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Chapter 2 - मिस्टर, आपको मुझे लुक्का छिप्पी के खेल में ढूंढना होगा

टैंग मोर उसकी बलवान बाहों से नीचे कूद गई, और बड़े आराम से अपने दोनों पैरों को ज़मीन पर रखते हुए खड़ी हो गया। उसने अपने हाथ हिलाए, और फिर उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा। उसकी आवाज़ कोमल और मीठी थी, "मिस्टर, मुझे बचाने के लिए शुक्रिया, आप सचमुच बहुत अच्छे इंसान हैं!"

"अच्छा इंसान?", गू मोहन ने अपनी भौं को चढ़ाया। वो आगे बढ़ा और उसने उसको अपने लम्बे शरीर से दबा दिया, "क्या तुमने कुछ थोड़ी देर पहले मेरे लिए अलग ढंग से बात नहीं की थी? "

उसकी कद-काठी काफी लंबी थी। जब वो आगे उस पर झुका, तो उसने उसके चारों तरफ एक बड़ी दीवार के जैसी परछाई बना ली। टैंग मोर को तुरंत एहसास हुआ कि वो एक मुश्किल जगह पर खड़ी है और वो तुरंत पीछे हट गई। क्योंकि उसकी नाज़ुक कमर पहले ही दीवार से सटी हुई थी। उसके पास बचने का कोई रास्ता नहीं था।

उसने अपनी ऊंँची, लंबी टाँगें को उसके आस-पास अड़ा लिया, जिससे वो दोनों बहुत नज़दीक आ गए। उसके चेहरे के भाव एक-दम दोषरहित दिख रहे थे उसे जब उसने बहुत नज़दीक से देखा तब भी।

उसने अपना सिर थोड़ी मुश्किल से ऊपर किया और उसे देख, "मैंने ऐसा तो नहीं… कहा था … कि आप बुरे इंसान हैं"।

"अनजान बनने की कोशिश कर रही हो?" , गू मोहन ने उसे घूरा और अपनी आँखों को छोटा कर लिया, "तुम्हें यकीन नहीं है कि मैं तुम्हें अभी बाहर फेंक दूंगा?" 

"…"

टैंग मोर ने अचानक महसूस किया कि वो एक कुए से खाई में गिर गयी है।

 "मुझे यकीन है", उसने उसके अविश्वसनीय घमंड पर अपनी भौंह चढ़ाई और उसकी तरफ टेढ़ी नज़र से देखने से पहले उसे आदेश दिया, "जाओ और बिस्तर पर लेट जाओ!" 

गू मोहन की आँखें गहरी हो गईं, स्याह काली आँखें जिन में से बेहद खतरनाक और कातिलाना तेज़ निकल रहा था।

वो शांत था। उसकी तरफ से एक ठंडी नज़र से वो पलक झपकते ही मर सकती थी। अगर यह कोई और समय होता, तो टैंग मोर बिना कुछ कहे उसे अपनी किस्मत समझ कर मान लेती; वो दूसरे लोगों को उकसाने वालों में से नहीं थी, वो बस वहाँ से चली जाती, पर इस बार वो ऐसा नहीं कर पाई।

वो बस अपनी गर्दन को सीधा कर के आगे बढ़ने की हिम्मत कर सकती थी।

उसकी मज़बूत छाती पर अपने कोमल हाथों को दबाते हुए, उसने उसे बड़े से बिस्तर पर धक्का दे दिया। फिर उसने हल्के से करहाते हुए अपने होंठ घुमाए और आदेश दिया, "अपनी टांगें खोलो"!

"....."

यह देख कर कि उसका हिलने का कोई भी इरादा नहीं था, टैंग मोर ने खुद उसकी मदद करने की सोची। उसने ज़बरदस्ती उसकी टांगों को एक बड़े '8' की तरह मोड़ दिया।

क्योंकि राजधानी का सबसे इज़्ज़तदार आदमी अपनी टांगों को फैला कर लेटा हुआ था, गू मोहन की नसें थोड़ी तन गईं।

टैंग मोर ने उसकी ताकतवर कमर को चौड़ा किया और एक रानी की तरह बोली, "क्योंकि तुम मेरे हो, इसलिए मेरी मर्ज़ी चलेगी"!

