रात को तकरीबन 10 PM के करीब कौवा राज और मांदरी दोनो नदी के पार जाकर महाराजा के घर से कुछ दूर पे नदी के किनारा उतर गया और कौवा राज इतमीनान से कहा," बालक आप उतर सकते हो,क्युकी हमारा महाराजा का घर आ गया है!." मांदरी कौवा राज की बात सुन कर कौवा राज के पीठ से जमीन पे उतर गया, और इतमीनान से कहा," कौवा राज परंतु यहां तो आपकी कोई महाराजा नही दिख रहे है!." वो कौवा राज मांदरी की बात सुन कर हसने लगा," हा... हा... हा... हा... !." मांदरी कौवा राज की हसी देख कर डर गया और वहा से भागने को सोचने लगा,
मांदरी डर से अपना नजर इधर उधर घुमा कर देखने लगा,परंतु वहा पे सब सनाटा था मांदरी की जान निकली जा रही थी, मांदरी भले धनुष चलाने में कमजोर था परंतु मांदरी के पास कुछ ऐसे शक्ति थी जिसे कोई हरा नही सकता था, परंतु मांदरी कभी उस सकती को उपयोग नहीं किया था, मांदरी चारो तरफ देखने के बाद वहा से भागने लगा, महाराजा के महल के तरफ, वो कौवा राज मांदरी के पीछे करने लगा उड़ कर, मांदरी डर से कभी कभी बालू के तल में पैर फस जा रहा था,
और कौवा राज ऊपर से नोचने के लिए बेचैन था, तभी मांदरी एक बाण निकाल कर उस कौवा राज पे टिका दिया, वो कौवा मांदरी की धनुष बाण देख कर वहा कौवा राज वहा से लुप्त हो गया, मांदरी आश्चर्य से चारो दीक्षा में देखने लगा परंतु वो लिया राज कही नही दिखा, मांदरी डर से हफ्ते हुए सोचा," ये कहा चला गया, मुझे फसा दिया!." तभी फिर से हसने की आवाज सुनाई दिया मांदरी को," हा.. हा.. हा.. हा.. !." मांदरी बेचैन से पीछे घूम कर धनुष तान कर देखा तो कोई नही दिखा, फिर मांदरी भाऊक हो गया और सोचने लगा," ये कौन है मुझे फसाने के लिए यहां लेकर आया है, अब मैं क्या करूं!." इतना सोच कर मांदरी वही बालू (sand) में बैठ गया,
तभी फिर से नदी के पानी से कुछ झनझन की आवाज सुनाई दिया, मांदरी वहा से दौर कर उस नदी के जल के पास गया तो वहा पे एक मगरमोच्छ था परंतु मांदरी को पता था नही था की ये मगरमोच्छ है क्युकी मांदरी नही पहचान पा रहा था, परंतु उसके शरीर के अकार से समझ गया था की ये जरूर कोई जल्लीय जानवर है, मगरमोच्छ एक पक्षी को अपने मुंह में दबोच रखा था मांदरी उस पक्षी को देखकर बचाने को कोशिश करने लगा, मांदरी अपना धनुष निकाल कर उसपे वार करने के लिए तान दिया तभी फिर से कहराते हुए मांदरी के कान में आवाज आई," रुक जाओ पुत्र, आप ऐसे वार नही कर सकते हो!."
मांदरी ये आवाज सुन कर अपना बाण को रोक लिया और पीछे घूम कर देखा तो कोई साधु के रूप में एक बुजुर्ग लाठी से चलते हुए आ रहा था, मांदरी उस बुजुर्ग को देख कर आश्चर्य से सोचने लगा," ये इतनी काल में ये बुजुर्ग क्या कर रहा है, सायद मुझे मिलना चाहिए!." वो बुजुर्ग मांदरी के पास आ हौले हौले आ गय थे, तभी मांदरी अपना धनुष नीचे करके इतमीनान से पूछे," पिता श्री आप कौन है अर्थात इतना रजनी में आप क्या कर रहे है!." वो बुजुर्ग मांदरी की वाक्य सुन कर कहराते हुए कहे," बालक मैं मेरा छोड़ो परंतु तुम यहां क्यू आय हो, अर्थात तुम्हारे प्राण संकट में है!." मांदरी बुजुर्ग की बात सुन कर इतमीनान से कहा," परंतु वहा पे एक पक्षी का प्राण संकट है में पहले मुझे बचाना चाहिए!."
