कबीर बाबा नदी में किनारा पे जाप कर रहे थे शंकर जी से मिलने के लिए, कबीर बाबा के साथ साथ वो सारे ऋषिमुनि भी बैठे थे, वही दूसरी तरफ गुरु जी अपने सारे शिष्य को एक लाइन से खड़ा किए थे, जिसमे मांदरी नही था, गुरु जी अपने सारे शिष्य से एक बात कह रहे थे," जो शेर का सर काट कर लाएगा उसी को वो ब्रम्हा शास्त्र मिलेगा!." ये बात सुन कर आश्चर्य से सब देखने लगे तभी आदित्य कहा," परंतु गुरु जी वो तो बहुत खतरनाक होता है, फिर हम बालक कैसे ला सकते है!." गुरु जी आदित्य की बात सुन कर दूसरे शिष्य की तरफ देखते हुए पूछे," तुम नही तो क्या ये सारे शिष्य ऐसे ही तुम्हारे जैसा कायर!." आदित्य गुरु जी की शब्द सुन कर लाजित हो गया और अपना सर नीचे कर लिया, गुरु जी जोड़ से गुस्सा में कहे," जिसको लगता है की वो मुझसे नही हो पाएगा तो वो यहां से जा सकते है!." परंतु कोई ऐसा शिष्य नही था जो परीक्षा देने के लिए राजी नहीं था सारे शिष्य गुरु जी शब्द सुन कर अपना धनुष हाथ में फसा लिया और वहा से सब जंगल की तरफ चल दिया, तभी एक ऋषिमुनी गुरु जी के पास आकर कहे," गुरु जी ये आप क्या कर दिया, सारे शिष्य का जान संकट में पर जायेगा,अर्थात वो बाण हम राम्या नही तो आदित्य को ही देते है!." गुरु जी उस ऋषिमुनी की वाक्य सुन कर आक्रोश हो गय, और कहे," क्यू इतना शिष्य है कोई जरूरी नहीं की राम्या ही विजय होगा, अर्थात आदित्य और राम्या के बाद सूर्य भी तो विजय हो सकता है!." सूर्य उन सारे शिष्य में से एक शिष्य का नाम था जो राम्या और आदित्य के जैसा ही ज्ञान था परंतु एक शर्मिला तरह की बालक था सूर्य का उम्र लगभग आदित्य और सारे शिष्य के जैसा था, सूर्य एक गोरा चिट्ठा रंग का पतला शरीर था, वो ऋषिमुनी गुरु जी की शब्द सुन कर कुछ नही कहा और अपना सर नीचे कर के खड़ा हो गाय, तभी गुरु जी आक्रोश में जोड़ से कहे," सुनो अपनी हाथ में शेर का सर होना ही चाहिए, चाहे जितना दिन लगे लेकर ही आना है नही तो तुम सब के लिए ये दरवाजा बंद हो जाएगी!." सारे शिष्य रुक कर गुरु जी की वाक्य सुन लिए और वहा से आश्रम से बाहर निकल कर अलग अलग रास्ता से चल दिए जंगल की तरफ, तभी वो ऋषिमुनी फिर से गुरु जी के शब्द सुन कर आश्चर्य से गुरु के चेहरा पे देखने लगे, ऐसा लग रहा था की वो ऋषिमुनी अब रो देंगे परंतु रो नही रहे थे, वो ऋषिमुनी गुरु जी को आश्चर्य से कहे," गुरु जी शेर तो मां दुर्गा की सवारी है, ये बालक कैसे मार कर लायेंगे,अर्थात राम्या तो मां दुर्गा का पूजा करता है फिर वो तो असफल हो जायेगा!." गुरु जी उस ऋषिमुनी की वाक्य सुन कर गुस्सा में कहे," हा तो होने के लिए ही तो इतना कठोर परीक्षा लिए है, अर्थात राम्या तो एक चुगलखोर बालक है, अर्थात आप मुझे ज्ञान मत दीजिए,!." वो ऋषिमुनी गुरु जी की वाक्य सुन कर कुछ बोल पाते की तभी गुरु जी आगे कहे," इस परीक्षा में कोई भी जीत सकता है और हा, आप जाइए और तैयार करिए उस बाण को विजय बालक को देने के लिए!." वो ऋषिमुनी गुरु जी शब्द सुन कर वहा से चल दिए सब तैयार करने के लिए,
