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Mind trap

Abhishek_Mishra_3198
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Chapter 1 - अध्याय 1: सपना और संघर्ष

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अर्जुन वर्मा एक छोटे से शहर का सामान्य सा युवक था। उसकी उम्र 28 साल थी, लेकिन जीवन की जटिलताओं ने उसे ऐसा महसूस कराया जैसे वह 40 साल का हो। उसका सपना हमेशा से बड़ा था – वह एक दिन दुनिया का सबसे अमीर और सफल इंसान बनना चाहता था। लेकिन सफलता उसके पास कभी नहीं आई। दिन-रात वह मेहनत करता, मेहनत करने के बावजूद उसकी राह में अनेकों असफलताएँ आतीं।

अर्जुन का दिन हमेशा संघर्षों में ही कटता। सुबह से लेकर रात तक वह खुद को बेहतर बनाने के लिए काम करता। ऑफिस में उसका ध्यान अपनी नौकरी से ज्यादा इस बात पर रहता कि वह कब कुछ नया बिजनेस शुरू करेगा। इसके लिए उसने बेस्टसेलिंग बिजनेस किताबें पढ़ी थीं, जैसे "Rich Dad Poor Dad" और "The Lean Startup", और अक्सर मोटिवेशनल वीडियोज भी देखता था। लेकिन जितनी ज्यादा किताबें पढ़ता और वीडियो देखता, उतनी ही असफलताएँ सामने आतीं। कभी उसे अपने विचारों की कमजोरी महसूस होती, कभी उसका बिजनेस मॉडल फ्लॉप हो जाता।

एक दिन की बात है, जब अर्जुन अपने छोटे से अपार्टमेंट में अकेला बैठा था और अगले महीने के लिए अपने बिजनेस के घाटे की गिनती कर रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि उसकी मेहनत का कोई फल नहीं मिल रहा है। उसे याद आता है कि उसके पुराने दोस्त ने उसे छोड़ दिया था, क्योंकि उसे लगता था कि अर्जुन कभी कुछ नहीं कर पाएगा। वह दिन-रात अर्जुन की असफलताओं का मजाक उड़ाता था। फिर उसके परिवार के ताने और शिकायतों का ख्याल आया – "तुमने अपनी ज़िंदगी में क्या हासिल किया है?" उसके माता-पिता अक्सर उसे यह कहते थे, "तुम तो कुछ नहीं कर पाए, क्या यही तुम्हारा सपना था?"

अर्जुन को यह सब बहुत बुरा लगता था, लेकिन वह चुपचाप सब सहन करता था। वह जानता था कि उसे अपनी स्थिति को बदलने के लिए कुछ बड़ा करना होगा। लेकिन उसे यह भी समझ नहीं आता था कि कहाँ से शुरुआत करें। कई बार उसने सोचा था कि शायद यह सब उसी के लिए नहीं है, और वह अपनी ज़िंदगी में कभी सफलता नहीं पा सकेगा।

फिर एक दिन, जब वह अपने बिजनेस के लगातार घाटे से परेशान होकर एक पुराने बुकस्टोर में गया, उसकी नजर एक पुरानी किताब पर पड़ी। यह किताब दिखने में अलग थी। उसकी कवर पन्ने पर सोने के रंग में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था – "The Mind Trap"। अजीब बात यह थी कि इस किताब का लेखक कहीं नहीं लिखा था। अर्जुन ने किताब को उठाया और उसकी शुरुआत पढ़ी – "जो इस किताब को पढ़ेगा, वह कभी असफल नहीं होगा।"

किताब के बारे में इतना पढ़कर अर्जुन ने सोचा, "क्या यह सच हो सकता है? क्या यह किताब मुझे सफलता दिला सकती है?" उसके दिमाग में अनेकों सवाल उठने लगे। लेकिन उसने किताब खरीदी और घर लौटते हुए उस किताब के बारे में सोचना शुरू कर दिया। उसे यह लगने लगा कि शायद यह किताब उसकी ज़िंदगी बदल दे, और उसे अपनी मंजिल तक पहुँचने का रास्ता दिखा दे।

अर्जुन ने किताब खोली और पहला पन्ना पढ़ा। किताब की शुरुआत में एक रहस्यमयी संदेश था: "सफलता केवल बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होती, बल्कि यह तुम्हारी मानसिक स्थिति पर आधारित होती है। तुम्हारी सोच और विश्वास ही तुम्हारे भविष्य को आकार देते हैं।"

अर्जुन की आँखों में चमक आ गई। वह समझ गया कि उसकी सबसे बड़ी समस्या यही थी – उसकी सोच। वह हमेशा नकारात्मक सोचता था, यही कारण था कि वह असफल हो रहा था। वह हमेशा बाहरी परिस्थितियों को दोषी ठहराता था, लेकिन उसने कभी यह नहीं सोचा था कि अगर उसकी सोच बदल जाए तो शायद सब कुछ बदल सकता है।

किताब में आगे लिखा था, "दूसरों से मत डरिए। तुम्हारी राह में आने वाली हर असफलता सिर्फ तुम्हारे विश्वास को मजबूत करने के लिए है। तुम जब तक नहीं गिरोगे, तब तक तुम कभी नहीं जान पाओगे कि असली ताकत तुम्हारे अंदर कहाँ छुपी है।" अर्जुन ने यह पढ़कर महसूस किया कि वह हमेशा असफलताओं से डरता आया था, लेकिन शायद अब उसे इसे एक सबक के रूप में देखना होगा, न कि एक हार के रूप में।

किताब की हर लाइन अर्जुन के दिल को छू रही थी। वह उस दिन पूरी रात किताब पढ़ता रहा। जैसे-जैसे वह किताब के पन्ने पलटता गया, उसे यह एहसास होने लगा कि वह खुद अपनी असफलताओं का कारण था। उसका खुद पर विश्वास कम था, और यही वजह थी कि वह कभी कुछ बड़ा नहीं कर सका।

अर्जुन ने तय किया कि अब वह अपनी सोच बदलने की कोशिश करेगा। अगले दिन से उसने अपनी दिनचर्या में छोटे-छोटे बदलाव करने शुरू कर दिए। पहले उसने अपनी सुबह की शुरुआत एक सकारात्मक विचार से की, और फिर हर मुश्किल को एक अवसर की तरह देखने की कोशिश की। उसकी मेहनत और दृढ़ता में एक नया जोश आ गया था।

वह जानता था कि सफलता की राह पर चलने के लिए केवल मेहनत ही नहीं, बल्कि सही मानसिकता की भी जरूरत होती है। और अब उसे यह मानसिकता मिल चुकी थी। "The Mind Trap" ने उसकी जिंदगी को बदल दिया था, और अब वह उस मानसिक जाल से बाहर आ चुका था, जो उसे अपनी असफलताओं से बंधे हुए रखता था। अब वह अपनी राह पर पूरी तरह से विश्वास के साथ चलने के लिए तैयार था।