वो बुजुर्ग मांदरी की बात सुन कर आश्चर्य से कहे," नही बालक तुम वहा मत जाओ,!." मांदरी उस बुजुर्ग की बात नहीं मानी और उस मगरमोच्छ के पास चल दिया, वो बुजुर्ग मांदरी को रोकते हुए जोर जोर से बोल रहा था," बालक तुम रुक जाओ!." परंतु मांदरी एक नही सुना, मांदरी उस मगरमोच्छ के पास गया तभी वो मगरमोच्छ मांदरी के उप्पर वार करदिया और मांदरी को बीच नदी लेकर चला गया कभी जल के अंदर तो कभी जल के उप्पर उछाल मार रहा था, मांदरी डर से उस मगरमोच्छ के पीठ पे बैठ गया और उसके आगे के दोनो पैर पकड़ कर उप्पर के तरफ खींचने लगा,
वो मगरमोच्छ दर्द से तड़पने लगा और जल में ही परिवर्तित करने लगा, मांदरी कैसे कैसे करके उस मगरमोच्छ के उप्पर दांत से काटने लगा, तभी पानी का लहर आ रहा था मांदरी उस लहर को देख कर बहुत डर गया,परंतु वो लहर मांदरी और मगरमोच्छ को झटका मार कर फिर से दूसरे किनारा ले जा कर बाहर फेक दिया, मांदरी संज्ञाहीन हो गया था, और मगरमोच्छ की हत्या हो गई थी, वो बुजुर्ग वहा से लुप्त हो गया था, जब लहर शांत हुआ तो वहा पे सारा नीरवता हो गया था उतनी रात को वहा पे सिर्फ मांदरी और मगरमोच्छ का सौ पड़ा था,
हरिदास गुरु जी अपने प्रकोष्ठ में सोए थे और बजरंग बल्ली की सपना देख रहे थे, बजरंग बल्ली स्वपन में आकर अपने हाथ आगे कर के कहे," आयुष्मान भवः!." गुरु जी बजरंग बल्ली को देख कर अपना हाथ दोनो जोड़ कर इतमीनान से कहे," प्रभु मैं बहुत प्रशान हूं की वो ब्रम्हा शास्त्र किसको दे, अर्थात कल का परीक्षण में तो सब विजय हो गए थे परंतु... !." तभी बजरंग बल्ली इतमीनान से कहे," हरिदास तुमने परीक्षण तो सही लिया परंतु सत्य शिष्य तो राम्या ही है, अर्थात उस बाण को राम्या को ही देना उचित है, यदि आपको फिर से लगता है परीक्षण करने को तो आप अवश्य कर सकते है!." हरिदास गुरु जी बजरंग बल्ली की बात सुन कर इतमीनान से कहे," परंतु अब कैसा परीक्षण ले, आप स्वयं कोई उपाय बता दीजिए!." बजरंग बल्ली गुरु जी की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," यदि आप मेरे तरफ से परीक्षण का सुझाव लेना चाहते है तो आप कल अपने शिष्य से दक्षिणा मांगिए,अर्थात जो दे दिया वो आपका सबसे बड़ा शिष्य है!." गुरु जी बजरंग बल्ली की बात सुन आश्चर्य से कहे," परंतु राम्या के पास तो कुछ नही है जो मुझे दक्षिणा देगा!." बजरंग बल्ली गुरु जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," हा परंतु ऐसा दक्षिणा मांगना जो हर कोई दे ना सके!." गुरु जी बजरंग बल्ली की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," परंतु ऐसा क्या दक्षिणा है जो हर शिष्य नही दे सकता है!." बजरंग बल्ली गुरु जी की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," आप इतनी ज्ञानी है आप स्वयं कर सकते है,अर्थात मुझे अब जाना होगा!." गुरु जी बजरंग बल्ली की वाक्य सुन कर अपना दोनो हाथ को जोड़ कर प्रणाम किए और बजरंग बल्ली वहा से चले गए,
to be continued...
क्या होगा अब गुरु जी कैसा दक्षिणा लेंगे जो हर शिष्य नही दे सकते अर्थात वो मांदरी को कौन बचाएगा जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDH"