तलवारबाजी की प्रतियोगिता शुरू होती है और देखते ही देखते अंत में दो राजकुमार बचते है जिसमें से एक राजकुमार रूहेंद्र और राजकुमार कुंदन बचते हैं और फिर क्या था अंतिम युद्ध राजकुमार कुंदन और राजकुमार रूहेंद्र में शुरू होता है दोनों युद्ध घमासान होता है यह तलवारबाजी का मुकाबले दोनों ही एक दूसरे पर भारी पड़ते नजर आते है मुकाबला चल ही रहा था कि अचानक राजकुमार रूहेंद्र की तलवार राजकुमार कुंदन उर्फ राजकुमारी कुंद्रा की नकली दाढ़ी पर लग जाती है और राजकुमारी कुंद्रा की नकली दाढ़ी नीचे गिर जाती है और महल के प्रांगण में उपस्थित सभी लोग हैरान और अचंभित हो जाते है और राजकुमार कुंदन का सच सभी के सामने आ जाता है सबको पता चल जाता है कि राजकुमार कुंदन ही राजकुमारी कुंद्रा है।
तभी महान ऋषि कांकन, राजा सत्यम से क्रोध भरे शब्दों में कहते है, "वाह महाराज वाह आपने क्या स्वांग रचा है खुद के द्वारा रचित प्रतियोगिता में खुद की ही बेटी विजयी और बाकी सभी राजकुमारों का अपमान किया है।"
राजा सत्यम की आँखें शर्म के कारण झुक गई राजा सत्यम के पास कोई शब्द ही नहीं बचा था।
तभी राजकुमार रूहेंद्र क्रोध भरे उच्च स्वर में बोलते है, "सच में सत्यम सिंह राठौड़ आपने क्या स्वांग रचा है, चौसर भी आपकी और पासे भी आपके आप तोह महाभारत के शकुनि से भी ज्यादा छलिया निकले महाराज सत्यम सिंह राठौड़।"
तभी राजकुमारी मुंद्रा गुस्से में उठकर आती है और राजकुमार रूहेंद्र के गाल पर सभी के सामने एक थप्पड़ रखती है और राजकुमार रूहेंद्र से बोलती है, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुए अपनी कड़वी जवान से हमारे पिता श्री का नाम लेने की अगर हमारे हाथ में इसी वक्त आरा होता तोह हम तुम्हारी जुबान काट लेते समझे राजकुमार के नाम पर कलंकी रूहेंद्र।"
यह सब होता देख राजकुमारी सुंदरा काफी डर एवं सहम जाती है और रानी कला मन ही मन इतनी खुश थी कि उनकी योजना सफल हो रही थी।
तभी एक और राजकुमार, राजकुमारी मुंद्रा से बोलता है, "आप कितनो को मुंह बंद करवाएंगी मुंद्रा जी, इस छलावे में आप सब मिले हुए हो।"
फिर राजा सत्यम गुस्से में राजकुमारी कुंद्रा से चिल्लाकर बोलते है, "आपकी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि आपने बिना पूछे समझे बिना यह घटिया फैसला लिया बोलिए, हमने कहा बोलिए।"
राजा सत्यम के चीखने से राजकुमारी कुंद्रा सहम जाती है और डरते, हिचकिचाते हुए बोलती है, "हमने सो सोचा कि आपका नाम रोशन होगा इसलिए हमने यह फैसला लिया।"
राजा सत्यम चीखते हुए बोलते है, "किसी इस फैसले के लिए अपने इजाजत ली या किसी से सलाह मसोहरा किया बस फैसला ले लिया।"
तभी एक ऋषि गुस्से में चीखते स्वर में राजा सत्यम से बोलता है, "आप तोह इस प्रांगण में शास्त्रार्थ करवाने वाले थे या अपनी बेटी को मोहरा बनाकर हम सभी ऋषि और ऋषिकाओं का अपमान करवाना चाहते थे आज आपके कारण ही हमारा इतना अपमान और तोह और आपने दिव्य पूजनीय शास्त्रार्थ का अपमान किया है और अपने वेदों का अपमान किया है राजा जी।"
तभी रानी शुभांगी आती है और राजकुमारी कुंद्रा की खींचकर एक जोरदार थप्पड़ मारती है और बोलती है, "तुमने जो किया है तुम्हे इन सब से अभी के अभी हाथ जोड़कर माफी मांगनी चाहिए।"
मदिरा के नशे में चूर राजकुमार अंकन, राजकुमारी कुंद्रा को थप्पड़ पड़ते देख नशे में नाचने लगा और हंसते हुए वहां पर और मदिरा के नशे में चूर होने के कारण लड़खड़ाया और एक ऋषिका पर जाकर गिर गया जिससे उस ऋषिका का धर्म भ्रष्ट हो गया और उस ऋषिका ने तुरंत राजकुमार अंकन को श्राप देते हुए कहा, "तू जिस जवानी और मर्दानगी की अकड़ में तू रह रहा है वो मिट जाएगी और तू नपुंसक हो जाएगा।"
इतना सुनकर रानी कला की आंखों में आंसू आ जाते है और रोते हुए उस ऋषिका के पास आती है और रोते हुए बोलती है, "कृपया मेरे पुत्र का श्राप वापस ले लीजिए उसने जो गलती की है उसका श्राप आप मुझे दे दीजिए कृपया उसे माफ कर दीजिए मैं आपसे विनती करती हूं कृपया अंकन को माफ कर दीजिए।"
राजकुमार अंकन नशे में चूर तोह थे ही और अपनी मां को उस ऋषिका के पैरों में पड़ा देख, राजकुमार अंकन को गुस्सा आ जाता है जिसकी वजह से वे उस ऋषिका का सिर काट देते है।
जिससे सभी ऋषि और ऋषिकाएं गुस्से का पारा और भी बढ़ जाता है और ऋषि कांकन गुस्से में कहते है, "राजकुमार अंकन तुमने एक ऋषिका की हत्या की और यह एक ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा तुम पर।"
तभी एक ऋषि गुस्से में बोलते है, "यह सब राजा सत्यम का प्रपंच है और उन्होंने हम सभी को अपमान करने के लिए बुलाया है और यह अपमान इनको बहुत भारी पड़ने वाला है जिस प्रकार इस पूरे परिवार ने हम सभी का अपमान किया है उसी प्रकार हम सब मिलकर इनको श्राप देंगे।"
श्राप की बात सुनकर रानी शुभांगी और राजा सत्यम ऋषि और ऋषिकाओं को पैरों में गिरकर माफी मांगते है लेकिन क्रोध से भरे सभी ऋषि और ऋषिकाएं सभी एक स्वर में राजा सत्यम को श्राप देते हुए बोलते है, "राजा सत्यम तुमने जो प्रपंच किया हम तुम्हे उसका श्राप देते है कि राजकुमारी कुंद्रा को एक नपुंसक पुरुष से शादी करनी पड़ेगी और वहीं नपुंसक पुरुष इस केशवापुर का राजा बनेगा और राजकुमारी मुंद्रा तुम्हारा नाम डूबा देंगी तुम्हारे मान सम्मान को ठेस पहुंचा देगी।"
इतना कहकर सभी ऋषि और ऋषिकाएं और राजकुमार बाकी अन्य लोग महल को छोड़कर जाने लगे राजा सत्यम और रानी शुभांगी ने काफी बार क्षमा मांगी लेकिन ऋषि और ऋषिकाओं के क्रोध की अग्नि को शांत नहीं कर पाई तभी राजकुमारी सुंदरा आ जाती है जिनकी हिरणी जैसी आंखों में आंसू भरे हुए थे जिन्हें देखकर सभी ऋषि और ऋषिकाओं का हृदय और मन की अग्नि हल्की सी शांत हुई।
राजकुमारी सुंदरा ने रोते हुए चंचल शब्दों में कहा, "ऋषि एवं ऋषिकाएं इन सब में पिता श्री का कोई दोष नहीं कृपया करके इन श्रापों का कोई निदान बताए जिससे इन पापों को मिटाया जा सके।"
ऋषि कांकन से सभी ऋषि और ऋषिकाओं की तरफ देखा और कहा, "ठीक है इस श्राप में जिस जिस की गलती है उसकी को इस श्राप का फल मिलेगा।"
तभी राजकुमारी कुंद्रा, ऋषियों और ऋषिकाओं से रोते हुए बोलती है, "कृपया करके मुझे मेरे श्राप का निदान बताए इसमें पिता श्री का कोई प्रपंच नहीं है जो भी किया है मैने किया है इन सब में मैंने ही गलती की है मैने तोह इसी वजह से प्रतियोगिताओ में भाग इसीलिए लिया था जिससे कि पिता श्री का मान बढ़े पर इसमें तोह पिता श्री ही फंस गए, कृपया करके मुझे इस श्राप का निदान बताइए।"
तभी ऋषिका सुमन्या बोलती है, "इस श्राप का एक ही निदान है वोह है तुम्हे एक हजार परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना होगा तभी तुम्हारा विवाह जिस नपुंसक पुरुष से होगा तभी वह एक मर्द पुरुष बन पाएगा और अगर जिस परीक्षाओं में तुम असफल हुई तोह समझो कि तुम्हें कभी भी इस श्राप से मुक्ति नहीं मिलेगी।"
राजकुमारी कुंद्रा बोलती है, "मुझे यह परीक्षाओ के बारे में कैसे पता चलेगा।"
तभी ऋषि कांकन बोलते है, "जिस दिन तुम्हारा विवाह हो जाएगा उसी दिन से तुम्हे हममें से एक ऋषि या ऋषिका तुम्हे परीक्षाएं देते जायेंगे जो तुम्हे उत्तीर्ण करनी होगी।"
इतना कहकर ऋषि और ऋषिकाएं जाने लगते है कि राजकुमारी मुंद्रा भी राजकुमार रूहेंद्र से माफी मांगती है लेकिन राजकुमार रूहेंद्र बिना कुछ कहे वहां से चले जाते है।
जब प्रांगण से सभी मेहमान बाकी अन्य लोग चले जाते है तोह रानी कला जबरजस्ती नशे में धुत राजकुमार अंकन को ले जाती है।
राजा सत्यम गुस्से में राजकुमारी कुंद्रा पर चिल्लाकर बोलते है, "आज तुम्हारी वजह से हमारा मान सम्मान मिट्टी में मिल गया कुंद्रा यह सब तुम्हारे कारण हुआ है आखिर तुमने ऐसा क्यों किया हम ये नहीं पूछेंगे पर हम यह अवश्य पूछेंगे ऐसा करकर तुम्हे मिला क्या वोह महान श्राप जिसकी वजह से तुम्हारी जिंदगी और संघर्ष भरी हो गई कुंद्रा, बोलो बोलो कुंद्रा यह सब करके तुम्हे मिला क्या।"
इतना कहकर राजा सत्यम वहां से चले जाते है और रानी शुभांगी भी राजा सत्यम के साथ चली जाती है।
राजा सत्यम के जाते ही राजकुमारी मुंद्रा, राजकुमारी कुंद्रा से बोलती है, "हमें सब सच जानना है आखिर तुम तोह शेर का बाल लेकर महल के पीछे वाले दरवाज़े से लौट रही थी लेकिन तुमने प्रतियोगिताओं में आने का मन क्यों बनाया हमें सब सच जानना है बोलो अब बुत बनने से कुछ नहीं होगा हमें सब सच सच बताओ हम पर विश्वास करो हम तुम्हारा सच किसी को नहीं बताएंगे।"
राजकुमारी कुंद्रा की आंखों में आंसू थे वो बोलती है, "यह सब रानी कला की बातों में आ गए उन्होंने हमें ऐसा बहकाया जिसकी वजह से हम भी बहक गए उन्होंने ने अपनी बातों की चाशनी इस तरीके से डुबोया की हम भी उस चाशनी में डूब गए और हमने यह फैसला किया कि हम प्रतियोगिताओं में भाग लेंगे और पिता श्री का नाम रोशन करेंगे लेकिन सब उल्टा हो गया।
तभी दासी कृतिका आती है और तीनों राजकुमारियों को कुछ ऐसा बताती है जिससे तीनों राजकुमारियाँ हैरान और भयभीत हो जाती है।
क्या राजकुमारी कुंद्रा उत्तीर्ण कर पाएगी एक हजार प्रतियोगिताएं ?