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Chapter 17 - गुरु जी आक्रोश हो गए Guru ji got angry

सुबह तकरीबन 06:30 AM में गुरु जी और सारे शिष्य और ऋषिमुनी बैठ कर योगा कर रहे थे,"ॐ नमः शिवायः ॐ नमः शिवाय: ॐ नमः शिवाय: ॐ नमः शिवाय:.. !." तभी कबीर बाबा और साथ में सारे ऋषिमुनी वहा पे पहुंच गय, जैसे हरिदास गुरु जी अपना आंख खोले तो सामने कबीर बाबा खड़ा थे, गुरु जी खड़ा होकर इज्ज़त से पूछे," बाबा आप यहां कैसे!." कबीर बाबा गुरु जी की बात सुन कर इतमीनान से कहे," आपका शिष्य मांदरी कहा है, अर्थात वो बाण राम्या को ही देना चाहिए!." गुरू जी कबीर बाबा जी वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," वो शिष्य हमारे कोई काम का नही है,अर्थात वो बाण देने से पहिले वापस परीक्षण लेना होगा!." कबीर बाबा गुरु जी की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," परंतु क्यू सारे शिष्य में एक राम्या ही तो है जो सबसे ज्यादा ज्ञानी है, अर्थात श्री राम चंद्र यों बजरंग बल्ली को भी पता है, फिर ऐसे परीक्षण करने के लिए क्या जरूरी है!." गुरु जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर कहे इतमीनान से कहे," मैं परीक्षण इस लिए लेना चाहता हूं, क्युकी मेरे स्वपन में श्री राम चंद्र के भक्त संकट मोचन आए थे, अर्थात बजरंग बल्ली भी उस बाण को राम्या को देने को कहे, परंतु वो ये भी कहे की आप अगर सक्षम नही है तो आप दक्षिणा मांग कर देखिए, यदि जो शिष्य दे दिया वही शिष्य उस बाण के लायक है!." कबीर बाबा गुरु जी की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," परंतु ऐसे क्या दक्षिणा मांगिएगा जो हर शिष्य नही दे सकता है!." गुरु जी कबीर जी की बात सुन कर इत्मीनान से कहे," वही तो मैं भी सोच रहा हूं, परंतु मैं एक सरल युक्ति का उपयोग करना चाहता हूं!." कबीर बाबा गुरु जी की वाक्य सुन कर कहे," वो क्या सरल युक्ति है!." गुरु जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर इतमीनान से," एक सेर का सर काट कर लाना है यदि जो ला दिया वो शिष्य उस बाण के साथ विजेता होगा!." कबीर बाबा गुरु जी की बात सुन कर आश्चर्य से कहे," फिर ये तो परीक्षण देने से पहले ही सब डर जायेंगे फिर कौन देगा ये परीक्षण, अर्थात आपका एक शिष्य था जो ये परीक्षण के लायक था, परंतु आप उसे आश्रम से बाहर कर के बहुत बड़ी त्रुटि कर दिए!." गुरु जी कबीर बाबा की वाक्य सुन कर गुस्सा हो गए, और अपनी नैन को लाल कर के कहे," आप उस शिष्य का नाम बार बार मत लीजिए, मैं उसे बाहर कर चुका हूं अर्थात मैं उसे अब दुबारा अपना शिष्य कभी नही बना सकता हूं!." कबीर बाबा गुरु जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," गुरु जी आप इतने शिष्य को ज्ञान देते है, अर्थात ऐसे वाक्य आपके जुबान से सौभा नही देता है !." गुरु जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर गुस्सा में कहे," तो क्या मैं फिर से उस कायर को अपना शिष्य बना लूं!." कबीर बाबा गुरु जी की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," नही हरिदास मैं ये नहीं कह रहे है की आप उसे दुबारा शिष्य मान लो परंतु एक बार आप खुद एक शिष्य के नजर से देखिए फिर आप जो चाहे वो कर सकते है!." गुरु जी कबीर बाबा की वाक्य सुन कर आक्रोश मैं कहे," नही मैं कभी उस मांदरी को अपना शिष्य नही बना सकता, चाहे वो मेरे प्रभु ही क्यों न आकर कहे!." कबीर बाबा गुरु जी की बात सुन कर इतमीनान से कहे," ठीक है परंतु आपकी ये आक्रोश एक दिन बहुत बड़ा तौफा लेकर आएगा जिससे आप क्या श्री राम चंद्र प्रभु भी नकार जायेंगे अर्थात आप परीक्षण ले सकते है!." इतना कह कर कबीर बाबा वहा से जाने लगते है तभी गुरु जी रोकते हुए कहते है," रुकिए!." कबीर बाबा गुरु जी की शब्द सुन कर वही पे रुक गए और पीठ के तरफ से बोले," क्या हुआ गुरु जी, अब आपको हमसे बात करने का, का ही रह गया है!." गुरु जी आक्रोश मैं कबीर बाबा की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," परंतु आप ठहर कर जाइए जो इतना दूर से आए है!." कबीर बाबा गुरु जी वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," नही मैं अब यहां एक पल भी नही रुक सकते है, !." कबीर बाबा इतना कह कर वहा से जाने के लिए धीरे धीरे चल दिए और जितने लोग उनके साथ आए थे वो भी चल दिए, गुरु जी कुछ नही बोल और चुप चाप वही पे खड़ा रह गय, कबीर बाबा कुछ दूर ही गए परंतु बाहर नहीं निकले थे तभी गुरु जी कुछ सोच कर जोड़ से कहे," ठीक है में आपका बात मानता हूं, परंतु मांदरी अभी कहा है ये हम में किसी को नही पता है, क्या आप जानते है वो अभी कहा है!." कबीर बाबा गुरु जी का शब्द सुनते ही अपनी बढ़ती कदम को वही पे रोक दिए, साथ ही जो आए थे वो भी अपना कदम को आगे नहीं बढ़ा पाए गुरु जी की वाक्य सुन कर, फिर कबीर बाबा वहा से गुरु जी की तरफ घूम कर इतमीनान से कहे," वो नदी के किनारा बेहोश पड़ा हुआ है!." गुरु जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर आश्चर्य से पूछे," परंतु वो वहा पे बेहोश कैसे हो गया, मैं तो उसे सिर्फ आश्रम से बाहर किया था!." कबीर बाबा गुरु जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," अभी उतना वक्त नही है ये सब समझने का, अर्थात चलकर देख लेते है!." कबीर बाबा की शब्द सुन कर गुरु जी इतमीनान से कहे," हा चलिए चलकर देख लेते है!." फिर वहा से कबीर बाबा और गुरु जी अर्थात गुरु जी के साथ और कबीर बाबा के साथ जितने लोग आए थे वो सब लोग वहा से चल दिए नदी के किनारा पे,

to be continued....

ये सारे लोग जब वहा पे पहुंचे है तो मांदरी वहा ले नही था ये सब देख कर दंग रह गए, अर्थात क्या हुआ होगा मांदरी के साथ, मांदरी कहा गया होगा, या फिर वो कौवा राज उठा ले गया होगा, जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH"

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