जी से इतमीनान से पूछे," प्रभु क्या हुआ जो आप मुझे स्वयं बुलाने की प्रतीक्षा की!." विष्णु जी ब्रम्हा जी की बात सुन कर कहे," प्रभु, पृथ्वी पे ये सब क्या हो रहा है, उस छोटा सा बालक को इतना बड़ा श्राप,अर्थात उसकी परीक्षण होने जा रही है!." ब्रम्हा जी विष्णु जी की बात सुन कर इतमीनान से कहे," प्रभु उस बालक का समीक्षण देना सारभूत है, अर्थात उस बालक ने खामी का भागी है, परंतु आप रंज मत करिए, वो बालक उस परीक्षण में अवश्य आस होगा!." विष्णु जी ब्रम्हा जी की बात सुन कर कहे," परंतु ब्रम्हा शास्त्र आपको दान करने की हरिदास प्रतीक्षा कर रहे है!." ब्रम्हा जी विष्णु जी की बात सुन कर मुस्कुरा कर कहे," नही, वो बाण राम्या को ही मिलेगा!," ये बात सुन कर नारायण जी मुस्कुरा उठे, और साथ ही कहे," प्रभु... !." तभी ब्रम्हा जी कहे," नारायण, अब मैं चलता हूं, परंतु अधीरता की की जरूरत नहीं है!." फिर विष्णु जी और नारायण जी दोनो जाने ब्रह्मा जी को प्रणाम किए, और ब्रम्हा जी आशीर्वाद देख कर चले गय,
to be continued....
राम्या को कैसा परीक्षण देना परेगा, क्या सच में ब्रम्हा शास्त्र राम्या को मिलेगा, या फिर गुरु जी के स्वप्न में बजरंग बल्ली आकर बोले थे वो सच होगा जानने के लिए पढ़े "RAMYA YUDDH"