 "…."

उसने उसके सूट के बटन खोले और उसके कोट को दोनों तरफ फैला दिया, जिससे उसकी चमकदार कमीज़ दिखने लग गई। उसके नीचे, उसकी कसी हुई मांसपेशियाँ तनी हुई थीं और उसकी सुडौल कमर नज़र आ रही थी। उसने एक बहुत ही महंगी बेल्ट पहनी हुई थी, उसका बदन इतना बलवान और उत्तेजक था कि अपने आपको रोक पाना मुश्किल था और उसके दम से किसी की भी नाक से खून बह सकता था। 

टैंग मोर को उम्मीद नहीं थी कि उसका शरीर इतना मोहक होगा, उसका छोटा-सा चेहरा शर्म से लाल हो गया।

अब जब ड्रग्स ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था, उसका शरीर और तपने लगा था, जैसे उसकी हड्डियों को चींटियाँ काट रही हों।

उसने जल्दी से अपने नीचे वाले होंठ को काटा, जिससे कि वो सजग रह सके। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सचमुच वो आदमी उसे इतना आकर्षक लग रहा था।

कोई फायदा नहीं!

उसने एक गहरी व्यंगतमक आवाज़ को सुना, "ऐसा कैसे है कि तुम खुद ही खेल कर आनंद ले रही हो?"

"....", क्या?

टैंग मोर ने उसे अपनी पनीली आँखों से घूरा। उसे बस उसके छोटे से चेहरे पर पड़ती हुई गहरी नज़र ही दिखाई दी। यह न केवल उसे नीचा दिखाने वाली नज़र थी, बल्कि उसे नफरत और खिल्ली उड़वाए जाने का भी एहसास हुआ।

झटका!

वो अचानक से खिल कर मुस्कुराई, और उसकी तरफ चमकती हुई आँखों से देखने लगी। बेशक वो उसे छेड़ रही थी, पर उसे अभी भी थोड़ी शर्म आ रही थी जब उसने उससे पूछा, "मिस्टर हम लुक्का छिप्पी का खेल क्यों नहीं खेलते?" 

गू मोहन कि ठंडी आँखें एकदम चमक उठीं, उसके सेक्सी होंठों से बस एक ही शब्द निकला, "नहीं"।

टैंग मोर जम गई, उसे बेहद अजीब लगा और वो कुछ हद तक शर्मिंदा भी हो गई। उसकी उस पर पड़ती लगातार तीखी नज़र के कारण उसे ऐसा लगा मानो वो एक जोकर थी जो उसके सामने अभिनय कर रही थी।

"इस खेल में बहुत मज़ा आता है! मैं आपकी आँखों को ढक दूँगी और मेरे छुप जाने के बाद आपको मुझे ढूँढना होगा। अगर आपने मुझे ढूंढ लिया तो आप जो चाहे मैं वो आपको अपने साथ करने दूँगी"। 

टैंग मोर ने ज़बरदस्ती उसकी टाई निकाली और उसकी आँखों पर बांध दिया। 

वो जल्दी से बिस्तर पर से कूदी, और दरवाज़े की ओर भागी, और उसे वो याद दिलाना नहीं भूली, "मिस्टर आपको बेशक मुझे ढूँढना होगा"।

उसने धीरे से दरवाज़े को खुलने की आवाज़ को सुना, और कुछ सेकेंड बीत जाने के बाद वहाँ पूरी तरह से शांति छा गई। गू मोहन ने उठ कर बैठने से पहले अपनी बड़ी सी हथेली से अपनी आँख पर से पट्टी उतारी। उसने बंद दरवाज़े की तरफ देखा और उसका चेहरा बेरूखे ढंग से मुड़ गया।

उसने अपनी पेंट की जेब से अपना मोबाइल निकाला और बाल्कनी में जा कर खड़ा हो गया। शहर की चमकीली लाइट उसके तीखे दोषरहित नैन नक्श पर पड़ रही थी और किसी के लिए भी उस पर से नज़र हटा पाना मुश्किल था।

"हैलो, येन डोंग, मुझे एक लड़की को ढूँढने में मदद करो"।

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