कबीर बाबा उस नदी के किनारा पे बैठ कर जाप कर रहे थे," ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय!." तभी जल से प्रवत्ति जी निकली और अपना दाहिनी बांह को उपर कर के मुस्कुराते हुए कही," कबीर बोले मैं आपका क्या मदद मार सकती हूं!." कबीर बाबा प्रवत्ति जी की वाक्य सुन कर अपना लोचन को धीरे धीरे से खोलने लगे, फिर जब पूरा अपना नैन को खोले तो सामने प्रवत्ति जी खड़ा थी कबीर बाबा अपना हाथ जोड़ कर प्रवत्ति जी को प्रणाम किए और फिर इत्मीनान से कहे," माते मैं आपसे कुछ और नहीं बस इतना पूछना चाहता हूं की मांदरी कहा गया है जो कहीं दिख नही रहा है !." प्रवत्ति जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर मुस्कुराते हुए कही," कबीर वो राक्षस लोक चला गया है महाराजा के पास, परंतु उसका दोस्त है जो उस बाण को जीतने के लिए काफी सकती है!." कबीर बाबा प्रवत्ति जी की शब्द सुन कर आश्चर्य से कहे," परंतु वो कौन है जो मांदरी की दोस्त है!." प्रवत्ति जी कही," मांदरी की दोस्त सूर्य है, वो उतना नॉलेज नही जानता है परंतु जैसा दोस्त होता है वैसे ही दोस्ती करता है, अर्थात सूर्य उस बाण के लिए नही परंतु अपने दोस्त के लिए जरूर विजय होगा, आप खामो खा चिंतित मत होइए और जाइए आपके सारे शिष्य प्रतीक्षा कर रहे है!." कबीर बाबा प्रवत्ति जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," वो तो ठीक है माते परंतु मांदरी भी तो एक शिष्य है और उस शिष्य को कैसे संकट में छोड़ दे, अर्थात मैं मानता हूं मांदरी उतना मेहनती नही है परंतु वो एक शिष्य तो है!." प्रवत्ति जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर मुस्कुराते हुए कही," हा परंतु मांदरी तो एक राक्षस प्रजाति का था और वो राक्षस लोक चला गया, फिर आप इतना चिंतित क्यू हो रहे है, अर्थात अपने शिष्य पे ध्यान दीजिए!." कबीर प्रवत्ति जी की शब्द सुन कर कहे," ठीक है में जाता हूं परंतु मांदरी की दोस्त ही विजय होना चाहिए!." प्रवत्ति जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर अपना हाथ से आशीर्वाद दे दी, कबीर बाबा अपना हाथ जोड़ कर प्रणाम कर लिए और प्रवत्ति जी वहा से फिर जल धारण कर ली, कबीर वहा से उठे और सारे ऋषिमुनी को उठा कर बोले," चलो सब!." फिर वहा से गुरु जी के पास चल दिए,
वो सारे शिष्य अलग अलग तरफ से शेर को ढूंढने लगे थे परंतु किसी को शेर नही दिखा, अर्थात राम्या भी शेर को ढूंढते ढूंढते सोच रहा था," दुर्गा माते मुझे छम्मा करना मुझे गुरु जी आज्ञा का पालन करना परेगा!." राम्या ये बात सोच सोच का शेर को ढूंढ रहा था,
to be continued..
क्या होगा कहानी का राज शेर का गर्दन कौन लेकर जायेगा गुरु जी के पास जानने के लिए पढ़े "RAMYA YUDDH"